सुलभा नई नवेली दुल्हन बनकर सुयश के घर आई थी।रूपवान सुलभा के अनुपम सौंदर्य ने ससुराल में हर किसी को अपना चहेता बना लिया था। आधुनिक विचारधारा की सुलभा ने आते ही रसोई घर में नए-नए प्रयोग शुरू कर दिए थे।सास (रमा) ने अपने घर में जो भी नियम कानून बनाए थे,बहू ने आते ही सभी को ताक पर रख दिया।
कमरे में बेड टी लाई जब वह पहली बार ,तो रमा को आश्चर्य हुआ अपने पति (सुबोध )के कटाक्ष पर”अरे लाओ बहू,तुमने तो इस बुढ़ापे में मेरी बरसों की तमन्ना पूरी कर दी।नींद से जागते ही, बिस्तर में ही चाय पीने का जो आनंद है ना,वह घंटो बाद नहीं मिल सकता।अरे, नहा-धोकर पूजा -पाठ करते-करते चाय की तलब ही खत्म हो जाती है।
बस नाश्ता ठूंसो और साथ में ठंडी हो चुकी चाय पी लो।वाह! सीखो रमा,बहू से सीखो।हमारा सुयश तो बहुत खुश हुआ होगा बिस्तर में चाय पाकर।”सुलभा नासमझी में पूछ बैठी रमा जी से”मम्मी जी,सुबह बिस्तर में चाय पीना क्यों पसंद नहीं है आपको?कोई खास वजह है क्या?
हमारे यहां तो हमारी मम्मी हम सभी को कमरे में ही चाय देती थीं।आपने पता नहीं इतने सालों में घर के लोगों को बिस्तर में चाय पीने से क्यों रोके रखा?आपके बेटे ने तो कप लिया ही नहीं ट्रे से।इतना डरते हैं आपसे? मम्मी जी,उन्हें कह दीजिएगा ना प्लीज़,चाय पी लिया करें।”
रमा जी की दूरदर्शिता उन्हें भविष्य दिखा रही थी। उन्होंने चाय का कप तो ले लिया,और पूछा”छोटे और रानी(छोटा बेटा और बेटी)को भी चाय देकर आई हो क्या बेटा?”सुलभा ने चहकते हुए कहा”जी, मम्मी जी।दोनों को बिस्तर से जगाकर चाय देकर आई हूं।बस आपके बड़े बेटे ने नहीं पी।”
रमा ने कहा”हां,उसकी आदत नहीं है।पहले नहा-धोकर पूजा -पाठ करेगा,तब ही नाश्ते के साथ पिएगा।चलो तुम भी चाय पी लो बहू।”
सुलभा में बहुत लड़कपन था,बच्चों जैसा मन था उसका।पति(सुबोध)तो बहू का गुणगान करते थकते नहीं थे।ऐसा लग रहा था कि घर में एक और बेटी आई है।रमा की शादी के समय उम्र सुलभा से बहुत कम थी।सुबोध की मां ने रसोई की रस्म के बाद ,
अपने निजी अनुभवों से रमा को गृहस्थी का गूढ़ ज्ञान दिया था। उन्होंने घर-परिवार में क्लेष के कारणों व उनके निवारणों की विधि तक बता डाली थी रमा को।उस समय तो रमा के कुछ पल्ले नहीं पड़ा था,पर समय के साथ उनकी सीख ने ही रमा को गृहस्थी चलाने में मदद की थी।आज अपनी नई बहुरिया को भी समझाना होगा।चंचल है, धीरे-धीरे सब समझ जाएगी।
नाश्ते की टेबल पर सभी अपनी -अपनी कुर्सियों में आकर बैठे।रमा ने सुलभा की मदद करके पहली रसोई बनवाई थी बहू की।हलवा ज्यादा मीठा हो गया था,तो रमा ने आटा अलग से घी में भूनकर मिला दिया था।पूड़ी का आटा गूंथकर रख दिया था रमा ने।ख़ुद बेल भी दी ,बस बहू को तलना पड़ा।खाना परोसने पर हर सदस्य उपहार देगा बहू को,
यही परंपरा थी।हलवा खाकर सुबोध जी ने तो रमा पर ही ताना कसा “सीख लो बहू से,तुम तो भूल ही गई हो इतना अच्छा हलवा बनाना।छोटे ने जो अभी कॉलेज में था,खाने की तारीफ करते-करते भाभी के हांथ चूमने की बात तक कह दी।सुलभा सभी की तारीफ सुनकर खुश हो रही थी।
सुयश गंभीर स्वभाव का था,पर समझदार बच्चा था रमा जी का।सभी को शांत करते हुए कहा उसने”पापा,छोटे खाते समय इतनी बात क्यों करतें हैं आप लोग। मम्मी ने कहा रखा है ना,खाते समय शांति के साथ खाना चाहिए।
