मिसेस वागले का जवाब नहीं। आदर्श गृहणी,जागरूक समाजसेविका व व्यवहार कुशल जगत आंटी जी हैं।गत बीस वर्षों से घर परिवार की बागडोर उनके हाथ में हैं।सास ससुर व पति महाशय भी उनकी राय लेते हैं।उनके बिना घर का पत्ता भी नहीं हिलता। रिश्तेदारी व मित्र मंडली में कोई भी कार्य हो आंटी जी को सबसे पहले बुलाया जाता है। त्यौहार शादी-ब्याह लेनदेन आदि दायित्वों का निर्वाह करने में उनकी कोई सानी नहीं। विभिन्न अवसरों पर मिले उपहारों को सम्भाल कर रखना और उनका उपयोग करना वे बखूबी जानती हैं।इसकी टोपी उसको पहनाना इनके बांए हाथ का खेल है।
एक बार तो गज़ब ही कर दिया। नन्दरानी राखी पर आई।सासू माँ ने याद दिलाया,” बहु ,बिट्टो की विदाई का सामान ले आई ना।” बहु जी झट से बोली,
“हां माजी,सब तैयार है।”
कुछ दिन बाद बिट्टो का अम्मा के पास फोन आया,” अम्मा ,आपने मुझे मेरी दी हुई साड़ी ही लौटा दी।याद है,मैंने गोद भराई में भाभी को दी थी।क्या उन्हें पसन्द नहीं आई?” घर में अच्छा खासा हंगामा हो गया। पति शेखर ने भी आंटी जी को अच्छी खासी डांट पिलाई।परन्तु वे अपनी करतूतों से बाज नहीं आती।
होली दिवाली पर सेवकों को क्या तोहफ़ा देना यह वे अच्छे से जानती है।सब दूर से आई मिठाइयों को पैक कर ,फैशन से उतरी साड़ियों को स्त्री वगैरह कर अपनी मीठी मीठी बातों के साथ सबको टिका देती है।
अब तो शेखर को पत्नी के साथ किसी उत्सव में जाना हो तो वे सीधे बाज़ार से उपहार पैक करा कर ले आते। और त्यौहारों पर सेवकों के लिए भी मिठाई के पैकेट्स लाना नहीं भूलते हैं।
आंटी जी महरी राधा व माली बाबा को चाय अवश्य पिलाती है।साथ में बचा खुचा नाश्ता भी दे देती है। राधा काम निपटा कर रोज टी वी के सामने सुस्ताने आ बैठती है।उसे रोज अम्मा जी के साथ प्रवचन सुनने में बड़ा सुकून मिलता है। आंटी जी ने रसोई में चाय की पुरानी तपेली में ही उबली हुई चाय पत्ती में ही दूध पानी व शकर डाल उबलने रख दी है। चाय को मगों में उड़ेल राधा और माली को थमा देती है।प्रवचन सुनते सुनते राधा कहती है,
“अम्मा जी ये बाबा अच्छी बात बताते हैं।कल इन्होंने सुनाया था “जैसा करवटे वैसा भरोगे”। सच अम्मा मैं कभी भेदभाव नहीं करती ।मेरी बीमार सास को अच्छा ही खिलाती पिलाती हूँ। मेरी ननदों से भी लेनदेन में कोई कसर नहीं रखती।देखो भगवान सब देखता है।उसके घर में देर है अंधेर नहीं। सबके आशीर्वाद से मेरा नानू खूब अच्छा पढ़ता लिखता है।”पास ही कमरे से आंटी भी सुनती हैं ।उनको काटो तो खून नहीं। वे सोचती हैं,”कहीं अगले जन्म में मुझे ऐसी ही चाय पीने को मिली तो ” तभी अम्मा जी भी बोल पड़ती है,” राधा तूने सही कहा। कहते हैं न बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ से पाए।”
सरला मेहता
मौलिक