मंदाकिनी – बीना शुक्ला अवस्थी

आज मंदाकिनी एक अजीब सी खुशी और सन्तुष्टि अनुभव कर रही है। उसे ऐसा अनुभव हो रहा है कि उसने अपने जीवन भर के दुःखों, पीड़ा, तड़प और ऑसुओं का थोड़ा सा प्रतिकार ले लिया है। 

कल गिरीश को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेनी है लेकिन उसका हृदय रो रहा होगा। उसके अपनो ने ही उसकी इस सफलता में सम्मिलित होने से मना कर दिया है। न केवल मना किया है बल्कि उसके चेहरे पर इतने तमाचे मारे हैं कि उसकी आत्मा तिलमिला उठी होगी। उसको विश्वास नहीं हो रहा होगा कि उसको इस कदर दुत्कार दिया जायेगा। उसने तो सोचा था कि अखबार और टीवी चैनलों में उसके मुख्यमंत्री बनने की सूचना जब प्रसारित होगी तब उसके अपने खुद उसे बधाई और शुभकामनाओं के साथ सम्पर्क कर लेंगे।‌ तब वह गर्व से उनसे कह सकेगा कि आखिर उसने अपनी मंजिल पा ही ली। 

एक छोटे से शहर जगई पुर में प्रकाश की छोटी सी परचून की दुकान थी लेकिन उस दुकान से उसकी मॉ,  पत्नी और चार  बच्चों का खर्चा बहुत मुश्किल से निकल पाता था।‌ बड़ा बेटा  गिरीश  कभी कभी दुकान चला तो जाता लेकिन उसे न तो दुकान पर बैठना अच्छा लगता और न पढ़ने में ही उसका मन लगता था।‌ उसे तो गांव के छुटभइये नेताओं के साथ रहना ही अच्छा लगता था। उन्हीं के साथ पिछलग्गू बनकर घूमता रहता था। 

प्रकाश और उसकी पत्नी गिरीश से बहुत परेशान थे। वह अक्सर घर आता ही नहीं था।  जबकि उसका छोटा भाई शिरीष अपने पिता का काम में हाथ भी बटाता और पढाई भी करता। दो छोटी बेटियां भी गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाती थीं।

हमारे समाज में लड़के या लड़कियों को सुधारने का सबसे प्रचलित हथियार यह है कि उसकी शादी कर दी जाती है। आखिर प्रकाश और उसकी पत्नी ने सोचा कि शायद विवाह की जिम्मेदारी आ जाने से गिरीश सुधर जायेगा। इसलिये गिरीश का विवाह मंदाकिनी से हो तय हो गया। पहले तो गिरीश ने मना किया लेकिन फिर पता नहीं क्या सोच कर मान गया। 

मंदाकिनी के गांव में आठवीं के आगे स्कूल न होने के कारण वह आगे पढ़ नहीं पाई। हालांकि मंदाकिनी के दोनों छोटे भाइयों ने अपने पिता का विरोध भी किया – ” पिता की छोटी सी दुकान है। लड़का तो कुछ करता ही नहीं है। हमारी दीदी के लिये यह विवाह सही नहीं है।”

” अपना काम अपना ही होता है। जिम्मेदारी पड़ेगी तो गिरीश भी काम करने लग जायेंगे।”

मंदाकिनी से किसी ने पूॅछने की जरूरत ही नहीं समझी। विवाह के बाद नई दुल्हन मन में अनेक सपने लिये घर आई। पूरे समय गिरीश के चेहरे पर एक उकताहट भरी बेचैनी दिखाई देती रही।

प्रथम मिलन की रात को मंदाकिनी एक साधारण से कमरे में बैठी गिरीश के आने की प्रतीक्षा कर रही थी।‌ गिरीश आकर उसी पलंग पर बैठ गया जिस पर मंदाकिनी बैठी थी। मंदाकिनी ने सिर झुका लिया। तभी एक कर्कश स्वर उसके कानों में पड़ा – इस शादी में मुझे कोई रुचि नहीं है। तुम मेरी ओर से स्वतन्त्र हो, अपने घर वापस लौट जाओ।”

” आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? मेरी जिन्दगी बरबाद हो जायेगी। अगर आप शादी नहीं करना चाहते थे तो पहले ही मना कर देते।” मंदाकिनी पर जैसे वज्रपात हो गया।

