ढलती साँझ – गीता यादवेन्दु : Moral Stories in Hindi

“साँझ को तो ढलना ही होता है तो उसके लिए रोना क्या,घबराना क्या ! हम भी तो ढलती साँझ हैं उर्वशी तो क्यों न ढलते-ढलते अपनी लालिमा को सामर्थ्य भर बिखेर जाँय ।” रामेंद्र जी अपनी पत्नी उषा से कह रहे थे ।

उषा जो अब ज़िंदगी के 62 वें बसंत में थी और रामेंद्र 65 को पार कर चुके थे दिल्ली में अपने 3 क़मरों के मकान में रहते थे । रामेंद्र दिल्ली के ही एक कॉलेज से दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर पद से रिटायर हुए थे इसीलिए उनकी बातों में  गहराई होती थी और अक्सर वे अध्यात्म और दर्शन में डूब जाते थे । दोनों अपने स्वास्थ्य का भी ख़याल रखते थे और स्वस्थ थे । सार्थक और सकारात्मक कार्यों में अपना समय व्यतीत करते थे ।

दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी दोनों पढ़-लिखकर विदेशों में बस गए थे और वहीं शादियाँ भी कर ली थीं दोनों ने । मधुर अमेरिका में साइंटिस्ट था तो शालिनी इंग्लेंड में बहुत बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत थी । दोनों माता पिता को अपने पास बुलाते रहते पर रामेंद्र और उषा जाते नहीं थे

जैसे कि उन्हें अपना देश छोड़कर जाने में डर लगता था । कार्य की व्यस्तता के कारण मधुर और शालिनी दोनों ही साल-दो साल बाद  भारत आ पाते थे और ज़्यादा से ज़्यादा एक हफ़्ता रह कर चले जाते । 

“पापा आप दोनों के अमेरिका आने का इंतज़ाम करा दिया है । वीज़ा-पासपोर्ट सब तैयार है । आप को बस प्लेन से यहाँ आना है ।” मधुर कह रहा था ।

“चलो उषा जी इस बार अमेरिका घूम ही आते हैं । मधुर कितनी बार बुला चुका है ।” रामेंद्र जी उषा से कह रहे थे ।वे उन्हें हमेशा उषा जी कह कर ही बुलाते थे ।

“हाँ नेंसी और रीटा भी मुझसे बहुत कहती हैं आने को ।” उषा जी बोलीं । नेंसी उनकी नातिन और रीटा बहू का नाम था । नेंसी वीडियो कॉल पर हमेशा दादी को अमेरिका आने को कहती थी ।

मधुर अमेरिका के ख़ूबसूरत शहर लॉस एंजिल्स में रहता था जहाँ हॉलीवुड के बड़े बड़े स्टार रहते थे । रामेन्द्र जी और उषा ने भी सोचा कि जीवन में जब बेटा घुमा रहा है तो अमेरिका देख ही लेना चाहिए और फ़िर जब शालिनी बुलाएगी तो इंग्लैंड भी घूम आएँगे । बच्चे विदेश में हैं और दुनिया देखने का मौका मिल रहा है तो जाना ही चाहिए ।

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लॉस एंजिल्स के लिए दिल्ली के इंदिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से प्लेन की लगभग 22 घंटे की लंबी हवाई यात्रा के बाद वे लॉस एंजिल्स पहुँचे । मधुर,नेंसी और रीटा उन्हें लेने एयरपोर्ट आए थे ।माता-पिता को अपने पास आया पाकर मधुर भाव-विभोर था । रीटा अमेरिका में रहकर भी भारतीय बहुओं की तरह ही उनका आदर सम्मान कर रही थी और नेंसी तो दादा-दादी का साथ पाकर जैसे चहक ही रही थी ।

लॉस एंजिल्स अमेरिका के केलिफ़ोर्निया राज्य में स्थित एक शानदार शहर है जहाँ हॉलीवुड सिटी और हॉलीवुड स्टार्स के घर,शानदार बीच और अनेकों घूमने के स्थान हैं । मधुर और रीटा दोनों काम पर जाते और देर में लौटते थे । नेंसी भी स्कूल जाती और दोपहर बाद तक आती । केवल छुट्टी के दिन वो लोग घूमते-फ़िरते और साथ रह पाते थे ।

दो महीने बीतते-बीतते बेटा-बहू द्वारा कोई कमी नहीं छोड़े जाने के बावज़ूद रामेंद्र और उषा को बहुत ज़्यादा बोरियत और अकेलापन महसूस होने लगा । भारत में तो परिवार साथ न होने पर भी इतना अकेलापन नहीं लगता । भारतीय लोगों की सोसायटी भी यहाँ वेकेशन में मिलती थी ।

वैसे मधुर के सभी जानने वाले रामेंद्र जी के फ़िलासफ़ी के ज्ञान से प्रभावित होते । सब आराम के बावज़ूद दो महीने रहने के बाद दोनों पति-पत्नी को अमेरिका से अपने भारत की याद आने लगी । दिल्ली की भीड़भाड़ । अपने भारतीय रिक्शे वाले,टेंपो वाले,मेट्रो,अड़ोसी- पड़ोसी सबकी याद सताने लगी । रामेन्द्र जी के स्टूडेंट्स जो अभी भी पढ़ाई में उनसे मार्गदर्शन लेने घर आते रहते थे

उनकी याद करने लगे और उनके फ़ोन आने लगे । मधुर और रीटा चाहते थे कि वे अभी और रुकें क्योंकि उनके रहने से नेंसी को कंपनी मिल जाती थी । किंतु रामेन्द्र जी से भी ज़्यादा उषा को वापस लौटने की चाह होने लगी थी । उधर केलिफ़ोर्निया के जंगलों में लगी आग लॉस एंजिल्स तक आ गई थी ।

कई हॉलीवुड स्टार्स के घर तक आग की चपेट में आ गए थे । मधुर को भी अपना फ़्लैट उसी एरिया में था इसलिए उसे इस फ्लैट को छोड़ कर दूसरी सुरक्षित जगह शिफ़्ट होना पड़ा जिसमें खासी परेशानी हुई । अब तक रामेंद्र और उषा का मन अमेरिका से पूरी तरह से भर चुका था । नेंसी का प्रेम भी अब उन्हें नहीं रोक पा रहा था ।

लग रहा था जैसे कि जाने कितनी उम्र यहाँ बीती जा रही है और जीवन की ढलती शाम में अपना देश,अपनी दिल्ली,अपनी गली सब छूट गए हैं । मधुर और रीटा समझ गए कि अब मम्मी-पापा को रोकना संभव नहीं है

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और दो महीने अमेरिका में रह कर रामेंद्र और उषा अपने देश वापस आ गए जहाँ उनके बेटा-बेटी तो नहीं थे पर बहुत सारे अपने थे जिनकी उन्हें याद आती थी । वापसी में एयरपोर्ट पर रामेन्द्र जी का छोटा भाई-भाभी,भतीजे,भतीजी और पड़ोसी खन्ना जी और यादव जी मौजूद थे ।

“आ गया अपना यार ।तेरे बिना तो सारी फ़िलासफ़ी ही भूली जा रही थी ।” खन्ना ने कहा ।

“हाँ यार जीवन की ढलती साँझ में अपने देश की धरती पर ही जीने में सुकून मिलता है ।” रामेन्द्र जी ने कहा ।

               गीता यादवेन्दु

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