रिश्ते अहंकार से नहीं,त्याग और माफ़ी से टिकते हैं – मीनाक्षी

रिश्ते, प्यार और त्यागइतना अहंकार नहीं। यह अच्छा नहीं होता।इसी तरह की एक कहानी है आदेश की, जिसे अहंकार

था।वो जो भी ऊँचे मुकाम पर था, अपनी बदौलत समझता था। उसे न पिता से मतलब था, न माँ से। इकलौता बेटा था।

पिता ने कितनी मेहनत करके आदेश को पढ़ाया-लिखाया था। दिन-रात नौकरी करता। उसे न आज का पता था, न कल का।

बस वो चाहता था कि उसका बेटा पढ़-लिखकर डॉक्टर बने और मजबूर लोगों के काम आए। मगर जैसा पिता चाहता था,

वैसा बिल्कुल नहीं हुआ।आदेश डॉक्टर तो बन गया, मगर उसका मकसद सिर्फ पैसा कमाना था। वो डॉक्टरों में नंबर वन

पोज़िशन चाहता था। पैसा तो उसने खूब कमाया, मगर साथ में अहंकार भी बढ़ा लिया। वो अपने से अच्छा किसी डॉक्टर

को मानता ही नहीं था। यहाँ तक कि उसे बोलने की भी तमीज़ नहीं थी।उसका ऐसा व्यवहार देखकर माँ-बाप ने

सोचा—“चलो इसकी शादी करा देते हैं। शायद जीवनसाथी अच्छा मिले तो बदल जाए।” घर में शहनाइयाँ बजीं और बहू

आ गई। बहू कॉलेज में प्रोफेसर थी। बहुत शांत और मीठे स्वभाव की थी। बड़ों का आदर और छोटे से प्यार करना जानती

थी। उसने अपने व्यवहार से आदेश के माता-पिता का दिल जीत लिया। वो उनका हर तरह से खयाल रखती थी। वह अपने

पति से कई बार कहती—“माँ-पापा के पास बैठा करो, उनसे बातें किया करो।” पर आदेश को किसी भी चीज़ से फर्क नहीं

पड़ता था। वो तो अपने अहंकार में डूबा ही जा रहा था।धीरे-धीरे ज़िंदगी आगे बढ़ रही थी। फिर उनके घर में खुशियों ने

दस्तक दी। शादी के चार साल बाद उनकी बेटी “परी” का जन्म हुआ। बेटी के होने पर सब खुश थे। आदेश भी बहुत ज्यादा

खुश था। परी बहुत खूबसूरत थी। उसके आने पर घर में उसकी किलकारियाँ गूंजने लगीं।परी का पहला जन्मदिन बहुत

धूमधाम से मनाया जा रहा था। जैसे ही केक काटने की तैयारी हुई, अचानक परी सीढ़ियों से नीचे गिर गई। घर में सन्नाटा

छा गया। सब भागे परी के पास। वो बेहोश थी। आदेश ने तुरंत गाड़ी निकाली और खून से लथपथ परी को अस्पताल ले

गया। क्योंकि उसका खुद का हॉस्पिटल दूर था, इसलिए पास के हॉस्पिटल पहुँचा।वो डॉक्टर से बोला—“जल्दी कीजिए

प्लीज़! मेरी बेटी को देखो, कितना खून बह रहा है।” परी को इमरजेंसी में ले जाया गया और इलाज शुरू हुआ। किसी को

समझ नहीं आ रहा था कि परी को क्या हुआ है। डॉक्टर कुछ नहीं बता रहे थे। सब भगवान से प्रार्थना करने लगे—“हे प्रभु,

हमारी परी को ठीक कर दो।”थोड़ी देर बाद डॉक्टर बाहर आए और बोले—“परी अब ठीक है, मगर अभी बेहोश है। शाम

तक होश आ जाएगा। आप चिंता न करें। हाँ, एक बात बतानी थी… परी के एक पैर में ज्यादा चोट आई है। गिरने के कारण

फ्रैक्चर हो गया है। अब वो ठीक होगा या नहीं, यह टेस्ट के बाद ही पता चलेगा।”यह सुनकर आदेश गुस्से से डॉक्टर पर

चिल्लाने लगा—“ऐसे कैसे! तुम्हें मेरी बेटी को ठीक करना ही पड़ेगा। नहीं तो तुम्हारा हॉस्पिटल बंद करवा दूँगा। तुम जानते

नहीं मैं कौन हूँ? यहाँ का सबसे बड़ा सर्जन हूँ!” डॉक्टर ने गुस्से से उसका हाथ झटक दिया और बोला—“पहले बोलने की

तमीज़ सीखो। अपने ‘बड़े डॉक्टर’ होने के अहंकार को साइड में रखो। अपनी बच्ची के पास जाओ, उसे संभालो।”बेटी को

देखकर आदेश फूट-फूटकर रोने लगा। उसने भगवान से प्रार्थना की—“मेरी बच्ची को ठीक कर दो।” वह माँ-पिता के गले

लगकर रो पड़ा—“पापा, माँ… हमारी परी ठीक हो जाएगी ना?” माता-पिता ने आँसू पोंछते हुए कहा—“क्यों नहीं बेटा!

परी ज़रूर ठीक होगी। हम सब उसे इतना प्यार जो करते हैं।”दो दिन बाद परी को होश आ गया। वो सबको अपनी मासूम

आँखों से देख रही थी। पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि आदेश अचानक बदल गया। वह परी का पूरा दिन खयाल रखने लगा।

उससे मीठी-मीठी बातें करता। वह डॉक्टर से भी प्यार से पूछने लगा—“डॉक्टर, मेरी बेटी का पैर का टेस्ट कब होगा?”

डॉक्टर ने कहा—“अभी करेंगे। शायद ऑपरेशन करना पड़े।” आदेश बोला—“डॉक्टर, कुछ भी करो… पर मेरी बेटी को ठीक

कर दो।”टेस्ट के बाद पता चला कि हड्डी टूट गई है। ऑपरेशन ज़रूरी था। ऑपरेशन सफल रहा। एक हफ्ते बाद पट्टियाँ खोली

गईं। परी बिल्कुल ठीक थी। सब खुशी से झूम उठे। आदेश ने डॉक्टर के आगे हाथ जोड़ दिए—“डॉक्टर साहब, आज मुझे

अहसास हुआ कि कोई भी काम सिर्फ प्यार और त्याग से ही पूरा होता है। मेरे अहंकार को मेरी बिटिया ने तोड़ दिया। अब

से मैं त्याग और माफी का महत्व समझूँगा।”उसने अपने माता-पिता से माफी माँगी। पत्नी से प्यार से कहा—“चलो, अब

अपने घर चलते हैं।” घर में हंसी-खुशी का माहौल था। जाने लगे तो डॉक्टर ने मज़ाक में कहा—“अरे भाई, परी को नहीं ले

जा रहे क्या घर?” सब हँस पड़े और दौड़कर परी के पास गए। परी भी मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कान देख सबकी आँखें भी

खिल उठीं। फिर सब गाड़ी में बैठे और घर की ओर चल दिए।

मीनाक्षी

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