मैं डिलीवरी पर मायके नहीं आऊंगी !! – स्वाती जैंन

काव्या , मैं इस बार भी तेरी डिलीवरी मायके में ही करवाऊंगी , मैंने तेरी सास से भी बात कर ली है उन्हें भी कोई एतराज नहीं हैं , मैं तो तुझे सातवे महीने में ही घर ले आती मगर तूने मना कर दिया खैर अब नौंवा महिना लग गया हैं दो दिन बाद ही … Read more

और वह नहीं गई – शिव कुमारी शुक्ला 

उसके पत्रकी प्रतीक्षा में धन्नो ने   लम्बे -लम्बे एक,दो,तीन नहीं पूरे चार साल बिता दिए, किन्तु उसका पत्र नहीं आया।राह देखते -देखते उसकी आंखें पथरा गईं ना जग्गू आया ना उसका पत्र। जैसे वहां के वातावरण में जा देशप्रेम की धुन में वह अपने परिवार को ही भूल गया था। बूढ़ी मां और बूढ़ी हो … Read more

मेरे मायके वाले बार बार उपहार क्यों दे ?? – स्वाती जैंन

बहू , यह भड़कीले लाल रंग की साड़ी दी है तुम्हारी मां ने उपहार में मुझे , क्या तुमने उन्हें बताया नहीं कि मैं ऐसे भड़कीले रंग नहीं पहनती ! अरे मेरी पसंद ना सही समधी जी की पसंद का तो ख्याल रखते , तुम्हारे पापा ने आलोक जी को यह केसरी रंग का कुर्ता … Read more

बूढा – परमा दत्त झा

सुख के सब साथी दुख में न कोई-रामाधार यह गीत गाते हुए काम कर रहा था।आज तबियत ढीली थी और सत्तर का यह था। आवाज बहुत सुन्दर,ऐसा लगता मानो मुकेश गा रहे हों।सो सब कार्यक्रम में बुलाते थे।अब तो मुंबई भी बुलाया जाता था। मगर घर में -घर में इसकी औकात दाल के बराबर भी … Read more

एक नया सबक – डा० विजय लक्ष्मी

शर्मा परिवार की कोठी हर त्यौहार पर रौनक से भर जाती थी। इस बार सावन का महीना था, आँगन में झूले पड़े थे, घर में हरियाली तीज की तैयारियाँ चल रही थीं। जेठानी रीमा और देवरानी सुषमा, दोनों की उम्र में ज़्यादा फर्क नहीं था। रीमा के पति, राजेश जी, बैंक में अधिकारी थे, जबकि … Read more

खुन के रिश्तों से मन के रिश्ते बेहतर हैं !! – स्वाती जैंन

यह भाभी का बेटा भी ना , जब भी हाथ में लो कभी सु- सु कर देता हैं तो कभी पोटी , बड़ा बदतमीज बच्चा हैं बोलकर रीतु अपने कपड़े साफ करने लगी !! यह तो अपनी मां को जरा भी तंग नहीं करता रीतु , तुझे पता हैं जब तू छोटी थी तो तूने … Read more

नसीहत – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू

जैसे जैसे शाम ढल रही थी रमेश की तेवरी चढ़ती जा रही थी,चढ़े भी क्यों ना अभी तक अपने ही मन मुताबिक तो सब कुछ कराते  आये है फिर भला कैसे बदल सकते है खुद को वे सोचते हैं सब कुछ पहले जैसा ही होगा, शायद वो ये भूल गये कि वक्त बदल गया तब … Read more

 क्योंकि जब माँ मुस्कुराती है — तब ही घर ‘घर’ बनता है। – दिव्या सिन्हा

“माँ कैसी हैं अब?”नेहा ने घर में कदम रखते ही अपने बड़े भाई आदित्य से पूछा। आदित्य ने गहरी साँस ली, चेहरे पर थकान और मन में चिंता साफ झलक रही थी —“पहले जैसी नहीं रहीं, नेहा। कुछ महीने से तो जैसे उनमें कोई जान ही नहीं बची। खामोश रहती हैं, किसी से बात नहीं … Read more

परवरिश – डॉ बीना कुण्डलिया

 आज सुबह से ही स्कूल में खुशी के कारण डौली के तो पांव ही जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मन ही मन सोचती है, पंख होते तो दौड़कर घर पहुँच जाती। जल्दी जल्दी डौली ने स्कूल से घर आकर अपनी मम्मा को आवाज लगाई मम्मा, मम्माऽऽ मम्मा आप कहां है ? अरे मम्मा सुनो … Read more

आग में तेल छिड़कना – लक्ष्मी त्यागी

‘आग में घी डालना हो या तेल आग तो भड़केगी ही,निर्भर इस बात पर करता है, कि क्या वो आग पहले से ही प्रज्ज्वलित थी ? ”इसी प्रकार रिश्तों में ,यदि थोड़ी सी भी, किसी के प्रति कोई शिकायत रह जाती है और दूसरा आकर उसके मन की, उस बात को हवा दे दे या … Read more

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