चलो मम्मी अब आप और बहू बैठ जाइये।खा लीजिए।परिवार के साथ बैठकर नाश्ता या खाना जो भी खाओ,सारा दिन अच्छा बीतता है।छोटे तुम कॉलेज जाते समय रानी को उसके कॉलेज छोड़ देना।ठीक है।शाम को हम साथ में कहीं घूमने चलेंगे।”
सुयश के गंभीर स्वभाव से भाई-बहन दोनों डरते थे थोड़ा।रमा ने हमेशा कह कर रखा था”बड़ा भाई बाप समान होता है।उसका सम्मान माने पिता का सम्मान।भाई से बात करते समय अपना दायरा कभी मत भूलना।”छोटे और रानी की अपनी भाभी से अच्छी दोस्ती हो गई थी।नाश्ते में कहीं पास्ता,मैगी, चाउमिन, फ्रेंच फ्राइज़, वेजिटेबल कटलेट,छोले भटूरे बना रही थी
सुलभा,और बड़े प्रेम से खिलाती भी थी।सबसे पहले पापा जी को सर्व करती।रमा ऐसी ही बहू तो चाहती थी,जो परिवार को जोड़े रहे।
अंदर से पर मन अशांत रहता रमा का।ख़ुद पर ही खीजती”सठिया गई हूं ना,बहू की अच्छी आदतें दिखती नहीं, नहीं-नहीं मैं बुरी सास कभी नहीं बनूंगी।एकाध महीने में घर के नियम कानून बता दूंगी।अभी बच्ची है,सोचेंगी,सास हर बात पर टोका-टाकी करती है।
किचन में जाकर बाई को सारा काम समझा दिया रमा ने।
शाम को पूरी मंडली तैयार बैठी थी,सुयश के साथ घूमने जाने के लिए।रमा ने समझाया सुबोध को”अरे!अभी -अभी शादी हुई है।ज़िंदगी भर तो बेटे ने हमें खूब घुमाया है। जहां-जहां हम बोले,खुशी -खुशी लेकर गया ।अब उस पर पत्नी का अधिकार पहले है।बहू बस जाएगी ,और कोई नहीं जाएगा साथ।”छोटे और रानी का मुंह बन गया।
सुलभा ने चहकते हुए कहा “मम्मी जी,आप और पापा नहीं जाना चाहते तो ना सही,छोटे भैया और रानी जरूर चलेंगीं।”दोनों तैयार तो पहले से थे।,खुश होकर सुयश के आने का रास्ता देखने लगे।काफी देर हो गई ,सुयश आया नहीं था घर।प्लान किसी और दिन का बन जाएगा।जरूर कोई जरूरी मीटिंग हो रही होगी, नहीं तो कभी इतनी देर नहीं करता ।
ऐसा रमा कह रही थी तीनों से। रानी और सुलभा कपड़े चेंज करने जाने ही वाली थी कि छोटे ने दांव खेला”भाभी,आपको क्या लगता है?भैया नहीं आ सके तो क्या आपका देवर नहीं ले जा सकता आपको घुमाने? बिल्कुल चेंज मत कीजिए।कैब बुक कर लेता हूं,चले चलेंगे।आपका मन भी बहल जाएगा,और हम भी आपसे गपशप कर पाएंगे।चलिए।”
रमा को छोटे की घूमने की आदत पता थी।इस तरह भाई की अनुपस्थिति में भाभी को बाहर ले जाना,बड़े बेटे को पसंद नहीं आएगा कभी।रानी तो चेंज करने जा ही चुकी थी।रमा ने कहा”छोटे ठीक है,अगर जाना है तो सुलभा और रानी को ध्यान से लेकर जाना।कुछ ऊटपटांग लड़ाई झगड़ा मत करके आना।भैया जी फिर छोड़ेंगे नहीं।”
छोटे के साथ सुलभा और रानी घूमने निकले ही थे कि सुयश आ गया घर।आकर जब सुना छोटे के साथ चले गएं हैं।निश्चिंत होकर बोला”अच्छा किया छोटे ने मां।मेरी बात भी रह गई। बहुत थक गया हूं,अब जा भी नहीं पाता।तुम इतनी टैंशन में क्यों हो मां?आ जाएंगे वो सब।चलो मुझे कुछ नाश्ता दे दो। बहुत भूख लगी है।”,
रमा जी का प्यार उमड़ पड़ा सुयश पर।एकदम शांत और सरल है मेरा बड़ा बेटा।मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं रखता।नाश्ता दिया तो टूट पड़ा बच्चों की तरह उस पर।फिर मम्मी पापा के साथ बगीचे की कुर्सी में बैठकरअखबार पड़ने लगा।
रमा रसोई में पकौड़े और चाय के बर्तन लेकर गई,तो सुयश ने पिता से कहा”पापा,आपसे एक बात करनी है।वहां से हूं की आवाज सुनकर सुयश ने कहना शुरू किया”पकौड़े कैसे बने थे पापा?और चाय मसाले वाली?”
