जस्सी और प्रीति – विमला गुगलनी

ट्रिगं- ट्रिगं की तीन बार आवाज़ सुनकर भी जब जस्सी बाहर नहीं आई तो प्रीती का मन हुआ कि वो आज

अकेली ही स्कूल के लिए चल दे। जस्सी के कारण रोज ही देर हो जाती है, और फिर साईकल कितनी तेज़ चलानी

पड़ती है। कल तो खेतों की मुँडेर पर साईकल चलाते समय दोनों सहेलियाँ गिरते गिरते बची। अगर खेतों की तरफ से

थोड़ा सा बहते पानी में साईकल का पहिया फँस जाता तो मुसीबत ही आ जानी थी। वर्दी पर कीचड़ के कुछ छींटे तो

पड़ ही गए थे। सारा दिन वो चुन्नी से क़मीज़ छुपाती रही। गिरने को तो जस्सी भी थी, पर कद लंबा होने से उसका

पैर साईकल से नीचे लग जाता है, जबकि उसका कद थोड़ा छोटा था, तो उसका पैर पानी में चला गया । दूसरी बात

वो उसके पीछे थी तो उसको सँभलने का मौका भी मिल गया गया। वरना तो दोनों के कपड़े बुरी तरह से कीचड़ में

सने होते।अभी वो कल की घटना के बारे में सोच ही रही थी कि जस्सी बस्ता गले में लटकाए जल्दी जल्दी बाहर आ

गई और दोनों सहेलियाँ फटाफट तेज़ तेज़ साईकल के पैडल मारती स्कूल की और चल पड़ी।

स्कूल पहुँचने की जल्दी में दोनों की कोई बात नहीं हुई। जस्सी और प्रीति दोनों ही गाँव के सरकारी

सीनियर सैकैंडरी स्कूल की विद्यार्थी थी। जस्सी तो शुरू से ही गाँव में अपने मामा मामी के पास रहती थी। पहले तो

उसकी नानी ज़िंदा थी, लेकिन दो साल पहले जब वो चल बसी तो उसका मन उखड़ सा गया। वो अपने गाँव माता

पिता के पास जाना चाहती थी, पंरतु उसकी माँ ने उसे समझाया कि वहीं पर रह कर बाहरवी कर ले। जबकि उनके

गाँव में तो सिरफ आठवीं तक ही स्कूल था। अगर वो अपने गांव वापिस आ गई तो उसे दसवीं करने के लिए भी सात

आठ किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा, और फिर घर में तीन बहनें और भी तो है। शराबी , नशैड़ी बाप का वैसे ही कोई

ठिकाना नहीं था। चार बहनों में वो तीसरे नं पर थी। बेटे की चाह में उसके बाद भी एक और लड़की पैदा हो गई थी।

जस्सी की माँ हरभजन को उसका पति हर समय दिन रात बेटा न जनने के ताने ही मारता रहता। तभी तो जस्सी की

नानी पैदा होने के कुछ महीने बाद ही उसे ले गई थी। मामा के तीन बेटे थे, मामी बड़ी ठसक से रहती, जैसे बेटे पैदा

करके उसने कितना बड़ा अहसान कर दिया हो।

नानी के जीते जी तो मामी कुछ कह न सकी मगर अब तो उसका ही राज था। जस्सी को सुनाने का कोई मौका

नहीं छोड़ती थी। जस्सी की दो मासियां भी थी, एक के दो बेटे थे और दूसरी के दो बेटे और एक बेटी थी। सिरफ

जस्सी के ही सगा भाई नहीं था। मामा इकलौता था, उपर से तीन तीन बेटे,वखरी ही टोअर थी। हर समय मूँछों पर

ताव देकर रखता। परतुं जस्सी से भी वो बहुत प्यार करता। अच्छी ज़मीन जायदाद, अपने खेत खलिहान, पशु, कुआँ