” मैंने मना किया था लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं मानी। तुम्हारे पिता के दहेज ने मेरे घर वालों को खरीद लिया था। अपना यह मंगलसूत्र और सिन्दूर हटा दो और अब कभी यहॉ मत आना।”

गिरीश कमरे में जमीन पर बिस्तर बिछा कर लेट गया।‌मंदाकिनी रोती रही लेकिन थकान के कारण रोते रोते कब सो गई, उसे पता ही नहीं चला।

सुबह जब उसकी आंखें खुली तो गिरीश कमरे में नहीं था लेकिन जब उसकी नजर सामने रखी ड्रेसिंग टेबल के आइने पर गई तो उसकी चीख निकल गई। 

उसके गले में मंगलसूत्र नहीं था साथ ही मांग का सिन्दूर और माथे की बिंदिया को भी किसी ने हटा दिया था।

मंदाकिनी की चीख सुनकर घर के लोग भागते हुये कमरे में आये और नववधू को सुहाग चिन्हों से विहीन देखकर चौंक गये। सबने गिरीश के बारे में पूंछा तो मंदाकिनी ने अनभिज्ञता बताते हुये रात को गिरीश द्वारा कही गई पूरी बात बता दी। 

मंदाकिनी को सांत्वना देकर सभी लोग गिरीश को ढूंढने लगे। उन्हें लगा कि गिरीश नाराज होकर कहीं चला गया है, गुस्सा शांत होने पर स्वयं आ जायेगा। पगफेरे की रश्म के लिये आये मंदाकिनी के पिता को जब गिरीश के कृत्य के बारे में पता चला तो वह क्रोध से आग बबूला हो गये।‌

प्रकाश शर्मिंदगी से सिर झुकाये बैठे रहे। सारी बात पता चलने पर मायके में हाहाकार मच गया लेकिन इस बात को सबके सामने उजागर नहीं किया गया। 

दोनों परिवार गड्ढे पर घास रखकर इस बात को छुपाना चाहते थे। इसलिये दो तीन बार मंदाकिनी मायके से ससुराल और ससुराल से मायके आती जाती रही। धीरे-धीरे दो साल बीत गये। गिरीश न वापस लौटा और न ही उसका कुछ पता चला। 

आखिर प्रकाश ने मंदाकिनी के पिता से हाथ जोड़कर कह दिया कि अब जब गिरीश घर आ जायेगा तो वह स्वयं आकर मंदाकिनी को लिवा जायेंगे। इस बात से एक तरह से मंदाकिनी के लिये ससुराल के द्वार बन्द हो गये थे।

धीरे-धीरे सभी को पता चल गया कि शादी की रात को ही गिरीश अपनी पत्नी का मंगलसूत्र उतारकर और मांग का सिन्दूर और माथे की बिंदिया मिटाकर न जाने कहॉ चला गया।

 कुछ लोग मंदाकिनी से सहानुभूति दिखाते तो कुछ लोग उसे ही दोष देते – ” कुछ तो ऐसा हुआ होगा जो दूल्हा नई नवेली पत्नी के सुहाग चिह्न मिटाकर चला गया।”

मंदाकिनी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? हालांकि गिरीश और उसके बीच कोई दैहिक सम्बन्ध नहीं हुआ था लेकिन विवाह तो हो ही चुका था। अब वह न कुंवारी थी और न ब्याहता और न विधवा। वह परित्यकता बनकर रह गई थी, अब उसके हिस्से में केवल अन्त हीन प्रतीक्षा रह गई, वह भी पता नहीं कि गिरीश उसके पास लौटकर आयेगा या नहीं। 

विवाह के समय वह केवल सोलह वर्ष और गिरीश उससे एक वर्ष बड़ा था। उस समय विवाह की कोई निश्चित आयु नहीं होती थी बल्कि रजस्वला होने के पहले कन्या दान करना धर्म और पुण्य माना जाता था। दूसरे विवाह का प्रश्न ही नहीं उठता था, आज भी गांवों में संभ्रांत घरों में लड़की का दूसरा विवाह असंभव है। फिर चालीस पचास वर्ष पहले तो इस बारे में सोचना भी पाप था।

