पहला पहला प्यार है – वीणा सिंह

आज नील और मैं एक-दूसरे से ऐसे बात कर रहे थे जैसे सालों पुराने अजनबी हों।सूखे से, औपचारिक, जैसे बस ज़रूरत भर की बात करनी हो। मैंने बालकनी के शीशे में अपना चेहरा देखा तो मन ही कसक उठा—कहाँ गया वो नील जो मेरी हँसी सुनते ही खुद हँसने लगता था?कहाँ गई वो आर्या जो … Read more

बदनसीब बाप

“नंदू… उठ जा बेटी… देख, तेरे बाबा आ गए हैं… आँख तो खोल…”राघव चौधरी स्ट्रेचर पर सफ़ेद चादर से ढँकी उस काया से लिपटकर रो रहे थे। उनकी सूखी उँगलियाँ चादर के किनारे को बार-बार पकड़कर छोड़ देतीं, जैसे यक़ीन ही न हो कि भीतर लेटी देह अब कभी नहीं जागेगी। पास खड़ी नर्स ने … Read more

किस्मत अपना रास्ता खुद चुनती है – गरिमा चौधरी

रीमा ने गेट से अंदर दाख़िल होते ही नाक पर रुमाल रख लिया। “हे भगवान, ये कैसी जगह है?” उसने धीरे से माँ के कान में फुसफुसाया, “चारों तरफ़ धूल, खुले नाले, गाय-बैल… और आप कह रही थीं कि यहाँ ‘बहुत बड़ा कारोबार’ है!” माँ ने आँखें तरेरीं—“धीरे बोल, लोग सुन लेंगे। ये तेरे मामा … Read more

ससुराल के नियम

सुबह के सात भी नहीं बजे थे कि शर्मा हाउस की घंटी ज़ोर से बजी।अंदर रसोईघर में सब्ज़ी काटती अवनि ने चौंककर घड़ी देखी—“अरे, आज तो सीमा इतनी जल्दी आ गई?” सीमा घर की कामवाली थी, जो आम तौर पर साढ़े सात–आठ के बीच आती थी।दरवाज़ा खोलते ही अवनि ने देखा—सीमा सिर पर पुराना सा … Read more

असली इरादा – moral story

कॉलेज की आख़िरी सालाना समारोह में जब मंच पर पूरे बैच के सामने टॉपर का नाम पुकारा गया, तो ऑडिटोरियम तालियों से गूंज उठा। “काव्या सिंह!” हल्के नीले रंग का सलवार सूट पहने काव्या ने घबराई-सी मुस्कान के साथ स्टेज पर कदम रखा। छोटे से कस्बे की यह लड़की महानगर की नामी प्राइवेट यूनिवर्सिटी से … Read more

उजाला – संध्या त्रिपाठी

 माँ – माँ उठ ना , देख  तो उजाला हो गया ….. मैं जाऊं पटाखा बिनने ? कहां जाएगी बिटिया पटाखा बिनने …..? जहां तू काम करती है ना माँ ….वहीं …  कल देखी थी मेम साहब का बेटा (भैया) खूब पटाखा फोड़े थे….. जरूर दो- चार इधर-उधर बिना फूटे रह गया होगा …!    अरे … Read more

“अम्मा का कमरा”

रीना किचन में बर्तन समेट ही रही थी कि अचानक फोन की घंटी बजी।फोन उठाया तो गाँव से बड़े चाचा थे— “बिटिया, अम्मा अब बहुत बूढ़ी हो गई हैं। आँखों से कम दिखता है, घुटनों में दर्द है। अब अकेले रहना मुश्किल हो गया है। तुम लोग दिल्ली में हो, किसी के पास तो होना … Read more

अधिकार

आदित्य की कार दरवाज़े पर रुकी ही थी कि भीतर से ऊँची आवाज़ें बाहर तक आ रही थीं। वह ठिठक गया—पहचान लिया, यह तो उसकी माँ सरोज जी की आवाज़ है। मन में खटका हुआ, “शायद काव्या से कोई चूक हो गई होगी… पर ऐसे चिल्लाने की क्या ज़रूरत?” वह तेज क़दमों से अंदर पहुँचा। … Read more

ज़रूरी नहीं हर कहानी घर की कहानी एक जैसी हो – गीतू महाजन, : Moral Stories in Hindi

“सुनो जी,शिप्रा पांच बजे तक पहुंच जाएगी तो उसकी पसंद की प्याज़ की कचौड़ियां आ और गुड़ वाला हलवा याद से ले आए थे ना आप”,रीमा जी ने घड़ी में देखते हुए अपने पति रमाकांत जी से कहा। “तुमने मुझसे कब कहा यह सब लाने को..अब तो चार बज रहे हैं और तुम्हें पता है … Read more

कर्ज – विमलभारतीय ‘शुक्ल’

कामिनी पूरे घर में निर्देश देती घूम रही थी, जैसे कोई आयोजन हो। पर यह आयोजन नहीं, विदाई की तैयारी थी—उस व्यक्ति की, जिसने कभी इस घर को अपने कंधों पर खड़ा किया था। “पिता जी से कह दो, अंदर वाले कमरे में चले जाएँ, कुछ लोग मिलने आने वाले हैं।”कामिनी ने नौकर को आदेश … Read more

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