अरे वाह भाभी… मजा ही आ गया… बड़ा ही स्वादिष्ट नाश्ता बनाया आपने, जितनी भी तारीफ करो…. कम ही रहेगी,राधव ने अपनी भाभी रूपा के बनाये खाने की तारीफ करते हुए कहा आज तो पेट भर गया मगर नीयत ही नहीं भर रही…. फिर दो कचौड़ियां और अपनी प्लेट में क्या रख… लीं ॽ
पत्नी रेखा एकदम बोली बस भी करो राधव.. “कितना खाओगे… अरेऽऽऽ कुछ तो सोचो..वजन देखो जरा अपना, बढ़ता ही जा रहा कुछ चिंता है भी या नहीं” । उसके बोले शब्दों में एक अजीब सी बेचैनी,स्वर में काफी मायूसी झलक रही थी ।
हकीकत में रेखा को राधव के बढ़ते वजन से नहीं, उसका जेठानी के हाथ से बने खाने की बढ़ाई करना बिल्कुल पच ही नहीं रहा था। वो सहन ही नहीं कर पा रही थी … यह एक दिन का किस्सा नहीं रोज ही बढ़ाई सुन सुनकर रेखा का दिल बुझ सा जाता
वैसे भी.एक महिला के आगे दूसरी महिला की बढ़ाई करना आफ़त ही मोल लेना है… बहुत ही कम मामले ऐसे नजर आयेंगे जहां एक महिला दूसरी की बढ़ाई बहुत ही सहजता से स्वीकार कर ले। आखिर है तो रेखा भी एक महिला ही…!!!
रेखा सोचती है..उसके द्वारा बनाये खाने की तारीफ करना तो दूर राधव हमेशा मीनमेख ही निकालता रहता था। ऐसा नहीं की रेखा ने कभी स्वादिष्ट, लज्जतदार खाना बनाने की कोशिश न की हो….मगर व्यंजन बनते -बनते प्लेट में आते- आते वो जाने क्या बन जाता ? फिर उसी बने खाने को जेठानी रूपा ही कुछ डाल वालकर, हिला मिला कर खाने लायक बनाती ।
कल ही रेखा ने भिन्डी की सब्जी बनाई और वो भिन्डी का हलवा बन कर रह गया और बैंगन की सब्जी में कितना पानी डाल दिया उसने….कब तलना, कब भूनना, किसे भिगाना किसे पीसना उसे किसी की समझ ही नहीं थी ….। सभी खूब हंसते थे उस पर मजाक भी कम नहीं बनता था उसका, राधव तो उसके बनाये खाने में मीनमेख ही निकालते रहते ।
कुछ दिन पहले राधव की बुआजी आई थी उसने कितने चाव से हलवा बनाया था उनके लिए, बड़ी मेहनत व सावधानी बरती थी सोचा और कोई नहीं तो कम से कम आज बुआजी उसके तारीफों के पुल तो बांध ही देंगीं….और हुआ क्या…? शक्कर की जगह नमक डाल दिया था उसने तब बुआजी ने कितना सुनाया था ….बाबा रे तौबा-तौबा..
शादी हो गई शक्कर और नमक में अन्तर तक नहीं पता राधव तेरी बीवी को । घर गृहस्थी संभाल भी सकेगी ।
तब सासूमां ने बात संभाल ली थी अरे बच्ची ही है अभी साल भर तो हुआ नहीं विवाह को सब सीख जायेगी धीरे-धीरे ,ये तो नहीं की कुछ करती नहीं है …. कोशिश तो करती ही है वो ।
रेखा याद करती है…..वो खुद ही, उसको शादी से पहले से ही खाना बनाना बिल्कुल भी पसंद नहीं रहा उसने कभी भी तरह- तरह के व्यंजन बनाने सीखे ही नहीं शादी से पहले घर में नौकर-चाकर खाने बनाने के लिए महाराज अंकल तो थे ही,
और ‘माँ अपनी किट्टी पार्टियों में व्यस्त रहती पापा बिजनेस मैन, अपने बिजनेस में व्यस्त, दादी पूजा पाठ में लगी रहती वैसे ऐसा नहीं अनेक बार दादी ने टोका भी… बिट्टू कुछ बनाना वनाना भी सीख ले काम आयेगा ।
दादी कहती… अगर तुमने पति के लिए अच्छा स्वादिष्ट खाना नहीं बनाया और उसे नहीं खिलाया तो देखना उसके प्रेम, स्नेह से वंचित रह जाओगी…
“ आखिर मर्दों के दिल का रास्ता पेट से होकर ही जाता है” ।
“बकवास बेवकूफाना बातें हैं ये सब”!! वो गुस्से से कहती ..!!
ऐसी बातों से रेखा को बहुत गुस्सा आता उसका सर भन्ना जाता वो कहती ये क्या बात हुई…. महिलाओं की काम की लिस्ट में खाना बनाना जरूरी क्यों….?
“खाना बनाना सीखों..खाना बनाना सीखों ये कोई बात हुई, खाना बनाना सीखने की जरूरत ही क्या है “…?
