तुलसीदल – नीरजा कृष्णा

आज दीपू की गुलाबजामुन खाने की बहुत इच्छा हो रही थी। मन तो दादा जी का भी बहुत था पर संकोचवश चुप थे। शुगर की बीमारी के कारण मीठे पर बहुत कंट्रोल रहता था। आज दीपू के आग्रह पर दादी जी ने चौके में कमान कस ली थी। 

थोड़ी देर में पूजाघर में घंटी बजने की आवाज़ आई। दीपू चौंक कर पूछ बैठा,”ये घंटी की आवाज़ कहाँ से आ रही है?”

उन्होंनें अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा,”बस बेटा! इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुई। दादी भगवान को भोग लगा रही हैं…बस हम दोनों के सामने नरम मुलायम गुलाबजामुन आते ही होंगे।”

एक माह के लिए छुट्टियों में दादा दादी के पास गाँव आए हुए दीपू को यहाँ की हर बात बहुत आकर्षित कर रही थी…वो कुछ पूछना ही चाह रहा था कि दादी ने दो प्लेटें सामने रख दीं।  फूले फूले गोल गोल  गुलाबजामुन मुस्कुराते हुए जैसे उन दोनों को आमंत्रण दे रहे थे, उनके ऊपर चार पाँच तुलसीदल भी सजे थे। दीपू ने हैरानी से पूछा,”ये तुलसी के पत्ते?”

दादी ने  प्यार से उसके मुँह में पूरा एक गुलाबजामुन ठूँस दिया और कहने लगी,”हमारी संस्कृति में भगवान को भोग लगाते समय तुलसीदल डाला जाता है। ये उनको बहुत प्रिय है और इससे भोग प्रसाद बन कर बहुत स्वादिष्ट हो जाता है।”

वो खुश होकर सोचने लगा…मुंबई की भागमभाग वाली जिंदगी में उसकी मम्मी  ये सब कहाँ कर पाती हैं…तभी दादी ने एक पीस और उसके मुँह में डाल ही दिया,

“अरे क्या सोचने लगा मेरा बच्चा? देख तेरे दादा जी तो चार गुलाबजामुन उड़ा गए।”

वो खुश होकर एक और अपने मुँह में डालते हुए बोल पड़ा,”सच दादी! तुम्हारे बनाए ये गुलाबजामुन कितने नाज़ुक और नरम हैं। सारा कमाल आपके हाथों का है।”

दादा जी स्नेह से बोले,”तुम्हारी दादी का कमाल तो है ही, तुलसीदल डाल कर भोग लगाने से भी स्वाद चौगुना हो जाता है।”

वो सहमत था…जोश से बोला,”इस बार मैं अपने साथ तुलसी जी का एक पौधा जरूर ले जाऊँगा और साथ में अपने भारतीय संस्कार भी।”

दोनों प्यार से उसकी पीठ थपथपाने लगे और ढे़रों आशीर्वाद दे डाले।

नीरजा कृष्णा

पटना

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