अनकहा दर्द – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

 बारह वर्षीय मासूम अंश के चेहरे पर अचानक से अनकहे दर्द की बदली छा गई। माता-पिता की  आकस्मिक मौत ने अंश की मासूमियत छीन ली।अंश  के पिता की नौकरी मुंबई में थी और मॉं  की नौकरी  जयपुर में थी। दोनों अपने तबादले के लिए  प्रयासरत  थे,इस कारण अंश  दिल्ली के स्कूल  के हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था।

इस बार अंश के माता-पिता ने दीवाली छुट्टी में उसे घर नहीं बुलाया,इस कारण वह बहुत नाराज़ था। कोरोना महामारी के कारण  दुनियॉं थम-सी गई थी। कोरोना की लहर धीमी पड़ने पर मन में ढ़ेरों शिकायतें लिए हुए अंश अपने शिक्षक के साथ घर जयपुर आ जाता है।यहॉं आकर उसे पता चलता है कि उसके माता-पिता अस्पताल में भर्त्ती हैं।अंश अपने शिक्षक के साथ अस्पताल पहुॅंचता है।

उसके अस्पताल पहुॅंचने से पहले उसकी मॉं  कोरोना के कारण दम तोड़ चुकी थी और उसके पिता की भी हालत  अभी भी खराब थी।मासूम अंश समझ नहीं पाता है कि कोरोना महामारी जाते-जाते उसके माता-पिता को कैसे अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया। उसके माता-पिता हमेशा फोन पर उसे कोरोना से बचाव के उपाय बताते,खुद ही उस महामारी के शिकार कैसे हो गए?

अंश शोक-संतप्त -सा अनकहे दर्द के साथ मॉं को दूर से ही देखकर   बिलख रहा था।वह अपने दर्द को किसे कहें?मॉं तो छोड़कर जा चुकी थी,पिता भी गंभीर हालत में पड़े हुए थे। माता-पिता के पास जाकर ,छूकर उन्हें महसूस भी नहीं कर सकता था।उसके शिक्षक उसे ढ़ॉंढ़स बढ़ाते हुए कहते हैं -” बेटा! हिम्मत रखो, तुम्हारे पापा ठीक हो जाएंगे।”

अस्पताल में डॉक्टर सुमित अपनी जान पर खेलकर अंश के पिता नरेन  जी को बचाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे।नरेन जी को आभास हो जाता है कि उनके जीवन का दीप बुझनेवाला है।वे डॉक्टर सुमित से गुहार  लगाते हुए कहते हैं -“डॉक्टर! मेरे बाद मेरे बेटे को गोद ले लेना।मेरी सारी संपत्ति उसकी है। कम-से-कम 18 वर्ष तक उसकी देखभाल कर देना।आपकी सेवा-भावना देखकर मुझे आप पर पूर्ण भरोसा है।”

डॉक्टर सुमित उन्हें चुप रहने को कहते हैं।कुछ देर के बाद नरेन जी सदा के लिए चुप हो जाते हैं।मासूम अंश को देखकर डॉक्टर सुमित और उसके शिक्षक की आत्मा कराह उठती है।अंश की जॉंच करने के बाद डॉक्टर सुमित उसके शिक्षक से उसे कोरोना शांत होने तक अपने पास रखने का आग्रह करते हैं।शिक्षक चूॅंकि अकेले रहते थे, फिर भी मानवता के नाते अपने पास ले आते हैं। माता-पिता के ग़म में हमेशा एक अनकहा दर्द उसके चेहरे पर पसरा रहता है।वह अपना दर्द बॉंटे,तो किससे?

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अस्पताल से आकर डॉ सुमित मासूम अंश के हृदयविदारक दुख से मर्माहत हैं।विपदा की इस घड़ी में वह उसके लिए कुछ कर भी नहीं सकते हैं।कुछ न कर पाने का अनकहा दर्द उन्हें भी परेशान करता रहता है। बार-बार अंश का उदास चेहरा उनके जेहन में घूमता रहता है।कुछ समय बाद कोरोना की लहर शांत हो जाती है।अब डॉक्टर सुमित अंश को लाने  के बारे में सोचते हैं, परन्तु पत्नी को कैसे मनाऍं,समझ नहीं पाते हैं। डॉक्टर की पत्नी शोभा ब्यूटी पार्लर चलाती है।शाम के समय उनकी पत्नी शोभा पार्लर से आकर चाय लेकर उनके पास बैठती है। डॉक्टर सुमित पूछते हैं -” शोभा!तुम्हारा पार्लर का काम कैसा चल रहा है?”