पिता जी ने रटा रटाया उत्तर दिया”अच्छे ही बने थे बेटा।खा लिया देख ना कितना सारा।तुझे अच्छे नहीं लगे क्या?”
“नहीं पापा ,पिछले अट्ठाईस सालों से मम्मी के हाथों का खाना खाकर ही बड़ा हुआ हूं।हमारी सेहत का ख्याल रखकर ही वे खाना बनाती हैं।आपको दिल की बीमारी है ना, डॉक्टर ने तली भुनी चीजें,ज्यादा चाय ,मसाला मना किया है।तो मम्मी हम सभी के लिए हल्का खाना ही बना लेती हैं।ताकि हमारी सेहत भी अच्छी रहे। सुबह-सुबह बिस्तर में पड़े चाय पीने लगते आप और हम सभी,
तो समय से कभी आप ऑफिस ना पहुंच पाते,ना हम विद्यालय।सुबह नहाकर पूजा करने की आदत मम्मी ने ही डलवाई है हमें।सारा दिन मन शांत रहता है।आपको डांट-फटकार कर वॉक पर भी ले जातीं हैं,आप ही के लिए।इतने सालों से हमारी मां ने आपकी और अपने बच्चों की मां बनकर ही देखभाल की है।घर की दिनचर्या सही होने से,
हमें साथ में समय बिताने का अवसर मिल जाता है।हमें कहीं बाहर क्लब या होटल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।हां किसी खास मौके पर तो जाते ही हैं।पापा मैं देख रहा हूं पिछले कुछ दिनों से,आपका मम्मी के प्रति बर्ताव अच्छा नहीं है।सुलभा जो कि बहू है इस घर की,उसी के सामने आप मम्मी को हर बात पर नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं आजकल।
वो क्या सोचेगी,इस घर में औरतों से ऐसा व्यवहार होता है।यह बात निसंदेह वह अपने मायके में भी बताएगी।वो लोग तो आपको समझदार और मम्मी को जाहिल समझेंगे।अच्छा लगेगा क्या?आपकी पत्नी हैं वो,आपके सुख-दुख की साथी।किसी और के आने से क्या उनकी उपस्थिति नगण्य हो गई।अब से आप ऐसा नहीं करेंगे पापा।
मम्मी की बेइज्जती महसूस कर सकता हूं मैं।सुलभा के सामने नहीं बोलना था, अच्छा हुआ वो नहीं है यहां।अपने परिवार की कमजोरियां उजागर करके हमारी ही एकता कमजोर होगी पापा जी।बहू की तारीफ करना अच्छी बात है,पर अपनी पत्नी को नीचा दिखाना सही नहीं है।
ये रिश्तों की डोर बड़ी कच्ची होती है।नए हाथों में बड़ी सावधानी से देना पड़ता है,वरना बिखर जातें हैं ,उलझ जातें हैं धागे।”,बेटे की बात सुबोध जी को समझ आ गई।बड़ा गर्व हुआ बेटे पर कि ब्याह के बाद तो बेटे पत्नी के सम्मान की चिंता करने लगते हैं।यहां तो बेटे को अपनी मां के स्वाभिमान की चिंता है।
रसोई की खिड़की से रमा ने भी सुयश की बातें सुनी।मन भर गया।ऐसी औलाद भगवान सबको दे।आंखों से आशीर्वाद झरने लगा था।लगभग रात दस बजे सुलभा देवर और नन्द के साथ घर पहुंची।तीनों बहुत खुश थे।शायद बाहर से खाना खाकर ही आए थे।रमा ने उन्हें पैर हांथ धोकर सोने जाने को कहा।
अगली सुबह जल्दी उठकर बहू की विदाई करनी थी।रमा जल्दी ही उठने वाली थी ,पर नींद देर से खुली।नहाकर भगवान को भोग लगाकर रसोई में चाय चढ़ाने आई तो देखा,पतीला गैस पर ही है।चाय बनी हुई बची थी।
