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आज रामेश्वर मिश्र ने ऐसा विस्फोट कर दिया कि बेटे बहू हाथ पैर जोड़ने लगे।मगर उनका फैसला अडिग रहा।
हुआ यह कि आज सुबह सैर करके जैसे ही रामेश्वर जी आये तो बहू चिल्लाने लगी -लो आ गया बूढ़ा -अभी पोंछा लगाया है –
तो-वे सोफे पर बैठते बोले।
बाबा-अब आप ऊपर वाले कमरे में रहेंगे -यह पोता टिंकू था जो इन्हें देखकर बोला।
अच्छा -कहकर ये सोफे पर पसरकर बैठ गये।
“क्यों पापा,एक बार में सुनाई नहीं देता -इस बार बहू चिल्लाती बोली।
सुनाई और दिखाई दोनों दे रहा है,मदन को बुलाओ।-इस बार इनकी आवाज कड़क थी।
वे क्या करेंगे? मैं हूं ना-इस बार बहू और तेज आवाज में बोली।
मदन इधर आ-यह आवाज सुनकर वह भगा आया-क्या है, सुबह सबेरे क्यों चिल्ला रहे हो?
तुमलोग 15तारिख तक यह घर खाली कर दो-वे शांत स्वर में बोले।
हमलोग क्यों?-इस बार दोनों के आवाज में आश्चर्यजनक नरमी थी।
मुझे तुम लोगों के साथ नहीं रहना -सो अपने रहने का दूसरा इंतजाम कर लो।-वे शांत और गंभीर स्वर में बोले।इसके बाद वे उठकर बाहर चले गये।बाहर चाय पीने लगे,मगर बेटे -बहू को सांप सूंघ गया। बूढ़ा का 40000पेंशन ,रहने को इतना बड़ा घर सबकुछ से हाथ धोना पड़ेगा।
अरे बाप रे गुजारा कैसे होगा, तुम्हारी दुकान भी नहीं चलती-इस बार बहू घबड़ाकर बोली।
वही न पापा के पेंशन से घर चलता है, बच्चों की फीस सारा कुछ होता है,तुमने क्या कहा जो- वह इससे आगे बोल नहीं सका।
अरे मैंने सुबह सबेरे पोंछा लगाया था और वे वैसे ही आ
गये।मुझे गुस्सा आया और मैंने चिल्ला दिया-बहू अफसोस करते बोली।
अब क्या होगा,पूरे पांच जनों का परिवार, बच्चों की फीस ,मकान किराया सारा कुछ निकल पायेगा।-यह मदन का अफसोस से भरा स्वर था।
हमें घर नहीं खाली करना,हम उनके बेटे बहू हैं-वे कैसे घर खाली करा सकते हैं?-वह बड़बड़ाने लगी,उसे सूझ नहीं रहा था कि क्या बोले।दूसरी बात हमेशा शांत रहनेवाले पापा आज इस तरह।
देखो , एक बार दोपहर में बात करके देखते हैं -मदन पछताते हुए बोला ।
दोपहर बारह बजे वे आये।आज बहू ने पसंद का खाना बनाया था।उनका बिस्तर भी साफ ,सही सजा था।सभी दवाईयां भी रखी थी।
“पापा हमसे भूल हो गई, हमें माफ करें।-दोनो इनका पांव पकड़ते बोले।
कोई भूल नहीं है, तुम लोग जवान हो,कमाते खाते हो, मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए,बस जाओ,अपना इंतजाम देखो। मुझे तुम लोगों के साथ नहीं रहना है-वेस्पष्ट स्वर में बोले।
याद रखना,16तारिख से नया किरायेदार आ रहा है,आप लोग 15तक अपना बंदोबस्त कर लें।
इनका दो टूक फैसला बेटे बहू पर बम के धमाके के समान था।
पापा हमलोग बर्बाद हो जायेंगे,दुकान चलता नहीं है, कहां से घर चल पायेगा।-बहू रोती कहने लगी।
‘क्यों बूढ़ा बाप,जो बीमार है,अपनी दवा के लिए तरसे,अपने ही पैसे से अपना काम न करें। फिर सपरिवार रहने से मतलब क्याॽ -सो मुझे माफ़ करो और 15तक घर खाली करो।-वे स्पष्ट फैसला सुनाते बोले।इसके बाद वे अपने कमरे में सोने चले गए जबकि ये दोनों रोते रहे।खासकर मदन जिसकी पत्नी की गर्मी और उल्टी वाणी ने रोड पर ला दिया।
#बेटियाॅ डाॅट इन साप्ताहिक प्रतियोगिता
#देय विषय-एक फैसला आत्म सम्मान के लिए।
#रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।
लेखक : परमादत्त झा