राजस्थान के एक छोटे से कस्बे की पुरानी बैंक शाखा में मीना नाम की महिला कर्मचारी सालों से थी। कामचोरी उसकी आदत बन चुकी थी — हफ़्ते में एक-दो दिन आना, और दो घंटे में लौट जाना। उसकी कोई शिकायत नहीं, कोई रोक-टोक नही करता था ।
फिर आया अमित वर्मा — सख़्त, मगर ईमानदार अधिकारी।
उसने कहा, “यहाँ सबको समय पर आना होगा और काम पूरा करना होगा।” उसका इरादा शाखा में अनुशासन लाना था, लेकिन मीना को यह बात नागवार गुज़री। आदत बिगड़ चुकी थी, और बदलाव उसे अखरने लगा। यह बात मीना को चुभ गई। बिना काम के खाने की आदत जो थी ।उसने योजना बनाई, झूठी कहानी गढ़ी और ऊपर मेल कर दिया कि अमित ने उसका शोषण किया है। अमित के लिए यह बिजली गिरने जैसा था। उसने तो बस मीना को अपना काम ठीक से करने को कहा था। बड़े अफ़सरों के मन में भी शक बैठ गया और अपने झूठ को मजबूत करने के लिए उसने आरती नाम की दूसरी महिला कर्मचारी को भी अपने साथ मिला लिया!
CCTV फुटेज भी देखे गए, लेकिन मीना ने बयान बदलकर कहा कि “अमित ने मुझे उस जगह बुलाया था जहां कैमरा नहीं था।” ठोस सबूत न होने के कारण अमित का ट्रांसफ़र कर दिया गया। मीना के चेहरे पर मीठी मुस्कान थी, पर आँखों में झूठी नमी — जैसे खुद को पीड़ित दिखाकर जीत हासिल कर ली हो।
बैंक में कुछ ऐसे लोग भी थे जो उस करमठ कर्मचारी की दिल से सराहना करते थे। वे मानते थे कि ऐसे लोग ही किसी संस्था की रीढ़ होते हैं। उनका रिकॉर्ड सालों से एकदम साफ़ था, हर निरीक्षण में बेहतर प्रदर्शन, हर रिपोर्ट में ईमानदारी की गवाही। यही वजह थी कि जो लोग सच्चाई जानते थे, वे भीतर ही भीतर चाहते थे कि यह गलत आरोप जल्दी खुलकर सबके सामने आ जाए। क्योंकि वे जानते थे — जब किसी का अतीत बेदाग़ हो, तो वर्तमान में लगा दाग़ ज़्यादा देर टिक नहीं सकता, चाहे कोई कितनी भी दिखावटी बातें या झूठे आँसू बहा ले।
और अंदर ही अंदर वो मीना पर अब ताक लगाये बैठे थे । उसकी हर गतिविधि पर नज़र रखे हुए थे ।सही मौक़े के इंतज़ार में थे ।
कुछ समय बीत गया था अब ।
मीना ने फिर वही ढर्रा शुरू कर दिया। रोज़ पूरा दिन ऑफिस में होने का दावा, फाइलों में दर्ज किए गए झूठे क्लाइंट, झूठी एंट्रीज़ ।जबकि CCTV में साफ़ दिखा कि वह आई ही नहीं थी।
अब कुछ दूसरे स्टाफ़ ने हिम्मत करके उसके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज की ।
मीना से पूछताछ की गई ।
मीना ने फिर वही नाटक किया — आँसू पोंछते हुए बोली, “नहीं सर, मैं तो बहुत अच्छी हूँ… मैं ऐसा कर ही नहीं सकती।” लेकिन इस बार सबूतों ने उसकी हर बात को डुबो दिया। कोई उसकी तरफ़ नहीं था, कोई उसकी सफाई सुनने को तैयार नहीं था।
जैसे ही ये सामने आया, पहला केस भी खुल गया। सबको समझ आ गया कि जो महिला इस केस में झूठ बोल सकती है, उसने पहले भी झूठा आरोप लगाया होगा।
जांच फिर से शुरू हुई। इस बार HR ने आरती से अलग से बात की — नरमी से, तर्क से, और थोड़े दबाव से। सच बाहर आ ही गया — मीना ने उसे पहले केस में साथ देने के बदले पैसा देने का लालच दिया था।
मीना को सीधा नौकरी से हटा दिया गया ।
और फिर उसकी सच्चाई गाँव से लेकर शहर तक पहुँच गई। कोई बैंक, कोई दफ़्तर उसे रखने को तैयार नहीं था।
कहानी यहीं खत्म नहीं हुई — यह सबक भी छोड़ गई कि दिखावटी रोना एक बार चल सकता है,
बार-बार नहीं। और जब सच का दरवाज़ा खुलता है, तो झूठ की सबसे गाढ़ी परत भी चिथड़ों में बदल जाती है।
औरत तो दया, त्याग और कर्मठता की मूरत होती है चाहे घर हो या कार्यस्थल ।
यदि वह ये सोचे कि वह नारी है और इस चीज़ का वह ग़लत लाभ उठाने की सोचे तो यह ग़लत है । इज़्ज़त आदमियों की भी होती है । दिखावटी रोना केवल मात्र थोड़ी देर का काम चला सकता है सदा के लिए नहीं । एक दिन इससे सिर्फ़ अपमान ही प्राप्त होता है ।
अमित का नाम साफ़ हुआ, लेकिन उसके मन में मीना का वह चेहरा हमेशा के लिए जम गया —
वह चेहरा, जहाँ एक आँख रो रही थी, दूसरी हँस रही थी, और दोनों मिलकर इंसानियत का सबसे कड़वा मज़ाक उड़ा रही थीं।
आज ख़ुद एक मज़ाक बन कर रह गई थी ।
ये लघुकथा कैसी लगी?
इंतज़ार में
ज्योति आहूजा
#एक आँख से रोवे एक आँख से हँसे ।