मास्टर साब – डॉ. संगीता अस्थाना : Moral Stories in Hindi

हमारे मित्र मंडली सारे रिटायर्ड लोग ही थे जिसमे मास्टर साब सबसे ज़्यादा सीनियर थे । सभी उन्हें बहुत सम्मान देते थे । वे बहुत अनुभवी थे ।चुटकियों में हर समस्या का समाधान निकल लेते थे ।मुहल्ले के सभी लोग उनसे राय मशविरा करने के बाद ही किसी कम में हाथ लगाते थे ।सबके लिए संकट मोचन साबित होते थे मास्टर साब ।बेहद सुलझे हुए इंसान ,एकदम ख़ुश मिजाज ।

पर ऐसा  लगता था उनकी ख़ुद की जिंदगी इन दिनों कितनी उलझी हुई है ।एक ही बेटा है उनका जो मुंबई के मल्टी नेशनल कम्पनी में मैनेजर के पोस्ट पर कार्यरत है । सत्य प्रकाश नाम है बेटे का । उसने साथ में कार्य करने वाली रश्मि देसाई से शादी की है । माँ बाप की सहमति तो नहीं थी पर उन्होंने जाहिर नहीं होने दिया और बड़े धूमधाम से अपने इकलौते बेटे की शादी कर दी ।

बहू बहुत सुंदर थी ।पर एडजस्ट नहीं कर पायी ।अपने ससुराल में दो दिन ही रह पाई । फिर कभी नहीं आई । आज आठ साल हो गए है उनके बेटे की शादी को । पहले बेटा छ महीने में एक बार जरूर आता था हर रोज़ फ़ोन से बात करता था ।पर अब आना तो दूर की बात फ़ोन भी नहीं करता ।

सत्य ये क्यो नहीं सोचता उसके माँ -बाप ने अपने आपको खपा कर उसे उसके मन माफिक मुकाम पर पहुंचाया है ।ठीक है उसकी भी अपनी जिम्मेदारियाँ है ।एक  सात साल का बेटा है पार्थ । पत्नी है । पर माँ बाप के प्रति भी तो ईमानदार होना ही चाहिये ।तीन महीने पहले मास्टर साब की धर्मपत्नी परलोकवासी हो गई ।सत्य आया था पूरे परिवार के साथ ।पुत्र धर्म बखूबी निभाया था उसने ।माँ के लिए जार जार रोया भी था । 

“ माँ मुझे माफ़ कर दो.मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर पाया “ । उसका विलाप सुनकर सभी आँखे नम हो गई थी । सब ख़ुश थे चलो जब जागो तभी सवेरा । सत्य ने अपने पिता जी से कहा ——“ बाबूजी अब मैं आपको अकेला नहीं छोड़ सकता – आप मेरे साथ चल रहे है अपना सामान  पैक कर लीजिए “

“ नहीं बेटा मैं यहीं रहूँगा यहाँ तुम्हारी माँ की यादें है अपना समाज गाँव है “

“ नहीं नहीं बाबूजी आपको चलना ही होगा माँ थी तो मैं निश्चिन्त था —माँ तो मेरे पास नहीं आ पायी जिसका अफ़सोस रहेगा हमे ।सभी गाँव वालो ने एक ही सुर में बोला —— “चले जाइये मास्टर साब ——आपके लिए यही सही है ।”

और मास्टर साब चले गये भारी मन से ।

मुंबई में बड़ा सा घर था सत्य का -बेटा बहू का कमरा -पोते का कमरा -स्टडी रूम – ड्राइंग -डाइनिंग रूम— बड़ा सा हाल । साज सज्जा भी बहुत खूबसूरत थी ।मास्टर साब बहुत खुश हुए थे ।दादा पोते  के साथ बेहतरीन वक्त बिताने की चाहत में बहुत खुश थे ।बहू भी बहुत अच्छे से पेश आ रही थी ।मास्टर साब अपनी पत्नी को याद कर दुखी हो जाते पर बच्चों के स्नेह से उन्हें राहत मिल जाती । खाना पीना बाहर से खा कर आए थे। आराम की जरूरत थी सबको । 

“पार्थ दादा जी तुम्हारे साथ सो जाएँगे “

ओके पापा —— मैं दादा जी से ढेर सारी कहानियाँ सुनूँगा ।”

“ कोई जरूरत नहीं है – बाबूजी हाल में सो जाएँगे । “ सत्य तुम फ़ोल्डिंग खाट लगा दो “

“बाबूजी अचंभित थे उनके मन तभी कुछ खटका — मैंने आ के गलती तो नहीं कर दी ।

मास्टर साब को सुबह जागने की आदत थी  सो जल्दी उठ गये ।उनके खटर पटर से बहू की भी नींद खुल गई । सत्य इसी लिये मैंने  तुमसे कहा था ,— “बाबूजी का इन्तज़ाम यहीं गाँव में ही कर देते है पूरा खर्च मैं दूँगी  – पर नहीं तुम्हें तो पिता प्रेम ऐसा उमड़ा कि उन्हें साथ में ही ले आये अब भुगतो मुझसे ये सब बर्दास्त नहीं होगा ।  “ 

