एक अनकही दोस्ती – विवेक सूद : Moral Stories in Hindi

ज़िंदगी में कुछ रिश्ते अचानक बनते हैं, जैसे हवा में कोई सुगंध फैल जाए और आप इसे महसूस किए बिना नहीं रह पाते। ऐसा ही रिश्ता मेरी और सिया की दोस्ती का था। मैं ऑफिस में एक टीम मैनेजर था और वह मेरी टीम में नई ट्रेनी। धीरे-धीरे हमारी बातचीत बढ़ी और दोस्ती का रिश्ता गहराने लगा।

वह पीठ दर्द से जूझ रही थी, इसलिए डॉक्टर ने उसे झटके से बचने की सलाह दी थी। मेरी कार थी, तो मैंने उसे रोज़ घर छोड़ने का ज़िम्मा ले लिया। उसका घर मेरे घर से चार किलोमीटर दूर था, लेकिन उसकी कंपनी मुझे अच्छी लगने लगी थी। ऑफिस की बातें, बॉस की चुगली और हमारी छोटी-छोटी चर्चाएँ दिन को हल्का बना देती थीं।  

उस समय व्हाट्सऐप का दौर नहीं था। हम एसएमएस और गूगल चैट पर भी खूब बातें करते। वह मेरी पत्नी से भी मिल चुकी थी और उन्हें “दीदी” कहने लगी थी। इससे उसने मुझे “जीजू” और बॉस दोनों बना लिया था। उम्र में दस साल बड़ होने के बावजूद हमारी बातचीत में दोस्ती और सहजता थी।  

हालांकि, ऑफिस में लोग हमारे रिश्ते को लेकर बातें करने लगे, लेकिन हमें इससे फर्क नहीं पड़ा। लेकिन धीरे-धीरे मुझे अहसास हुआ कि शायद सिया इस दोस्ती का इस्तेमाल ऑफिस में अपनी छवि और काम में फायदा उठाने के लिए कर रही थी। मैंने उसकी गूगल चैट पर नज़र रखनी शुरू की और पाया कि वह अपने कई पुराने दोस्तों और क्लाइंट्स के साथ भी फ्लर्ट कर रही थी।  

एक दिन मैंने उसकी चैट पढ़ी, जिसमें वह अपने स्कूल के दोस्त से flirt कर रही थी और खुद को आकर्षक बनाने की बातें कर रही थी। यह देखकर मैं हैरान रह गया। इतने भोले चेहरे वाली लड़की के इस पक्ष को देखकर मुझे झटका लगा।  

उसने बताया कि उसका एक पुराना दोस्त, मयंक, भारत आया हुआ है और वह उससे मिलने जा रही है। मैंने सहजता से इजाज़त दी, लेकिन कुछ दिनों बाद मैंने उसके फोन में मयंक के साथ तस्वीरें देखीं। मुझे खलने लगा कि उसने मुझे यह बात क्यों छिपाई। फिर उसने ऑफिस छोड़ा और बताया कि वह मयंक से शादी कर रही है। उसने मुझे शादी में आने का न्योता देने का वादा किया।  

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शादी का कार्ड मुझे डाक से मिला। इसमें सिर्फ शादी वाले दिन का आमंत्रण था, बाकी किसी समारोह का जिक्र नहीं था। मुझे यह देखकर ठेस पहुँची। मैंने शादी में सिर्फ औपचारिकता निभाई, उसके माता-पिता से मिला, लेकिन सिया से नहीं।  

कुछ महीनों बाद उसने मुझसे शिकायत की कि मैं बाकी समारोह में क्यों नहीं आया। मैंने उसे सच बताया कि मुझे सिर्फ एक दिन का कार्ड मिला था। उसने यह मान लिया कि यह उसके पिता की भूल थी।  

इसके बाद वह कनाडा चली गई और सोशल मीडिया पर अपने नए जीवनशैली की खूब तस्वीरें पोस्ट करने लगी। एक दिन मैंने उसकी तस्वीर पर मज़ाक में एक टिप्पणी की, जिसमें मैंने उसे “सर्फ एक्सेल से भी सफेद” कहा। उसने जवाब में लिखा कि मैं उससे जलता हूँ।  

यह बात मेरे लिए किसी बम के धमाके जैसी थी। उसने मुझे सार्वजनिक रूप से अपमानित किया, और यह बात मेरे परिवार, दोस्तों, और सहयोगियों ने भी देखी। मैंने उसे अपने जीवन से पूरी तरह हटा दिया।  

आज भी, जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो यह सवाल मुझे परेशान करता है – ऐसा क्या हुआ कि उसने मुझे जलन का कारण समझा? मैंने तो हमेशा उसका भला चाहा था। शायद कुछ रिश्ते सिर्फ सबक देने आते हैं।

  

विवेक सूद

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