शोभा -“जैसे-जैसे कोरोना खत्म हो रहा है, वैसे-वैसे काम चलने लगा है।”

अब डॉक्टर सुमित भूमिका न बॉंध सीधे मुद्दे पर आकर कहते हैं -“शोभा!एक मासूम बच्चा एक महीने हमारे साथ रहेगा, फिर  स्कूल  खुलने पर हॉस्टल  चला जाएगा।”

पति की बात सुनकर बिफरते हुए शोभा कहती हैं -“तुम अपनी परोपकार की भावना से बाज नहीं आओगे?पिछली बार भी एक लड़के को लेकर आऍं थे,वह एक महीना के बदले छः महीना रहकर गया था।मुझसे ये सब नहीं होगा।”

डॉक्टर सुमित चुपचाप पत्नी की बात सुनते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि पत्नी जबान की कुछ कड़वी जरूर है,पर दिल की बहुत अच्छी है।पति को ख़ामोश देखकर शोभा कहती हैं -“अब चुप भी मत रहो,बताओ कि कौन है?”

डॉक्टर सुमित मुस्कराते हुए -“मैं समझ रहा था कि तुम जरूर मान जाओगी।”

शोभा -“मैं मान नहीं गई हूॅं,पर बताओ तो सही कि कौन है?”

डॉक्टर सुमित -“बारह वर्षीय मासूम अंश है,उसी के माता-पिता की बीमारी कोरोना से हो गई है!”

शोभा -“अच्छा! तुमने तो उनके बारे में बताया था,पर बच्चे के बारे में नहीं बताया था। क्या पता वह बच्चा भी कोरोना संक्रमित हो”

 डॉक्टर सुमित -“अरे! मैंने उसकी पूरी जॉंच कर ली है।वह तन्दुरुस्त बच्चा है।”

शोभा -“ठीक है! फिर उसे ले आओ,पर उसे मकान के पिछले हिस्से में कामवाली के साथ रखूॅंगी।”

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डॉक्टर सुमित -” कैसी बातें कर रही हो?वह एक अच्छे परिवार का लड़का है। उसके पिता ने उसका अभिभावक मुझे बनाया है और उसके ख़र्च की भी व्यवस्था कर गए हैं।”

शोभा -“ठीक है, परन्तु उसे मैं अपने बेटे के कमरे में नहीं रहने दूॅंगी। बगलवाले छोटे कमरे में रहेगा।”

डॉक्टर सुमित –“ठीक है! उसके शिक्षक को उसे यहॉं लाने के लिए कल बोल देता हूॅं।”

डॉक्टर सुमित उसी  रात में अपने आठ वर्षीय बेटे से कहते हैं -“बेटा!कल घर में आपके एक बड़े भैया आऐंगे। उनसे झगड़ा मत कीजिएगा।”

बबलू ने चहकते हुए कहा -“सच पापा!”

स्कूल से आकर बबलू भी अकेले-अकेले टेलीविजन देखते-देखते ऊब जाता था।वह भी बेसब्री से अंश के आने का इंतजार करने लगा।

अगले दिन अपने शिक्षक के साथ डरा -सहमा हुआ अंश उनके घर पहुॅंचा। उसकी जिंदगी ही उसके लिए अनकहा दर्द बन चुकी थी।अपने दुःख -दर्द से वह मासूम खुद जूझ रहा था।सामान के नाम पर उसके पास एक अटैची थी।शोभा चाय-नाश्ता लेकर उनके पास आती है।अंश के शिक्षक उसकी तारीफ करते हुए कहते हैं -“अंश बहुत ही समझदार बच्चा है। भगवान ने इसके साथ बहुत अन्याय किया है। विपदा ने इसे समय से पहले समझदार बना दिया है। इससे आपको कोई परेशानी नहीं होगी।”

शोभा ने जब अंश की तरफ नजरें उठाकर देखा तो उस मासूम का उदास चेहरा अनायास ही उसके मर्मस्थल‌ को बेंध गया। मातृ-पितृ हीन बालक के लिए उसके अंतर्मन में एक टीस -सी उभरी

बबलू उत्साहित हो अंश को अपने कमरे में ले जाकर अपने खिलौने और अपनी काॅपी-किताबें दिखाने लगा।कुछ ही दिनों में अंश उस परिवार में धीरे-धीरे घुलने-मिलने लगा। बबलू तो उसके आने के बाद से अति उत्साहित रहने लगा।हर पल अंश भैया की पुकार लगाते रहता।अंश के उदास चेहरे पर भी मुस्कराहट आने लगी थी।जो बबलू हमेशा टेलीविजन देखने  की  वजह से डॉट सुनता रहता था,वह अब अंश के साथ खेलता-कूदता रहता था।अंश उसे कभी कोई कहानी सुनाता,कभी चुटकुले। बबलू जोर-जोर से खिलखिलाता। बबलू में आए बदलाव को शोभा महसूस करने लगी थी।एक दिन शोभा ने अपने पति से पूछा -“क्या अंश के कारण बबलू में आए  सकारात्मक बदलाव को आपने भी महसूस किया है?”

