सौम्या स्कूल जाने के लिए जल्दी जल्दी तैयार होने लगी, वैसे अभी समय था लेकिन आज स्कूल में पेरेंटस टीचर मीटिंग थी जिसकी तैयारी उसके जिम्मे थी। हर महीने के आखरी शनिवार को ये क्रायकर्म होता था। पहले तो उसने कार की चाबी उठाई लेकिन फिर कुछ सोचकर स्कूटी कि ले ली, उसे पता था कि कोई न कोई उसे टोक देगा कि स्कूटी पर जाया करो, फालतू में कार का पैट्रौल फूंकती रहती हो।
वैसे कार सौम्या को उसके पिताजी ने शादी के समय दी थी। उच्च शिक्षित सौम्या शहर के जाने माने स्कूल में शिक्षिका थी। दो साल हो चुके है शादी को।
अक्षत यानि कि सौम्या के पति भी किसी कंपनी में कार्यरत है। घर पर सास ससुर और एक छोटी ननद है। सब कुछ अच्छा है, लेकिन इस परिवार में ससुर को छोड कर बाकी तीनों को हर बात पर सौम्या को टोकने की आदत है, जो कि सौम्या को क्या किसी को भी अच्छा नहीं लगेगा।
अब जैसे कि कार ले जाने की बात है, सौम्या भी जानती है कि हर रोज कार ले जाना मंहगा होने के इलावा देशहित में भी नहीं हैं, लेकिन रास्ते में ही रसिका और फिर स्वाति टीचर के घर पड़ते है, तो वो सभी मिलजुल कर पूल कर लेती है। कई बार स्कूटी किसी के घर छोड़कर उसकी कार में चले जाते है या जैसा भी मौका होता है। लेकिन हर काम में उसकी जवाबदेही होती रहती है, जैसे वो कोई छोटी बच्ची हो।
रसोई के कामों में सास की दखलअंदाजी हद से ज्यादा है। ये नहीं पूछा, वो नहीं पूछा। दो दिन पहले की बात है उसने काले चने भिगो दिए। सुबह सास ने देखा तो बोली कि अरे काले चने क्यों बना रही हो, सफेद बना देती। आलू सूखे तल दिए, थोड़ी ग्रेवी वाले अच्छे लगते है। जब अगली बार वो उस तरह बनाएगी तो कुछ और बता दिया जाएगा।
और ननद को तो पूछो ही मत। “ अरे भाभी, इतनी गर्मी में ये रंग क्यूं पहन लिया, लिपस्टिक बिल्कुल मैच नहीं कर रही। से वाला सूट आप पर बिल्कुल नहीं जंचता”। “ दो दिन पहले ही तो बैड की चादर चैंज की थी, आज फिर बदल दी”।
सौम्या को कभी कभी ये लगता कि वो इन्सान है या कठपुतली जो इन सभी के इशारों पर नाचती रहे। सास, ननद तक भी होता तो वो चुप रहती, अक्षत उनसे भी दो कदम आगे था। जब भी वो उसके साथ जाता तो उसी के हिसाब से तैयार होना पड़ता। पति प्यार से कभी कभार कुछ कहे तो अच्छा लगता है लेकिन हर समय कि टोका टोकाई से तो खीज ही आती है।
जब उसका मन सूट को होगा तो मिस्टर साड़ी पहनने को कहेंगे, जीन पहनेगीं तो लांग ड्रैस की डिमांड होगी। बेचारी सौम्या बौरा जाती कि वो करे तो क्या करे। कई बार तो उसे बड़े चाव से लगाई छोटी सी बिंदी भी उतारकर बड़ी लगानी
पड़ती क्योंकि सास के साथ कहीं जाना है तो बड़ी बिंदी और पूरी मांग में सिंदूर भरना जरूरी है।सौम्या की समझ में आज तक ये बात नहीं आई कि आखिर वो करे तो क्या करे। कुछ भी सहने की एक सीमा होती है।
वो घर की शांति भी भंग नहीं करना चाहती थी। उसके ससुर ने कई बार मजाक मजाक में उसका पक्ष लिया जैसे कि एक बार वो और अक्षत घूमने शिमला जाने वाले थे तो उसकी सास ने कहा, छोड़ो शिमला में क्या रखा है, मनाली, मंसूरी ज्यादा बढ़िया है।
तब उसके ससुर ने कहा कि जिसकी जहां मर्जी हो जाए, तुम्हे क्या? उसकी सास कहां चुप होने वाली थी, बोली, नहीं आजकल शिमला में बहुत गंदगी है, मेरी एक सहेली कुछ महीने पहले जा कर आई। कहने का भाव कि अपनी मर्जी से कुछ भी करना मुशकिल। देखने में ये बातें छोटी लगती है लेकिन मानसिक तनाव का कारण जरूर बनती है।
गर्मियों में जून का महीना था और किसी रिशतेदार की शादी में जाना था। जब सब तैयार हो गए तो सौम्या को देखकर उसकी सास मुंह बनाते हुए कहा, ये कैसी हल्की सी साड़ी पहन ली, न कोई ढ़ग का जेवर, लोग क्या कहेगें, बहू के पास पहनने के लिए भारी कपड़े गहने नहीं है और मेकअप भी नाम मात्र। “ वो, ममी, बाहर बहुत गर्मी है” सौम्या ने कह।
“ हर जगह ऐ. सी. लगे होते है”, जाओ बदल के आओ, सास ने हुक्म सुना दिया।
आज तो सौम्या भी भड़क पड़ी। “ इतनी गर्मी में भारी भरकम साड़ी और जेवर पहनना मेरे बस में नहीं, मुझे नहीं जाना किसी शादी में , मैं तो जैसी हूं , वैसी ही ठीक हूं, आप सब हो आओ, और माफ करना, तंग आ चुकी हूं मैं सबकी सुनते सुनते ये कठपुतली वाला नाच अब मुझसे नहीं होगा,मेरी भी पंसद है, पढ़ी लिखी हूं , मेरा भी वजूद है”।
यह कह कर वो वापिस अपने कमरे में जाने लगी तो ससुर ने जैसे बीच बचाव करते हुए स्थिति संभालते हुए कहा, नहीं नहीं बहू , ऐसा कुछ नहीं, तेरा सास का वो मतलब नहीं था।
समय की नजाकत देखते हुए सौम्या भी चुपचाप गाड़ी में बैठ गई।
विमला गुगलानी
चंडीगढ़
विषय- कठपुतली