तकलीफ़ – कंचन श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

भाभी ज़रा पानी लाना,कौन अटका हुआ है ननद रीना ने जैसे ही कहां रेखा तुरंत हाथ में तोड़ा कौर थाली में रख फ्रीज़ की ओर भागी और भाग कर पानी दे आई जिसे पीकर रीना के मानों जान में जान आई। वो अभी बैठी ही थी

कि पति देव ने गरम रोटी की फरमाइश की तो कैसरोल की रोटी उसी में डालते हुए आंचल संभालती उसी और रसोई की तरह तेज कदमों से बढ़कर तवा गैस पर चढ़ा दो  रोटी सेक भाग दौड़ कर ले आई और मुस्कुराते हुए उनकी वाली में डालने लगी

तो उन्होंने  अरे! अरे! ये क्या सिर्फ़ एक लूंगा कहते हुए एक लिया,दूसरा केसरोल में रखवा दिया।फिर वो जैसे ही चेयर पर बैठी ससुर ने कहा अरे बहू रुको अभी मत बैठो ज़रा सा मेरा दवाई का डब्बा दे दो वरना खाने के बाद तो दवाई न निगली जायेगी।

इतना सुनते ही वो जी बाबू जी अभी लाई कह कर दवाई का डिब्बा लाने चली गई लेकर आई तो उन्होंने कहा बेटा ज़रा खोल दो उंगलियां काम नही करती तो उसने खोला और बाबू जी कौन सी दवाई देनी है बता दीजिये तो रैपर से निकाल दूं।

हां बेटा ये जो पीली चमकीली पन्नी है ना बस यही खोल दो इस पर उसने खोल कर दिया और खुद खाने बैठ गई पर जब वो खाने बैठी तो सभी खाना खत्म करके अपने अपने कमरे में चले गए,चले गए वो तो ठीक है पर उसके खाने का जाया भी फीका हो गया।

वो हाथ वाला कौर थाली में पड़ा मुंह चिढ़ा रहा था।तो दाल और तरकारी फैले गई थी।सबसे बड़ी बात तो ये की उसके लिए कैसरोल में चावल बचा ही नही था।फिर भी वो किसी तरह बिना मन के पानी घूटे लीलकर पेट भर ली।अब भरती ना तो क्या करती आखिर फिर उसे सबेरे से उठकर फिर खटना जो है।

अरे जब से आई है यही तो कर रही आज चार बरस हो गए उसे आये  इन चार वर्षो में इसी घर के लिए मर मिटी।अभी मां जी का पैर दबाना  और देवर जी की फरमाइश तो बाकी ही है गरम दूध का  गिलास बाकी ही है आखिर मां जी को मेरी तकलीफ़ क्यों नही दिखती की जो हर काम का बोझ मुझे पर डाल दिया है। क्या अपना और बाबू जी का काम भी नही कर सकती

और फिर देर जी और ननद रानी छोटी हैं क्या कि अपना काम नही कर सकती दर पर ही सब कुछ चाहिए। क्या मेरे जाये बच्चे है भी जो हम इनका करे अरे ये बड़े हो गए है तो खुद भी तो कर सकते हैं।ये सोच वो उठी ही थी कि  चक्कर खाकर गिर  गई और जैसे ही धड़ाम से गिरी आवाज़ सुनकर सब अपने अपने कमरे से बाहर आ गए।इतने में पति देव  गोद में उठा कर बिस्तर पर लेटा  दिये।

और पट्टी करने लगे उसे एक सौ चार बुखार था कैसे भी करके दवा और पट्टी के सहारे एक से डेढ़ घंटे में बुखार उरता तो बोली सुनिये अब हमसे घर का इतना काम अकेले नही होता जब से चिंकी हुई है जैसे शरीर की सारी ताकत ही चली गई है

हर वक़्त हाथ पैर झनझनाता रहता है पर कुछ कहती नही हूँ क्योंकि कहने से कोई फायदा नही है आखिर कार मां जी भी तो एक औरत हैं क्यों उनको मेरी तकलीफ़ समझ में नही आती।

अरे! पहले की बात और थी खाने में शुद्धता थी लोग जो खाते थे वो शरीर में लगता था पर अब ऐसा कुछ नही है क्यों ना हम काम बांट ले इससे काम भी हल्का हो जायेगा थकान भी नही लगेगी। कहते हुए वो पति की बाहों में सिमट गई।

वाक्य पर आधारित “सास को बहू की तकलीफ़ नही दिखती” साप्ताहिक प्रतियोगिता 

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

कंचन श्रीवास्तव

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