आपे से बाहर होना – निमिषा गोस्वामी

शालू ऊ ऊ ऊ ऊ तुमने इन बच्चों को मेरे कमरे में कैसे आने दिया। निकालो इन्हें बाहर।सारा कमरा बिखरा दिया। वैभव अपने कमरे को बिखरा हुआ देखकर आपे से बाहर हो गया। वह ज़ोर से अपनी बीवी पर चिल्ला रहा था। शालू किचन में चाय बना रही थी।

गैस बंद कर घबड़ाकर भागी।क्या हुआ क्या हुआ? देखो इनको तुम्हारे लाड़लों की करतूतों को। किसने आने दिया इन्हें इधर वैभव का चेहरा गुस्से से लाल हुआ जा रहा था।शालू ने डरे हुए बच्चों को अपने सीने से लगाकर दूर बैठ गई।सब मेरी ही गलती है वैभव ये तो मासूम है।

मैं आपके आने से पहले आपके लिए चाय बनाने चली गई थी।आप चिल्लाइये मत बच्चे थर-थर कांप रहे हैं।

मैं अभी सब ठीक कर देती हूं। ठीक है वो तो तुम कर ही दोगी।पर आज के बाद मै इन की शक्ल न देख लूं।वैभव कहते हुए गुस्से में बाहर चला गया। शालू ने दोनों बच्चों को उनके कमरे में बंद कर वैभव का कमरा साफ़ करने चली गई।

सफ़ाई करते करते वह सोचने लगी क्यों की मैंने वैभव से दूसरी शादी। शालू के पति के गुजर जाने के आठ साल बाद उसकी मुलाकात वैभव से हुई थी वैभव की भी पत्नी का देहांत चार साल पहले ही हुआ था। दोनों की मुलाकात होती रही पता ही नहीं चला कब दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए।

फिर एक दिन वैभव ने शालू से शादी करने का प्रस्ताव रखा।शालू कुछ दिनों तक कोई जवाब नहीं दे पाई। क्योंकि उसके पहले पति से दो बच्चे थे। लेकिन वैभव के कोई संतान नहीं थी।बस यही सोचकर उसने एक दिन शादी के लिए हां कह दी।

उसने वैभव को बच्चों के बारे में सब बता दिया था। उसने भी बच्चों को स्वीकार कर लिया था। परंतु शादी के दो साल बाद ही उसका बच्चों के प्रति रवैया बदल गया। पुरूष स्वभाव के कारण वह जब भी उन बच्चों को देखता उसे पराय मर्द की मौजूदगी महसूस होती।

इसी वजह से वह बच्चों से नफ़रत करने लगा। अब बच्चों की वजह से शालू व वैभव में भी झगड़ा होने लगा। दरवाजे की आवाज से शालू ख्यालों से बाहर आई। मां दरवाजा खोलो न बाहर निकालो। हां हां बच्चों आतीं हूं

उसने दरवाजा खोला तो दोनों बच्चे उससे लिपटकर रोने लगे मां यहां से चलो पापा बहुत गन्दे हैं हमें डांटते हैं।वे हमें प्यार भी नहीं करते। आपसे भी झगड़ा करते हैं। चलो मां हम कही और चले। हां बच्चों ठीक है। अभी चलो जल्दी से खाना खाओ फिर सो जाओ।

ठीक है कल हम-सब यहां से नानी के घर चलेंगे। शालू ने बच्चों को समझाया व उन्हें खाना खिला कर सुला दिया।अब तक वैभव आ चुका था उसका गुस्सा भी शांत था।पर शालू ख़ामोश थी उसने बिना कुछ बोले वैभव को खाना खिलाया व बच्चों के कमरे में जाने लगी।

वैभव ने उससे पूछा भी शालू तुम अभी भी नाराज़ हो।पर शालू बिना कुछ कहे चली गई।आज शालू को नींद नहीं आ रही थी बच्चों के मासूम सवाल उसके मन को कचोट रहे थे।वह सोचने लगी। मां-बाप ने यह सोचकर दूसरी शादी के लिए हां कह दी थी कि चलो मेरी बेटी की गृहस्थी बस जाएगी और बच्चों को बाप का साया पर अब क्या करूं?और कहां जाऊं? जाना तो मायके ही पड़ेगा।

क्योंकि बच्चों के प्रति वैभव का व्यवहार दिन-व-दिन गलत होता जा रहा था। बच्चों के लिए ही सही ये फैसला लेना होगा। मुझे अपने बच्चों की परवरिश खुद करनी होगी। सुबह होते ही उसने वैभव से साफ-साफ शब्दों में कह दिया आज से आपको आपे से बाहर नहीं होना पड़ेगा।

अब मैं अपने बच्चों को लेकर मां के घर जा रही हूं। शालू ये तुम्हारा आखिरी फैसला है वैभव फिर तैस में आया।पर शालू ने हाथ से उसे रोकते हुए कहा बस बहुत हो गया।अब नहीं।मै अपने बच्चों की परवरिश खुद कर सकती हूं।

मेरा रास्ता छोड़ों वरना मैं भी अपना आपा खो दूगी। और अपने बच्चों को लेकर मायके के लिए चल दी। वैभव को अभी भी अफसोस नहीं था। उसने कहा ठीक है।आज से हमारे रास्ते अलग-अलग हुए।

निमिषा गोस्वामी 

जिला जालौन उत्तर प्रदेश

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