“बहू, आज ऑफिस से जरा जल्दी आ जाना….शाम को अर्पिता के यहां जाना है….” ममता ने कहा।
“माफ करना मां जी…. मेरा वहां जाना ऐसा भी कोई जरूरी नहीं है जो कि ऑफिस से हाफ छुट्टी ली जाए और वैसे भी हमारे ही इतने जरूरी काम आ जाते हैं जिनमें छुट्टी लेना जरूरी हो जाता है और उसमें फिर फिजूल में कहीं आने जाने के लिए…नहीं…नहीं…. मैं नहीं आ पाऊंगी आज…”
“अरे तू इसे फिजूल कह रही है…अरे आज उसके बेटे का जन्मदिन है और अगर कोई नहीं जाएगा तो उसके ससुरालवाले कितना बुरा मानेंगे…यदि रवि यहां होता तो बताता वह कि वहां जाना जरूरी है या नहीं…अब वह यहां नहीं है तो तुझे भी नखरे सूझ रहे हैं…”
“माफ करना…यदि जन्मदिन में जाना इतना ही जरूरी है तो आप चली जाना लेकिन मैं छुट्टी नहीं ले पाऊंगी…” कहकर शुभी ऑफिस के लिए निकल गई।
शाम को जब वह ऑफिस से आई तब ममता गुस्से में तैयार थी और उसे देखते ही भड़क पड़ी,”तू आई ही नहीं न जल्दी….अरे तुझे तो मेरी बेटी की खुशियां सुहाती ही नहीं है ….कम से कम चलती तो उसे खुशी ही होती और कुछ सहारा हो जाता….लेकिन नहीं…. करनी तो तुझे अपनी मनमानी है …..”
“माफ करना मां जी मैं सुबह ही आपसे मना करके गई थी….और अब आप जा तो रही हैं न…. दीदी आपको देखकर मुझसे ज्यादा खुश होंगी…” कहकर शुभी अपने कमरे में चली गई और अपने अतीत में खो गई….
आज उसे इस घर में आए हुए 15 साल हो गए थे तब से कब जाना है कहां जाना है, और अन्य कार्य जैसे जॉब आदि के लिए सासू मां जी और श्वसुर जी की आज्ञा लेनी पड़ती थी और अगर उन्होंने मना कर दिया तो मना ही है उसके बाद कोई बहस नहीं होती थी, शुभी भी एक आज्ञाकारी बहू की तरह उनकी हर बात मान लेती
जहां तक कि जो जॉब वह विवाह से पहले से करती थी वो भी बेटे विवान के जन्म के बाद छोड़नी पड़ी उनकी सासू मां जी का कहना था कि पहले बच्चों पर ध्यान दो जॉब तो होती रहेगी …..शुभी को जॉब छोड़ने का इतना दुःख नहीं होता था जितना तब होता था जब मायके में भाई या भतीजों के जन्मदिवस पर जाने की पूछने पर सासू मां ये कहती
कि अरे जन्मदिन तो हर साल आते हैं अब इनमें भी जाना ऐसा जरूरी है क्या जबकि उसका मायका 5 किलोमीटर की ही दूरी पर था….हद तो तब हो गई जब 4 साल पहले उसके पिता का पथरी का ऑपरेशन होना था
तब उसने सासू मां जी से पूछा था “मां जी, पापाजी का ऑपरेशन होना है तो क्या मैं 2 दिन के लिए मायके चली जाऊं, मम्मी को भी सहारा हो जाएगा….”
