सारिका अपनी कक्षा के सबसे होनहार छात्रा थी। पढ़ाई, खेल कूद,वाद विवाद प्रतियोगिता एवं स्कूल की जो भी गतिविधियां होती थी…. सारिका उन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती और हमेशा अव्वल स्थान प्राप्त करती थी।
वह अध्यापकों एवं प्रिंसिपल की बहुत प्रिय छात्रा थी, लेकिन शरारती भी बहुत थी। क्लास में हर टीचर की मिमिक्री करती… जिस कारण सभी लड़कियां खूब ठहाके लगाती थी।
अगर किसी को पढ़ाई में मदद की जरूरत होती, तो उसकी वह हमेशा सहायता भी करती थी।
अपने खुशमिजाज एवं हाजिर जवाब स्वभाव के कारण वह अपने मित्र मंडली में सबकी चहेती थी। स्कूल की छुट्टी होने के बाद लड़कियों का झुंड एक साथ निकलता था।
स्कूल के रास्ते में बहुत बड़ा रेस्टोरेंट था अक्सर रेस्टोरेंट के सामने सारिका रुककर, शरारती अंदाज में लड़कियों से बोलती बोलो क्या खाना है?
रेस्टोरेंट वाला लड़कियों को बोलता, पहले पूरे पैसे लेकर आओ तब कुछ मिलेगा। उस जमाने में जेब खर्च के लिए बहुत कम पैसे मिलते थे । लड़कियां 25 पैसे का आलू बोड़ा 20 पैसे में देने के लिए कहती। लेकिन वह 25 पैसा से एक पैसा भी कम करने के लिए राजी नहीं होता। सारिका बोलती दे दो ना भैया…. हम लोग विद्यार्थी हैं, हमारे पास ज्यादा पैसे नहीं हैं। रेस्टोरेंट्स वाला डांट कर भगा देता।
एक दिन सारिका को क्या शरारत सूझी वह रेस्टोरेंट के सामने जोर-जोर से चिल्लाने लगी मक्खी… मक्खी… मक्खी… कोई खाना नहीं। समोसे के अंदर मक्खी है। इतना सुनते ही जो कस्टूमर अंदर खा रहे थे उठ गए, और बोले मुझे नहीं खाना आप के रेस्टोरेंट में।
रेस्टोरेंट वाला सारिका को बहुत गुस्से में घूरे जा रहा था। तुमने झूठ मुठ क्यों शोर मचाया।… आखिर क्या चाहती हो भवानी??
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सारिका बोली हम सब विद्यार्थी हैं, यदि पांच पैसे कम लें लोगे तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा??
अगर नहीं दोगे तो हम ऐसा ही कोई न कोई बखेड़ा रोज करेंगे। रेस्टोरेंट वाला मान लिया और बीस पैसे का आलू बोडा देने लगा।
कुछ दिन के पश्चात सभी लड़कियां वहां से पास आउट होकर अलग-अलग कॉलेजों में जाने लगी । सारिका बी.ए. द्वितीय वर्ष में थी तभी उसका एक जगह से रिश्ता आया।
सारिका की माँ, एक दिन बोली कि आज कॉलेज नहीं जाना है, आज तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे हैं ।
सारिका मांँ के ऊपर भड़क उठी, मुझे अभी नहीं करनी शादी वादी। लेकिन मांँ के आगे उसकी एक न चली ।
उस जमाने में लड़कियों को पढ़ाया ही इसीलिए जाता था, जिससे अच्छे रिश्ते मिल जाए। आखिर वह दिन आ गया जब लड़के वाले सारिका को देखने आए।
सारिका साड़ी पहनकर उनके सामने आई। सभी को नमस्ते करते हुए अचानक एक व्यक्ति को देखकर वह चौक गई। वह व्यक्ति भी उसे पहचान गया।
सारिका वहांँ से जाने के लिए मुड़ी तभी एक महिला ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया…. पूछने लगी, बेटी तुम्हारा नाम क्या है?
