जीवन का मूल मन्त्र – एम पी सिंह

मि. और मिसिस गुप्ता कि शादी को 10 साल हो गए थे। इन 10 सालों मे शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो कि दोनों झगड़ते न हो। झगड़े कि वजह कोई बड़ी नहीं होती थी, गुप्ता जी बस यही शिकायत करते कि चाय ठंडी है,

चाय अब तक क्यों नहीं मिली, दाल में नमक ज्यादा है, रोटी जला दी, वगैरह वगैरह। मिसिस गुप्ता को ये शिकायत रहती कि मैं भी तुम्हारी तरह नौकरी करती हुँ, तो तुम रसोई मैं मेरा हाथ क्यों नहीं बटाते, बेटे राहुल का होमवर्क क्यों नहीं कराते,

बाजार से सब्जी क्यों नहीं लाते, बस बैठे बैठे कमियाँ निकालते रहते हो। दोनों के स्वभाव मे ज़मीन आसमान का अंतर था, जहाँ मिसिस गुप्ता मिलनसार, खुश मिज़ाज और वहीं मि गुप्ता आराम परस्त और एकांत प्रिये। बेटा भी बड़ा हो रहा था और सब समझने लगा था।

उनकी बिल्डिंग मे रहने वाले सभी लोग इस सबसे वाकिफ थे, इसलिए कोई कुछ नहीं बोलता था। गुप्ताजी के साथ वाले फ्लैट मे नया किरायेदार आया डा. देव, जो एक मनोचिकित्सक था और सबसे ज्यादा डिस्टर्ब होता था।

एक संडे डा. देव, गुप्ता जी के घर चले गये अपना परिचय देने। इसी दौरान डा देव की मुलाक़ात मिसिस गुप्ता और बेटे राहुल से भी हो गई. डा देव समझ गया कि प्रॉब्लम मि गुप्ता के साथ है, क्योंकि मिसिस गुप्ता का व्यवहार काफ़ी सुलझा हुआ लगा।

उस दिन के बाद से राहुल अक्सर डा देव के घर चला जाता. बातो बातो मै राहुल ने बताया की अगले साल मै हॉस्टल मे और मम्मी गांव शिफ्ट हो जाएगी, क्यूंकि मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब होती है। डा देव बोला जिस दिन तुम्हारे पापा या मम्मी अकेले हो तो मुझे बताना, मै दोनों से अलग अलग बात करना चाहता हूं।

रात को जब डा देव खाना खाने बैठे, तो गुप्ता जी के घर से झगड़ने की आवाजे आने लगी। डा देव की पत्नी सुधा बोली, आप गुप्ता फॅमिली तो समझाओ, शांति के साथ रहे। कितना प्यारा बच्चा है, उसपर क्या असर होगा।

डा देव बोला, जल्दी ही दोनों की कॉउंसलिंग करुँगा और देखना सब ठीक हो जायेगा। अगली सुबह सुधा ने अपने पति को बताया, जब मै सुबह दूध लेने के लिए बाहर निकली, तो मिसिस गुप्ता बेटे के साथ सूटकेस लेकर जा रही थी. शायद रात मै झगड़ा ज्यादा बड़ गया होगा, और मायके चली गई।

देव ने पूछा, मि गुप्ता नहीं थे क्या? सुधा बोली, नहीं, शायद अंदर होंगे।शाम को डा देव गुप्ता जी के घर गये और पूछा राहुल और भाभीजी नहीं दिख रहे. मि गुप्ता बोले,रात को सासु माँ का फ़ोन आया था ससुर जी की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए गावं गए है, 2-3 दिन मैं आ जायेंगे.

देव को अकेले बात करने का अच्छा मौका मिल गया, उसने गुप्ता जी को डिनर पर बुला लिया जिससे खुलकर बातें हो सकें। रात को गुप्ता जी डा देव के घर गए तो खाना खाने के बाद डा देव बोले, गुप्ता जी,

अगर आप बुरा न माने तो मै आपसे कुछ बात पूछना चाहता हूँ, क्योकि राहुल अब समझदार हो रहा है और आप दोनों भी ठीक ठाक कमा रहे है, फिर मुझे ऐसा क्यों लगता है क़ि आपके घर मैं शांति नहीं है। मैं एक मनोचिकित्सक हूं, अगर आप चाहो तो मै आपकी मदद कर सकता हूँ।

गुप्ता जी थोड़ा असहज हुए पर बात करने के लिए मान गए. डॉ देव बोले, कल रात को आपके घर से फिर आवाजे आ रही थी, क्या हुआ था? कुछ नहीं, खाना खाने बैठे, पर दाल मे नमक नहीं था, पूछा तो बोली ऊपर से डाल लो।

डा देव बोले, फिर आपने नमक डाला? नहीं, गुप्ता जी का जवाब था, सब्जी से है रोटी था लीं। देव ने पूछा, और सब्जी कैसी बनी थी? गुप्ता जी बोले, सब्जी बड़ी जोरदार बनी थी. फिर देव ने पूछा, क्या आपने सब्जी की तारीफ की? गुप्ता जी बोले, नहीं। 

डा देव ने फिर पूछा, परसो सुबह सुबह भी आवाजे आ रही थी? अरे क्या बताऊ, नास्ता टेबल पर लगाया तो चाय ठंडी थी, पूछा, तो कहती क़ि अपने आप गर्म कर लो. सुबह सुबह ऑफिस के लिए तैयार होउ या चाय गरम करू?

