“माँ,बंद करो अपना ये नाटक और जल्दी से तैयार हो जाओ।मैंने नेहा के घरवालों को आज होटल में मिलने के लिए कहा है।”रोहित सुषमा पर गुस्सा होते हुए बोला।
नेहा रोहित के ही ऑफिस में काम करती थी।रोहित की ही तरह उसने भी बी ई व एम बी ए किया था।देखने में सुंदर थी।परिवार भी अच्छा था।सब कुछ ठीक था पर सुषमा बेटे की शादी अपनी बिरादरी की लड़की के साथ करवाना चाहती थी क्योंकि उसे लगता था
कि यदि बेटे ने लव मैरिज की तो परिवार वाले उसपर बाते बनाएंगे।सुषमा अपने बेटे से बहुत प्यार करती थी वो नहीं चाहती थी कि लोग उसके बेटे के बारे में कुछ भी बुरा भला बोलो।वैसे पति के जाने के बाद किसी ने उसका साथ तो नहीं दिया पर गलतियां निकालने में सब आगे रहते थे।
सुषमा ने बेटे को हर पहलू से समझाना चाहा पर वो एक ही बात पर डटा हुआ था कि मैं शादी करूंगा तो नेहा से।बड़ी मुश्किल से सुषमा रोहित के साथ होटल जानें को तैयार हुई।
गाड़ी में बैठते ही सुषमा ने सोचा रोहित नेहा से शादी किए बिना मानेगा तो नहीं क्यों न इसे पहले से ही कुछ रस्मों की बातें समझा दूं ताकि बाद में कोई दिक्कत न हो।
“देख बेटा अब तेरे पापा तो हैं नहीं सो तू ही लड़की के पिता से सब लेन देन की बात कर लेना।”
“माँ कौन से लेन देन की बात कर रही हो?”रोहित आश्चर्य से बोला।
“अरे पगले समझता नहीं है रिश्तेदारों के नेग और दहेज में जो चलन आजकल चल रहा है वह सब लड़की वालों को देना पड़ता है।”
“माँ आपने मुझे पढ़ाया लिखाया ताकि मैं अपने पैरों पर खड़ा हो सकूँ कभी किसी के सामने मुझे हाथ न फैलाना पड़े।अब आप ही मुझे दूसरों से माँगने के लिए मजबूर कर रहीं हैं।”
“बेटा,मैं तुझसे क्या अलग करने को कह रहीं हूँ।ये रीति रिवाज तो हमारे समाज ने ही बनाए हैं।हम भी तो उनकी बेटी के लिए जेवर कपड़ों पर खर्चा करेंगे।”
“खर्चा करेंगे पर अपनी खुशी से और अपनी हैसियत के हिसाब से।हमें उन्होंने तो नहीं बोला ना करने के लिए।मुझसे ये सब नहीं होगा माँ।”
बेटे की बात सुनकर सुषमा रोने लगी।बोली -“तू तो अभी से ही उनका पक्ष ले रहा है शादी के बाद तो मुझे पूछेगा भी नहीं।”
“ऐसी बात नहीं है माँ।बस मैं नहीं चाहता,कि किसी से कुछ माँगकर अपने माता-पिता के कद को छोटा करूँ।पापा ने दिन रात मेहनत की ताकि मैं और आप एक सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।उन्होंने हमें सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध कराईं।
आज ईश्वर की दया से सब कुछ है हमारे पास फिर क्यों किसी से कुछ माँगना।जहाँ तक रिश्तेदारों की बात है उन्हें हम अपनी तरफ से शगुन दे देंगे।”रोहित की बात सुनकर सुषमा को अपनी गलती का एहसास हुआ।
उसे लगा यदि उसका बेटा अपने माता-पिता की परवरिश और उनके संस्कारों को समझता है उनकी कद्र करता है तो उसे भी सब कुछ भूलकर बेटे के विचारों और उसकी पसंद को अहमियत देनी चाहिए।परिवार वालों का क्या है?वो तो बस बाते बनाने के लिए ही हैं..कुछ तो लोग कहेंगे..लोगों का काम है कहना..!!
“सच कह रहा है तू बेटा।तूने आज मेरे हाथों गलत होने से बचा लिया। वरना क्या जवाब देती तेरे पापा को?”
सुषमा और रोहित तय समय पर होटल पहुंच गए।नेहा और उसके घरवालों से मिलकर सुषमा को बहुत अच्छा लगा।बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो नेहा के पापा सुषमा से बोले -“भाभी जी आप अपने रस्मों के हिसाब से जो लेन देन होता है वो हमें बता दीजिए।”
“भाई साहिब, मेरे बेटे को आपकी बेटी पसंद है बस इससे बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं।आप अपनी इच्छा से जो बेटी को देना चाहें वो दे सकते हैं।”सुषमा हाथ जोड़कर बोली।
सारी रस्मों रिवाजों संग रोहित और नेहा की शादी हुई।नेहा बहु बनकर सुषमा के घर आ गई उसने अपने स्नेह व व्यवहार से सुषमा का दिल जीत लिया।
एक दिन रोहित मस्ती करते हुए सुषमा से बोला-“माँ, आपको नेहा पसंद नहीं आई हो तो कोई दूसरी लड़की देख लें।”
सुषमा रोहित के कान मरोड़ते हुए बोले -“अपना नाटक बंद कर वरना बहु के सामने ही तेरी पिटाई कर दूंगी।फिर मत कहना मेरी बेज्जती कर दी।”सुषमा की बात सुनकर नेहा जोर जोर से हंसने लगी और रोहित झेंपते हुए बोला -“सॉरी माँ।”
बच्चों को यूं हँसता मुस्कुराता देख सुषमा सोचने लगी कि यदि वो लोगों की परवाह करती तो शायद इन खुशियों से वंचित रह जाती।
दोस्तों लोग क्या कहेंगे?के डर से माता-पिता बच्चों की खुशियों को नजरंदाज कर देते हैं।जबकि उन्हें बच्चों की खुशियों को प्राथमिकता देनी चाहिए जो की बहुत महत्वपूर्ण है।लोगों का काम है कहना..आप अच्छा करोगे तो भी वो बोलेंगे और बुरा करोगे तो भी बोलेंगे।इसलिए लोग का क्या कहेंगे छोड़ो,बच्चों की खुशी का सोचो..!!
कमलेश आहूजा