सब था। नानी के बाद मामी को जस्सी का रहना नहीं भाता था। वो उसको वापिस अपने गाँव तो नहीं भेज सकी,

मगर बहाने बना बना कर उससे घर के बहुत से काम करवाती। जबकि घर में काम करने वालों की कमी नहीं थी।

मुँह की मीठी बनी रहती। जस्सी जैसे मूली के पराठें,भला कौन बना सकता है अमन, रमन, दिलप्रीत को तो अपनी

बहन के बने परौठें ही पंसद है। घर का मक्खन और जस्सी के बने परौठें और उपर से लस्सी का गिलास, बंदा तीन से

कम तो खा के उठता ही नहीं। ऐसे ही पलोस पलोस कर कभी उससे साग कटवाती और कभी चुल्हें पर मक्की की

रोटियाँ सिंकवाती। जो बात चूल्हे पर बनी रोटी में है, भला वो गैस पर कहाँ। ऐसी ही चाशनी भरी बातों से सारी

रसोई उसी के सिर पर डाल दी।

बेचारी जस्सी हर समय घर के कामों में ही फँसी रहती। होम वर्क करने का समय भी मुशकिल से निकाल

पाती। रात को देर तक वो अपना स्कूल का काम निबटाती। मामी घर का काम बस दिखावे के लिए ही करती वरना

तो पूरे गाँव में चौधरानी बन के घूमती। कभी वैसाखी तो कभी तीज, और किट्टियंयां तो न जाने कितनी थी। आजकल

कहने को गाँव है, वरना तो हर सहूलत है। मोबाईल फ़ोन और इंटरनेट ने सबको अकल सिखा दी है। गावं में माडल

स्कूल भी हर जगह खुले हुए है, जस्सी के मामा के तीनों बेटे तो उसी में ही पढ़ते है। सबसे बड़ा रमन तो इस साल

दसवीं कर लेगा। उसे तो मामा आगे किसी बड़े शहर में पढ़ाने की सोच रहे है। अमन और दिलप्रीत तो अभी चौथी और

सातवीं में ही थे। पढाई में तीनों ही ऐवरेज से भी कम ही थे। छोटा तो फिर भी कुछ ठीक था।माँ बाप न तो ज्यादा

पढ़े लिखे थे और न ही कभी उनहोनें ध्यान दिया। टयूशनें रख कर अपना फ़र्ज़ निभा दिया था। जस्सी से जितना बन

पड़ता या कोई पूछता तो बता देती। मामा को कामों से फ़ुरसत नहीं थी और मामी को गाँव की पंचायती करने से। नए

से नए सूट, फुलकारियां, झूमके ,कगंन, गोखड़ू पहनती। अपनी किट्टी पार्टी को समाज सेवा का नाम दिया हुआ था।

समय समय पर जब प्रोग्राम करती तो अपनी पुरातन संस्कृति ,पहनावे , रीति रिवाजों का प्रदर्शन जरूर होता। गिद्दा,

भांगड़ा , बोलियाँ, टप्पे, कई प्रकार के खेलों का भी आयोजन होता। ये सब तो चलो ठीक है, मगर घर परिवार की और

भी तो ध्यान देना जरूरी होता है। जस्सी अगर ज़रा सा भी डीप गले का क़मीज़ पहनती, तो फट उसे टोक देती लेकिन

दसंवी में पढ़ने वाला रमन स्कूल के बाद कहाँ जाता है,रात को कितने बजे घर आता है किसी को पता नहीं।

लडकों के बारे में तो यही कहा जाता है पुत मिठे मेवे, रब सबना नूं देवे"। और लड़कियां तो जैसे नीम

की निमोलियां है। बात करते है प्रीति की। प्रीति दो साल पहले ही इस गाँव में आई थी। उसके पिता गाँव की डिसपैंसरी

में डाक्टर के पद पर थे। चाहती तो वो गाँव में माडल स्कूल में एडमिशन ले लेती, लेकिन जब वो लोग वहाँ आए थे

