साहस – डाॅ उर्मिला सिन्हा : Moral Stories in Hindi

   विषम परिस्थितियों का झोंका एक के बाद जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तब गौरी ने अपनी सहेली उमा के घर का रुख किया।

 गौरी को अचानक अपने सामने देख उमा के  खुशी का पारावार न रहा,” ये आज सूरज किधर से निकला।”

पंखे के नीचे इत्मीनान से बैठ कर गौरी ने फरमाइश की,

” एक कप अदरक वाली चाय मिलेगी।”

” जरुर”।

सहेली ने चाय पिलाई और बातें होने लगी।

” तुम्हारी बेटी चांदनी का सेलेक्शन बैंक में हो गया पहले इसकी बधाई लो,बताओ मिठाई कब खिला रही हो… पोस्टिंग कहां हुई” उमा ने एक साथ कई प्रश्न पूछ डाले।

“बताती हूं  बाबा ‌, मुंह मीठा कराने के लिये मिठाई का डिब्बा साथ लाई हूं …लो पकड़ो..”।

   दोनों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाई बधाईयों का आदान-प्रदान हुआ और गौरी असली मुद्दे पर आई।

” गौरी की पोस्टिंग सुदूर ग्रामीण इलाके में हुई है…अब अकेली जवान जहान लड़की को उतनी दूर कैसे भेजूं इसी चिन्ता में दिन-रात परेशान हूं…समझ नहीं आता… क्या करुं ” गौरी रुआंसी हो गई।

   ‌उमा को भी तत्काल जबाब नहीं सूझा । इधर-उधर की बातें  होती और फिर घुमा-फिरा कर वही ढाक के तीन पात।

” देखो तुम्हारी चिंता जायज है, लेकिन बैंक की नौकरी है… कुछ उपाय निकालना ही होगा।”

” तुम साथ क्यों नहीं चली जाती “उमा ने सलाह दी।

” मैं, तुम्हें मालूम है चांदनी के पिता दिल के मरीज हैं, उन्हें डॉक्टरों की देखरेख में रहना जरूरी है… चांदनी से दो छोटे भाई-बहन हैं…उनकी पढ़ाई लिखाई, मैं इन्हें किस पर छोड़ चांदनी के  संग जाऊंगी उसकी नौकरी से हमारे सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा,मगर सुदूर देहात में, अकेली जवान लड़की… उसपर उसकी शादी की बात भी चल रही है, लड़के वाले उसके नौकरी के पक्ष में नहीं हैं, उनका कहना है मेरा अच्छा भला बिजनेस है…मै अपनी बहू से नौकरी करवाऊंगा, कोई जरूरत नहीं है बैंक की नौकरी करने की  ,मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है।”

  ” अच्छा ईश्वर पर भरोसा रखो, चांदनी समझदार लड़की है … लड़के वाले को समझाया जायेगा कोई न कोई उपाय जरूर निकलेगा।”

    दूसरे ही दिन गौरी के घर के सामने एक गाड़ी रुकी। सबकुछ अस्त-व्यस्त था ” देखो तो जरा कौन आया है” पति आवाज देकर बोले। तब-तक चांदनी की जहां शादी की बात चल रही थी वही महानुभाव लड़के के पिता सपत्नीक धड़धड़ाते आ पहुंचे।

  ” नमस्कार” उन्होंने गौरी और उसके पति को संबोधित किया।अपनी साधारण वेश-भूषा पर लज्जित गौरी लाज से सिमट गई।

   उन्हें आदर सहित घर के भीतर ले गई ,” क्या लेंगे चाय या शरबत” अबतक गौरी संभल चुकी थी।

   ” हमें अभी कुछ नहीं चाहिए,हम शा‌दी का मुहूर्त निकलवाने आये हैं, पंडित जी आ ही रहे होंगे।”

” शादी का मुहूर्त…इतनी जल्दी,अभी लड़का लड़की एक दुसरे से मिले भी नहीं ” पहली बार गौरी के पति महेश जी ने मुंह खोला।

” मुझे आपकी लड़की पसंद आ गई है और हमारी पसंद को ना कहने की हिम्मत मेरे बेटे में नहीं है…यह लड़का लड़की विवाह के पहले मिले और अपना विवाह तय करें यह छिछोरापन मुझे मंजूर नहीं है…मुझे जल्दी ही नया बिजनेस शुरू करना है .. मैं रुक नहीं सकता… हां तो मैं क्या कह रहा था।”

विचित्र प्राणी है,जो मुंह में आ रहा है बोले जा रहे हैं… गौरी और उसके पति को जबाब नहीं सूझ रहा था।

” जी अभी शादी के बारे में कुछ सोचा नहीं है , चांदनी के बैंक का नियुक्ति पत्र भी आ गया है ” महेश जी ने अदब से जबाब दिया।

ठीक उसी समय उनका फोन बज उठा,उधर से पंडित जी थे उन्होंने अभी आने में असमर्थता जताई।

