रोज रोज का सिलसिला बंद हो
ये सिलसिला रोज का होने लगा पूजा की नन्द रेवती आए दिन ससुराल वालों से झगड़कर मायके आ जाती थी। पूजा के सास ससुर व पति उसे समझाने की बजाय और शय देते थे।
रेवती शुरू से जिद्दी व क्रोधी स्वभाव की थी। हर समय घर में क्लेश करती रहती थी। पूजा के पति रमेश रेवती से बड़े थे इसलिए वो अपनी छोटी बहन की हर बात सह लेते थे। उन्हें यही लगता था
कि एक ही तो बहन है उनकी। पूजा के सास ससुर तो अपनी बेटी पर जान छिड़कते थे। उसकी हर फरमाइश पूरी करते थे। वो कैसे भी किसी से बात करे उसे कभी नहीं टोकते थे। कभी अगर पूजा के पति उसे डाँटते तो ये कहकर उनका मुँह बंद करवा देते कि छोटी बहन है जाने दो!!
माता पिता के लाड-प्यार से रेवती इतना सर चढ़ गई थी कि अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझती थी। उसकी इस आदत ने रमेश को परेशान करके रख दिया।उसे यही चिंता रहती कि कल को उसकी शादी हो जाएगी फिर उसकी पत्नी के साथ भी रेवती बुरा व्यवहार करेगी तो कैसे चलेगा?
जैसे तैसे अच्छा लड़का व परिवार देखकर रेवती की शादी कर दी। इसके बाद रमेश ने पूजा से शादी कर ली। पूजा उसके साथ काम करती थी। वो पढ़ी लिखी होने के साथ साथ सुंदर व सुशील भी थी।
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पूजा ने शादी के बाद नौकरी छोड़ दी और परिवार की सारी जिम्मेदारी संभाल ली। घर वाले उससे खुश थे और उसकी प्रशंसा भी करते थे। रेवती से ये बात हजम नहीं होती थी क्योंकि उसकी तो ससुराल में कोई तारीफ नहीं करता था और करता भी कैसे? हर किसी से झगड़ा करती थी और घर का काम भी नहीं करती थी।
बस किसी ना किसी बहाने मायके आ जाती और अपने माता पिता को ससुराल वालों के खिलाफ भड़काती रहती।इतना ही नहीं वो पूजा को लेकर भी बाते बनाती रहती थी आप लोग तो अपनी बहु को कुछ नहीं कहते
वो जो चाहे करे मेरे ससुराल वाले तो हर समय मुझे डाँटते रहते हैं। भैया तो जोरू के गुलाम हैं हर समय भाभी के आगे पीछे घूमते रहते हैं। मैं तो दहेज मैं इतना कुछ ले गई थी। भाभी तो कुछ नहीं लेकर आईं फिर भी आप सबने उन्हें सर पे बैठाकर रखा है।
पूजा नन्द की बातों से दुखी हो जाती थी पर किसी से कुछ नहीं कहती। बस उसे ये बात कहीं ना कहीं अखरती थी कि उसके सास ससुर जिनकी सेवा में वो दिन रात लगी रहती है कभी भी रेवती को उसके खिलाफ बुरा भला कहने से नहीं रोकते थे।
रेवती का इस तरह रोज मुँह उठाकर मायके चले आना और हर काम में दखलंदाजी करने का नतीजा ये हुआ कि अब पूजा के सास ससुर का व्यवहार भी पूजा के प्रति बदलने लगा। बात बात में उसकी गलतियाँ निकालते और दहेज में ज्यादा कुछ नहीं लाने के लिए ताना देते।
रमेश घरवालों के व्यवहार से दुखी रहने लगा। उसे जिस बात की आशंका थी वही सब हो रहा था। अगर वो पूजा का साइड लेता तो उसे यही ताना सुनने को मिलता कि तू तो अपनी बीबी का गुलाम है तुझे तो उसकी हर बात सही लगती है!!
एक दिन तो हद हो गई जब रमेश ऑफिस से घर आया तो उसने देखा पूजा के सामने ही उसके माँ बाऊजी पड़ोस की शर्मा आंटी से कह रहे थे-“हमारी तो किस्मत ही फूटी है बेटी को इतना दहेज दिया फिर भी वो ससुराल में खुश नहीं है और बहु कुछ नहीं लाई फिर भी हमने उसे महारानी की तरह रखा हुआ है।”
रमेश ने ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके माता-पिता बाहर वालों के सामने ऐसी बातें करेंगे। उसे देखकर शर्मा आंटी खिसक लीं। पूजा जो हमेशा सब सुनकर शांत रहती थी आज उसके भी सब्र का बाँध टूट गया। वो फूट-फूटकर रोनी लगी। रमेश तो पहले ही गुस्से में था
उसपर पूजा को यूँ रोते देख चिल्लाकर बोला- “बहु को रुलाकर शांति मिल गई आप सबको। बाहर वालों के सामने अपना रोना रोते हुए एक मिनट को भी नहीं सोचा कि बहु के दिल पर क्या बीतेगी?