तो उसने दसवीं की परीक्षा दी हुई थी। वहीं पर उसकी दोस्ती जस्सी से हो गई। उन्हें तो वही डिसपैंसरी में ही सरकारी

क्वार्टर मिला हुआ था। जस्सी का घर थोड़ी दूरी पर था। प्रीत को पहली बार गाँव में रहने का मौका मिला था। वो तो

शहरों में ही पली बढ़ी थी। वो और उसका भाई माँ और दादी के साथ शहर में ही रहते थे, और पिताजी की पोस्टिगं

आसपास ही रहती तो वो रोज या बीच बीच में आते रहते। कुछ समय पहले दादी के स्वर्गवास के बाद माँ को बहुत

अकेलापन लगता तो इस बार उन्होनें गाँव में ही रहने का फैसला कर लिया। प्रीत को तो गाँव में खेतों में घूमना बहुत

अच्छा लगता। एक दिन जब वो यूँ ही शाम को खेतों में घूम रही थी तो उसकी मुलाक़ात जस्सी से हुई, जो कि भैंस

का दूध निकालकर घर वापिस जा रही थी। तभी से उनकी दोस्ती हो गई। जस्सी ने भी दसवीं के पैपर दे रखे थे। दोनों

को ही रिज़ल्ट का इंतजार था।रिज़ल्ट आने पर दोनों ही प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई।

प्रीति को तो पापा की तरह डाक्टर बनना था, इसलिए उसे आगे की पढाई मैडीकल में ही करनी थी,

लेकिन जस्सी ने तो आर्टस ही लिया। उसे अपने भविष्य का कुछ पता नहीं था। प्रीति के पापा चाहते थे कि प्रीत

प्राईवेट स्कूल में पढ़े लेकिन उसने जस्सी के साथ ही गाँव के सरकारी स्कूल में एडमिशन लिया। दोनों की खूब दोस्ती

थी। गाँव की गलियाँ तो टेढ़ी मेढ़ी सी थी, माहौल भी शहरों से अलग ही था, लेकिन उनका दिल वहाँ लग गया। भाई

ने भी आठवीं में माडल स्कूल में एडमिशन ले ली। डाक्टरों की तो वैसे भी बहुत इज्जत होती है, और गाँव में तो और

भी ज्यादा। प्रीति के पापा वैसे भी अपने काम के प्रति बहुत समर्पित थे। सिरफ उसी गाँव के नहीं, बल्कि आसपास के

चार गावों के मरीज़ वहीं पर आते थे। एक और डाक्टर और दो तीन का स्टाफ़ और भी था। प्रीति अक्सर शाम को

खेतों की और निकल जाती। आजकल सरसों पर दूर दूर तक पीले फूल दिखाई देते तो कहीं गेहूँ की फ़सल लहलहा

रही होती। आमों के पेड़ भी खूब थे वहाँ पर , बूर पडा हुआ था, छोटे छोटे आम भी कहीं कहीं दिख रहे थे। पिछले

साल उसने देखा था कि यहाँ पर अक्सर कच्चे आम ही मंडी में जाते थे। उसकी ममी ने भी कच्चे आमों से कई

व्यंजन तैयार किए थे।

कुछ दिनों से जस्सी नोट कर रही थी कि रमन कुछ अजीब सी हरकते करता। कई बार तो रात को

काफी देर से लौटता। जस्सी ने पूछा तो कह देता कि हम तीन चार दोस्त मिल कर पढाई करते है। जस्सी चुप रही

लेकिन उसे कुछ खटका सा रहा। उन्के घर में शराब वगैरह तो चलती रहती। मामा रात को अक्सर पैग लगाकर ही

सोते। कोई घर में आ जाए , खुशी हो, गमी हो शराब ,नानवैज तो आम सी बात थी, जबकि उसका ख़ुद का बाप तो

पक्का शराबी और नशैडी था। मामा के घर में ऐसे हालात नहीं थे। बाहरवीं के रिज़ल्ट में जस्सी और प्रीति दोनों ही