और उसकी सहेली की शादी हुई वो तो बता रही उसके पति को बहुत अच्छा खाना बनाना आता है खूब बना कर खिलाता है उसे। जरूरी नहीं है… हो सकता है उसकी शादी भी ऐसे लड़के से हो जाये जो खाना बनाना जानता हो खुद को ही आश्वस्त कर लेती है।
आखिर समय की रफ्तार कब रूकती है….रेत सा फिसलता जाता है…वो दिन भी आ ही गया जब वो विवाह कर राधव के घर आ गई । ससुराल में ससूर तो थे नहीं, सासूमां बेहद संस्कारी धार्मिक प्रवृत्ति की सभ्य सुशील शान्त स्वभाव की महिला,
उनको ऐसी बातों से कोई मतलब नहीं बस दो समय का खाना शान्ति से खा लेती…अपने भजन कीर्तन मंडली में ही मस्त रहती । ननद विवाहिता कभी आ जाती मगर मिलनसार ही थी वो भी ।
और पति राधव खाने पीने के खूब शौकिन मिजाज इंसान, नित्य तरह- तरह खाने की फरमाइशे करते रहते जेठानी पकवान बनाने की शौकीन बना बना खिलाती और बढ़ाई बटोरती रहती और फिर रेखा को समय- समय पर ताने मारने में पीछे नहीं रहती अक्सर कहती रेखा… तुम्हारे हाथ का बना खाना तो घर का कुत्ता भी नहीं खाता सूंघ कर यूं ही छोड़ देता है।
पति राधव भी मजाक बनाने में कभी पीछे नहीं रहते अक्सर कहते …
“ रेखा क्या बनाया हलवा या जलवा “ !! या जब वो पूछती क्या बनाऊ तो हंस कर कहते “ अरे कुछ भी बना लो तुम तो जब बन जायेगा फिर देखकर बताऊंगा मैं कि वो क्या बना है “!!!
सासू मां जब उसकी बेइज्जती होते देखती तो अक्सर कहती रेखा तुम खाना बनाना सीख क्यों नहीं लेती हो ? कोई कठिन नहीं है तुम कोशिश करके तो देखो एक बार।
रेखा जेठानी की बातों से आहत तो बहुत होती मगर कभी भी उनको पलटकर जवाब नहीं देती आखिर उसको सासूमां की बात सही लगी उसे खाना बनाना सीख ही लेना चाहिए…वो मन में प्रण कर लेती है देखना एक दिन वो जेठानी से अच्छा खाना बना कर दिखायेगी ….वो निश्चय कर लेती है कि “किचन किंग” बन कर ही रहेगी ।
वैसे तो उसके पास आॅन लाइन आॅप्शन भी था मगर उसको कुकिंग क्लास ज्वाइन करना ज्यादा सही लगा क्योंकि उससे वह सामने बनता देख सकती है और ज्यादा अच्छे व जल्दी से सीख सकती है। और फिर क्या…? कुछ ही दिनों में उसने पाक कला में निपुणता प्राप्त कर ली ।
अब रेखा को लगने लगा कोई भी काम कठिन नहीं है बस उस काम में रूचि होनी चाहिए हाँ यह सही है वो पहले पहल रोटी परांठा गोल नहीं बना सकी, मगर धीरे-धीरे सब सही हो गया वो इडली, पोहा, उपमा, चीला, भरवा व्यंजन सभी नाश्ते में बनाने लगी।और फिर वो अपने चटोरे पति को अपनी उत्कृष्ट पाक कला से तृप्त करने में पूर्णतः सक्षम रही।
अब तो घर बाहर रिश्तेदार जेठानी सभी उसके व्यंजनों की तारीफ करते नहीं थकते थे। भला जेठानी जी को स्वादिष्ट बना बनाया मिलने लगा तो वो तारीफ क्यों ना करतीं…रेखा को भी आत्मसुख मिलता जब सब उसके बने व्यंजन खाकर तृप्त होते ।
वो एक दिन मजाक करते हुए कहती हैं देखों जेठानी जी…. अब तो घर का कुत्ता भी मेरा बना खाना खाने लगा है । उसकी बात सुनकर सभी खिलखिला हंँसने लगते हैं ।
कहानी का सकारात्मक पक्ष आलोचना करने वाले हमेशा बुरे नहीं होते…. बशर्ते टिप्पणी करने वाले की मंशा सही हो वो सही बात पर आलोचना कर रहा हो…. किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं और हम जानते हैं वो सही है उनकी आलोचनात्मक प्रवृत्ति सही है…
तो गलती स्वीकार करने में बुराई नहीं है। जेठानी अगर रेखा को नही टोकती उसमें मीनमेख नहीं निकालती तो रेखा में सीखने की लालसा कभी न जागती वो इतना अच्छा खाना कभी नहीं बना सकती थी । इसलिए बुराई सुनकर गुस्से की एनर्जी का उपयोग खुद को सुधारने में करना चाहिए जैसा की रेखा ने किया।
लेखिका डॉ बीना कुण्डलिया
- 1. 2025