सावन के झूलें – सरिता कुमार : Moral Stories in Hindi

सिद्धार्थ जब भी घर आते तो मेघा अजीब सी परेशान हो जाती । कुछ अस्त व्यस्त सी बड़ी अनमनी सी । पानी का गिलास सिद्धार्थ के बजाए पापा को पकड़ाने चली जाती और किताब काॅपी किचन में रख देती और  जाकर कोने में खड़ी हो जाती । फिर उसके पापा आवाज़ लगाते तब आकर बैठती … Read more

“नया सवेरा” – डॉ  विद्यावती पाराशर : Moral Stories in Hindi

सुबह के दस बजे थे। रमा अपने छोटे से घर में किचन में काम कर रही थी। किचन से हल्की हल्की खुशबू आ रही थी, पर उसके चेहरे पर वही पुराने दिन का थकान और भावनाओं का बोझ साफ़ झलक रहा था। इतने वर्षों में रमा ने जाने कितनी मुश्किलें देखी थीं। पंद्रह साल पहले … Read more

बेटी, बहन, बुआ – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

डोली आ गई, माँ जल्दी करो, भाभी भैया कार से उतर चुके है, अभी तक आरती की थाल तैयार नहीं हुई, चलो हटो, तुमसे न होगा पूनम लगातार बोले जा रही थी। उसने फटाफट माचिस से दिए को जगाया। माँ को माचिस ही नहीं मिल रही थी, बारात में जाते समय मेड संतोष को बोल … Read more

तुम सा नहीं देखा – अनु माथुर : Moral Stories in Hindi

मुंबई सपनों का शहर…शायद ही कोई होगा जिसे मुंबई आने का  मन ना हो….ये शहर खींचता है अपनी तरफ…..जगमगाती सड़कें, समंदर, गगन को चूमती हुयी इमारतें, .फैशन भी तो यहीं से शुरू होत है…… कहते है जो एक बार यहाँ आ जाए फिर उसका मन यहीं लग जाता है…. शाम के पाँच बजे मुंबई का … Read more

सावन में हरी साड़ी भैया से या सैंया से…. – संध्या त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

            अरे…. देखिए ना जी…. वो हरा पत्ता कितना प्यारा लग रहा है …..वाह … इसका हल्का हरा पन कितना प्यारा है….. सैवी ने बागान में टहलते हुए सुशांत को एक नन्हे पौधे की पत्ती दिखाते हुए कहा….।     काश… इस कलर की साड़ी मेरे पास होती….. सुनिए ना सुशांत… मेरे लिए खरीद देंगे… ये वाली हरे … Read more

आत्मसम्मान की जीत – डॉ० मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

मीरा की उंगलियाँ चाय के खाली कप को घूमा रही थीं, जैसे उसका जीवन बार-बार उसी खालीपन के चक्कर में घूम रहा हो। सास का कर्कश स्वर अभी भी कानों में गूंज रहा था, “अरे, तू चुपचाप सहन क्यों नहीं कर लेती? घर की शांति के लिए थोड़ा समझौता तो हर औरत को करना पड़ता … Read more

निर्मोही – संगीता त्रिपाठी : Moral Stories in Hindi

 तन्वी स्टेशन पर बैठी थी ,अभी ट्रेन आई नहीं ,पापा कमलेश तन्वी के सामनों को ठीक करने के बहाने अपनी गीली आंखों को चुपके से पोंछ ले रहे थे ,तन्वी समझ रही थी पिता को उसका बिछोह दुख दे रहा ,उसने तो मना किया था पर पापा ने कहा था ,”तेरे सामने भविष्य पड़ा है … Read more

 टूटी डोर से बुना आकाश – डॉ० मनीषा भारद्वाज : Moral Stories in Hindi

सायंकाल की लालिमा घर की खिड़की पर पिघल रही थी, जैसे नीरजा के जीवन का सुख पिघल गया था। विकास का सूटकेस, वह हरा-भरा पौधा जिसे वह प्यार से सींचती थी, और बैंक पासबुक – सब गायब थे। एक साधारण सा व्हाट्सएप मैसेज छोड़ गया था वह: -“माफ़ करना, नीरजा। ज़िंदगी कभी-कभी गलत मोड़ ले … Read more

आओ लौट चलें – डॉ बीना कुण्डलिया 

धनश्याम जी और उनकी धर्मपत्नी पार्वती शाम के समय घर के लान में बैठे अपनी पुरानी स्मृतियों को ताजा कर रहे।पार्वती जी बोली- आपके रिटायरमेन्ट को दो साल हो गये। मैं तो इन दो बरसों में शरीर और दिमाग दोनों रूप से अस्वस्थ रहने लगी हूँ। ले देकर दो बच्चे सारी जिंदगी उनके पढ़ाई लिखाई … Read more

संतुष्ट – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू : Moral Stories in Hindi

अचानक आये फोन ने रोहन को चौका दिया कही कुछ फिर हुआ क्या क्योंकि बरस भर पहले उसने फोन किया था और आज पापा की ………. ।भूल गए क्या नहीं नहीं मां भला मैं कैसे भूल सकता हूँ आता हूं दरसल आना जरूरी था इसलिए आया कहकर फोन तो काट दिया पर साल भर पहले … Read more

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