रामलाल एक माध्यम परिवार से था और पढ़ने मैं बहुत तेज। रामलाल के पिताजी सोहनलाल जी प्राइवेट बैंक मे क्लर्क थे और माताजी गृहणी। रामलाल को पढ़ाई के आलावा कोई शौक नहीं था, किसी से भी ज्यादा बातें नहीं करता था, बस अपनी मॉ से लगाव था। वैसे तो सोहनलाल एक नेक इंसान था पर रोज शराब पीने की बुरी आदत थी।
शाम को बैंक से आने के बाद नहा धोकर लगभग 8 बजे ठेके पर चला जाता और रात 10 बजे तक पीकर आता। घर आकर बिना किसी से कोई बात किये सो जाता। सोहनलाल न कभी अपनी पत्नी पर चिल्लाया न कभी हाथ उठाया, और उसे कभी किसी भी काम के लिए मना नहीं किया।शुरू शुरू मे सोहनलाल की पत्नी उसे न पीने के लिए बहुत समझाती थी,
पर सोहनलाल हंस कर टाल देता। फिर उनके जीवन मैं एक बेटा आ गया। समय के साथ साथ उसकी पत्नी ने कहना छोड़ दिया और बेटे की परवरिश पर ज्यादा ध्यान देने लगी।। बेटा पढ़ने मैं बहुत तेज था और देखते ही देखते कॉलेज पहुंच गया और फिर कॉलेज के बाद नौकरी भी उसी शहर मे मिल गई।
रामलाल अपने पिताजी को पीते हुए और माँ को सहन / समझौता करते हुए देखकर बड़ा हुआ था, परन्तु माँ पिताजी से कभी इस बारे मे कभी कोई बात नहीं की। रामलाल की नौकरी लगने पर उसके माता पिता बहुत ख़ुश थे। एक सुबह ऑफिस जाते हुए रामलाल बहुत खुश लग रहा था तो माँ ने उसकी खुशी का कारण पूछ लिया।
रामलाल बोला, आज पहली तनख्वाह मिलेगी, शाम को घर मे पार्टी करेंगे बोलता हुआ ऑफिस निकल गया। शाम को ऑफिस से आते हुए उसने माँ के लिए एक साडी, पिताजी के लिए कुर्ता पैजामा, पिज़्ज़ा और बर्गर लिया. उसके बाद वो शराब की दुकान पर गया और एक अच्छी सी बोतल लेकर घर आया.
माँ दरवाजे पर ख़डी इंतजार कर रही थी, उसने रामलाल के हाथ से सामान लिया और बोली, तुम हाथ पैर धोलो, मै चाय लेकर आती हूँ। चाय लाने के बाद रामलाल की माँ ने सामान के बैग खोले तो शराब की बोतल देखकर गुस्से मै चिल्लाते हुए बोली, सुबह इसी पार्टी की बात कर रहा था? तेरे बाप ने सारी उम्र खुद को शराब मै डुबोया,
आज पहली तनख्वाह मिलते ही तू भी उन्ही के कदमो पर चलने लगा। ये बोलते हुए रामलाल की माँ ने सारा सामान बाहर फेकने के लिए उठाया ही था की रामलाल ने आकर माँ के हाथ से सामान पकड़ लिया और बोला, मॉ, ये पिताजी के लिए है। तुम सारी उम्र उन्हें पीने से मना करती रही, पर वो नहीं माने, आज के बाद वो कभी पीने के लिए बाहर नहीं जायेगे। उन्हें जब भी पीना होगा घर पर ही बैठकर तुम्हारे सामने पिएंगे,
कम से कम दो घड़ी तुम्हारे साथ तो बैठेंगे और पिताजी की इज्जत भी बनी रहेगी। बेटे की बात सुनकर, माँ की आँखों मै आंसू आ गए और बोली, तू अपने माँ पिताजी के बारे मै कितना सोचता है और मैं तुझे गलत समझ रही थी. सोहनलाल, माँ बेटे की बातें सुनकर बोले, बेटा, मैं अच्छा पति नहीं बन सका,
मैंने तेरी माँ को कभी वक़्त नहीं दिया, आज के बाद मै ठेके पर कभी नहीं जाउगा और कोशिश करुँगा की पीना ही बंद करदू। सोहन लाल फिर हँसते हुए अपनी बीवी की तरफ देखकर बोला, अगर तुम 25 साल पहले मेरे पीने पर अपना आपा खो देती,
तो मैं शायद तब ही शराब छोड़ देता। आज मै वादा करता हूँ कि घर के बाहर कभी शराब नहीं पिऊंगा और कोशिश करूंगा कि जल्द से जल्द पीना ही छोड़ दू, आखिर अब रामलाल कि भी कॉलोनी मैं इज्जत है।
दोस्तों, ठेके पर न जाकर घर मै बैठकर पीने का भी समर्थन नहीं किया जा सकता.
मुहावरा लघुकथा..आपे से बाहर होना
लेखक
एम पी सिंह
(Mohindra Singh)
स्वरचित, अप्रकाशित