उसने पूरा भड़ास सत्य पे निकाला ।जो मास्टर साब ने सुन लिया । सत्य बाहर आया और  बोला -“ बाबूजी इतना जल्दी उठ गए थोड़ी देर और आराम कर लिया होता तो थकान जल्दी मिट जाती “

“ आदत है न बेटे जल्दी उठने की तुम्हारी माँ मुझसे भी पहले उठ जाती “

“ थोड़ा ख्याल रखिएगा बाबूजी हमलोग थोड़ा देर से उठते है  ।”।      

“ठीक है बेटा ।”

ब्रेकफास्ट पर सिर्फ़ तीन लोगों की ही व्यवस्था थी ।सत्य ने आश्चर्य से रश्मि को देखा और पूछा —“ ये क्या है रश्मि बाबूजी का प्लेट ?”

“मैं अपनी पूर्ववत व्यवस्था में कोई बदलाव या दख़ल अन्दाज़ी नहीं चाहती इसलिये तुम तो चुप ही रहो जैसे जो हो रहा है होने दो वरना अपने बाबूजी को गाँव छोड़ आओ ।” सत्य दाँत पीस के रह गया कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई ।मास्टर साब सब सुन रहे थे । “ कोई बात नहीं बेटा तुमलोग आपस में मेरी वजह से इस तरह दुविधा मत पालो  बहू जो भी चाह रही उसे वैसा ही करने दो ।”

फिर नाश्ता 

उन तीनो  ने एक साथ डाइनिंग टेबल पे किया ।और मास्टर साब को अलग टूटी हुई कुर्सी और स्टूल पर दिया ।जबकी सत्य बहुत ख़ुश था ।आज  बाबूजी हमारे साथ है हम साथ मिलकर खाने वाले है ।पर रश्मि के आगे सत्य की कहाँ चलती है । 

नाश्ते में कितनी सारी चीजें थी – कचौड़ी , पनीर की शब्जी ,मखाने की खीर सलाद वैगेरह । पर बाबूजी कितना अपमानित महसूस कर रहे थे ।ये व्यञ्जन उन्हें ज़हर के सम्मान लग रहा था ।मास्टर साब को अपनी पत्नी की बात याद आ रही थी ——“ अपमान की ५६ व्यंजन से

सम्मान की सूखी रोटी ज़्यादा अच्छी लगती है “

बाबूजी एक निवाला भी नहीं खा पाए ।

“ क्या हुआ बाबूजी – आप उठ गए बिना खाये ही ।”सत्य सहम गया था बाबूजी भले ही न बोले पर अपमानित तो महसूस कर ही रहे होंगे ।रश्मि इतनी बदतमीज़ है कि उसने मेरे बाबूजी को एक दिन में ही अपना रंग दिखा दिया ।

“ नहीं , भूख नहीं है ।” बाबूजी दृढ़ संकल्पित होकर उठ गए थे—वापिस लौट जाना है अपने 

घर अपने गांव जहाँ अपने मन माफिक अपनों के बीच बची ज़िन्दगी सम्मान से जी सकूँगा ।

बेटा अब बहुत ख्याल रख रहा था  पर बहू  का उपेक्षित व्यवहार वो बर्दास्त नहीं कर पा रहे थे ।

दिन तो किसी तरह काट लिया उन्होंने तड़के सुबह अपना सामान लिया और चल पड़े अपने गाँव ।सुबह की ताजी हवा उनमें जोश भर रही थी ।मुझे किसी की जरूरत नहीं । मैं ख़ुद अपना ख्याल रख सकता हूँ ।

सत्य परेशान न हो  इसलिये मास्टर साब ने सोसाइटी के गार्ड को बोल दिया था कि सत्य प्रकाश को आपके पिताजी वापिस अपने गाँव चले गए है ।

जब सत्य को पता चला तो बहुत उदास हो गया ।रोया भी बहुत मेरे सिवा उनका है ही कौन ।

 पहली बार सत्य ने रश्मि को डाँटा “रश्मि —अब तो तुम्हारे कलेजे को ठंडक मिल गई होगी मेरे बाबूजी वापिस चले गए गाँव वो अब कभी नहीं आयेंगे ।”

“तुम परेशान मत हो मैं उनसे माफ़ी माँग लूँगी ,उन्हें बुला लूँगी ।”

“ रहने दो अपना ड्रामा ,वो खुद्दार इंसान है वो कभी नहीं आयेंगे ,आना भी नहीं चाहिए उन्हें ।”

आज मास्टर साब दिखे उदास बुझे बुझे ।  

हम सबने मिलकर उनका अभिवादन किया ।

“ क्या हुआ मास्टर साब इतनी जल्दी आ गए “

“ तुमलोग के बिना कहाँ रह पाऊँगा मैं इस लिये वापस आ गया,इतना स्नेह ,इतना सम्मान कहाँ मिलेगा मुझे- बस यही समझो — वहाँ रह नहीं पाया ।

-डॉ. संगीता अस्थाना

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