फिर क्या था  चांदनी की बैंक की नौकरी सुनते ही और पंडित जी का इंकार… अहंकारी लड़के के पिता बिफर पड़े,” बैंक की नौकरी, मैंने पहले ही मना किया था।”

” अच्छा अभी चलता हूं, जल्दी ही आऊंगा और मुझे ना सुनने की आदत नहीं है।”

  महेश जी और गौरी को हक्का-बक्का छोड़ वो जैसे आंधी तूफान की तरह आये थे वैसे ही तड़कते-भड़कते वापस चले गए।

चांदनी के लिए बैंक की नौकरी जीवन मरण का प्रश्न था।कम संसाधनों में दिन-रात मेहनत कर उसने इस गला काट प्रतिस्पर्धा में बैंक की नौकरी पाईं थीं।उसकी तनख्वाह से उसके भाई बहन की अधूरी पढ़ाई पूरी हो सकती है, बीमार पिता का इलाज हो सकता है और महज बाइस वर्ष की उम्र है उसकी… विवाह की इतनी अधिक उतावलापन क्यों है लड़के के पिता को।

खैर, उसने जाने की तैयारी शुरू कर दिया।

” गौरी वे लड़के वाले तेरी नौकरी के लिये मना कर रहे हैं , उन्हें शादी की जल्दी है”

“संसार में लड़कियों की कमी है क्या… मुझपर इतनी मेहरबानी क्यों?”चांदनी मन ही मन हंसी।

दुसरे दिन लड़के के पिता बिना किसी पूर्व सूचना के अपनी पत्नी और पंडित जी को साथ आ पहुंचे।

पैर फैलाए कुर्सी पर बैठे और रौबदार आवाज में बोले,” आज मैं मुहूर्त निकलवा कर ही जाऊंगा…।”

” जी अभी पहले चांदनी नौकरी ज्वाइन कर लें फिर सोचेंगे।”

” क्या कहा नौकरी, मेरे मना करने के बावजूद भी दो टके की बैंक की नौकरी… ऐसे ऐसे बैंक वाले मेरे आगे पीछे घूमते रहते हैं” आगंतुक ने चिल्लाना शुरू कर दिया।

यह सब चांदनी के बर्दाश्त से फाजिल था वह कमरे में आकर आगंतुक को नमस्ते किया…” तुमको मैं बहू बनाना चाहता हूं और यह क्या तुम बैंक की नौकरी के पीछे भाग रही हो… मैंने ना कर दी तो तुम और तुम्हारे मां-बाप जिंदगी भर पछतायेंगे ” महानुभाव गरज उठे।

” मेरी बात भी सुन लिया जाये ” चांदनी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया।

चांदनी के माता-पिता उसे भीतर जाने का इशारा करने लगे।

” बोलो , क्या कहना है” सज्जन ने कहा।

” मेरे पिता दिल के मरीज हैं, मेरे दो छोटे भाई-बहन हैं… हमारा कोई बिजनेस नहीं है… अगर आप वादा करें लिखकर दें कि आप हमारे भाई-बहन के पढ़ाई का खर्चा और मेरे पिता के इलाज की जिम्मेदारी लेंगे तब मैं बैंक की नौकरी छोड़ आपके बेटे से शादी के लिये तैयार हूं ” चांदनी ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा।

” क्या यही सिखाया है आपने अपनी बेटी को…बेटी के ससुराल का खायेंगे…छि: छि:” पति-पत्नी चीख-चीखकर बोलने लगे।

” आप जा सकते हैं… मां पिताजी आप लोग इनकी बातों में क्यों आ रहे हैं,ये हमारे हैं कौन? मुझे यह शादी नहीं करनी है, नमस्कार” चांदनी तटस्थ खड़ी रही।

अपनी बेइज्जती से बौखलाये महाशय पत्नी और पंडित जी के भागने में ही भलाई समझी।

” चाहे जो कहिए जजमान, कन्या साक्षात देवी का रुप थी” पंडित जी गाड़ी में बैठते ही बोले।

” इस लड़की की सुंदरता शालीनता पर ही मुग्ध होकर मैं धौंस और अपने बिजनेस का लालच दिखा कर अपने नकारा बेटे के साथ उसका रिश्ता जोर-जबरदस्ती से करवाना चाह रहा था लेकिन सब गुड़गोबर हो गया ” महाशय का चेहरा लटक गया।

इधर चांदनी और उसके माता-पिता ने इस अप्रत्याशित स्थिति से निकल चैन की सांस ली।

” आप दोनों की चिंता जायज है मां, पापा… लेकिन ऐसे लोगों के चंगुल में फंसने से बेहतर अपने पैरों पर खड़ा हो परिस्थितियों का सामना करने में है।”

गौरी और महेश जी ने चांदनी के इस साहस पर उसे गले लगा लिया।

मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा 

#देखो तुम्हारी चिंता जायज है

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