बस अब और नहीं..मैं आप सबके ताने सुन-सुनकर तंग आ चुका हूँ। मैं भी चाहता हूँ कि अब ये रोज रोज का सिलसिला बंद हो। मैंने सोच लिया है आप और आपकी बेटी तो सुधरने वाले नहीं हैं। आपको दहेज चाहिए अच्छी बहु नहीं इसलिए मैं पूजा को तलाक दे दूँगा फिर आप अपनी पसंद की बहु ले आना।”
रमेश को यूँ पहली बार इतने गुस्से में देख उसके माँ बाऊजी डर गए। दोनों घबराकर बोले “अरे बेटा ये तू क्या बोल रहा है? हमने तुझे तलाक देने को थोड़ी कहा है।”
“किस्मत से आपको अच्छी बहु मिल गई तो आपको उसकी कद्र नहीं है। हर समय पैसा पैसा करते रहते हो। बेटी को दिया था ना भर भरके दहेज फिर भी वो हमेशा मायके में पड़ी रहती है।
उसकी शादीशुदा जिंदगी दाव पर लगी है। दहेज की जगह अगर उसे अच्छे संस्कार दिए होते तो आज उसके ससुराल और मायके दोनों घरों में खुशहाली होती। आपकी बेटी ने ना सिर्फ अपने ससुराल की बल्कि मायके की खुशियों में भी ग्रहण लगाया है।”
“बेटा हमें माफ करदे अपनी बेटी की बातों में आकर हम कुछ समय के लिए भटक गए थे पर अब ऐसा नहीं होगा। पूजा जैसी बहु तो हमें ढूँढने से भी नहीं मिलेगी।” कहकर रमेश के माँ बाऊजी ने पूजा को गले लगा लिया।
रेवती ने अभी अभी घर में प्रवेश किया था और ये सारा नजारा देखकर वो दंग थी। उसने अपनी माँ से पूछा- “क्या हुआ आज ये घर में रोना धोना कैसा मचा हुआ है.?”
“तेरी लगाई हुई चिंगारी आज आग बन गई है उसी आग में हम सब जल रहें हैं बस?” रमेश ने बहन पर तंज कसा।
“क्या मतलब आपका?”
“तेरे रोज रोज भड़काने से माँ बाऊजी अपनी ही बहु के इतने खिलाफ हो गए कि आज पड़ोसियों के सामने उसे कोसने लगे।किसी की इज्जत का उन्होंने कोई लिहाज नहीं किया।”
इससे पहले की रमेश और भड़के उसकी माँ ने बिना किसी लाग लपेट के बेटी के सामने अपनी बात रख दी- “बेटा हम चाहते हैं कि कभी कभार को तो ठीक है पर तेरा यूँ रोज रोज मायके आने का सिलसिला बंद हो ताकि दोनों परिवार सुखी हो सकें।”
“माँ अब मैं भी आपको बोझ लगने लगी। मुझसे कोई प्यार नहीं करता ठीक है मैं जा रही हूँ अपने घर और कभी नहीं आऊँगी।” रेवती गुस्से में पैर पटकते हुए जैसे ही जाने लगी तो पूजा ने उसकी बाँह पकड़कर रोक लिया
और बोली-“रेवती ये तुम्हारा घर है तुम जब चाहे आ सकती हो पर ससुराल भी तुम्हारी जिम्मेदारी है। तुम ससुराल में भी खुशियां बांटों और मायके में भी फिर देखो तुम्हें सब प्यार करेंगे। “पूजा की बातों से रेवती का गुस्सा आँसुओं में परिवर्तित हो गया।
“भाभी शायद आप सही कह रही हो। मैंने हमेशा दूसरों में ही कमियां देखीं पर अपने गिरेबान में कभी झांककर नहीं देखा। इंसान पैसे से नहीं अपने व्यवहार से सबका दिल जीत सकता है आज ये बात मुझे समझ आ गई।” पूजा ने प्यार से रेवती को गले लगा लिया।
रेवती का मायके आना धीरे धीरे कम हो गया वो अब अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई।पूजा और रमेश भी सुकून और शांति से अपना जीवन जीने लगे..परिवार में खुशियां लौट आईं।
ननद खुशी खुशी अपने ससुराल में रहें और बुलाने पर या कभी कभार मायके आती रहें इसी में दोनों परिवार की खुशियां होती हैं।
कमलेश आहूजा