रमा ने एक प्याली चाय ली,और सबको उठाने चल दी।सुबोध जी के कमरे में जाकर देखा,वो मजे से चाय पी रहे थे।छोटे के कमरे से ज़ोर ज़ोर से हंसने की आवाजें आ रहीं थीं।कमरा आधा खुला था।अंदर जाकर रमा का पारा गर्म हो गया।छोटा निकर बस पहना था।
बदन में सैंडो बनियान थी बस।बिस्तर में अधलेटे ही भाभी के हाथों की बनी चाय पी रहा था।मां को देखते ही सकपकाया,पैजामा पहनने लगा।रमा ने कुछ नहीं कहा किसी से।बाहर निकल आई।रानी के कमरे में जाकर देखा तो ब्यूटी पार्लर की दुकान खोले बैठी थी वह।सज रही थी,भाभी के मायके जाने के लिए।
सुयश नहाने जा चुका था।रमा जी ने सुलभा को आवाज दी।उसके आते ही उसके मायके वालों के लिए नेंग की साड़ियां,फल,सलोनी -मठरी,मिठाई के डिब्बे पकड़ाते हुए बोली”पहली बार जा रही हो सुहागन बनकर मायके।हर सुहागन स्त्री को साड़ी ,चूड़ियां,महावर याद से देना।
मिठाई -नमकीन भी अलग से देना बहू।छोटों के लिए कपड़े,मिठाई और टॉफी है।तुम्हारी मम्मी के लिए ये बनारसी साड़ी,चूड़ियां मैंचिंग की हैं।पापा को ये शेरवानी देना।सुयश लेकर आया है खुद पसंद करके।”
सुलभा ने हैरान होकर पूछा “यहां से जाते समय आप क्यों नैंग दे रहीं।ये तो मायके से आते समय मम्मी देंगी।इतना सामान क्यूं दे रहीं मम्मी?हमारे किसी रिश्तेदार के घर में यह नियम नहीं है।मेरी मम्मी गुस्सा करेंगी। प्लीज़।”
रमा को आज बहू को गृहस्थी का बीज मंत्र भी दे ही देना चाहिए।रमा ने प्यार से सुलभा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा”बहू,अब यह घर भी तुम्हारा है।बेटी बनकर आओगी,और बेटी बनकर ही जाओगी।
तुम्हारे घर वालों ने हमें बेटी दी,तो उन्हें भी तो बेटा मिला।ये रिश्ते दो परिवारों के बीच निभते हैं। पति-पत्नी का जो भी है वह दोनों का साझा है।इस घर की मर्यादा तुम्हें वहां बनाए रखनी है।उस घर की मर्यादा यहां बनाकर रखना है।अब तुम्हारे उपर बहुत से रिश्तों की जिम्मेदारी है।
घबराओ नहीं,मैं हूं तुम्हारे साथ।पर निभानी तुम्हें पड़ेगी।सारी जिम्मेदारी निभाने से पहले जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी है वह है ,अपने संबंधों की जिम्मेदारी।तुम जिस रिश्ते में भी बंधी हो,वह कभी कलंकित ना होने पाए।”
मम्मी जी की समझदारी सुनकर सुलभा तो दंग रह गई । मम्मी को पहले इतना बात करते कभी देखा नहीं था।आंखों से आंसू आ गए उसके।रमा ने पूछा”क्या हुआ,ससुराल से जाते समय कोई लड़की रोती है भला,पगली।जल्दी आ जाना अपने घर।देख सुयश भी तैयार हो गया होगा।
चलो नाश्ता बनाकर देती हैं फटाफट।जाओ,दोनों साथ में खाने को।पापा को भी आवाज लगा देना।”सुलभा जाते-जाते रुककर पूछी”दोनों क्यों मम्मी?छोटे भैया और रानी भी तो चल रहें हैं ना हमारे मायके।कल से बोलकर रखा है सबने।मैंने तो घर पर भी बता दिया सबको।वो क्या नहीं जाएंगे?”
