चंचल का मन हमेशा उड़ाय मान रहता तितली की तरह। मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी चंचल सपनों की दुनियाँ कुछ ज्यादा ही ऊंची रखती। आभासी दुनियाँ देखकर मन कल्पनाओं के सागर में हिलेरों लगाता। पढ़ने लिखने में तो साधारण थी लेकिन रूप श्रृंगार में कभी पीछे नहीं रहती।
उसकी सहेलियां भी सब बड़े घरों की थी। जो हमेशा पैसे के गुरुर में रहती। उसकी भी चाहत थी कि उसका विवाह बहुत बड़े घर में हो जाए। उसके मन में हमेशा जीवनसाथी के रूप में एक राजकुमार की ही कल्पना होती। लेकिन सपनों की दुनिया से वास्तविक दुनियाँ भिन्न होती है।
आम मध्यम वर्ग के परिवारों की तरह उसके पिता ने भी उसका रिश्ता देखभाल कर एक साधारण घर में तय कर दिया। नये घर में एडजस्ट तो हो गई लेकिन मन उसका चलायमान ही रहता। सास का तो जरा सा बोलना ही उसको बहुत खलता। डांट तो उसकी मम्मी भी लगती थी
लेकिन सास के तो बोलते ही पूरा घर सर पर उठा लेती थी। लड़ते झगड़ते समय बीतता रहा। दो बच्चों की माँ बनने के साथ-साथ गृह क्लेश भी बढ़ता ही रहा। पति से उसको ज्यादा दिक्कत नहीं थी। सबसे ज्यादा उसकी आंखों में सास अखरती थी। उसकी ननद का विवाह हो चुका था।
खाली पड़े टीवी सीरियल देखती रहती उससे उसके मन का विषाद और अधिक बढ़ गया था। वैसे भी टीवी सीरियलस में रिश्तो को तोड़ने की बातें ही अधिक की जाती हैं। इससे घरों में और रिश्तो में बहुत प्रभाव पड़ता है।
सोचती कैसे ही सास से छुट्टी मिल जाए तो गंगा नहा जाए। प्रयागराज में कुंभ स्नान मेला जोर-शोर से चल रहा था। ज्यादातर अधिकांश लोग मेले में जा रहे थे। उसने भी टीवी सीरियल के अनुसार योजना बनाई कि सास को मेले में ले जाऊं और वहीं छोड़ आऊंगी। कभी-कभी किसी के मन में कितना पाप उत्पन्न हो जाता है।
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अब उसने अपनी चाल पर काम करना शुरू किया। अपनी सास को कुंभ नहाने के जाने के लिए तैयारी शुरू की। पति को और बच्चों को काम का बहाना बना कर घर पर ही रोक दिया। कुंभ में पहुंच कर अपनी योजना के मुताबिक गंगा स्नान कर कर सास को एक तरफ बिठाकर वापसी के लिए रवाना होने लगी।
मन तो दुख रहा था उसका भी लेकिन सारे पुण्य गवांकर उसने पाप जो कमा लिया था। स्टेशन पर जाती है देखती है बहुत भीड़ है। याद तो उसे आ रही थी अम्मा की। वहां नजारा उसने अलग देखा। एक बूढी दादी जिनसे चला नहीं जा रहा था
उनकी बहू अपनी पीठ पर लाद कर अपनी सास को कुंभ स्नान करने के लिए ले जा रही थी। यह देखकर उसकी आंख भर आई। जहां वह अपनी सास को छोड़ने के लिए गई थी। वही हमारे देश में लोग अपने बड़े बूढ़ों को कंधे पर उठाकर स्नान करने के लिए ले जा रहे हैं।
आत्मग्लानि में उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे। जल्दी से वही भागी जहां उसने अपनी सास को छोड़ा था। पाप तो कर लिया था जिसकी कोई माफी न थी। लेकिन उसे अपनी सास वहां नहीं मिली। खोया पाया विभाग में उसकी सास उसको आवाज लगाकर ढूंढ रही थी। वहां जाकर उसकी सास उससे मिलकर बिलख बिलख कर रोने लगी।
सास उसको देखकर बोली, कहां चली गई थी मेरी चंचल। मुझे तेरी फिक्र हो रही थी कहीं तू खो ना गई हो। दोनों सास बहू चुपक कर एक दूसरे से मिलने लगी है। जैसे सही मायने में आज ही उनका संगम हुआ हो मन के विचारों उसका संगम घाट पर। अविरल अश्रु धारा बहती रही।
अगर समाज में अच्छे उदाहरण प्रस्तुत किए जाएं तो उसका अन्य लोगों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मनोरंजन के नाम पर घटिया और अश्लील सामग्री प्रस्तुत करने का समाज पर दुषित और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्राची अग्रवाल
खुर्जा बुलंदशहर उत्तर प्रदेश
#पैसे का गुरुर