सोने की अंगूठी – रश्मि प्रकाश
“कमल बाबू, आख़िरी बार समझा देता हूँ… जो बात तय हुई है, वह निभानी पड़ेगी, वरना… फिर हम भी ज़िम्मेदार नहीं होंगे,”लड़के के ताऊ हरिराम ने धीमी लेकिन कड़वी आवाज़ में कहा। कमलदास ने धोती की गठान कसते हुए, मुस्कुराने की कोशिश की,“अरे भाई साहब, आप तो घर के बड़े हैं, आपकी बात सिर–आँखों पर… … Read more