मंदाकिनी उन्नीस वर्ष की हो चुकी थी। उसे इतनी समझ तो आ ही चुकी थी कि अभी उसके जो भाई उसे बेहद प्यार करते हैं उनका भी अपना परिवार होगा और माता पिता भी हमेशा नहीं रहेंगे।

तभी उसके दूर के रिश्ते की मौसी सरला  उसके घर आईं। उसे  जब मंदाकिनी की पूरी बात पता चली तो उसने कहा – ” अगर मुझ पर विश्वास हो तो मंदा को मेरे साथ भेज दो। कब तक उस धोखेबाज के नाम को रोती रहेगी? हमारी मंदा की तो जिन्दगी ही बरबाद हो गई। भागना ही तो विवाह के पहले भाग जाता।”

मंदाकिनी के माता-पिता का उसे भेजने का बिल्कुल मन नहीं था लेकिन मंदाकिनी गांव भर और आस पड़ोस की बातों से इतना थक चुकी थी कि तुरन्त तैयार हो गई – ” मैं आपके साथ चलूॅगी मौसी। मुझे अपने साथ ले चलो वरना किसी दिन मैं आत्महत्या कर लूॅगी।”

मंदाकिनी शहर तो आ गई लेकिन उसकी सरला मौसी भी गरीब ही थीं। दोनों पति-पत्नी एक फैक्टरी में काम करते थे।‌ तीन छोटे बच्चे थे जिन्हें वे पड़ोसियों के सहारे छोड़कर जाते थे। 

घर आकर सरला ने मंदाकिनी से कहा – ” मंदा, हम तुम्हें अपनी बेटी की तरह तो रखेंगे लेकिन हम तुम्हें खाना कपड़ा के अलावा कुछ नहीं दे पायेंगे। हमारे काम पर जाने के बाद इन शैतान भाई बहनों को सम्हालना तुम्हारी जिम्मेदारी रहेगी लेकिन साथ ही मैं चाहती हूॅ कि तुम कुछ ऐसा सीख लो कि किसी की मोहताज न रहो। बताओ, तुम क्या सीखना चाहती हो? यहॉ पास में एक स्कूल है जहॉ सिलाई, ब्यूटी पार्लर और भी तमाम कोर्स करवाये जाते हैं।”

” मैं पढ़ाई करना चाहती हूॅ मौसी लेकिन छठी कक्षा में छोटे छोटे बच्चों के साथ बैठकर कैसे पढाई करूॅगी?”

” तुम पढ़ना चाहती हो तो कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा। कल मैं छुट्टी ले लूॅगी और तुम्हें लेकर प्रिंसिपल बहनजी के पास चलूॅगी। वह कोई न कोई रास्ता बता देंगी।”

प्रिंसिपल मैडम सरला और मंदाकिनी से मिलकर बहुत खुश हुईं। विपरीत परिस्थितियों में पढ़ने की इच्छा रखने वाली मंदाकिनी उन्हें बहुत अच्छी लगी। उन्होंने मंदाकिनी का टेस्ट लिया तो समझ गईं कि मंदाकिनी मेधावी छात्रा है, यदि इसे सही दिशा मिली तो यह आगे बहुत कुछ कर सकती है।

उन्होंने मंदाकिनी से कहा कि वह उनके स्कूल में आठवीं की प्राइवेट छात्रा के रूप में आठवीं बोर्ड की परीक्षा दे दे। प्रिंसिपल ने यह भी कहा कि मंदाकिनी के लिये वह पुरानी किताबों की व्यवस्था कर देंगी। साथ ही यह वादा भी किया कि आवश्यकता पड़ने पर वह पढ़ाई में उसकी सहायता भी कर देंगी।

फैक्टरी जाने के पहले मंदाकिनी और सरला मिलकर घर का सारा काम समाप्त कर लेतीं। दिन में बच्चों की देखभाल करने के साथ मंदाकिनी अपनी पढ़ाई तो कर ही लेती साथ ही स्कूल जाने वाले बच्चों की पढ़ाई भी करवा देती। 

