बिटिया का घर बसने दो – लक्ष्मी त्यागी :Moral Stories in Hindi

विपिन ! देख लीजिए ! यह लड़का भी गंजा है, लगभग 33 वर्ष का हो गया है ,केतकी अपने पति से बोली।   अच्छा कमाता है, जब इंसान तरक्की करता है, तो किसी न किसी चीज से तो पीछे रह जाता ही है।कभी रिश्ते पीछे छूट जाते हैं तो कभी रूप -रंग साथ छोड़ देता है।  … Read more

 बिटिया का घर बसने दो – सीमा सिंघी :  Moral Stories in Hindi

श्यामा  दीदी रोटी बनी की नहीं मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है  और मेरा नाश्ता कहां है मुझे तो डाइनिंग टेबल पर कोई नाश्ता नहीं दिख रहा। अब क्या भूखे पेट जाऊं, लगभग चीखते हुए रवि ने श्यामा से कहा। रवि तुम्हारा लंच बॉक्स तैयार है और नाश्ता भी तैयार है। लो फटाफट … Read more

बिटिया का घर बसने दो। – मधु वशिष्ठ :

 Moral Stories in Hindi बिटिया का घर बसने दो। कल भी जब मैं इनकम टैक्स ऑफिस गया था तो रमन को वहां बैठे देखा। उसने दफ्तर में ही सबके बीच में मेरे पैर भी छुए और मेरा काम भी आसानी से हो गया। भाई मुझे तो रमन अपनी बेटी शिप्रा के लिए बहुत पसंद है। … Read more

हैलो ! कामिनी कैसी है – सुदर्शन सचदेवा :  Moral Stories in Hindi

सुबह ६ बजे ही फोन कर दिया | रवि ने फोन उठाया | हां जी मम्मी जी ! बोलो  ! आवाज़ में नींद भरी हुई थी, प्लीज़ सोने दिजिए , बाद में फोन करना | सुबह सुबह नींद खराब कर दी , एक तो रात को देर से आता हूं और अब……… कामिनी ! इधर … Read more

बिटिया का घर बसने दो – कंचन प्रभापांडे :  Moral Stories in Hindi

सृष्टि किसी उलझन में बैठी हुई थी तभी कॉल वेल बजती है। सृष्टि उठाती है तो उसकी मां दहाड़ती है कहां जा रही है? गेट नहीं खोलना ,घुमक्कड़ आया होगा। सृष्टि के कदम रुक जाते हैं कुछ देर बाद फोन की रिंग बजती है ।सृष्टि जैसे ही फोन उठाती है उसकी मां की आवाज आती … Read more

बिटिया का घर बसने दो -के कामेश्वरी :  Moral Stories in Hindi

सावित्री दस दिन से शापिंग करने में व्यस्त थी साथ ही …… अपनी पल्लू से आँसू पोंछती जा रही थी क्योंकि ……उसकी बेटी रत्ना की बिदाई जो है । वह बहुत कुछ अपनी बेटी को देना चाहती थी ……इसलिए जितना भी खरीदती थी उसका दिल नहीं भरता था । यहाँ तक ठीक है ….. लेकिन … Read more

पापा की परी – विमला गुगलानी :Moral Stories in Hindi

    कामिनी दो कप चाय लेकर बाहर लान में ही ले आई जहां देवेश अखबार लेकर बैठे थे। अखबार सामने रखा था मगर देवेश का ध्यान कहीं और ही था।  “ चाय”, कामिनी ने देवेश के हाथों में कप पकड़ाते हुए कहा। “ओह, हाँ” कह कर देवेश ने अखबार एक और रखते हुए कप पकड़ लिया … Read more

टीस

भूमि को किताबों की खुशबू बचपन से भाती थी। स्कूल के दिनों में जब भी कोई नई कॉपी मिलती, वो सबसे पहले उसे सूंघती, फिर कवर चढ़ाती, और कोने में पेंसिल से अपना नाम लिखती — बहुत सलीके से। लेकिन ये सलीका सिर्फ कॉपियों में ही था, उसके अपने सपनों में नहीं… क्योंकि सपनों को … Read more

बिटिया का घर बसने दो -डॉ० मनीषा भारद्वाज :

 Moral Stories in Hindi शाम की सुनहरी धूप ने शालिनी के कमरे की खिड़की पर सोना उंडेला था। वह अपनी नोटबुक में कुछ गणित के सूत्रों में खोई हुई थी, जब उसकी माँ, सुधा, दरवाजे पर आईं। उनके चेहरे पर एक विचित्र-सी मिश्रित चमक थी – खुशी के नीचे छिपी एक गहरी चिंता। “बेटा,” सुधा … Read more

error: Content is protected !!