यह बात तो भगवान शिव ने पार्वती को भी समझाई थी – बीना शर्मा

कनिका को जब पता चला कि उसकी भतीजी पुरवा का रिश्ता पक्का हो गया और कुछ दिन बाद उसकी शादी होने वाली है तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा था। वह खुद ही अपनी भतीजी की शादी में जाने की तैयारी करने लगी थी। जब कनिका के पति सुजीत ने कनिका को पुरवा की … Read more

जेवर – प्रियंका पांडेय त्रिपाठी

प्रिया की शादी का दूसरा दिन था। सुबह का समय जेठानी जी फर्श पर बैठी हुई थी ननद रसोई में नाश्ता बना रही थी अचानक ननद प्रिया के पास आई ,उसे आंगन में ले गई और ऊंचे स्वर में प्रिया से कहने लगी कि….      “भाभी ने हमारे लिए बहुत किया है वो मां के समान … Read more

वो भी तो मेरा अंश था… – चंचल नरूला

काश कोई बड़ा भाई या बहन होती जो संभाल लेती मेरी लाडो को हम बुड्ढा बुढ़िया के बाद | जाने किस उधेड़ बुन मे फंसी थी चेतना जब डॉ. ने कहा माँ जी आपको अपने लिए नहीं अपनी इकलोती  बेटी के लिए जीना है | ” कितनी खुश थी न चेतना उन 2 लकीरों को … Read more

माता पिता भगवान का दूसरा रूप होते हैं – बीना शर्मा

उम्र 65 घुटनों में दर्द कहां तक वह भागदौड़ कर सकती थी अपने और अपने पति के लिए खाना बनाते बनाते सरला देवी मन ही मन यही सोच रही थी जिस उम्र में औरतें आराम से बैठकर खाना खाती हैं उस उम्र में वह अभी घर का सारा काम करती थी।        कितने चाव से उसने … Read more

चकल्लस – रवीन्द्र कान्त त्यागी

“अरे नामाकूलो, मेरा चश्मा कहाँ मर गया” मां जी पूरी ताकत से चिल्लाईं। “फिर ये शैतान की औलाद मेरा चश्मा उठाकर ले गए। मेरा तो इस घर में जीना मुहाल हो गया है। पता नहीं क्या खाकर पैदा किया है इन चुड़ैलों ने औलादों को। सारे दिन मेरे ही सामानों के पीछे पड़े रहते हैं। … Read more

“ये जीवन है…।” – रवीन्द्र कान्त त्यागी

आह… कितनी देर सोया। पता ही नहीं चला। सुबह होने वाली है शायद। मगर… मगर अभी तो अंधेरा सा है। ओह, कई दिन की थकान से पूरा शरीर दुख रहा है। तेरह दिन तक जमीन पर बैठे बैठे। और उसके बाद… उसके बाद मौत का उत्सव। मेरी बीवी की मौत का जश्न। ओह… मेरी परम्पराओं … Read more

शायद माँ हमें माफ कर दें – स्वाति जैन

“पापा, यह क्या? मेरी पत्नी मेरी — मेरी पत्नी लगा रखा है आपने! आपकी पत्नी कोई अनूठी फरिश्ता या परी नहीं है। जब से आए हैं, एक ही राग लगाए बैठे हैं — राखी बांध दी कि इस घर में हिस्सा नहीं देंगे, इन पैसों पर तुम्हारा कोई हक नहीं है, मैं तो मेरे घर … Read more

 सोच – परमा दत्त झा

आज राजेश मिश्र खुशी से भरे हुए थे कारण बहू राधा ने इनको मौत के मुंह से छीन लिया था। हुआ यह कि राजेश बाबू एक शिक्षक थे और बड़ी मुश्किल से बेटे को बी टेक ,एम बी ए कराया था।बेटा पढ़ाई के दौरान एक विजातीय लड़की से प्रेम करने‌ लगा था और इनके मना … Read more

ज़हर बुझे – रवीन्द्र कांत त्यागी

नहीं, ये कहानी नहीं है. कहानी तो बिलकुल नहीं है. साहित्य वाहित्य का भी इस से कुछ लेना देना नहीं. इंसान के भीतर, जन्म से लेकर उम्र भर तक जो ग्रंथियां बनती बिगड़ती रहती हैं, जिनमे से कई अनसुलझी गुंन्थियाँ बन जाती हैं और उन पर जीवन भर एक बड़ा वाला अलीगढ़ का ताला पड़ा … Read more

अपने अपने पैमाने – रवीन्द्र कान्त त्यागी

बात कुछ बारह या तेरह वर्ष पुरानी है। मेरे एक रिश्तेदार ने अपनी मेधावी बेटी का रिश्ता दिल्ली में रहने वाले एक अच्छी जॉब और सम्पन्न घराने के लड़के से तय किया था। लड़का और लड़की दोनों एक दूसरे के बिलकुल अनुकूल थे और परिवार के लोग भी इस रिश्ते से बहुत खुश दिखाई दे … Read more

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