सोने की अंगूठी – रश्मि प्रकाश 

“कमल बाबू, आख़िरी बार समझा देता हूँ… जो  बात तय हुई है, वह निभानी पड़ेगी, वरना… फिर हम भी ज़िम्मेदार नहीं होंगे,”लड़के के ताऊ हरिराम ने धीमी लेकिन कड़वी आवाज़ में कहा। कमलदास ने धोती की गठान कसते हुए, मुस्कुराने की कोशिश की,“अरे भाई साहब, आप तो घर के बड़े हैं, आपकी बात सिर–आँखों पर… … Read more

अब के सज्जन सावन में – संध्या त्रिपाठी

सुबह के नौ बजने में पाँच मिनट बाकी थे, लेकिन किचन की घड़ी मानो तेजी से भाग रही थी। “किरण, मेरी सफ़ेद शर्ट इस्त्री हुई या नहीं? मीटिंग है आज, तुम जानती हो न!”आदित्य ने अलमारी से फाइल निकालते हुए ऊँची आवाज़ लगाई। किरण ने गैस पर तड़तड़ाते तवे की तरफ़ देखा, पराठा पलटते-पलटते घबराते … Read more

सर्वगुण संपन्न भाभी – हेमलता गुप्ता

क्लास ख़त्म होते ही कॉलेज की घंटी बजी तो सब लड़कियाँ अपने-अपने ग्रुप में फुसफुसाते हुए बाहर निकलने लगीं। कैम्पस के बीचोंबीच लगे पुराने पीपल के पेड़ के नीचे रिया अपनी दो सहेलियों—साक्षी और मान्या—के साथ खड़ी थी। तीनों के हाथ में किताबें थीं, पर बात किसी और ही विषय पर चल रही थी। “अच्छा … Read more

परवरिश – सविता गोयल

“हैलो दीदी, कैसी हैं आप?ओह, मैं भी क्या पूछ रही हूँ — आपके तो मजे हैं, अब नई बहू रानी से खूब सेवा करवा रही होंगी!”वंदना ने चहकते हुए अपनी ननद कुसुम से फोन पर पूछा। “हम ठीक हैं,” — कुसुम के मुंह से इतनी ठंडी प्रतिक्रिया सुनकर वंदना को बहुत आश्चर्य हुआ।अभी छह महीने … Read more

थोड़ा समय मुझे भी चाहिए – मुकेश पटेल

“बस, अब और नहीं, निखिल… आज तो मुझे बोलने दो,”सिया ने बरामदे में कपड़े फैलाते-फैलाते अचानक बाल्टी ज़मीन पर रख दी। उसकी आवाज़ में रोना भी था और थकान भी। निखिल ने अख़बार से सिर उठाया, चश्मा थोड़ा नीचे खिसका,“क्या हुआ फिर से? सुबह-सुबह तने हुए चेहरे का मतलब है, कुछ ना कुछ शुरू होने … Read more

मैंने जिसे हीरा समझा वह तो नालायक निकला !! – स्वाती जैंन

तुम लोग उधार के पैसे से मुझे सेव और पपीता जैसे फल खिला रहे हो , फल खरीदने तक के पैसे नहीं हैं तुम्हारे पास ?? मैं तो कहती हुं अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा तुम्हारे पति मोहित को समझाओ कि उसके छोटे भाई रोहित से पैसे मांग ले , क्या जरूरत थी जलन के … Read more

आख़िर मेरा भी अस्तित्व है – मुकेश पटेल

प्रज्ञा बचपन से ही अलग तरह की लड़की थी।बचपन में जब मोहल्ले की लड़कियाँ गुड़िया-गुड़िया खेलती थीं, वह किसी पुराने रेडियो को खोलकर उसके तारों को जोड़ने में लगी रहती। स्कूल में भी उसका मन हमेशा गणित, कंप्यूटर और किताबों में लगा रहता। पढ़ाई में वह इतना तेज़ थी कि पूरे जिले में उसका नाम … Read more

ये मेरी जिम्मेदारी है – मंजू ओमर 

ये लो सोनल तुम्हारा टिकट और जाने की तैयारी करो बस।कल मैं आ जाऊंगा तुमको स्टेशन छोड़ने।और हां सोनल मैं आज तुमसे एक बात कहना चाहता हूं तुम्हें जाने से पहले ,जो बहुत दिनों से मेरे मन में थी। बहुत दबाकर रखा था मन में मैंने कि पता नहीं तुम्हें अच्छा लगेगा या नहीं। क्या … Read more

बहू जिम्मेदारियाँ और अधिकार दोनों साथ-साथ चले तो ही अच्छा है – अर्चना खंडेलवाल  

 “अरे वाह, आज तो गली में बड़ी शांति है… न तो बरामदे से कोई ऊँची आवाज़, न बर्तन बजने की खटर-पटर!”लता मासी ने मोहल्ले की परिचित टोन में आवाज़ लगाते हुए चौखट पर पायल खनकाई। अंदर से किचन में रखे बर्तनों की हल्की खनक और गैस पर सीटी बजाती कुकर की आवाज़ आ रही थी।कैलाश … Read more

लीडर लेडी – संध्या त्रिपाठी

रजनी हमेशा अपनी कॉलोनी में सबसे सक्रिय महिलाओं में गिनी जाती थी। किसी भी कार्यक्रम, किसी भी आयोजन, किसी भी सामाजिक काम—सबसे पहले उसका नाम आता। उसकी तेज़ आवाज़, उसका चटक-दमक वाला अंदाज और दूसरों से एक कदम आगे रहने की आदत ने उसे मोहल्ले की “लीडर लेडी” बना रखा था। उसी मोहल्ले के पीछे … Read more

error: Content is protected !!