जेनरेशन गैप – सीमा प्रियदर्शिनी सहाय : Moral Stories in Hindi

कई दिनों से अपराजिता का मूड थोड़ा ऑफ था, यह रियाबहुत अच्छी तरह से महसूस कर रही थी। ना जाने क्यों आजकल वह थोड़ी उखड़ी उखड़ी सी रहती है। अपनी आप से मतलब रखती है और काम से काम और कोई बात नहीं। न कोई हंसी मजाक न कोई चुहल ।

न जाने क्यों उसकी खुशियां खो गई हैं? पहले तो जब भी रिया अपने मायके जाती थी उसकी भाभी अपराजिता उसे हाथों हाथ लिए रहती, उसकी खुशियों का ख्याल रखती थी लेकिन कुछ दिनों में न जाने ऐसा क्या हुआ कि अपराजिता भाभी उसी से कटी कटी सी रहने लगी है।

6 महीने पहले एक ही लग्न में अपराजिता और रिया दोनों की शादी हुई थी। एक बेटी की विदाई हो रही थी और एक बहू का घर में गृह प्रवेश रहा था।

अपराजिता का गृह प्रवेश हो गया उसके बाद ही रिया के विदाई का शुभ मुहूर्त था। इन कुछ ही घंटों में दोनों एक दूसरे की पक्की सहेली बन गई थीं ।

बीते छह महीनों में ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि रिया को मायके आते समय कोई गिल्टी महसूस हुई थी क्योंकि उसे अपनी भाभी से ही अब सबसे ज्यादा अच्छी लगने लगी थी।

दोनों ही अपनी बातें एक दूसरे से दिल खोलकर शेयर करती और सलाम मशविरा भी किया करती थी लेकिन कुछ हफ्तों में रिया महसूस कर रही थी कि अपराजिता का स्वभाव पूरी तरह से बदल गया था।

हमारे ख़ानदान में लेने देने की जगह रिश्तों में प्यार हो और अपनापन हो इस बात पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है । – के कामेश्वरी : Moral Stories in Hindi

“ कहीं मुझे तो कोई गलती नहीं हो गई ?मैंने तो नहीं अपराजिता भाभी का दिल दुखा दिया! या कोई और बात तो नहीं!”

यही सोचकर रिया एक दिन बिना किसी को बताए हुए अचानक अपने मायके पहुंच गई।

यह सोचकर कि वह अपनी भाभी से दिल खोलकर पूछेगी कि उसे क्या प्रॉब्लम है? 

जैसे ही उसने घंटी बजाया अपराजिता ने ही दरवाजा खोला। उसके चेहरे में एक चमक आ गई।

“अरे तू यहां अचानक कैसे?”

“ यही तो मैं आपसे पूछने वाली हूं। आपको क्या हुआ है?”

“मुझे क्या हुआ है? मैं तो ठीक हूं।”अपराजिता मुस्कुराने की कोशिश करने लगी मगर उसके चेहरे का दर्द साफ नजर आ रहा था।

“क्या हुआ भाभी ,आप मुझसे छुपा रही हैं? हम दोनों ही दूसरे को प्रॉमिस किया था ना कि हम एक दूसरे की सहेली बनेंगे।”

तभी पीछे से रिया की मम्मी वहां आ गई। रिया को अचानक देखते ही वह चौंक गई। “अरे रिया तू यहां ?सब ठीक तो है अचानक कैसे यहां बेटी?”

“बस ऐसे ही मां मन किया तो आ गई। क्या मुझे ऐसे नहीं आना चाहिए था ?”

“नहीं नहीं ऐसा नहीं है ।आओ बैठो बेटी।”फिर उन्होंने अपराजिता से कहा “बेटा जाओ रिया के लिए कुछ नाश्ता लेकर आओ। “

“नहीं भाभी पहले आप यहां आकर बैठिए मुझे कुछ जानना है।आप ठीक नहीं हैं। कुछ तो ऐसी बात है जिससे कि आप कुछ कटी कटी सी रह रही हैं ?”

“नहीं रिया,ऐसी कोई बात नहीं है। तुम्हें कुछ गलतफहमी हो गई है। मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूं तब तक तुम मां से बात करो।”

जब अपराजिता उठकर वहां से चली गई तो रिया प्रश्नसूचक निगाहों से अपनी मां की तरफ देखने लगी।

ऐसे भी लड़के वाले होते हैं – मीनाक्षी सिंह

रिया की मां कुसुम जी ने कहा” तुम्हें तो पता है ना रिया,यहां बहू का जॉब करना किसी को पसंद नहीं ।अब अपराजिता को एक अच्छी कंपनी से ऑफर लेटर आ गया है।यह नौकरी करना चाह रही है।तुम्हारे पापा गुस्सा हो रहे थे ।इस कारण पंकज ने अपरा को मना कर दिया। जिस से वह नाराज हो गई है। दोनों मियां बीवी में खींचतान चल रही है, अब क्या करें,किसे खुश रखें।”कुसुम जी परेशान हो गईं।

“क्या बात कर रहीं आप मां, भाभी को इसी दिन का इंतजार था। उन्होंने कितनी मेहनत से अपनी पढ़ाई पूरी की थी।और फिर हर इंसान को अपने सपने देखने का हक होता है मां! फिर ऐसे कैसे किसी के पंख कुतर दिए जाएं!”

“तू अपनी मत हांक, अपने पापा को नहीं जानती क्या।उनका गुस्सा और उसूल नहीं बदल सकते कभी भी। अपराजिता को ही अपने सपनों पर अंकुश लगाने होंगे।”

“नहीं मां यह ठीक नहीं है मैं पापा से बात करूंगी।”

तब तक अपराजिता चाय के साथ गरमा गरम पकौड़े लेकर वहां आ गई थी ।

“रिया ,तुम्हें पकौड़े पसंद है ना। मैं तुम्हारे लिए पकौड़े लेकर आई हूं।”

“वाह भाभी, थैंक यू सो मच! आपके हाथ के पकौड़े तो मुझे भावनगर में कहीं भी नहीं मिलते!” 