सरला और उसके पति मंदाकिनी को अपने बच्चे की तरह ही प्यार करते। पहले सरला छोटे बच्चे को साथ ले जाया करती थी और दोनों बड़े बच्चे दूसरे के घरों में रहते थे या आवारा की तरह इधर-उधर घूमते थे। उनके स्कूल से भी शिकायतें आया करता थीं लेकिन अब घर की पूरी व्यवस्था ही बदल गई थी। मंदाकिनी के आग्रह के कारण अब वह छोटे बच्चे को भी घर छोड़ जाती जिसके कारण फैक्टरी में अधिक काम कर लेती तो उसको अधिक पैसे मिलने लगे। मंदाकिनी के कारण अब दोनों बच्चे भी घर में ही रहते। अब सरला के बच्चों की स्कूल से भी शिकायतें आनी बन्द हो गई। कभी कभी मंदाकिनी उनके स्कूल जाकर उन दोनों के अध्यापकों से भी मिल आती।

मंदाकिनी ने आठवीं की परीक्षा बहुत अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण कर ली। सरला और उसके पति के प्यार और सहयोग के अलावा प्रिंसिपल मैडम भी मंदाकिनी की भरसक सहायता करती रहीं। धीरे-धीरे मंदाकिनी ने इण्टर मीडियट कर लिया। 

सरला के दोनों भाई भी बड़े हो रहे थे। गांव में दसवीं के बाद पढने के लिये कोई स्कूल नहीं था। अब आगे की पढ़ाई के लिये उन दोनों को शहर जाना था। इसलिये मंदाकिनी के माता-पिता ने सरला के घर के पास ही एक कमरा किराये पर ले लिया, जिससे उनके तीनों बच्चे अपनी पढ़ाई कर सकें क्योंकि उसके भाइयों ने माता पिता से जिद की कि अब गिरीश ने तो उसकी जिन्दगी बरबाद कर दी है। जब अभी तक उनके लड़के का ही कोई अता पता नहीं है तो वे लोग बहू को ससुराल क्यों बुलायेंगे? यहॉ तक प्रकाश ने अपने बच्चों की शादी में भी मंदाकिनी को नहीं बुलाया। इसलिये जब तक मंदाकिनी का मन हो उसे पढ़ने से न रोका जाये। मंदाकिनी के पिता को भी अपनी बेटी के लिये गिरीश जैसे लड़के को चुनने का बहुत दुख था। इसलिये उन्होंने अपने बेटों की बात मान ली। अब मंदाकिनी अपने भाइयों के साथ रहकर कॉलेज की पढ़ाई करने लगी लेकिन वह सरला के बच्चों का पहले जैसा ही ध्यान रखती थी। हालांकि अब वे भी बड़े हो गये थे और अपनी जिम्मेदारी समझने लगे थे। 

पढ़ाई के साथ मंदाकिनी कुछ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी ताकि उसे हर खर्च के लिये माता पिता के सामने हाथ न फैलाना पड़े।‌ मंदाकिनी की इच्छा अपनी प्रिंसिपल मैडम की तरह शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने की थी।

गिरीश का अभी तक कोई पता नहीं था। कभी कभी तो सब लोग यह सोचने पर विवश हो जाते कि ऐसा तो नहीं है कि आवेश में आकर गिरीश ने अपने साथ कुछ गलत कर लिया हो।

मंदाकिनी ग्रेजुएशन के अंतिम वर्ष में थी। वह रसोई में नाश्ता बना रही थी कि छोटा भाई चिल्लाया – ” दीदी, जल्दी आओ।”

” क्या हुआ?” वह घबराकर भाई के पास आई तो उसने अखबार की एक फोटो पर उंगली रखकर कहा – ” देखो, यह गिरीश ही है ना।”

मंदाकिनी गौर से अखबार देखने लगी। किसी स्थानीय नेता के मंच पर पीछे की ओर खड़ा था वह। इतने वर्षों में उसमें काफी परिवर्तन आ गया था लेकिन फिर भी मंदाकिनी ने भी उसे पहचान लिया – ” हॉ, वही हैं।”

उसके बाद अक्सर किसी न किसी नेता के साथ वह अखबार में दिख जाता लेकिन उसने अपने घर वालों या मंदाकिनी से कोई सम्पर्क नहीं किया।

गिरीश राजनीति के सुनहरे सोपान पर आगे बढ़ते जा रहे थे। अपनी पार्टी के सफल वक्ता बन गये। जिस स्थान पर पार्टी बुरी तरह पराजित हो रही होती, वहॉ गिरीश की जादुई वाणी पूरे समीकरण बदल देती। नित्य अखबारों में उसकी तस्वीरें दिखाई देने लगीं लेकिन गिरीश ने न तो अपने परिवार से संपर्क किया और न अपने विवाहित होने के बारे में किसी से बताया।

