कोमल शुरू से ही संयुक्त परिवार में रहती आई थी और चाहती थी कि उसे ससुराल भी ऐसा ही मिले । जब उसके लिए रमन का रिश्ता आया तो उसके परिवार के बारे में सुनकर कोमल खुश थी ।कोमल को उसकी इच्छा अनुसार भरा पुरा ससुराल मिला था । ससुराल में सास तनुजा जी, ससुर विजय जी , दो शादी शुदा ननदें और उसकी दादी सास भी थी।
लेकिन जब से वो ससुराल आई उसे वहां का माहौल अजीब सा लगता था । घर में सिर्फ कोमल की सास तनुजा जी की ही चलती थी। वैसे तो ससुर जी और कोमल के पति रमन दोनों हीं अच्छी पोस्ट पर थे लेकिन घर खर्च बस तनुजा जी की देख रेख में हीं होता था। कोमल को भी यदि कुछ लेना होता था तो उसे अपनी सास से ही पैसे मांगने पड़ते थे। इस हिचकिचाहट में वो कई बार मन मारकर ही रह जाती थी।
कोमल की दादी सास कोमल को बहुत प्यार करती थीं लेकिन वो बहुत चुप चुप सी रहती थीं । सोसायटी में उनकी उम्र की सभी औरतें कभी सत्संग तो कभी पार्क में जाती रहती थीं लेकिन दादी हमेशा घर में हीं रहती थीं। हां बालकनी से उन औरतों को घूमते फिरते देखती रहती थीं।
एक दिन कोमल उनके बालों में तेल लगा रही थी तो उसने पूछ लिया ,” दादी, आप भी कहीं बाहर क्यों नहीं जातीं । आपके उम्र की सभी औरतें तो रोज पार्क और मंदिर जाती हैं । थोड़ा घूमना फिरना सेहत के लिए भी अच्छा होता है ।”
कोमल की बात सुनकर दादी उदास होकर बोली, ” बहू, पहले मैं भी उनके साथ हर जगह जाती थी। हमारी पूरी टोली थी। हम हर हफ्ते मंदिर में गरीबों के लिए छोटा सा भंडारा भी रखते थे । कभी गरीब बच्चों को कापी किताबें बांटते थे। बहुत अच्छा लगता था लेकिन …. “
“लेकिन क्या दादी ? “कोमल ने आश्चर्य से पूछा ।
“बहू इसके लिए हम सारी औरतें अपनी अपनी तरफ से पैसे जमा करती थीं । लेकिन जब मैं तेरी सास से इसके लिए पैसे मांगने लगी तो वो हमेशा यही कहती, ” इतनी मंहगाई में ये फिजूलखर्ची करने की क्या जरूरत है?? ये तो आपका रोज का काम हो गया।”
बस बहू रोज रोज बहू के सामने हाथ फैला कर दान करने का क्या फायदा ?? इसलिए मैंने अपनी टोली हीं छोड़ दी । अब सारी औरतें पैसे इकट्ठा करें और मैं ना दूं तो अच्छा नहीं लगता ना।
ये सब कहते हुए दादी के मन की दशा कोमल उनके चेहरे पर साफ देख रही थी। उसे सच में बहुत बुरा लग रहा था। क्या घर के सबसे बड़े सदस्य को भी अपनी छोटी छोटी जरूरतों और इच्छाओं को मारना पड़ता है ?? और वो भी तब जब उनके बेटे पोते सामर्थ्यवान हों!!
अगले महीने कोमल के ससुर विजय जी अपनी तनख्वाह लेकर आए तो तनुजा जी ने सारी तनख्वाह लेकर अपने पास रख ली…. फिर जब उनका बेटा रमन अपनी सैलरी लेकर आया तो तनुजा जी बोलीं, ” बेटा, लाओ तुम्हारी तनख्वाह भी दे दो…..। ,,
रमन जैसे ही अपनी माँ को अपनी तनख्वाह पकड़ाने लगा कोमल ने झट से रमन के हाथों से सारे पैसे झपट लिए …. ये देखकर तनुजा जी गुस्से में बोलीं, ” बहू…. ये क्या बदतमीजी है?? “
” क्योंं मम्मी जी, पति की तनख्वाह पर तो पत्नी का हक होता है ना?? ” कोमल बोली।
” बड़ी आई तुम हक जताने वाली!! ये मत भूलो की तुम्हारे पति को मैंने हीं पाल पोसकर कमाने लायक बनाया है।” तनुजा जी आंखें निकालते हुए बोलीं…।
” अच्छा!!!! तो फिर क्या मम्मी जी ससुर जी को भी आपने हीं पाल पोसकर कमाने लायक बनाया था?? ” कोमल भोला सा चेहरा बनाकर बोली।
” ये क्या बोल रही हो बहू… आज तो तुमने बदतमीजी की हद कर दी…. कैसी बेतुकी बातें कर रही हो..??” तनुजा जी गुस्से से बोलीं।
“तो फिर मम्मी जी, आप हीं बताइये… जब रमन की तनख्वाह पर आपका हक है तो क्या पापा जी की तनख्वाह पर दादी जी का कोई हक नहीं है?? उन्होंने भी तो पापा जी को पाल पोषकर कमाने लायक बनाया था… लेकिन अब वो हीं अपनी छोटी मोटी जरूरतों के लिए आपपर निर्भर हो गई हैं… क्या वो अपनी इच्छा से कुछ दान पुण्य भी नहीं कर सकतीं?? जबकि उनके बेटे पोते अच्छा खासा कमाते हैं ??”
कोमल की बात सुनकर विजय जी और रमन दोनों ही तनुजा जी का मुंह ताकने लगे… विजय जी गुस्से में बोले.., ” रमन की माँ, बहू ये क्या बोल रही है?? क्या तुम माँ को खर्चे के लिए कुछ भी नहीं देती??
मैं तुम्हें सारी तनख्वाह लाकर इस भरोसे से तुम्हारे हाथ में देता हूँ कि तुम पूरे परिवार का ख्याल रखोगी और सही जगह उनका इस्तेमाल करोगी… लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि तुम मेरी माँ को भी उनके जेब खर्च के लिए पैसे ना दो….. अब से मैं खुद अपनी माँ को उनका जेब खर्च दिया करूँगा…”
तनुजा जी की नजरें नीचे झुक गई थीं…. आज कोमल की चतुराई और पति के गुस्से ने उनकी आंखें चार कर दी थीं।
कोमल रमन की तनख्वाह के सारे पैसे अपनी सास के हाथों में रखते हुए बोली , ” माफ कीजिये मम्मी जी, मुझे आपके बेटे की तनख्वाह नहीं चाहिए क्योंकि मेरे पास आपके जितना घर चलाने का अनुभव नहीं है… मैं तो बस दादी जी को उनका हक देने के लिए ये नाटक कर रही थी। मम्मी जी , दादी जी घर की सबसे बड़ी हैं
और यदि वो अपने मन की शांति और खुशी से कुछ करना चाहती हैं तो ये तो उनका हक है। उनके किये दान पुण्य का फल आखिर इस परिवार को हीं तो मिलता है । फिर उनका हाथ रोककर आप पाप की भागीदार क्यों बन रही हैं ??”
तनुजा जी को आज अपनी ग़लती का एहसास हो गया था। उन्हें समझ आ गया कि जिस तरह वो अपनी सास से व्यवहार कर रही हैं कल को यदि उनकी बहू भी उनके साथ ऐसा व्यवहार करेगी तो उनपर क्या गुजरेगी ?? उन्होंने दादी से भी माफी मांगी। दादी नम आंखों से कोमल को ढेरों आशीर्वाद दे रही थीं।
लेखिका : सविता गोयल