अव्वल रही। किस्मत देखिए, उसी साल गाँव में कालिज खुल गया। प्रीति को तो आगे की पढाई रे लिए दिल्ली में

एडमिशन मिल गई। जस्सी की तो अब अपने गाँव वापसी की तैयारी थी, और इसी बीच दोनों बहनों की शादी भी हो

गई, जिसमें मामा ने बहुत आर्थिक सहायता की थी। बाकी रिशतेदारों ने भी जितना बन पडा किया। अब शादी की बारी

जस्सी की थी। लेकिन जब गाँव में कालिज खुल गया तो जस्सी के मन में आगे पढ़ने की तमन्ना हो आई। उसने

मामा से जब दिल की बात कही तो वो तो खुशी खुशी राजी हो गए। मामी ने भी कोई एतराज़ नहीं किया। वह भी

मुफ़्त की नौकरानी खोना नहीं चाहती थी, उपर से उसकी नेकी भी हो रही थी।

जस्सी के लिए वैसे तो सब ठीक था, मगर प्रीति के जाने से अकेली पड़ गई थी। प्रीति को भी सखी से

बिछुड़ने का मलाल तो था, लेकिन डाकटर बनने का सपना भी तो पूरा करना था। इसी बीच दुख भरी बात ये हुई कि

रमन दसवीं में फ़ेल हो गया। माता पिता के लिए यह बहुत बड़ा झटका था। दोनों ने जस्सी से विनती की कि वो रमन

की पढाई का ध्यान रखे। चाहती तो जस्सी भी यही थी, लेकिन वो उसके हाथ कम ही आता। कोई न कोई बहाना बना

कर निकल लेता। एक दिन जब रात को खाने के बाद दो चार किताबें लेकर बाहर निकल गया तो, जस्सी उसके कमरे

में गई, ताकि उसकी कापियाँ देख सके। अक्सर उसने होम वर्क नहीं किया हुआ था। टीचर ने कई बार नोट लिखे हुए

थे। मैथस की कापी का तो हर पन्ना ही लाल था। अभी वो ये सब देख ही रही थी कि जमैटरी बाक्स से एक पुड़िया

सी गिरी जिसमें कुछ सफेद पदार्थ था। जस्सी ने उलट पलट कर देखा, शायद नमक है। पर रमन नमक क्यों साथ

रखेगा। पहले तो उसने वापिस रख दिया, फिर न जाने क्या सोचकर उठा लिया।

अगले दिन कालिज में उसने अपनी इतिहास की मैडम जिससे उसकी बहुत बनती थी, उसे

दिखाया, तो वह चौंक उठी। अरे ये तुझे कहाँ से मिला, ये तो नशा है, दूसरे शब्दों में इसे; चिटा कहते है। इसने

ही तो आज के नौजवानों का बेड़ा गर्क कर रखा है। टीचर ने उसे नशे के बारे में और भी बहुत कुछ बताया। कैसे

पोस्त, भुक्की और न जाने कैसे कैसे इजैक्शनं भी नशे के लिए ख़ुद को लगाते है। इसकी अगर एक बार लत पड़ जाए

तो छूटनी बहुत मुशकिल है।जस्सी तो सकते में आ गई। सोच में पड़ गई । शराब के बारे में तो उसे पता था, घरों में

रोज ही देखती थी, मगर इन सब का उसे पता नहीं था। दुविधा में थी कि मामा मामी को बताए या ना। एक बार फिर

उसे उसका बैग देखने का मौका मिल गया, लेकिन अबकी उसे कुछ नहीं मिला। कुछ दिनों से वह उससे पढ़ भी रहा

था। एक दिन वो धोने वाले कपड़े मशीन में डालने लगी।उसकी आदत थी कि सब कपड़ों की जेबें जरूर चैक करती