नास्ता क्या था, डा ने पूछा. गुप्ता जी बोले, बटर के साथ आलू के परांठे, मेरी बीवी परांठे मस्त बनती है, एक दिन आप सब को खिलाऊंगा। क्या आपने परांठे की तारीफ की? गुप्ता जी बोले नहीं. फिर डा देव ने पूछा अक्सर लड़ाई झगड़े का कारण सिर्फ ईगो है.

आप दोनों जॉब करते है,आप कितने बजे उठते है, लगभग 7 बजे, और भाभी जी शायद 5 बजे, ठीक है? गुप्ता जी ने हाँ मे सर हिला दिया. भाभीजी सुबह उठकर चाय, नास्ता और लंच बनाये, बेटे तो तैयार करे, और तुम चाय गर्म करने का समय भी नहीं निकाल सकते?

एक कप चाय गरम करने मे, ऑवन मे केवल 15 सेकंड लगते हे. कायदे से दुसरो का सम्मान करने से ही इज्जत मिलती है. मिडिल क्लास की औरते हर छोटी छोटी चीज मे खुशी ढूंढ लेती है. अगर चाय की कमी बतानी जरूरी हो,

तो पहले परांठे की तारीफ करो. अगर दाल की खराबी बताना हो तो पहले सब्जी की खूबियां बताओ. अब आखरी बात, आपके ससुर बीमार है, आप क्यों नहीं गए? गुप्ता जी बोले, मैं डा. नहीं हूँ की जाकर ठीक कर दुगा. देव बकला तो क्या भाभी जी डा. है? 

नहीं, गुप्ताजी बोले, वो बेटी है, देखकर खुश हो जायेगे. फिर डा. देव बोला तुम दामाद हो, देखकर ज्यादा खुश होंगे. केवल अपने लिए नहीं, दुसरो के बारे मैं सोचना शुरू करो. 

आपने ससुराल मे फ़ोन किया? गुप्ता जी बोले, वो रात को फ्री होकर फोन करेगी. देव ने लगभग हुक्म देते हुए बोला,अभी फोन करो, ससुर जी का हालचाल पूछो और बोलो की तुम वीक एन्ड पर आ रहे हो, कुछ पैसौ की जरूरत हो तो भेज देता हुँ. गुप्ताजी बोले,

जाऊगा तो बेकार मे हजार 2 हजार लग जायेगे. डॉ बोला, मैंने अभी बताया था, की दूसरो के बारे मैं भी सोचा करो, होटल वाला यहाँ क्या फ्री मैं खाना खिलाएगा? गुप्ताजी जी ने फोन लगाया और डा. देव द्वारा बताई गई सब बातें बोल दी. मिसिस गुप्ता के बोलने का अंदाज़ और हंसी ने गुप्ताजी जी को

अचंभित कर दिया. फोन बंद करने के बाद गुप्ताजी जी बोले, बीवी की ऐसी प्रतिकिर्या पहली बारे सुनी है. डॉ देव बोला, तुम ससुराल पहुँचो, और भी बहुत कुछ देखने सुनने को मिलेगा, तुम बस मेरी बातें मत भूलना. ससुराल मे गुप्ताजी की बहुत अच्छी खातिरदारी हुई

और परिवार के सब लोग बहुत खुश हुए. दो दिन बाद मिसिस व मि गुप्ता शाम की बस से वापस लोट आये. घर पहुंचते ही मिसिस किचन मे खाना बनाने के लिए जाने लगी तो मि गुप्ता ने रोक दिया और बोला, तुम थक गई होंगी,

कल ऑफिस भी जाना है, मैं बाहर से कुछ मंगवा देता हूँ. मिसिस गुप्ता, पति का बदला बदला रूप देककर ख़ुश भी थी और अचंभित भी. कुछ दिन जब शांति से गुजरे, तो एक दिन मि गुप्ता, डा देव से मिले और उनका आभार व्यक्त किया, और बोला,

आपकी वजह से मेरी ग्रहस्ती पटरी पर आ गई. अगले दिन डा देव को लिफ्ट मे उनके दूसरे पड़ोसी मि राहुल मिले और पूछा, क्या गुप्ता फैमली कहीं बाहर गई है, आजकल बिल्डिंग में बहुत शांति है? डॉ देव बोले, गुप्ताजी यही है और हमारी संगत मे आकर बहुत बदल गए है. सारी बिल्डिंग मे गुप्ताजी फैमली की ही चर्चा है.

साथियो, पति पत्नी दोनों एक दूसरे के पूरक है, पत्नी के कार्यों का सम्मान करना और उसकी इज्जत करना किसी भी पति के किए शर्म की बात नहीं है, बल्कि खुशहाल जिंदगी का मूल मन्त्र है.

लेखक 

एम पी सिंह 

(Mohindra Singh )

स्वरचित, अप्रकाशित

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