अस्तित्व – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

अरे धन्नो फटाफट चार रोटियां सेक दे तेरे जेठजी आ गए है। रमा ने सोफा पर बैठे-बैठे ही कहा। जेठानी रमा की आवाज सुनकर धन्नो ने झाड़ू वहीं किनारे छोड़ दिया और धीमे से बोल उठी।अभी बना देती हूं दीदी और तुरंत रोटी सेकने लगी। जैसे ही धन्नो का रोटी सेकना हो गया। वो फिर झाड़ू हाथ में लेकर लगाने लगी।

कुछ देर बाद ही रमा का चौदह वर्षीय राजू भी आ गया।  उसे देखते ही रमा ने धन्नो को फिर आवाज दी । अरे धन्नो राजू आ गया दो रोटी सेक दे। धन्नो कुछ कहती उसके पहले ही राजू बोल पड़ा। मां धन्नो चाची के हाथ की रोटी मुझे नहीं खानी । मुझे तो आपके हाथ की ही बनी हुई रोटी चाहिए। आप ही बना दो ।

यह सुनकर रमा सोफे से उठ खड़ी हुई और बडबडाती हुई रसोई घर की तरफ चल पड़ी । न जाने इस लड़के को मेरे हाथ की ही रोटी क्यों अच्छी लगती है। जबकि धन्नो तो बहुत अच्छी रोटी बनाती है । इतनी गर्मी पड़ रही है। मेरा तन बदन पसीने से भर जाएगा। अच्छी भली पंखे के नीचे बैठी थी मगर ये लड़का माने तब न…. इसके लिए तो बनाना ही पड़ेगा ।

मेरा लाडला बेटा जो ठहरा और कहते हुए रमा रोटी सेकने लगी। जैसे ही राजू के पास थाली आई । उसने अपनी दस वर्षीय चचेरी बहन मुन्नी को भी पुकारा । मुन्नी आजा तू भी बैठ मेरे साथ और खा ले।  धन्नो तुरंत राजू से बोल उठी। अरे नहीं बेटा तु खा ले । मैं मुन्नी के लिए खुद बना लूंगी यह कहकर वह बर्तन मलने में लग गई। 

मुन्नी दूर खड़ी तरसती निगाहों से अपने भाई राजू को देखती रही क्योंकि उसे उसके बाबूजी जाने के बाद  कभी भी घी में चुपड़ी हुई रोटी नहीं मिली। उसका मासूम दिल सोचते रहता था। बाबूजी जाने के बाद ऐसा क्या हो गया।

जो उसकी मां को इतना काम करना पड़ता है और खाने के नाम पर उसकी मां को और उसे सूखी रोटी और थोड़ा सा साग दिया जाने लगा है । मुन्नी अपनी नम आंखों को लिए अपने कमरे में चली गई क्योंकि उसका पेट पुकार पुकार कर उससे वही रोटी मांग रहा था  । जो घी में चुपड़ी हुई रोटी उसके भाई की थाली में थी। 

धन्नो का जब सारा काम निपट गया तो उसने चार सूखी रोटी और थोड़ा सा जो बचा खुचा साग था,एक थाली में डाल कर कमरे की ओर चल पड़ी और कमरे में जाकर देखा मुन्नी की आंखों के किनारे भीगे हुए थे ।

धन्नो से रहा नहीं गया । उसने अपनी मुन्नी को गले से लगा दिया और रो पड़ी। दो घड़ी बाद जब दोनों शांत हुई। मुन्नी धन्नो से पूछने लगी। मां ताऊजी ताई जी और राजू भैया यह तीनों तो घी की चुपड़ी हुई रोटियां खाते हैं । आपको और मुझे ही यह सूखी रोटी क्यों दी जाती है । बाबूजी थे, तब तो हम भी घी की चुपड़ी हुई रोटियां ही खाते थे।

 बाबूजी जाने के बाद ऐसा क्या हो गया मां ?? जो अब आपको इतना काम करना पड़ता है। धन्नो उस मासूम  को समझाते हुए कहने लगी । मुन्नी  शायद यह सब तकदीरों का खेल है। तेरे बाबूजी ऐसे भी तेरे ताऊजी की बहुत इज्जत किया करते थे मगर तेरे ताऊजी ने धोखे से सारी जमीन अपने नाम कर ली और अब इतना ही नहीं  तेरी, ताई जी मुझे भी एक महरी की तरह रहने पर मजबूर कर रही है। 

दुनिया ठीक कहती है। औरत ही औरत की दुश्मन है अगर तेरी ताई जी चाहती तो हमारे साथ यह सब ना होता। पता है मुन्नी पहले मेरे मन में तेरे ताऊजी और ताई जी के लिए जो सम्मान था। वह अब बिल्कुल खत्म हो चुका है क्योंकि उन्होंने बड़े होने का फायदा उठाया।  बड़ों को सम्मान तभी मिलेगा । जब वो छोटों को प्यार करेंगे। उन्हें यकीन दिलाना होगा। वह उनके अपने हैं। उनकी ही भलाई के लिए सोचते हैं। 

पता है मुन्नी सम्मान कभी भी ऐसे ही नहीं मिलता। वह तो अपने कर्म और व्यवहार से कमाया जाता है। आप ठीक कह रही हैं चाची यह कहते हुए राजू ने कमरे में प्रवेश किया। वह फिर बोल पड़ा चाची मेरे मां बाबूजी अच्छे नहीं हैं। मां जब तब आपके बारे में बुरे शब्द कहती रहती है। जो मुझे अच्छे नहीं लगते । 

चाची मुझे आपके हाथ की रोटी अच्छी तो बहुत लगती है मगर मुझे यह अच्छा नहीं लगता।  आप दिन भर काम करती हो और  मां दिन भर बैठी रहती है इसीलिए मैं उन्हें ज्यादा  बोल तो नहीं सकता हूं मगर अपने लिए रोटी सेकने तो कह ही सकता हूं और हां चाची जब तक मैं थोड़ा बड़ा ना हो जाऊं। 

आप यहां से चली जाएं क्योंकि आपकी और मुन्नी की ऐसी हालत मैं देख नहीं सकता हूं कहते-कहते राजू की आंखें भर आई और वह अपनी चाची से लिपट कर रो पड़ा। 

राजू की बात सुनकर धन्नो उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोल पड़ी। नहीं राजू अपने माता-पिता के लिए ऐसा नहीं कहते और सुनो राजू मैं कुछ दिनों के लिए सामने वाले मकान में जो नए किराएदार आए हैं । उनके यहां रसोई का काम देखूंगी । उन्होंने कहा है वह मुझे और मुन्नी को खाना और साथ में नगद भी देंगे । मैं वहां सुबह मुन्नी को लेकर जाऊंगी और रात को लौट आऊंगी। 

मुझे अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए यह कदम तो अब उठाना ही पड़ेगा। जिससे मेरी मुन्नी को भी घी में चुपड़ी हुई रोटी मिलेगी और स्वाभिमान की जिंदगी मिलेगी वह अलग। धन्नो की बात सुनते ही राजू और मुन्नी का दिल खिल गया । चाची यह तो बहुत अच्छी बात है।

 मैं जैसे ही थोड़ा बड़ा हो जाऊंगा। तब आपको यह सब करने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि चाची मैं आपका भी बेटा हूं और आप मेरी चाची मां।

 आज बड़े दिनों बाद धन्नो बड़ी चैन की नींद सोई क्योंकि आज उसने अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए एक बहुत बड़ा कदम जो उठा लिया था ।

स्वरचित 

सीमा सिंघी 

गोलाघाट असम

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