“अरे मां…! कितनी बार कहा है… इतनी सुबह मत नहाया करो.. तुम हो कि तुम्हें कुछ सुनाई ही नहीं देता… क्या जरूरत है.. ठंडी में इतनी सुबह हड़़बड़ हड़़बड़ करने की… आराम से सब चले जाएं.. तब नहा लो.. धूप निकलने दो.. तब नहाओ….!” आदर्श अपनी मां रमा जी को लगभग डांटते हुए ही.. इतना बोल कर चला गया….
मां सीताराम.. सीताराम.. करते हुए पूजा करने घर में घुस गई… लेकिन मन बहुत उदास हो गया… वह तो बचपन से ही… सुबह-सुबह नहाती आई थी… आज तक कई बार बीमार पड़ी.. फिर ठीक हुई… पर यह आदत ना गई.… कई बार आदर्श के पापा भी समझा चुके थे… पर रमा जी इस बात से समझौता नहीं कर पाती थीं….!
अब यहां बेटे बहू के पास.. दो रूम का फ्लैट था.. एक बाथरूम… उसमें सुबह-सुबह नहाने से.. बच्चों को भी दिक्कत हो जाया करती थी… सबको बाथरूम की आवश्यकता होती थी सुबह… इसलिए वह और सुबह… सबके उठने से पहले ही.. अपना काम कर लेने की सोच कर.. सवेरे नहाने घुस गईं..
दो से तीन घंटे पूजा पाठ निपटाते लग जाते थे.. बच्चों का क्या.. बच्चे तो कहते कि ऐसे ही खाना खा लो.. दवा खा लो.. पर जब तक वह अपनी सभी पूजा की विधियां संपूर्ण ना कर लें… उनके हलक से दाना नहीं उतरता था…!
आदर्श बोलकर निकल गया… दोनों बच्चे भी तैयार होकर स्कूल चले गए… घर में रमा जी और अनु उनकी बहू ही रह गए…!
अनु ने रोज की तरह सबके जाने के बाद… नाश्ता लगाकर मां के सामने रख दिया… रमा जी ने नाश्ता तो कर लिया.. लेकिन दवा नहीं खाई…. दोपहर भी वही किया.. और रात को भी.. रात को तो उन्हें बिना नींद की दवा खाए.. नींद भी नहीं आती थी.. कितनी ही दवाइयां.. प्रेशर.. शुगर.. नींद की.. सभी खानी होती थी.. एक दिन भी उनके बिना रहना मुमकिन नहीं हो पता था… पर उन्होंने दिन भर दवाई के बिना गुजार दिया… रात भर जागी रही… दवा के बिना…
सुबह जाकर थोड़ी आंख लग गई… सुबह सब उठे तो घर में मां सो रही थी… आदर्श ने अनु से पूछा… “क्या बात है.. आज मां अभी तक सो रही है..!”
अनु बोली..” पता नहीं.. ऐसा तो कभी नहीं होता.. हो सकता है देर से आंख लगी हो रात.. छोड़ दो.. अपने आप आंख खुलेगी तभी उठेंगी… वैसे तो रोज सुबह ही उठ जाती हैं… एक दिन तो सोई रहें….!
सब अपने-अपने कामों पर निकल गए… तब कहीं जाकर रमा जी उठीं…. दवा नहीं खाने से रात.. नींद पूरी न लेने से… शरीर में अजीब सी कमजोरी हो रही थी… धीरे-धीरे नहाने गईं… पूजा करने गईं तो अनु ने कहा..” मां आज लगता है.. तबीयत नहीं ठीक आपकी.. छोड़ दीजिए पूजा करना.. नाश्ता करके दवा ले लीजिए…!”
पर उन्होंने साफ मना कर दिया… “बिना पूजा किए तो.. मैं एक दाना भी नहीं खा सकती.. जब तक मेरे शरीर में जान है..!
अनु कुछ ना बोली.. जानती थी मां वही करेंगी जो उन्हें करना है… बोलने का कोई फायदा नहीं…!
धीरे-धीरे पूजा करने में समय और अधिक लग गया.. 1:00 बजे तक तो जाकर कहीं पूजा खत्म हुई… फिर खाना खाकर सो गईं…!
शाम को बच्चे आए तो दादी सो रही थी… आदर्श आया तब भी मां सो रही थी… उसे आश्चर्य हुआ ऐसा तो कभी नहीं होता… अमूमन दिन को तो.. मां को नींद आती ही नहीं.. अभी तो शाम को सो रही है… कुछ तबीयत तो गड़बड़ नहीं हुई…!
अनु से पूछा तो बोली..” क्या पता.. मुझे भी लग रहा है… पर कुछ बताएं तब तो…!”
आदर्श मां के पास गया.. जाकर बोला..” क्या हुआ मां.. मैं जा रहा था तब भी सो रही थी.. अभी भी सो रही हो.. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गई…!”
मां ने करवट बदलते हुए कहा…” बीमार पड़ी तो पड़ी… मेरे बीमार पड़ने से किसी को क्या फर्क पड़ता है… किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता…!”
“ऐसा क्यों कहती हो मां..!” आदर्श बोल पड़ा तब तक अनु भी कमरे में आ चुकी थी बोली..” क्या हुआ मां कोई बात है तो बताइए ना… आप सुबह से ऐसी अनमनी सी हैं… दवा ली भी या नहीं…?”
रमा जी ने सीधे कह दिया…” नहीं.. दवा खाकर क्या करना है… भगवान अब जल्दी शरण में ले लें.. ऐसे तो उनकी पूजा होने से रही…!”
“अरे मां दवा क्यों छोड़ दिया आपने…अगर कुछ हो गया आपको तो…!”
” हो जाने दो… तुम लोगों के लिए तो अच्छा ही है…!”
आदर्श ने मां के गले में बाहें डालकर कहा…” अच्छा बहुत ज्ञान दे रही हो प्यारी अम्मा… सही बात है तुम बूढी हो रही हो… इतना गुस्सा तो बुड्ढे ही दिखाते हैं… मैं समझ गया… तुम्हें कल की बात बुरी लग गई.. अरे मेरी प्यारी मां… तुम 5:00 बजे नहीं… 4:00 बजे उठकर नहा लो… या तुम्हारा मन करे तो.. रात के 12:00 बजे नहा लो… मैं कुछ नहीं कहूंगा.. ठीक है.. अब चलो दवाई खा लो… अनु दवाई ले आओ..मां की…!”
अनु ने मां की दवाई खोलकर.. हाथ में डाला और कहा..” मां यह हाथ हमारे सर पर हमेशा होना चाहिए.. इसलिए फिर ऐसा कभी मत करिएगा… नहीं तो आप दवा छोड़ेंगी.. और हम सब खाना छोड़ देंगे… फिर देखिएगा आपको कैसा लगता है… जैसे आपको हमारी जरूरत है… हमसे प्यार है… वैसे ही हमें भी आपसे है…!” बोलकर वह भी सास के गले में बाहें डालकर झूल गई….!
रमा जी ने अपने दोनों हाथों को अपने दोनों बच्चों के सर पर रख दिया….!
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा