“ बेटा , अब तुम कर ही लो शादी, कब तक मेरी बनाई कच्ची पक्की रोटी खाते रहोगे, दाल, सब्जी में भी कोई कीड़ा पक जाएगा, तो फिर न कहना, बहुत कम दिखता है मुझे, तेरी छोटी बहन मिष्ठी एक बच्ची की माँ भी बन गई और तूं अभी तक कुवाँरा, अब तो मुहल्ले वाले बातें भी बनाने लग गए।”नारायणी ने गरम फुल्के पर देसी घी लगा कर उसकी थाली में रखते हुए कहा।
निमेष मुस्कराता हुआ आराम से खाना खाता रहा।नारायणी को मालूम था कि सब्जी, दाल चाहे कैसी भी हो, कोई भी हो, निमेष को गर्मागर्म तवे से उतरा फुल्का ही पंसद है। इसलिए वो उसके लिए सुबह , रात उसके टेबल पर बैठने के बाद ही तवा रखती।
निमेष और मिष्ठी दो प्यारे बच्चों की मां नारायणी सीधी सादी, पूजा पाठ में विश्वास रखने वाली और कुछ कुछ पुराने विचारों की भी थी। पति हरिवंश सरकारी नौकरी में थे , ईमानदारी से नौकरी की , दोनों बच्चों को पढ़ाया।
कबीलदारी भी थी। पुशतैनी घर था, सब काम होते चले गए। मिष्ठी की शादी के एक साल बाद ही थोड़ी सी बीमारी के बाद चल बसे। निमेष एम. बी. ए. करके अच्छी कंपनी में नौकरी कर रहा था। हरिवंश जी ने सरकारी नौकरी के लिए फार्म वगैरह भरने के लिए कहा था,
लेकिन उसने मना करते हुए कहा” पिताजी, एक तो मेरी सरकारी नौकरी में कोई दिलचस्पी नहीं, एक जगह लग गए तो सारी उम्र उसी में निकल जाएगी, दूसरी बात , सरकारी नौकरी आजकल मिलनी भी आसान नहीं, आपका जमाना और था, और अब तो आने वाले समय में पैंशन भी नहीं मिला करेगी।”
मौका मिला तो मैं अपनी कंपनी ही खोलूंगा, कुछ समय अनुभव प्राप्त कर लूं, यह कहना था निमेष का। अब तो घर में दोनों माँ बेटा ही रह गए।तीस से ऊपर हो चला था , तभी तो माँ शादी के लिए कहती।
आज जब उसने शादी के लिए कहा तो वो आराम से खाना खाने के बाद फ्रिज से दो कप आईसक्रीम निकाल कर लाया और एक मां के हाथ में दिया और दूसरा अपने हाथ में लेकर बैठ गया और बोला, मुझे तो अपनी मां के हाथ की रोटी ही पंसद है और कीड़े वीड़े पक भी जाएं तो क्या, नान वेज ही सही।
छिः, कैसी बातें करता है, नान वेज और इस घर में, मेरे जीते जी कभी नहीं।तूं बाहर खाता है, मैं जानती हूं, लेकिन घर में नहीं, नारायणी के मुँह में जैसे आईसक्रीम की जगह नानवेज ही आ गया हो, उसने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा।
लोगों की बात छोड़ो मां, उनका तो काम है कुछ न कुछ कहना। जब भी कोई अच्छी लड़की मिलेगी, पक्का शादी तो करूंगा ही, परतुं मां, आजकल की लड़कियां बहुत तेज होती हैं, कहीं ऐसा न हो कि मेरे साथ साथ तुझे उसके लिए भी खाना बनाना पड़े, निमेष चुटकी लेते हुए बोला।तूं सुनता ही नहीं, तेरी मासी का कल भी फोन आया था, किसी लड़की के बारे में बता रही थी, लेकिन मैं चुप रही, अब क्या कहूं जब तूं शादी के लिए तैयार हो, तभी बात आगे बढ़ाऊं।