अब रमा ने असली मंत्र समझाया”बहू,ससुराल के रिश्ते बड़े नाजुक होते हैं।अभी तुम नई हो।समय लगेगा,रिश्तों को समझने में।जब रिश्ता ही नहीं समझ सकोगी ,तो उनकी मर्यादा कैसे कायम कर पाओगी।बुरा मत मानना बहू,अभी यह बता देना ठीक रहेगा,ताकि भविष्य में इस घर में कोई कलह ना हो।
देखो बहू, सुबह-सुबह जब तुम छोटे के कमरे में चाय देने जाती हो,वो आधे कपड़ों में पड़ा रहता है बिस्तर में।उसी हालत में तुमसे हंसी मजाक करना शुरू कर देता है।आज तुम्हें ठीक लग रहा है,कल को उसकी बदतमीजी बढ़ जाएगी,तब क्या करोगी?रानी अब बिस्तर पर पड़े चाय पी रही है,जबकि उसे पता है कि भाभी को मायके जाना है।
उसे तुम्हारे जाने की तैयारी में कोई दिलचस्पी नहीं है।बस भाभी के मायके में रौब दिखाने और अच्छा -अच्छा खाना खाने की लालसा है बस।तुम्हें उसे परिवार की जिम्मेदारी भी सिखानी है।सुनो,यह न्यौता बेटी -दामाद के लिए है,पूरे परिवार के लिए नहीं।तुम्हारे मम्मी पापा हैरान-परेशान हो रहे होंगें अपने बेटी-दामाद की आवभगत के लिए।ये उनका अधिकार है।
परिवार वाले बाद में कभी चले जाएंगे।एक पत्नी और पति के रिश्ते के बीच किसी दूसरे को कभी भी आने मत देना।मेरा सुयश गंभीर रहता है,पर बड़ों की इज्जत करना जानता है।छोटे का बचपना बड़े जाए,इससे पहले तुम्हें उसकी बड़ी भाभी बन कर दिखाना होगा।जिसे वो डरे भी, सम्मान भी करें और स्नेह भी करें,मां की तरह।अपने पद को सुशोभित तभी कर पाओगी तुम बहू,जब प्रतिष्ठित कर लोगी
ख़ुद को।मुंह से बिना कुछ बोले अपनी भाव-भंगिमा से भी हम समझा सकतें हैं दूसरों को,कि जिनसे वो बात कर रहें हैं उनका रिश्ता क्या है।ये धागे भरोसे और अपने पन के हैं।पर ये बड़े कच्चे होतें हैं।ज़रा सी ढील जैसे ही दी तुमने,तुम्हारा रिश्ता कट जाएगा पतंग की तरह।अच्छा अब बस करो।
चलने की तैयारी करो।कल जो साड़ी दिखाई थी ना तुमने,वही पहनना।और एक नियम है-साल भर जो भी साड़ी पहनो,उसका पहला किनारा गांठ बंधा हो।जमीन में ना लगे कभी।ध्यान रखना बेटा।”
“मम्मी,सुलभा को देखा आपने,अब तक तैयार नहीं हुई।देर से निकलेंगे तो पहुंचने में भी देर होगी।पानी का मौसम है।मैं कल आ जाऊंगा सुलभा को छोड़कर ना मां।”
रमा ने डांटते हुए कहा”ढाई दिन रुकते हैं ससुराल में पहली बार।भूल गया।सुलभा को अगर रुकना हो तो छोड़ कर आना कुछ दिनों के लिए।तुझे अगर छुट्टी मिलती है ,तो तू ही साथ रहकर तीन -चार दिनों में साथ ले आना।”
“अरे नहीं-नहीं मां, छुट्टी ही तो नहीं है।सुलभा को जब आना होगा,छोटे को भेज देंगे,लिवा लाएगा।”,रमा ने सुयश से कुछ नहीं कहा,पर सुलभा दौड़ती हुई आई और बोली”आऊंगी तो मैं आपके साथ ही।पत्नी आपकी हूं,तो आप को मुझे लेने आना पड़ेगा।मैं कोई सामान नहीं हूं,इस घर की बड़ी बहू हूं।बड़े आएंगे,तभी आऊंगी।क्यों सही कहा ना मम्मी?”
रमा ने भाव से निहारा बहुरिया को।इतनी जल्दी समझ गयी रिश्तों की मर्यादा को।भगवान खुश रखे तुम दोनों को।
शुभ्रा बैनर्जी
#रिश्तों की मर्यादा