प्रकाश के छोटे बेटे शिरीष ने अपनी मेहनत और बुद्धिमानी से उस छोटी सी दुकान को बहुत आलीशान जनरल स्टोर में बदल दिया जहॉ जरूरत की हर वस्तु उपलब्ध थी। उसका गांव भी अब पहले जैसा गांव नहीं रहा, वहॉ भी शहर जैसी सारी सुविधायें हो गई। 

प्रकाश और शिरीष ने मिलकर पुराने घर को नया बनवा लिया था। बेटियों का विवाह भी सुयोग्य वर से हो गया। प्रकाश जहॉ अपने परिवार की सुख समृद्धि से खुश थे, वहीं उन्हें इस बात का बहुत दुख था कि उनकी पत्नी मरते समय तक अपने बड़े बेटे गिरीश की प्रतीक्षा करती रहीं थी। अर्ध चेतना में जरा सी आहट होते ही वह पूॅछती – ” गिरीश आ गया क्या?” 

मंदाकिनी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और अन्त में उसने अपने लक्ष्य को पा लिया। पहले बी०एड० करके अध्यापिका हुई। इसके बाद पी० एच०डी० करके प्रोफेसर बन गई। समय बढता रहा। दोनों भाई भी पढकर अच्छे पदों पर पहुॅच गये। भाइयों और माता पिता ने बहुत कहा कि वह उन सबके साथ ही रहे लेकिन एक बार की लगी भयंकर ठोकर ने उसकी बुद्धि और समझ को बहुत विकसित कर दिया था। उसने अपना एक अलग आशियाना बनाया।

पहले तो पढाई और लक्ष्य पाने की धुन में अपनी सुध-बुध ही भूल गई थी लेकिन जब अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लिया तो अपने जीवन का सूनापन बहुत परेशान करने लगा – ” मेरा क्या अपराध था जो गिरीश ने मेरे जीवन में बसंत आने के पहले ही पतझड़ भर दिया। उन्हें राजनीति में आगे बढ़ना था तो एक बार मुझसे कहते। सोती हुई पत्नी के सुहाग चिह्न अपने हाथों से मिटाकर कायरों की तरह भागकर लापता हो जाना क्या न्यायसंगत है? ऐसा तो शायद गौतम बुद्ध ने भी नहीं किया था। वह तो यशोधरा को प्यार और सुखद दाम्पत्य की मधुर यादों के साथ गोद में राहुल जैसा बेटा देकर गये हैं। तुमने तो मुझे जीते जी मार डाला है गिरीश। इतना सूनापन और वीरानी भर दी जीवन में कि सारे कोमल सपने, अनुभूतियां न केवल समाप्त हो गई हैं बल्कि मर चुकी हैं।”

प्रोफेसर बनने के बाद भी वह उतनी ही सौम्य और सरल रही जैसे पहले थी। सबकी सहायता करना, सबके सुख दुख में साथ देना ही उसने अपने जीवन का ध्येय बना लिया।

मंदाकिनी कॉलेज से वापस आ रही थीं। रास्ते में उसने देखा कि एक सात – आठ वर्ष की लड़की कचरे के डिब्बे से कुछ निकाल निकाल कर खा रही है। मंदाकिनी उसके पास पहुॅची – ” बेटा, तुम इस गन्दगी से निकाल कर क्यों खा रही हो। इसे खाने से तुम बीमार पड़ जाओगी।”

” बहुत भूख लगी है, परसों से कुछ खाया नहीं है। “

” यह मत खाओ। आओ,  मेरे साथ चलो मैं तुम्हें खाना खिलाती हूॅ।”

उस बच्ची ने मंदाकिनी को बताया कि वह नाले के ऊपर बनी झोपड़ी में रहती है। मॉ पहले ही नहीं थी, परसो रात शराब के नशे में उसका बापू घर आ रहा था लेकिन किसी ट्रक ने उसे कुचल दिया। अब उसका कोई नहीं है। खाना खिलाकर मंदाकिनी ने बच्ची को अपने पास रोक लिया लेकिन उसका मन आजकल की धोखा धड़ी के कारण आशंकित हो उठा। कहीं यह किसी की योजना तो नहीं है। वह उस बस्ती में गई तो उसे पता लगा कि वह बच्ची सच बोल रही है। उसने बस्ती के लोगों को बता दिया कि बच्ची उसके पास है और यदि कोई उसका अभिभावक या संरक्षक चाहे तो आकर उसके घर से ले जा सकता है। तभी एक स्त्री बोली – ” कौन लेने आयेगा मेम साहब? बाप था तो उसे अपना ही होश नहीं रहता था। अब तो बाप की छाया भी नहीं है।”