सारिका बहुत डरी और घबड़ाई हुई थी। सोच रही थी कि वह व्यक्ति सबके सामने अभी पोल खोल देगा… लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
लड़के वाले जब चले गए, सारिका ने अपनी मांँ को कई साल पहले रेस्टोरेंट वाली बात बतायी… किस तरह उसने शरारत की थी।
उसकी मांँ ने उसे बहुत डांँटा…. कि तुम्हारी उटपटांग हरकतों के कारण अब यह रिश्ता होना नामुमकिन है।
कुछ दिनों के बाद लड़के वालों ने हांँ कर दी। और कहा शादी की अतिशीघ्र तैयारी करें।
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शादी का मुहूर्त आ गया । विवाह संपन्न होने के पश्चात सारिका विदाई होने के उपरांत ससुराल गई। वहां वह डरती रहती जिस दिन उसकी पोल खुल गई उसकी बहुत बेज्जती होगी।
पैर छूने की रस्म अभी चल रही थी… चाचा ससुर के पैर छूने लगी….. तो चाचा जी ने कहा बेटी तुम्हें घबराने की जरुरत नहीं। तुम इस घर की बहू नहीं बेटी हो। यह वही रेस्टोरेंट वाले चाचा ससुर थे जो उसकी नटखट हरकत से वाफिक थे।
जो बच्चे चंचल होते हैं वह समझदार भी बहुत होते हैं, इतना कहकर वह मुस्कराने लगे । सारिका के जान में जान आई।
सारिका के ससुर तीन भाई थे। बड़े और छोटे ससुर के कोई संतान नहीं थी। तीनों भाइयों के बीच में सुशांत ही इकलौती संतान थी। सुशांत चाचा, चाची के बहुत ही लाडले और दुलारे थे।
सारिका जब विवाह उपरांत ससुराल आई तब सारिका की सास ने कहा… कि तुम इस घर की अकेली बहू हो। तुम जितना मान- सम्मान मुझे करोगी उससे ज्यादा अपनी इन चचेरी सास और चचेरे ससुर को करना है । कभी भी इन्हें हमसे अलग मत समझना।
सारिका यह बात अच्छी तरह से समझ गई थी। सभी सास-ससुर उसे बच्चे की तरह बहुत प्यार करते थे। सारिका भी सभी का बहुत सम्मान करती एवं हमेशा कोशिश करती थी कि उसके कारण किसी का दिल न दुखे।
सारिका के आने से घर में बहुत रौनक आ गई थी। हर समय पूरे घर में चहकती रहती थी । उसे ससुराल जैसा कुछ भी नहीं लगता था…. वह अपने मायका जैसा ही महसूस करती थी।
सुशांत एवं उसका परिवार सारिका जैसी बहू पाकर अपने आप को धन्य मानते थे।
विवाह के पश्चात सारिका को उसकी चाची सास अपने- अपने मायके ले गई। जहां सारिका को सभी ने बहुत प्यार दुलार दिया। सारिका पूरे घर की आंखों की तारा थी।
धीरे धीरे कई वर्ष निकल गए अब घर में सभी लोग कहने लगे। कि बेटा अब तो घर के आंगन में किलकारी गूंँजनी चाहिए।
सारिका और सुशांत ने कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। अब उनके मन में भी यह लगने लगा कि हां घरवाले सच कह रहे हैं । अब इस घर को बच्चे की जरूरत है।
सारिका और सुशांत के चाहने के बावजूद भी कोई बच्चे के आसार नजर नहीं आ रहे थे। उन्होंने अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाया । इलाज लगातार चलता रहा इस तरह से बारह वर्ष निकल गए, लेकिन सारिका मांँ नहीं बन पाई। घर में कोई भी बच्चे के संबंध में कुछ नहीं बोलता था। बस बोलते बेटा तुम लोग खुश रहो।
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एक बात सुशांत और सारिका अपने मामा के यहां किसी कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए गए। मामा की इकलौती बेटी नीलू, दीदी और जीजा जी के आने से बहुत खुश थी। दीदी के मुख से जीजा जी की बात- बात पर बढ़ाई ही सुनती थी।
जब वह वहां से जाने लगे तब मामा जी ने कहा…. बेटा नीलू के लिए भी एक अच्छा सा लड़का देखो। तब सारिका ने नीलू से शरारती लहजे में पूछा…
कैसा लड़का तुम्हें पसंद है??
