दिल्ली से रक्षा बुआ के आते ही दोनों बच्चे बुआ के पास दौड़े चले आए। आठ साल का सोहम और छह साल की सलोनी कल से बुआ के आने का इंतज़ार कर रहे थे। और हो भी क्यों न! आखिरकार बुआ शादी के बाद पहली बार जो आ रही थीं।
“बच्चों, बुआ अब आ गई हैं और कुछ दिन यहीं रहेंगी। बुआ को फ्रेश होने दो फिर बैठकर ढेर सारी बातें करेंगें।” बच्चों की दादी रमा जी ने दोनों को समझाया।
“ठीक है दादी।” कहकर बच्चे आंगन में जाकर खेलने लगे
“रक्षा बेटी बताओ, रोहित जी कैसे हैं? तुम्हारी ससुराल में सब कैसे हैं? तुम्हारा ध्यान रखते हैं?”
“हाँ माॅ॑, सब अच्छे हैं और मेरा खूब ख्याल भी रखते हैं। आखिर इकलौती बहू हूँ मैं।”
“ये तो बहुत अच्छी बात है।” रमा जी खुश होकर बोली।
“माँ, रक्षा आ जाइये। चाय नाश्ता लगा दिया है।”नीलम ने चाय डाइनिंग टेबल पर रखते हुए कहा।
“आ ही गए हम लोग।” रमा जी पैरों में चप्पल डालते हुए बोली।
चाय का प्याला उठाते हुए रक्षा ने कहा,”माँ, भैया को फोन कर बाजार से मेरे लिए फेसवाश और ग्रीन टी मँगवा लेना।”
“रक्षा, नीलम ने नया साबुन निकाल दिया है तुम्हारे लिए। और ग्रीन टी क्यों, रेगुलर चाय छोड़ दी क्या तुमने?”
“हाँ माँँ। अब मैं ग्रीन टी ही लेती हूँ। एंटीऑक्सीडेंट है, आप भी लिया करो।” रक्षा बोली।
“ठीक है बेटा तुम्हारे लिए मंगवा दूंगी बाकी देखेंगे।” रमा जी ने बात टालते हुए कहा।
चाय नाश्ते के बाद रक्षा नीलम से बोली, “भाभी, खाने में तेल कम रखना और सूप व सलाद जरूर बनाना। “
रमा जी बोली, “रक्षा, तुम्हें तो पता ही है हम कम तेल घी का प्रयोग करते हैं।तुम शायद भूल गई हों कि तुम्हारे पापा को हाई ब्लड प्रेशर रहता है।”
इतने में सोहम और सलोनी खेल कर आ गए। बुआ को घेर कर बातें करने लगे, “पता है बुआ इस बार हम दोनों के परीक्षा में अच्छे नम्बर आए हैं। हम दोनों ने पोस्टर प्रतियोगिता में भाग लिया है। “
रक्षा खुश होकर बोली, “बढ़िया बात है। तुम लोगों को क्या चाहिए, बताओ।”
नीलम बीच में ही बोली,”तुम्हारे भैया ने बोर्ड गेम्स दिला दिए हैं। “
“अरे भाभी, आप लोगों ने वो ही कॉमन गेम्स दिलाए होंगे। ये देखो बच्चों मैं तुम लोगों के लिए फॉरेन के गेम्स लाई हूँ। रोहित के एक दोस्त विदेश गए थे, उन्हीं से तुम दोनों के लिए मँगवाए हैं।”
रक्षा इसी तरह पूरे दिन भर अपने ससुराल की अमीरी का गुणगान करती रही और बात बात में यहाँ के लोगों को खान-पान से लेकर रहन-सहन तक बदलने को कहती रही।
रमा जी को लग ही नहीं रहा है कि ये वही रक्षा है जो इस घर में पली-बढ़ी है।
रात में सोते समय नीलम, रक्षा और रमा जी के लिए दूध लेकर आई। रक्षा बोली,”भाभी, बुरा मत मानना पर दो दिन बाद रोहित आ रहे हैं। तो उनके सामने आप व बच्चे ढंग के कपड़ें पहनना। ये सूती कपड़ें न लटका लेना।”
असल में गर्मी शुरू हो चुकी है तो यहाँ सब कॉटन पहनना पसंद करते हैं।
आगे बोली रक्षा, “माँ, आप और पापा भी।”
अब रमा जी से रहा नहीं गया। वो बोली,”रक्षा, कौन सा मौसम चल रहा है?”