थोड़ी देर बैठकर अपराजिता वहां से उठकर अपने कमरे में चली गई।

रिया अपराजिता की तल्खी को महसूस कर रही थी।थोड़ी देर बाद वह धीरे से अपराजिता के कमरे की कुंडी खटकाई ।

“आ जाओ रिया !”रिया अंदर आकर  अपराजिता के बेड पर बैठ गई। अपराजिता खोई हुई खिड़की से बाहर देख रही थी।

“भाभी, आपको बहुत बुरा लग रहा है ना! आपसे ज्यादा मुझे बुरा लग रहा है।आपको इस कॉलिंग लेटर का इंतजार था और जब आ गया तो आपको कोई नौकरी नहीं करने दे रहा है यह तो बहुत ही ज्यादाती है। मैं पापा से बात करूंगी। पंकज भैया भी ध्यान नहीं देते। उन्हें आपका साथ देना चाहिए था।”

अपनी ननद के मुंह से यह सब सुनते ही अपराजिता की आंखों में आंसू आ गए।

वह रो पड़ी ।

बेटा है पराया धन – Shikshaprad Kahaniya

उसकी आंखों में आए आंसू पोंछते हुए रिया ने कहा “भाभी रोने से कुछ नहीं होगा अगर कुछ करना है तो आपको ठानना पड़ेगा। कभी-कभी चलती हवा के विरुद्ध  भी चलना पड़ता है।”

“हां रिया तुम कितना सही सोचती हो। पापा जी कहते हैं ,तुम्हें यहां किस बात की कमी है बहू, हर कुछ तो तुम्हारे लिए पड़ा हुआ है।  नौकरी करके क्या करना है ।आराम से घर में रहो।

मगर तुम ही बताओ क्या मैं अपनी पहचान नहीं बनाऊं । मेरे कोई सपने नहीं हैं? समाज में मैं मिसेज अपराजिता शर्मा  ही बनकर रहूं और कुछ नहीं! इतनी मेहनत से मैं पढ़ाई की थी तो क्या बस घर गृहस्थी संभालने के लिए?और कल हमारी फैमिली बढ़ेगी तो डिसीजन हम कल लेंगे ना, उसके लिए आज से ही घर में क्यों बैठना।”

“हां भाभी आप बिल्कुल सही कह रही है, यह तो मां पापा को पहले सोचना था कि उन्हें अगर नौकरी नहीं करानी थी तो सिंपल ग्रेजुएट लड़की लेकर घर आते। इतनी हाईली एजुकेटेड लड़की को बहू बनाने का क्या मतलब था? उसे घर गृहस्थी के चक्कर में फंसा देना। मैं आपके साथ हूं भाभी।”

 शाम को चाय के समय जब  सब लोग साथ बैठे थे ,अपराजिता रसोई में थी।

मौके देखकर रिया ने अपने पिता दिवाकर जी और कुसुम जी दोनों से कहा “मैं आप दोनों के जेनरेशन गैप को दूर करना चाहती हूं ।

पापा हर समय नौकरी सिर्फ जरूरत पूरी करने के लिए नहीं होती है। अपनी खुशी के लिए भी होती है ।अपने इगो को संतुष्ट करने के लिए भी होती है। हम इतनी मेहनत से अगर पढ़ाई करते हैं तो हमारे अंदर एक गोल होता है कि हम कुछ हासिल करें और अपने आपको कामयाब बनाएं। उसके बदले में अगर हमें अच्छी तनख्वाह मिल भी रही है तो क्या दिक्कत है ।

वह घर में ही तो आएगा ।आपको अपनी खुशी दिख रही है भाभी की नहीं।

सिर्फ सोने के गहने और अच्छे कपड़ों और अच्छे खाने से खुशी नहीं मिलती है पापा, थोड़ी सी खुशी सैक्रिफाइस करने से भी मिलती है।आप अपनी खुशी और उसूल  का थोड़ा सा सैक्रिफाइस कर लीजिए। कुछ हिस्से की खुशी भाभी को दे दीजिए। देखिए वह कितनी खुश हो जाएगी और खुशी से फिर से चहचहाने लगेगी ।”

“शायद तू ठीक कहती है रिया। कई दिनों से मैं भी महसूस कर रहा हूं कि अपराजिता बेटी बहुत ही उदास नजर आ रही है। मैं ही ज्यादती कर रहा था। कोई बात नहीं मेरी बेटी बहुत समझदार है । उसने हमारे बीच के जेनरेशन गैप को दूर कर दिया।”

प्यार का जाल – नंदिनी

उन्होंने अपराजिता को आवाज देकर बुलाया” अपना बेटा इधर आना!”

“जी पापा जी!” अपराजिता रसोई में काम कर रही थी। उसके कान इधर ही लगे हुए थे।

“कल ही तुम जाकर अपनी नौकरी ज्वाइन कर लो। नहीं तो डेट निकल जाएगा।”

“हां सिमरन,जी ले अपनी जिंदगी! उड़ ले पंख पसारकर।सारा आसमान तुम्हारा है!”

 रिया ने नाटकीय अंदाज में कहा तो सब लोग हंसने लगे।

अपराजिता ने रिया को गले से लगा लिया “थैंक यू रिया, तुमने मुझे मेरी जिंदगी लौटा दी।”

**

प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय 

# ननद

साप्ताहिक विषय # ननद के लिए 

पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के साप्ताहिक विषय के लिए।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!