नीलू बोली बिल्कुल जीजू के जैसा… जो शांत स्वभाव, महिलाओं की इज्जत करने वाला हो। सारिका हंँसते हुए बोली तेरे जीजू तो एक मात्र ऐसे, एक ही पीस है। तब तो तू इन्हें ही ले ले… और सभी खड़े हुए लोग जोर से ठहाका मार कर हंसने लगे।
मामा के घर से लौट आने के बाद सारिका मन ही मन सोचने लगी कि अगर नीलू को अपने घर की बहू बनाकर लाया जाए तो कैसा रहेगा?
जब डॉक्टरों ने मना कर दिया कि अब सारिका मां नहीं बन पाएगी??
तब घर वालों ने एक बच्चा गोद लेने के लिए कहा। लेकिन सारिका बिल्कुल इस बात के लिए तैयार नहीं हुई। वह चाहती थी इस खानदान को इस घर का ही चिराग मिले।काफी सोचने के बाद एक दिन सारिका ने अपने मामा से नीलू और अपने पति के साथ विवाह की बात की। मामा एकदम से भड़क गए, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है सारिका?
कुछ दिन के पश्चात मामा से दोबारा बात की, लेकिन मामा बिल्कुल तैयार नहीं हुए। बोले एक पति के साथ दो पत्नियां कैसे रह सकती हैं?
सारिका ने कहा कि आप चिंता मत करिए।
नीलू ही इस घर की असली बहू बनकर रहेगी परंतु मामा राजी नहीं हुए।
थोड़ी देर शांत रहने के पश्चात बोले नीलू से भी उसकी राय जान लो।
सारिका ने नीलू से भी बात की… नीलू बोली जैसा आप लोग ठीक समझें आप लोगों की हां में, मेरी हां है।
वह दोनों बहनें साथ साथ रहने के लिए तैयार थी… क्योंकि नीलू सारिका को बहुत चाहती थी।
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एक दिन सारिका ने घर के सभी सदस्यों के सामने सुशांत के दूसरा विवाह का प्रस्ताव रखा। घर का कोई भी व्यक्ति सुशांत के दूसरे विवाह के लिए राजी नहीं था। सुशांत तो एकदम गुस्से में सारिका से बोला हमारे प्यार ने तुम्हें एकदम बिगाड़ दिया है, जो इस तरह के उल्टे सीधे फैसले लेने लगी हो।
मैं किसी भी कीमत में दूसरा विवाह नहीं कर सकता। सुशांत ने दो टूक जवाब दे दिया।
अब सारिका दिन रात अपने ससुराल वालों एवं सुशांत को मनाने लगी….. तरह-तरह के तर्क देकर आखिर उसने अपने ससुराल वालों को मना ही लिया। सुशांत को मनाना थोड़ा मुश्किल हो रहा था।
एक दिन अंदर से दरवाजा बंद करके सारिका एक कमरे में बंद हो गई। बोली जब तक सुशांत हांँ नहीं करेंगे, मैं दरवाजा नहीं खोलूंगी। दो दिन हो गये बिना खाए पिए कमरे में बंद रही। आखिर सुशांत ने उसके फैसले के आगे घुटने टेक दिए।
सुशांत ने भी एक शर्त रखी…. कहा तुम मेरी पहली और आखरी पसंद बनकर रहोगी । अब तुम्हें जो करना है करो।
सारिका ने मामा को विवाह के लिए अपने घरवालों की रजामंदी की बात बताई। मामा के सुर बदल गए, बोले एक विवाह के रहते मैं अपनी बेटी का विवाह नहीं करूंँगा।
सारिका ने कहा ठीक है हम सुशांत को तलाक दे देते हैं। मामा अपनी बेटी के भविष्य के विषय में सोच कर इस बात के लिए हामी भर दी। अब सारिका के सामने बहुत बड़ी मुश्किल थी कि सुशांत उसे तलाक दे। सुशांत बिल्कुल भी तैयार नहीं था…. लेकिन सारिका ने कहा कि वह इसी घर में रहेगी…. मामा के खातिर मान जाओ और उसने हाथ जोड़ लिए।
उसकी आंखों में आंसू थे। सुशांत ने तलाक नामा पर हस्ताक्षर कर दिए। सुशांत मन से बहुत दुखी था लेकिन वह सारिका के कहने पर यंत्रवत सब कुछ कर रहा था।