मंदाकिनी लौट आई। उसने बच्ची से पूॅछा – ” गुड्डी मेरे पास रहोगी? मैं तुम्हें पढा लिखा कर बहुत योग्य बनाऊॅगी।”

मंदाकिनी ने बहुत प्यार से बच्ची का नाम जान्हवी रखा।  जान्हवी के आने से मंदाकिनी का अकेलापन समाप्त हो गया। अब उसके मस्तिष्क में जान्हवी और जान्हवी का भविष्य ही घूमता रहता। उसका भटकता मन जान्हवी के चारो ओर आकर सिमट गया। इस समय जान्हवी बी०टेक  कर रही थी।

जैसे जैसे गिरीश का राजनैतिक कद बढ़ रहा था। उसके राजनैतिक विरोधियों की संख्या भी बढ़ रही थी। पता नहीं कैसे मीडिया और विपक्ष को गिरीश के परिवार और मंदाकिनी के बारे में पता चल गया। मीडिया के लोग गिरीश के परिवार के पास आये तो उन्होंने पूरी बात बताते हुये कहा कि वह उनका बेटा अवश्य है लेकिन वह बहुत वर्षों पहले घर छोड़कर चला गया था इसलिये अब उन लोगों का उससे कोई मतलब नहीं है और न ही वे लोग उससे कभी मिलना चाहते हैं।

मंदाकिनी के केवल इतना कहा कि अब उसका कोई पति नहीं है।

मजबूरी में गिरीश को अपने परिवार और मंदाकिनी के बारे में स्वीकार करना पड़ा।  गिरीश की पार्टी भारी मतों से विजयी हो गई और गिरीश का नाम मुख्यमंत्री के लिये निश्चित हो गया। गिरीश पचपन वर्ष की आयु में बहुत कम उम्र के मुख्यमंत्री की लिस्ट में शामिल हो गये थे।

गिरीश ने मुख्यमंत्री शपथ समारोह में सम्मिलित होने के लिये अपने सहायक को अपने परिवार और मंदाकिनी को लिवा लाने के लिये भेजा। वह जानता था कि उसका परिवार उसकी इतनी बड़ी उपलब्धि पर प्रसन्नता पूर्वक आ जायेगा और मंदाकिनी….. स्त्रियों के लिये पति से बढ़कर कुछ नहीं होता, वह नाराज भले ही हो लेकिन उसके बुलावे पर आने से अपने आप को को नहीं पायेगी।

गिरीश बहुत प्रसन्न था। वह गर्व से अपने परिवार और मंदाकिनी के समक्ष खड़ा होकर कह सकेगा कि इसी ऊॅचाई पर पहुॅचने के लिये ही उसने इतना संघर्ष किया था और वह अपने तथाकथित संघर्षों को इस तरह से बतायेगा कि सभी अभिभूत हो जायेंगे। उसकी वाणी के जादू का लोहा तो उसके विरोधी भी करते हैं।

वह बड़े मनोयोग से सबके आने की तैयारी कर रहा था। सबके कपड़े, जेवर आदि की खरीदारी करवा ली। मेल और फीमेल दोनों तरह के ब्यूटीशियन की व्यवस्था करवा ली। भाई, बहनों की तो कोई बात नहीं लेकिन बापू और मंदाकिनी को अब नहीं जाने देगा। अपने साथ ही रखेगा। अपने परिवार और पत्नी के परित्याग का उसके विरोधी काफी लाभ उठा रहे हैं, वह आलोचना का यह मार्ग बन्द कर देगा।

