अपनी ज़मीन (संस्कार) – गीता अस्थाना : Moral Stories in Hindi

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एक छोटे-से शहर मिर्जापुर में ललित प्रसाद जी ने अपने यौवनावस्था में, सीमेंट, सरिया छड़ आदि लोहे का बिजनेस की शुरुआत की थी। समयोपरांत वे शीघ्र ही सफल व्यवसाई बन   गए।

उनके चार बेटे थे अनीश, सुरेश, महेश और नीलेश।अनीश को छोड़कर तीन बेटों को अलग अलग शहरों में इसी बिजनेस में लगा दिया। तीनों बेटे सफलता पूर्वक अपने बिजनेस को संभालने लगे और उन्नति की ओर बढ़ने लगे।

अनीश मिर्जापुर घर में ही रहकर सभी भाईयों के व्यवसाय का लेखा जोखा रखने के कार्य में लग गए। सभी भाईयों के व्यवसाय का आय-व्यय का संपूर्ण विवरण यहीं पर ही रखा जाता था। ललित प्रसाद जी सभी बेटों को एक समान सैलरी दिया करते थे।

परिवार बड़े अच्छे से चल रहा था। बड़ों का आदर सम्मान छोटों को लाड़ दुलार उस परिवार में रचा बसा था। बहुओं में भी आपस में शिष्टाचार था। कभी भी उनमें ईर्ष्या द्वेश अहंकार की भावना नहीं दिखाई देती थी।

अनीश का बेटा अमन मिर्जापुर में ही इण्टर में पढ़ रहा था। बिज़नेस में उसकी रुचि नहीं थी। बारहवीं क्लास में पढ़ते समय ही उसने अपनी इच्छा बाबा और पिता के सामने जाहिर किया “बाबा मैं इन्जिनियरिंग पढ़ना चाहता हूंँ।”

बाबा बोले -“बेटा इस परिवार के बिज़नेस को सम्भालो। तुम्हारे पापा चाचा सभी तो इसी बिज़नेस में लगे हैं और आगे बढ़ रहें हैं।” मुझे यह पसंद नहीं है बाबा, मैं इन्जिनियर बनना चाहता हूंँ। इन्जिनियर बनने के बाद हो सकता है कि मेरी रुचि इसमें हो जाय तो मैं इसकी फैक्ट्री लगा सकता हूँ।

उसके तर्क को सुनकर ललित जी ने थोड़ा सोचा फिर सहमति जताते हुए कहा “ठीक है, कॉम्पटीशन की तैयारी करो।”

अमन जी जान से पढ़ने में जुट गया। कॉम्पटीशन में छठीं रैंक आई।एम एस रमैया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी बेंगलुरु में ऐडमिशन हो गया।

एक वर्ष उपरांत जब वह छुट्टी में घर आया तो उसका मिज़ाज और वेशभूषा कुछ अलग ही थी। वेशभूषा में फिल्मी रंग चढ़ गया था,जो उसके परिवार को अचंभित करने वाला था।

एक बार वह बाबा के सामने चटक रंग का शर्ट और फटी जीन्स पहन कर बाहर निकला। देखते ही बाबा बोले “ये कैसे कपड़े पहन रखा है तुमने, नाटक मंडली में जाना है क्या।” “अरे! बाबा यह फैशन है।”

“तुम फैशन करने यहां से  गए हो या पढ़ने। पढ़ने वाले बच्चों का ऐसा सलीका होता है।”

बुरा सा मुंह बनाते हुए कुछ धीमी आवाज में अमन बुदबुदाया-” यहां लोग कूपमण्डूक हैं। दुनियां तो कभी देखी नहीं, क्या जाने —-“चटाक -एक जोर का थप्पड़ पापा ने मारा। उन्होंने उसकी कथन को सुन लिया था। आगे का शब्द उसके मुंह में ही रह गया।

हतप्रभ सा वह अपने बाबा को और अपने पिता को देखने लगा। “बाहर क्या निकले तमीज़ ही भूल गए।*आसमान पर उड़ने*को लगे हो। इतना मत उड़ो कि पैर से धरती ही खिसक जाय। अब यहीं रहो।

उत्तेजना पूर्ण विवाद पश्चात सभी अपने अपने कमरे में चले गए। कुछ दिन तक अमन चुपचाप घर में ही बैठा रहा। कालेज वापस जाने के एक सप्ताह पहले वह बाबा के पास गया। “बाबा वहां सभी लड़के इसी तरह के कपड़े पहनते हैं।

मुझे छोटे शहर से आया हुआ गंवार न समझ लें, इसलिए मैं उसी सभ्यता में रंग गया। हां,आप लोगों को जो मैंने कूपमण्डूक कहा, उसके लिए मैं माफी मांगता हूँ। मुझे पढ़ने से मत रोकिए।”

बाबा ने उसे अपने पास बिठाया,बोले-” बेटा आदमी कितना भी बड़ा बन जाए, उसे अपनी ज़मीन  (संस्कार) कभी नहीं भूलना चाहिए। संस्कार और विनम्रता आदमी को महान बनाती है । तुम्हारी पढ़ाई नहीं रुकेगी। खुश होकर जाओ और मेहनत से पढ़ाई करो।” अमन बाबा के गले लग गया और रोने लगा। बाबा ने उसे चुप कराया और पीठ थपथपाते हुए आशीर्वाद दिया।

स्वरचित मौलिक 

गीता अस्थाना,

बेंगलुरु।

मुहावरा -# आसमान पर उड़ना।

 दिनांक -26-6-25

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