अब मामा की तरफ से रजामंदी हो गई। विवाह की शुभ घड़ी देखकर साधारण तरीके से विवाह संपन्न हुआ। नीलू अपने ससुराल आ गई। सारिका पूरी शादी में खूब धमाचौकड़ी मचा रही थी। जैसे उसकी मन की मुराद पूरी हो गई हो।
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दूसरे दिन रिसेप्शन था। सारिका सभी मेहमानों का हंँसते मुस्कुराते हुए खूब जोर शोर से स्वागत कर रही थी। आज यह देखकर समझ पाना मुश्किल था, कि दुल्हन कौन है? सारिका एकदम दुल्हन की तरह सजी थी। नीलू सारिका को देखकर बोली दीदी तुम पहले के जैसी दुल्हन लग रही हो। सारिका ने नीलू का माथा चूम लिया और कहा…. तुम इस घर की नई बहू हो। तुम इस घर को वैसे ही संवारना जैसे मैंने संवार रखा है।
नीलू बोली दीदी आप हुकुम करते रहना मैं वैसे ही करती रहूंँगी। मुझे कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि तुम मेरे साथ हो। नीलू बोली और दोनों हँसने लगी।
सभी मेहमान चले गए… तब नीलू को उसकी सुहाग की सेज पर सारिका ने बैठाया और कहा सुशांत का हमेशा ख्याल रखना। नीलू बस मुस्कुरा दी। सारिका सुशांत का जबरदस्ती हाथ पकड़ कर उसे कमरे में छोड़ आयी। इसके बाद सारिका दूसरे कमरे में चली गई।
सारिका के सामने अपना शुरु से लेकर अब तक का वैवाहिक जीवन चलचित्र के समान घूमने लगा । कितनी खुश थी जब इस घर में आई थी। आज उसने अपने पति को किसी और के सुपुर्द कर दिया। सोच कर उसकी आंखें डबडबा गई। सोचते-सोचते सोचते पता नहीं कब उसकी आंँख लग गई?
सुबह उसकी सास ने दरवाजा खटखटाया लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई। काफी देर खटखटाने के बाद घर के सभी लोग इकट्ठा हो गए। सुशांत जोर-जोर से सारिका सारिका चिल्ला रहा था, लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई ।
सुशांत ने दरवाजे को तोड़ दिया… अंदर का नजारा देखा तो सबके मुंँह से चीख निकल गई। सारिका दुल्हन के भेष में आंँख बंद करके लेटी हुई है। कोई उत्तर नहीं मिला तो तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया ।
डॉक्टर ने उसे मृत घोषित करार दिया। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार उसकी स्वभाविक मृत्यु थी। नीलू खूब चिल्ला- चिल्ला कर रो रही थी।
दीदी यह कैसे हो गया?
मैं तो तुम्हारा आंचल पकड़ कर इस घर में आई थी। मैं जिंदगी भर तुम्हें बड़ी बहन का ही सम्मान देती रहती । यह तुमने क्या किया।
सुशांत की हालत पागलों की जैसी हो गई थी। वह चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा था- सारिका तुमने हमेशा अपनी ही जिद रखी।
कहते हैं वक्त सभी के बड़े से बड़े घाव भर देता है धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा। सुशांत को संभलने में थोड़ा वक्त लगा ।
हर समय सारिका की यादों में खोया रहता। नीलू ने सारिका के जैसे पूरे घर को संभाल लिया था….. सारिका जैसी वह भी सबकी लाडली और दुलारी थी।
दो साल बाद उस घर में एक बेटी ने जन्म लिया,जो बिल्कुल हुबहू सारिका जैसी थी। नीलू उसे देख कर यही कहती दीदी तुम मेरे आस-पास ही हो…. हमेशा मेरा हौसला बनाए रखना। नीलू ने उस बेटी का नाम निहारिका रखा। नीलू और सारिका की बेटी है निहारिका।
– सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
स्वरचित, मौलिक
हल्दिया, पूर्व मेदिनीपुर, पश्चिमबंगाल
#घर की इज्जत