Short Moral Stories in Hindi : आज रजत की बेटी वान्या की शादी थी। वान्या खुशी-खुशी घर से विदा हो गई पर एक पिता का दिल अपने आपको समाज की बनाई प्रथाओं के आगे बहुत ही हारा हुआ सा महसूस कर रहा था। कई दिन की गहमागहमी और सारे काम का प्रबंध देखते देखते वो काफ़ी थक भी गया था। उसकी ऐसी हालत देखकर पत्नी ने उसे जल्दी ही सोने के लिए भेज दिया था क्योंकि कल वान्या के पगपेरे की भी रस्म होनी थी।
रजत जब कमरे में आकर लेटा तो थके होने के बाद भी नींद उसकी आंखों से कोसो दूर थी।आज उसे बहुत कुछ याद आ रहा था जिसमें कुछ ऐसा भी था जिसने उसकी आत्मा पर बेबसी का कभी ना मिटने वाला दाग लगा दिया था और ज़िंदगी भर का ना भूलने वाला दंश दे दिया था।
असल में रजत का परिवार संयुक्त परिवार था जहां रीति-रिवाज़ और परंपरा को बहुत ज्यादा महत्व दिया जाता था। उनके यहां बिरादरी और जाति के बाहर शादी करना बहुत बड़ा अपराध माना जाता था।
परिवार में घर के बुजुर्गो की चलती थी उनके सामने किसी बच्चे को अपनी बात करने का हक नहीं था। पर कहते हैं ना कि प्यार पर तो किसी का बस नहीं चलता है,कब दिल किसकी तरफ खींच जाए कोई नहीं जानता है।
ऐसा ही कुछ रजत के साथ हुआ जब वो कॉलेज में पढ़ने गया तब साथ पढ़ने वाली वंदना उसको पसंद आ गई पता ही नहीं चला। रजत को पता था कि कभी भी उसका परिवार उसके प्रेम संबंध की स्वीकार नहीं करेगा पर वो कोशिश करने के बाद भी खुद को वंदना से दूर नहीं कर पाता था।
अब पढ़ाई पूरी होने पर जब रजत की शादी की बात शुरू हुई तब रजत ने दबी ज़बान में वंदना के विषय में बताया। फिर तो पूरे परिवार में कोहराम ही मच गया। वंदना की जाति और रहन-सहन को लेकर रजत को बहुत सुनाया गया।
रजत के पिता जी ठाकुर सुमेर सिंह ने रजत को यहां तक कहा कि वो उसका रिश्ता अपने दोस्त ठाकुर रंजीत सिंह की बेटी के साथ पहले ही तय कर चुके हैं जिसमें अब कोई बदलाव की गुंजाइश ही नहीं है।
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वैसे भी शादी अगर समान हैसियत के लोगों में हो तो ही अच्छा है।अगर फिर भी वो अपनी मनमर्जी करना चाहता है तो उसका अंजाम सही नहीं होगा। इन सब बातों के बाद भी उसने वंदना से शादी करने का फैसला कर लिया था।
उसने वंदना को कोर्ट मैरिज के लिए मना लिया था पर जो रजत के दो दोस्त जो उसकी तरफ से साक्षी बनने वाले थे उसमे से एक ने रजत की सारी योजना ठाकुर सुमेर सिंह को बता दी थी।
ठाकुर सुमेर सिंह को जैसी ही रजत के कोर्ट मैरिज करने की भनक लगी तभी उन्होंने रजत के ऊपर पहरे लगा दिए और साथ-साथ धमकी दी कि अभी भी वक्त है नहीं तो वंदना और उसके परिवार का कहीं अता-पता भी नहीं चलेगा।
रजत अपने पिता की पहुंच और खतरनाक इरादों से भलीभांति परिचित था। उसे वंदना और उसके परिवार की भी चिंता थी।अपने ऊपर सख्त निगरानी होने की वजह से वो ना तो कोई संदेश वंदना के लिए भिजवा पाया ना ही खुद कोर्ट मैरिज के लिए जा पाया।
वंदना वहां दुल्हन के रूप में सजी-धजी रजत का इंतजार करती रही और फिर उसके काफ़ी समय तक वहां ना पहुंचने पर मायूस होकर वहां से लौट गई।
इधर रजत को भी उसके ऊपर जोबेबसी और अपने प्यार के प्रति कुछ ना करने का दाग लगा था वो हरदम उसको कचोटता रहता था।अब उसकी शादी भी उसके पिता के दोस्त ठाकुर रंजीत सिंह की बेटी अवंतिका के साथ हो गई थी वो तो यहां थोड़ा सा उसके लिए सुकून की बात ये थी कि वो रजत को समझने की पूरा कोशिश करती थी।
रजत ने भी उससे कुछ नहीं छुपाया था। अब तो वैसे भी रजत एक प्यारी सी बेटी वान्या का पिता बन गया था। जिसकी नटखट सी शरारतों के बीच वो फिर से मुस्कराने लगा था पर अब भी कभी जब जो अकेला होता तो अपने आपको वंदना के साथ अपना वादा ना निभाने के दंश से क्षमा ना कर पाता था।
ऐसे ही कॉलेज के 75 वर्ष पूर्ण होने पर एलुमिनी मीट रखी गई जिसमें रजत को भी बुलाया गया था। उसको लगा शायद वहां वंदना भी आए तो कम से कम उससे मिलकर वो और कुछ तो नहीं कम से कम अपने गुनाह की माफ़ी तो मांग ही सकता है,क्या पता उसके दिल पर लगे दागों का बोझ थोड़ा सा कम हो जाए।