थी, कई बार उनमें उसे पैसे, चाबिंया, पैन और रूमाल तो हमेशा ही निकलते थे। जेबें टटोलते समय उसे रमन की

ज़ाकिट के जेब से एक खाली इंजैक्शन मिला। अब तो उसका शक पक्का हो गया। अगले दिन उसने टीचर से फिर

बात की।

उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। तभी उसे प्रीति के डाक्टर पिता का ध्यान आया, तो

शाम को वो उनसे मिलने के बहाने चली गई। अकेले में जब उसने उन्हें सब दिखाया तो वो बिल्कुल हैरान नहीं हुए।

बोले; बेटा, ये बात तो यहाँ आम है, मेरे पास तो ऐसे कितने ही लोग है , जो हर रोज आते है, इसी ने तो युवकों को

बर्बाद किया हुआ है कुछ लोग अपनी कमाई करने के लिए देश के यूथ से खेल रहे है। पुलिस दिन रात इसको बेचने

और समगलिंग करने वालों की तलाश में रहती है। बहुत शातिर है ये लोग। गिरोह बने हुए है इनके। स्कूलों कालिजों

के आस पास ही घूमते रहते है। इनके ऐजेंट पहले फरी में इसकी आदत डालते है, और जब उनकों आदत पड़ जाती है

तो खूब पैसे ऐंठते है। जब इन नशेडियों को पैसे नहीं मिलते तो ये चोरी चकारी मार पीट यहाँ तक कि हत्या तक

करने से भी नहीं चूकते। अभी कुछ नहीं बिगड़ा । रमन को रास्ते पर लाया जा सकता है।सरकार की और से बहुत से '

नशा मुक्ति केद्रं; भी खुले हुए हैं। कितने नौजवान तो इसी नशे से बरबाद हो चुके है, और कुछ तो अपनी जान तक

गँवा चुके है। यह नशा देश के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुका है।

यह सब सुनकर जस्सी के तो हाथ पाँव फूल गए। घर में यह बात बताने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।

कहीं मामी ये न समझे कि वो उसके बेटे पर खामखाह इल्ज़ाम लगा रही है। उसे अपने बाप की खबर नहीं कि वो क्या

क्या करता है, और चली है हमारे बेटे पर इल्ज़ाम लगाने। पर जो भी हो, घर में बताना तो है। वो हर समय रमन पर

नजर रखती। उसके दोस्त कौनसे है, वो कहाँ जाता है। एक शाम जब वो उसने उसे पढ़ाने के लिए तो बुलाया तो वो

बोला कि आज उसके दोस्त का जन्मदिन है, तो उसे वहाँ जाना है। जस्सी ने उसे जाने दिया। वो तैयार होकर पैदल ही

चल दिया, नहीं तो कई बार साईकल ले जाता था। वो तो कई बार मोटर साईकल के लिए जिद कर चुका था, पर

मामाजी ने स्पष्ट कह दिया था कि अठारह की उम्र होने पर ही मिलेगी। वैसे दोस्तों की मोटरसाईकिल वो कई बार

चला चुका था। कई लडके तो बाईकस, एक्टिवा इतनी तेज़ चलाते थे कि अक्सर सामने वाला डर ही जाता। साईलेसरं

निकाल कर तेज़ आवाज़ और बेमतलब हार्न बजाना और टेढ़ी मेढ़ी चलाना लडकों का आम शुगल था। कोई मना करने

वाला नहीं, और वो किसी की सुनते भी नहीं थे। उनके लिए कोई कानून नहीं थे। लाईसैंस हो या न हो उन्हें कोई फ़रक

नहीं पड़ता। वैसे भी पैसे देकर लाईसैंस बनवाना आम सी बात थी।

रमन जब बाहर निकल गया तो न जाने जस्सी को क्या सूझी, कि चुपके से वो उसके पीछे चल

दी। थोडी दूरी पर ही एक पुराना मदिंर था, पास ही कुछ पुराने खण्डहर से भी थे। उस तरफ गाँव के लोग कम कम ही