“गर्मी का” रक्षा ने कहा।
“तो बेटा हम कॉटन के कपड़े इसलिए पहन रहे हैं ताकि पसीना न मरे। और ये कपड़ें गर्मी के लिए उपयुक्त हैं। किचन में भी सूती कपड़ा पहनना चाहिए।”
रक्षा की बोली में तरस का भाव आ गया वह तरस खाने वाले अंदाज़ में बोली, “हाँ माँ, समझ सकती हूँ यहाँ एसी भी तो नहीं है और हमारे यहाँ तो नौकर खाना बनाते हैं। आप लोगों की मजबूरी है।”
रमा जी ने कहा,” बेटा मैं सुबह से देख रही हूँ। तुम हर बात में अपने ससुराल से हम लोगों की तुलना कर रही हो। ये ठीक बात नहीं है। यहाँ हम सब और बच्चे भी तुम्हारे आने से कितना खुश हैं पर अब मुझे तुम्हारी बातों से अहंकार की बू आ रही है।”
थोड़ा ठहर कर वो बोली,”माना ये अच्छी बात है कि तुम ने अपने ससुराल को अपना लिया है। पर शायद अपनी विनम्रता खो दी है। यदि तुम ही अपने भाई-भाभी, माँ-पिता की रहन-सहन से लेकर खान-पान में कमियाँ निकालोगी, हर चीज पर टीका टिप्पणी करती रहोगी तो कल को हमारे दामाद भी इज्ज़त नहीं ना करेंगें हम लोगों की। ससुराल में मायके को नीचा गिराकर तुम ऊँची नहीं उठ जाओगी। बचपन से जो देखा तुमनें वो अचानक से गलत कैसे हो गया? यहीं रहकर पली-बढ़ी हों तुम तो अचानक से हरेक में कमी कैसे नज़र आने लगी तुम्हें? तुम्हारी नज़रों में मायके का मान सम्मान कुछ है कि नहीं?”
रमा जी ने थोड़ी कड़क आवाज में आगे कहा,”और हां, सभी घर अपने हिसाब से चलते हैं। ये याद रखना।”
नीलम अवाक् खड़ी अपनी सास का यह रूप देख रही है। सुबह से उसे भी रक्षा की बातों से उलझन तो हो ही रही थी।
रक्षा को भी उसकी माँ के समझाने से यह अच्छी तरह समझ में आ गया कि अहंकार से बात नहीं बनती है। हर घर का अलग हिसाब होता है। और सबसे बड़ी बात अपने मायके को नीचे गिराकर वो ना तो यहाँ
और ना ही अपनी ससुराल में ऊपर उठ सकती है। दोनों घरों का मान रखना होगा।
माॅ॑ की बातें थोड़ी कड़वी जरूर लगी रक्षा को परंतु पलक झपकते ही उसे अपनी सोच पर शर्मिंदगी का एहसास करा गई। शायद अब वो मायके के हर व्यक्ति, व्यवस्था, काम या वस्तु के बारे में टीका टिप्पणी करने से पहले दस बार सोचें…
लेखिका की कलम से
दोस्तों, क्या आपने भी ऐसा कुछ देखा है कि शादी होते ही लड़की के तेवर ही बदल जाएं और बात बात में मायके का अपमान करने लगे।
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धन्यवाद
-प्रियंका सक्सेना
(मौलिक व स्वरचित)
#अपमान