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बस यही सब सोचकर उसने जाने का फैसला लिया। वहां वंदना भी आई थी। अब वो बैंक में बड़ी अधिकारी बन गई थी।पहले तो वो रजत की शक्ल भी नहीं देखना चाह रही थी पर बार-बार रजत के माफ़ी मांगने पर वो उसकी बात सुनने को तैयार हुई।
सारी बात सुनने के बाद और रजत के कोर्ट मैरिज के लिए ना पहुंचने का कारण जानकर वंदना के दिल में रजत के प्रति नफरत थोड़ी कम हुई।
फिर उसने रजत से कहा कि हो सकता है उन दोनों का साथ इतना ही था पर ये भी सही है कि उस दिन तुम्हारे वहां ना पहुंचने पर मैं इतनी आहत थी कि मैंने सब भूलकर अपना सारा ध्यान अपने कैरियर की तरफ लगा लिया क्योंकि मेरे को लगा शायद कुछ बनकर ही मैं अपने पिताजी के नाम पर मेरी वजह से जो दाग लगा है उसको मिटा सकती हूं।
जिसमें मैं सफल भी हुई। कहीं ना कहीं अब तक तुम्हारा दिया धोखा मेरे को अंदर अंदर ही बिखेर रहा था पर आज तुमसे मिलने के बाद और सच जानने के बाद मैं थोड़ी राहत महसूस कर रही हूं।अब मैं सिर्फ तुमसे इतना कहना चाहती हूं कि हम दोनों की किस्मत में तो शायद मिलना नहीं था पर अगर तुम वास्तव में अपने को दागमुक्त करना चाहते हो तो अपनी बेटी की अच्छी तरह परवरिश करना और अगर वो अपनी पसंद से शादी करना चाहे तो उसमें जाति और स्तर की दीवार आड़े मत आने देना।
अपने लिए तो आवाज़ नहीं उठा पाए पर अपनी बेटी की आवाज़ जरूर बनना। बस ये रजत और वंदना की आखिरी मुलाकात थी पर इसके बाद रजत को एक दिशा मिल गई थी।
रजत और उसकी पत्नी अवंतिका ने बेटी को बहुत प्यार और संस्कारों से पाला। अपने परिवार और बिरादरी के पुरातनपंथी विचारों की परवाह ना करते हुए बेटी को हर तरह से सक्षम बनाया। जब बेटी ने शादी के लिए भी अपने साथ काम करने वाले आदित्य को पसंद किया तब एक बार फिर परिवार के बड़े बुजुर्गो और खासकर रजत के पिता ने जात-पात की दीवार खड़ी करनी चाही तब रजत ने किसी का ना सुनी।
उसे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था वो आदित्य से मिला। वो सभ्य और सजीला नौजवान उसको अपनी बेटी के लिए सर्वथा उपयुक्त लगा। उसने पूरे परिवार और बिरादरी के लोगो को स्पष्ट बोल दिया था कि वो अपनी बेटी की शादी उसकी पसंद के अनुसार करूंगा अगर आप लोगों आयेंगे तो मेरे को अच्छा लगेगा पर अगर नहीं भी आते हैं तो मैं अपने इरादे पर अब अडिग ही रहूंगा। इस तरह रजत और अवंतिका ने अपनी बेटी की शादी की सारी तैयारी बड़े जोर-शोर से शुरू कर दी।
शादी वाले दिन रजत का आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब उसने अपने पिता ठाकुर सुमेर सिंह को बारात का स्वागत करने के लिए सबसे आगे खड़ा पाया।
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जब रजत ने अपने पिता की तरफ देखा तो उन्होंने बोला कि अभी मैं ज़िंदा हूं और मेरी पोती की शादी मेरे आर्शीवाद के बिना कैसे हो जाती और वैसे भी मेरे को एक बात अच्छे से समझ आ गई है कि अगर बड़े-बुजुर्ग चाहते हैं कि उनका मान सम्मान बना रहे तो उनको भी ज़माने के साथ कदम मिलाकर चलना होगा।
इस तरह बड़े ही हंसी-खुशी के माहौल में रजत की बेटी की शादी हो गई। आज उसका मन अपनेआपको पूरी तरह दागमुक्त्त अनुभव कर रहा था।
वो यही सब सोच रहा था कि पास वाले मंदिर से सुबह की आरती के स्वर उसके कानों में पड़े। इतने में अवंतिका ने भी आकर भी चाय पकड़ाते हुए रजत को वान्या के विवाह संबंधी आखिरी रस्म जो पगभेरे की थी उसकी याद दिलाई।
वो उठकर अपनी लाडो के स्वागत की तैयारी में जुट गया। आज वास्तव में रजत ने अपनी बेटी की आवाज़ बनकर पुरातन अवधारणाओं को तो बदला ही था साथ साथ अपने ऊपर लगे दाग को भी धो दिया था।
दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। कई बार कुछ बातें ना चाहते हुए भी हमारे मन मस्तिष्क पर दाग छोड़ जाती हैं पर ये हमारे ऊपर है कि हम कैसे उनके दंश से बाहर आते हैं।
#दाग
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा