पट्टी पढ़ाना – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi

बचपन से हीं रजत का झुकाव मां की तरफ अधिक था… 

इस बात के लिए वो सदैव पिता की आंखों में खटकता था… 

वो रजत की मां अरूंधति से कहा करते कि- तुमने जाने कौन-सी पट्टी पढ़ा रखी है अपने बेटे को जो पूरे दिन तुम्हारे आंचल में दुबका रहता है… 

दरअसल रजत पढ़ाई में उतना अव्वल नहीं था जितनी उसकी बहन राम्या थी.. 

इसी बात के कारण अक्सर रजत के पिता उसे खरी-खोटी सुनाया करते… 

और हर बार बेटी से उसकी तुलना कर के उसे नीचा दिखाते रहते….

करीब चार साल पहले एक छोटी सी बहस के कारण बेटी राम्या को लेकर रजत के पिता घर छोड़ कर चले गए…

अरूंधति ने बड़ी हीं कठिनाई से रजत को पढ़ाया लिखाया और एक नौकरी दिलाई … 

दोनों मां और बेटे ने मिलकर जिंदगी की डोर मजबूती से थाम लिया… 

रजत का विवाह हुआ पुनीता दुल्हन बन कर ससुराल आई… 

अरूंधति को पुनीता में अपनी बेटी राम्या की छवि दिखाई पड़ती थी… 

वो पुनीता को खूब लाड़ प्यार करने लगी… 

ममता का जो कोश राम्या के जाने के बाद खाली पड़ा था वो सब पुनीता पर लूटाने लगी…. 

पुनीता को सास का ये व्यवहार बड़ा हीं सुखद लगता था…. 

परंतु ये अच्छाई भी ज्यादा दिनों तक नहीं रही… 

पुनीता को मां बेटे का एक साथ रहना हंसना बोलना बिल्कुल भी नहीं सुहाता था… 

रजत जब भी ड्युटी से घर आता सर्वप्रथम मां के कमरे में जाता… 

ये देख पुनीता ईर्ष्या से भर उठती…. 

पुनीता ने एक बेटे को जन्म दिया… 

अरुंधती को तो जैसे खुशियों का खजाना मिल गया… 

पोते की मालिश करना, दूध पिलाना सजाना संवारना ये सारी जिम्मेदारियां अरूंधति ने स्वयं पर ले लिया…. 

एक बच्चे के घर में आ जाने से घर का माहौल पूरी तरह से बदल गया… 

नन्हा अरनव पूरे दिन दादी के हीं कमरे में रहता था… 

रजत एक नये रिश्ते में बंधकर मां के और भी करीब आ गया… 

पुनीता ये सब देख मन हीं मन कुढ़ती रहती थी…. 

कई बार अरूंधति ने सुना था पुनीता को कहते हुए कि, जाने कौन सी पट्टी पढ़ाई है अम्मा ने जो मेरा बेटा और पति इनके हीं आगे पीछे घुमते रहते हैं…. 

अरुंधती इस बात पर कभी कुछ नहीं कहती थी पति के घर छोड़ कर चले जाने के बाद ‌वो बहुत  कम बोलती थी…

वो नहीं चाहती थी कि किसी भी झगड़े के कारण उनका परिवार फिर से टूटे…. 

मातृ दिवस का दिन था रजत ने मां के लिए एक उपहार लाया… 

अरूंधति ने उपहार खोला तो खुशी से झूम उठीं.. 

रजत ने उन्हें एंड्रायड फोन दिया था… 

रजत ने मां को कुछ जरुरी सेटिंग्स समझा दिया… 

मां की ईमेल आइडी बना दी और फेसबुक इंस्टाग्राम पर उनके नाम से प्रोफाइल भी बना दिया…. 

फोन आ जाने से अरूंधति काफी व्यस्त और खुश रहने लगी…. 

सारे भूले-बिसरे रिश्तेदार सखियां और सगे-संबंधियों से जुड़ गयी…. 

फोन पर सखियों के साथ विडियो कालिंग और मैसेज का आदान-प्रदान भी होने लगा…. 

पुनीता को ये सब देख बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था… 

एक दिन वो रजत से बोल पड़ी – रजत क्या जरूरत थी मां जी को मोबाइल की??? 

देखो ना पूरे दिन जाने किसके फोन और विडियो कॉल आते रहते हैं… 

रजत ने पुनीता को लगभग डांटते हुए कहा – ये क्या बात ‌हुई पुनी .. मां को क्यों जरूरत नहीं है.. तुम्हें दिखता नहीं ये फोन पाकर मां कितना खुश हैं… 

और तुम जो पूरे दिन फोन चलाती रहती हो उसका क्या?? 

कभी मां के पास बैठ कर उनका हाल चाल भी पूछती हो तुम… 

अगर तुम बात करो तो ठीक मां करें तो… 

बस रहने दिजीए.. 

आपसे मुझे कोई बहस नहीं करनी…

अरुंधती 

अरनव को भी कभी-कभी मोबाइल में हीं कविताएं और बच्चों के विडियो दिखाया करती… दोनों दादी और पोता एक दूसरे में मस्त रहते…

रजत की तरह अरनव को भी अरूंधति के साथ हीं अच्छा लगता था…. 

एक दिन जब पुनीता अरनव को दादी के कमरे से लेकर जाने लगी तो वो जिद पर अड़ गया और रोते हुए बोला – छोड़ो मुझे दादी के पास रहना है… 

पुनीता गुस्से में बिफर पड़ी – जाने कौन सी पट्टी पढ़ाई है तुम्हारी दीदी ने जो तुम और तुम्हारे पिता पूरे दिन इनके हीं कमरे में घुसे रहते हो… 

पुनीता को बात काटते हुए बड़े हीं शांत लहजे में अरुंधती बोल पड़ी – बस पुनीता इसके आगे कुछ मत कहना… 

जिसे तुम पट्टी पढ़ाना कहती हो ना वो प्रेम है मेरा… मेरे बच्चों के लिए…. 

तुम जितनी जल्दी ये बात समझ लोगी उतना हीं अच्छा है… 

एक छोटी सी गलतफहमी के कारण मैंने अपने परिवार को बिखरते देखा है… 

मैं नहीं चाहती कि मेरे बेटे और बहू का परिवार भी टूटे… 

मां को बच्चों का प्यार पाने के लिए पट्टी पढ़ाने की नहीं बल्कि उनके मन को पढ़ना पड़ता है… 

मगर अफसोस कि तुम ये नहीं कर पाई…

डोली पाठक

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