और काम की कोई बात नहीं, मैं अब भी कौनसा काम करती हूं, सारा घर तो बेचारी गीतू ( काम वाली) संभालती है, तेरे लिए अपने हाथों से खाना बनाना मुझे अच्छा लगता है।
अगले साल नवंबर में निमेष की प्रमोशन हुई तो सबने पार्टी की मांग की, उसका जन्मदिन भी था। खास खास बीस पचीस लोग होटल में बुलाए थे।नारायणी भी गई, वो तो मना कर रही थी कि बच्चों की पार्टी में उसका क्या काम लेकिन निमेष माने तब ना। उनमें तनीषा नामक लड़की भी थी। काफी काम कर रही थी, होटलों में काम तो सब किया कराया मिलता है, लेकिन फिर भी ध्यान तो देना ही पड़ता है।
नारायणी ने नोटिस किया कि तनीषा काफी अपनेपन से और शायद कुछ हक से भी आगे बढ़कर काम कर रही थी, जैसे कि उसने बैयरों से कमरे की थोड़ी सजावट चेंज करवाई, ऐसे ही खाने का सामान भी चैक किया, सिटिंग अरेंजमैट में भी कुछ बदलाव करवाया। निमेष भी जैसे उसकी बातों में हां मिला रहा था। नारायणी की अनुभवी आंखों ने कुछ कुछ अनुमान लगाया। चलो सब हँसी खुशी निपट गया।
वापसी पर गाड़ी में नारायणी के साथ तनीषा भी बैठी। निमेष ने कहा कि वो गर्ल्स होस्टल में रहती है, तो रात को अकेली कहां जाएगी, उसे छोड़ते चलते हैं। अगले दिन इतवार था। नारायणी ने बिना भूमिका बांधे नाशते के बाद निमेष से तनीषा के बारे में पूछा। निमेष भी जैसे इसके लिए तैयार था। माँ, मैनें आपको तनीषा से मिलवाना था, इसीलिए आपको पार्टी में लेकर गया, कैसी लगी?
लड़की ठीक ठाक है, ज्यादा सुंदर तो नहीं, लेकिन कद- काठी अच्छी है, कहां की है, जात बिरादरी, उम्र भी लगती है।नारायणी ने कहा।
“ अगर, ये आपकी बहू बन जाए तो, ?” उम्र कितनी है, नारायणी ने पूछा।
“ माँ, मुझसे तीन साल बड़ी है, और जात बिरादरी भी हमसे छोटी है, लेकिन मैं इन सब बातों को नहीं मानता।”
लेकिन बेटा, लोग क्या कहेगें।
मां वो गाना सुना ही है आपने, कुछ तो लोग कहेगें, लोगों का काम है कहना, आप बताओ, आप क्या कहती हो।
नारायणी क्या कहे, उम्र देखने में तो नहीं लगती थी लेकिन जाति।
माँ, मुझे पता है, आप क्या सोच रही हूं, कर्म ही जात है, हम सब मानव है, किसी जमाने में काम के आधार पर जातियां बनाई थी, आज कोई इनको नहीं मानता।
हम दोनों पढ़े लिखे है, विचार भी मिलते है, जल्दी ही अपनीं कंपनी बनाने की सोच रहे है, अगर आपका आशीर्वाद मिल जाए तो।
ठीक है बेटा, तूं खुश तो मैं भी खुश, लोगों की छोड़ो,दुनिया तो दो धारी तलवार है, हां अपनी बहन से बात कर लें।
“ मां , मिष्ठी सब जानती है, मिल चुकी है तनीषा से”
“शैतान कहीं के, मां से सब छुपाया”
और अगले महीने ही कोर्ट में दोनों की शादी और फिर ग्रैंड रिसेपशन की गई। दोस्तों,सच में ही लोगों की बातों में कुछ नहीं रखा। दो दिन में सब भूल जाते है, जरूरी है अपनी और अपने परिवार की खुशी।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- कुछ तो लोग कहेगें।