अपने सहायक से उसने कह दिया था कि सुरक्षा कारणों से उसका जाना संभव नहीं है। इसलिये वह वीडियो कालिंग द्वारा अपने परिजनों से उसकी बात करवा दे। पहले तो प्रकाश उससे बात करने को ही तैयार नहीं हुये, बाद में बहुत मुश्किल से बात की – ” तुम खुश रहो, खूब उन्नति करो, यही आशीर्वाद दे रहे हैं लेकिन तुम मेरी बहू के सुहाग चिह्न मिटाकर जा चुके हो। जानते हो कि सुहाग चिह्न मिटाने का मतलब होता है – स्त्री का विधवा। मंदाकिनी के वैधव्य का अर्थ है तुम्हारी मृत्यु, फिर आज तुम्हें जीवित कैसे मान लूॅ? आखिरी पल तक तुम्हारी मॉ टकटकी लगाये तुम्हारी राह देखती रही, हर आहट पर उम्मीद के कारण चौकन्नी हो कर पूॅछती थी। अब तुम्हारे लिये कुछ नहीं बचा। जैसे अभी तक हमारे बारे में नहीं बताया था, समझ लो तुम्हारा परिवार बरसों पहले मर चुका है।”

” ऐसा न कहिये।” गिरीश फूट फूटकर रो पड़े – ” मुझसे गलती हो गई, क्षमा कर दीजिये। आप सबके बिना मैं मुख्यमंत्री पद की शपथ कैसे ले पाऊॅगा? मेरे विरोधी….।”

” मैंने पहले ही बच्चों से कहा था कि तुम हमें प्रेम या पश्चाताप के लिये नहीं अपने राजनैतिक लाभ के लिये बुला रहे हो। भले ही तुम बहुत बड़े राजनीतिज्ञ बन गये हो लेकिन इतनी समझ तो मुझे है ही। केवल हाथ जोड़कर अपने बेटे से नहीं एक मुख्यमंत्री से प्रार्थना है कि हमें हमारे हाल पर छोड़ दो। हमें तुमसे कुछ नहीं चाहिये। हमें अपनी जिन्दगी जीने दो और तुम भी अब तक जैसी जी रहे थे, जीते रहो। हममें से कोई नहीं आयेगा।”

प्रकाश ने अपने बेटे और पोते पोतियों से सहायक के सामने बुलाकर कह दिया कि उनके जीते जी तो क्या उनके मरने के बाद भी कोई गिरीश से सम्बन्ध नहीं रखेगा।

निराश होकर अपनी टीम सहित सहायक मंदाकिनी के पास पहुॅचा लेकिन मंदाकिनी ने तो वीडियो से भी बात करने से मना कर दिया। सहायक घबरा गया – ” मैडम, मेरी नौकरी चली जायेगी। आप जो मन हो करियेगा लेकिन साहब से बात कर लीजिये।”

आखिर मंदाकिनी फोन से बात करने के लिये मान गई। उस कर्कश स्वर को सुनने के बाद आज वह पहली बार गिरीश से बात कर रही थी। बिना कुछ बोले उसने फोन कान से लगा लिया। गिरीश जो कुछ कहता रहा, चुपचाप सुनती रही। जब गिरीश अपनी बात कह चुका तो धीरे से बोली – ” मैं किसी गिरीश को नहीं जानती, न मेरा कोई पति है। अगर माननीय मुख्यमंत्री जी नहीं चाहते कि मैं मीडिया या उनके विरोधियों को कोई बयान दूॅ तो मुझे दुबारा परेशान न किया जाये। मैं अपने जीवन से बहुत प्रसन्न और संतुष्ट हूॅ।”

सहायक ने गिरीश से पूॅछा – ” सर, मेरे लिये क्या आदेश है? मैं क्या करूॅ?”

” कुछ नहीं, वापस आ जाओ और इन बातों के बारे में किसी को पता नहीं चलना चाहिये।”

सहायक और उसकी टीम ने तो कुछ नहीं कहा और न ही लाख प्रयत्न करने पर गिरीश के परिजनों ने कोई बयान दिया लेकिन फिर भी न्यूज चैनलों और समाचार पत्रों में बार बार यही मुख्य समाचार प्रसारित हो रहा था – ” मुख्यमंत्री के शपथ समारोह में उनकी पत्नी और परिजनों ने सम्मिलित होने से इंकार कर दिया।”

( यह एक काल्पनिक कहानी है। किसी व्यक्ति विशेष से इसका कोई लेना देना नहीं है ‌)

स्वरचित एवं अप्रकाशित 

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बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर 

लेखिका/ लेखक बोनस प्रोग्राम – कहानी 07

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