डॉक्टर सुमित हॅंसते हुए कहते हैं -” बबलू ही क्यों, मैं तो उसके प्रति तुम में आए बदलाव को भी महसूस कर रहा हूॅं।

दोनों मॉं-बेटा उससे ज्यादा लगाव मत रखो। उसे कुछ दिनों में हाॅस्टल चले जाना है।”

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शोभा -“लगाव जैसी तो कोई बात नहीं है, परन्तु इसे देखकर मुझे महसूस होता है कि घर में दो बच्चे होने चाहिए।”

डॉक्टर सुमित -“तुम तो जानती हो कि तुम्हारे लिए दूसरे बच्चे के लिए रिस्क लेना जानलेवा हो सकता है।इसे ही अपना दूसरा बच्चा मान लो।”

पति की बातें सुनकर शोभा ख़ामोश हो जाती है।उस  रात शोभा की ऑंखों में नींद नहीं थी।अंश के हाॅस्टल जाने का दिन नजदीक आता जा रहा था।वह अंश को लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रही थी। उसके जाने की बात सोचकर उसका मन बेचैन हो उठता था।उसे समझ नहीं आ रहा था कि बबलू के साथ खेलते हुए  उसके चेहरे पर  मुस्कुराहट देखकर उसे आत्मसंतुष्टि का आभास क्यों होता है?

बेचैनी में उठकर वह पानी पीने रसोई में जाती है।उसे अंश के कमरे में रोशनी आती दिखाई देती है।वह अंश के कमरे में जाकर देखती है कि जिस रात के अंधियारे में निन्द्रा देवी पूरे जग को अपने आगोश में समेटे हुए है,उस रात में अंश की ऑंखों में नींद का नामोनिशान नहीं है।वह अपने माता-पिता की फोटो अपने सीने से चिपकाऍं धीमे-धीमे सुबक रहा था।शायद फिर से अकेलेपन की चुभन उसे सूई की तरह बींध रहीं थीं।

शोभा कुछ देर के लिए उसे अपनी बॉंहों में समेटकर उसे सुलाने का प्रयास करती है।उसकी थपकियों से वह शोभा का हाथ  पकड़कर निश्चिंत होकर सो जाता है।जैसे ही शोभा हाथ छुड़ाकर जाने लगती है,वह मॉं- मॉं कहकर उससे चिपट जाता है।शोभा उसी के पास बिस्तर पर लेट जाती है, परन्तु उसके मन में अंतर्द्वंदों का सिलसिला जारी रहता है।कभी वह सोचती है कि अंश को घर में ही रख लें, जिससे उसके मन का अनकहा दर्द कुछ कम हो, फिर मन में ख्याल आता है कि उसे क्यूॅं अपने पास रखूॅं, उससे मेरा  रिश्ता  ही क्या है? अंतर्द्वंदों का जाल उसके मन-मस्तिष्क में उलझ-सा जाता है। धीरे-धीरे वह नींद के आगोश में चली जाती है।

अगली सुबह सूर्योदय की सुनहली आभा उसके तन-मन को रोशन कर देती है। अचानक से उसके  उसके मस्तकपटल में निर्णय की स्पष्ट रेखाऍं उभरतीं हैं। अंतर्द्वंदों का जाल और ऊहा-पोह की स्थिति पल भर में तिरोहित हो जाती है।

अंश को लेकर उसके मन पर छाया हुआ कोहरे  -सा अंतर्द्वंद साफ हो चुका है ।अब उसने निर्णय ले लिया कि उसे शुरू से ही दो बच्चों की चाहत थी,जिसे ईश्वर ने अंश के रूप में भेजकर पूरी कर दी है।

शोभा ने अपने पति से कहा -” अंश अब हाॅस्टल नहीं जाएगा।अब यह भी यहीं बबलू के साथ रहकर पढ़ेगा।हम इसे कानूनी तौर पर गोद ले लेंगे। बबलू को सदा के लिए बड़ा भाई भी मिल जाएगा।”

डॉक्टर सुमित तो मन-ही-मन यही चाहते थे। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा -” शोभा!आजतक मैंने तुम्हारी कोई बात काटी है, जो अब काटूॅंगा। तुमने एक अनाथ बच्चे को अपनी ममता की छाॅंव देकर उसकी जिंदगी को अनकहे दर्द से मुक्ति देने का प्रयास किया है।”

बबलू भी अंश का हाथ पकड़कर कहता है -“अब अंश भैया कहीं नहीं जाएंगे। हमारे साथ ही रहेंगे।हम खूब खेलेंगे।”

अंश के चेहरे पर भी खुशियों की लकीरें चमक उठतीं हैं।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा स्वरचित।

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