जाते थे। जस्सी छुपते छुपाते उसके पीछे चल दी। घर में शरीफ़ सा दिखने वाला रमन इस समय बड़ी अजीब सी चाल

चलता हुआ , सीटी बजाता हुआ गुडां टाईप लग रहा था। जस्सी ने देखा कि वहाँ पर पाँच छह लडके और भी बैठे हुए

है, सब जैसे रमन का ही इंतजार कर रहे थे। जस्सी थोडी दूरी पर ही रूक गई, एक पिलर की ओट से उसे सब दिख।

रहा था। पुडिया से निकाल निकाल कर कुछ खा रहे थे। कुछ पी भी रहे थे। एक ने तो टीका टाईप भी कुछ लगाया।

जस्सी की जेब में मोबाईल फ़ोन था, उसने दूर से ही ज़ूम करके कुछ फ़ोटोग्राफ लिए, वीडियो बनाई और घर वापिस

आ गई। रात को मौका पाकर उसने मामा से बात की। तभी मामी भी आ गई। सुनकर वही हुआ जिसका जस्सी को

डर था। न जाने उसने जस्सी को क्या क्या सुनाया। जस्सी चुपचाप सुनती रही। जब मामी ने अपने दिल का सारा

ग़ुबार निकाल लिया को जस्सी ने फ़ोटो और वीडियो दिखाया। अब तो मामी का रंग उड़ गया। मामा ने तभी रमन को

बुलाया जो अपने कमरे में बैठा पढ रहा था या फिर पढ़ने की एक्टिगं कर रहा था। सब हालात जानकर उसके तो तोते

उड़ गए।मुकरने का तो सवाल ही नहीं था।

अगले दिन मामा ने स्कूल जाकर सारी बात प्रिंसिपल साहब को बताई। तस्वीर में दिखने वाले सब

बच्चों और उनके माँ बाप को बुलाया गया। पुलिस को भी खबर करनी जरूरी थी। सब बच्चों को प्यार से समझाया।

बच्चों से बहुत सी और भी कई जानकारियाँ मिली। धंधा करने वाले कुछ लोग पकड़ में भी आए। पीटीए की मीटिंग

बुला कर माँ बाप को भी हिदायत की गई कि बच्चों का ध्यान रखना कितना जरूरी है। सब तरफ जस्सी की वाह वाह

हो रही थी कि उसने इस छोटी सी उम्र में कितना बड़ा काम किया। एक समारोह में जब जस्सी को सम्मानित किया

गया तो प्रीती भी आई हुई थी। उसे मान था अपनी सखी पर। गाँव के सरपंच ने भी विशवास दिलाया कि वो बच्चों को

इन बुरी आदतों से बचाने का हर भरसक प्रयास करेगें, और आस पास के गाँवों में भी ये मुहिम चलाएँगे। गाँव के

डाक्टर तो साथ थे ही और भी बहुत से पंतवते सज्जनों ने सहयोग का वादा किया। आख़िर अपने बच्चों के भविष्य

का सवाल थे। यह समस्या घुन की तरह लगी हुई है, ज़रूरत है इसका जड़ से ख़ात्मा करने की।

दोनों सहेलियाँ जस्सी और प्रीति खुश थी। प्रीति ने अपनी पढाई के बारे में बताया। उसने ये भी इच्छा

जाहिर कि की डाक्टर बन कर वो भी पापा की तरह गाँवों में रहकर सेवा करेगी। जस्सी मुंह से कुछ नहीं बोली, मगर

उसका सपना आगे चलकर टीचर बनने का था। एक दूसरे का हाथ पकड़े दोनों सखियाँ सरसों के लहलहाते खेतों के

बीच तितलियों की तरह उड़ती, चुनरी लहराती और ये गीत गाती; मेरे देश में पवन चले पुरवाई, हो मेरे देश में चली

आ रही थी।

विमला गुगलनी

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