“अरे कल ही तो यहां कुछ दिन रहने के लिए अर्पिता आई है और तुझको मायके की पड़ी है….कह तो ऐसे रही हो जैसे तुझको ही ऑपरेशन करना है या तुम्हारे वहां जाए बिना काम नहीं होगा….रही बात पापा से मिलने की तो रवि के साथ घंटाभर के लिए जाकर पापा को देख आ….” ममता ने दो टूक उत्तर दे दिया।
इस बात पर वहां बैठी उसकी ननद अर्पिता ने भी उन्हें समझाने के बजाय शुभी से ही कह दिया।
“और क्या भाभी 4–5 दिन बाद तो मैं चली ही जाऊंगी तब चली जाना यदि रहने के लिए ही जाना है तो… अब थोड़ी देर के लिए देख आओ…”
तब भी शुभी मन मारकर रह गई।
लेकिन 1 साल पहले अर्पिता के चाचा के बेटे की शादी थी तब जब अर्पिता की मां ममता को पता चला कि उसके ससुराल वालों ने उसको कुछ दिन रुकने के लिए भेजने को यह कहकर मना कर दिया कि केवल शादी वाले दिन ही चली जाना
क्योंकि 6 महीने का मन्नू वहां भीड़ भाड़ में परेशान हो जाएगा और वैसे भी ठंड बहुत है तो कहीं बीमार न हो जाए और वैसे भी कौन से खास भाई की शादी है….तब ममता जी बहुत नाराज हुई थीं और घर में सब पर गुस्सा निकालते हुए बोलीं
“अरे मेरी बेटी कोई कठपुतली है क्या कि जब उनका मन करेगा तब भेजेंगे और जब नहीं करेगा तब नहीं भेजेंगे….जैसे उसका तो कोई मन है ही नहीं….अब शादी ब्याह भी भला बार बार होते हैं क्या….और रही बात मन्नू की तो अगर उनके घर में ब्याह होता तो…..”
और यही कहते कहते अर्पिता की सास के पास फोन मिला दिया और उन पर यह कहकर दबाव डाल कर कि शादी रोज थोड़े ही होती है रही बात बच्चों की तो हम हैं….कोई परेशानी नहीं होगी उनको अर्पिता को भेजने के लिए राजी कर लिया और उसी दिन शाम को रवि को लेने भेज दिया।
मतलब बेटी पर बेटी के ससुराल वालो का कोई जोर नहीं, उस पर उनकी कोई मर्जी नहीं चल सकती यह देख शुभी को बहुत बुरा लगा क्योंकि वह अच्छे से जानती थी कि पूरी शादी में उसके बच्चों की जिम्मेदारी उस पर ही डाल दी जाएगी और हुआ भी यही…अर्पिता भाभी भाभी कहकर मन्नू को जब तब उसे ही दे जाती….शुभी भी विवाह में एंजॉय नहीं कर पाई।
इस बार तो शुभी ने कुछ नहीं कहा लेकिन विवाह के बाद अपने लिए ही कुछ निर्णय कर लिए कि अब बेवजह वह और नहीं सहेगी …
इसके कुछ महीनों बाद ही उसने एक कंपनी में यह कहकर जॉब कर ली कि उसके बच्चे भी अब थोड़े बड़े हो गए हैं हालांकि तब भी सासू मां जी ने बहुत हंगामा किया था लेकिन इस बार रवि उसके साथ खड़ा था इसलिए उसने ममता जी की सुनी ही नहीं….
कुछ दिन बाद जब रवि जॉब से घर आया तब ममता जी ने उसे सारी बात बताते हुए कहा, “देख ले, तेरी छूट का नतीजा है कि हमारी तो सुनती ही नहीं है, मन्नू के जन्मदिन पर भी नहीं गई…”
“मां कोई बात नहीं यदि नहीं गई तो क्या हुआ …आप तो चली गईं और वैसे भी मां इसमें आप और मैं ज्यादा तो उससे कुछ नहीं कह सकते न क्योंकि अगर बेटी अपने ससुराल वालों की कठपुतली नहीं है तो बहू कैसे हो सकती है…बहू भी कोई कठपुतली नहीं है…..”
रवि के इतना कहते ही माताजी के मुंह से कोई शब्द नहीं निकला शायद उन्हें अहसास हो गया था कि ये आज उनकी बेवजह की रोकटोक का परिणाम है….
आज उनकी समझ आ रहा था कि किसी पर इतना भी दबाव नहीं डालना चाहिए कि वह बगावत करने पर उतर आए ….
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’
#कठपुतली