मन का रिश्ता – दीपा माथुर : Moral Stories in Hindi

आज मौसम बहुत सुहाना हो रहा था।

मानसून की दस्तक प्रारम्भ हो गई थी।

रात तो मेंढक की ट्रर र र र र की आवाजे आने लगी।

सुबह होते ही हर्षित बोले सुहानी आज सन्डे है।

चलो घूमने चलते है।

सुहानी बोली ” हां हां आज तो मजा आ जाएगा ।

ऐसा करते है यहां से तो मसूरी पास में वहीं चलेंगे।

हा यार  बिजनेस की वजह से समय ही नहीं मिला

पर इतना डिप्रेशन में आ गया हूं।

अब तो घूमने चलेंगे तभी फ्रेश होंगे।

चलो तो मैडम जी पैकिंग कर लो ।

ओके

और दोनों तैयार होकर निकल पड़े।

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शहर से बाहर निकलते ही मौसम की रंगत और भी अदभूत हो गई।

गाड़ी रोकने की जहमत उठाइए प्लीज हर्षित ?

जिद्द करती हुई सुहानी  बोली ” क्यों?

देखो ना उस वृक्ष पर मोर बैठे है ।

कैसे पीहू हू ,पीहू हूं कर रहे है एक फोटो प्लीज।

पर बारिश हो रही है भीग जाओंगी ।

हर्षित मुस्कुराता हुआ बोला।

गाड़ी रुकते ही सुहानी ड्राइवर सीट के पास आई ओर हर्षित का हाथ पकड़ कर बाहर खिचने लगी ।

आ जाओ हर्षित अरे यार कपड़े चेंज कर लेंगे इतना सुहाना मौसम इतनी हरियाली तुम्हारी सुहानी तो मजे लेकर रहेंगी।

गाड़ी को एक तरफ खड़ी कर दोनो मौसम का लुफ्त उठा रहे थे।

आस पास के खेत पेड़ो के झुरमुट जिस पर गिलहरियां

आती खेतो से दाना चुगती और सर र र से दूसरे वट वृक्ष

की डाली पर बैठ कर आगे वाले पैरो को कटोरी का सा आकार देकर चुगती फिर इधर उधर देखती फिर भाग जाती।

पक्षियों की चहचाहट ,गिलहरियों की सरसराहट देखते ही बन रही थी।

तभी सुहानी की नजर एक बच्ची पर पड़ी।

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करीब पांच छह वर्ष की होंगी छोटा सा घास का बंडल सिर पर रख कर मटक मटक कर चल रही थी।

सुहानी ने चहकते हुए बोली देखो कितनी प्यारी बच्ची है।

मै इसके साथ फोटो  खिचवाऊंगी।

शायद उसने सुन लिया था ।

पेड़ की ओट में छुप गई ।

सुहानी की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी।

और वो छोटे छोटे दोनों हाथो से मुंह को ढ़क रही थी और दो अंगुली के बीच में दरार कर आंखो से झाक रही थी जैसे ही सुहानी की नजर पड़ती वैसे मुंह ढक लेती।

ये सारा सीन हर्षित के कमरे में दर्ज हो रहा था।

तभी एक बुढ़िया माई चिल्लाती हुई आई  ” अरे छोरी कहां गई चारा कहां है ,मेरी गाय भूखी मर रही है।

तनिक काम का सहारा नहीं है।

जैसे ही काकी की नजर सुहानी ओर हर्षित पर पड़ी।

सहरी हो?

चल री चीनू दस बार कहां है इन सहरी लोगो से दूर रहा कर।

बड़े खराब होते है।

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उठा कर ले जाएंगे।

काकी चीनू का हाथ पकड़े खींच रही थी और चीनू चलते चलते ही पीछे सुहानी हर्षित को देख देख का मुस्कुरा रही थी।

उसका गोल गोल चेहरा , सावला रंग ,बिखरी जुल्फे

मन को भा सी गई थी ।

लग रहा था कि ये चेहरा सिर्फ मुस्कुराने के लिए ही बना हो।

सुहानी काकी के पीछे पीछे चलने लगी।

पानी पीना है? काकी ने पूछा।

सुहानी ने ना चाहते हुए भी हा भर दी।

लो बैठो इस खटिया पर भले घर के लगते हो पर क्या करू लड़की जात ठहरी तनिक चुकी तो ना जाने क्या हो जाय।

इसीलिए भरोसा नहीं करती।

अरी गाउरी इधर आ चारा खा ले भूखी हो गई होंगी।

उन्हीं  गंदे हाथो से पानी पकड़ा दिया।

हर्षित बोला मांजी यहां अकेली रहती हो क्या?

पर काकी अपनी धुन में बोले जा रही थी।

यह गौरी भी मेरे बिना एक पल नहीं रहती।

अब मुझे सुनता नहीं है ये चीनू बोल नहीं सके है।

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बीच बीच में चूल्हे में लकड़ी डाल कर  गोल गोल पाईप से फुक मार रही थी।

पेट और पीठ दोनों चिपके पड़े थे।

एक बेटा है सहर में रहता है।

ये चीनू तो अनाथ है । मां तो बीमारी से मर गई।

बाप किसी गाड़ी के नीचे आ गया।

छोटा ले गया था इसे पर बीमार हो गई।

डॉक्टर ने कहा है अब कुछ दिन और जीएगी।

मै भी इंतजार ही कर रही हूं कब भगवान इसकी आंखे बंद करे फिर मै चैन से  मरूंगी।

सुहानी ओर हर्षित स्तम्भ रह गए काकी बोलने से थक नहीं रही थी।

सुहानी की आंखो से आंसू गालों पर लुढ़कने लगे थे।

बहुत बोझिल मन से खड़े हो गए।

वहां से निकल ही रहे थे कि आवाज आई।

” ओ सहरी बाबू नैक दिल के लगते हो तनिक मेरी चीनू को गाड़ी में बिठा कर घुमा लाओ इसकी नज़रे हमेशा गाड़ी पर ही टिकी रहती है।

कब सास रुक जाए बैचारी की जरा घुमा दो।

हर्षित सुनते ही चीनू की तरफ दौड़ा गोद में उठा लिया।

तभी काकी बोली अरे नीचे उतार दो बाबू तुम्हारे कपड़े मेले हो जायेगे।

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इसके हाथ पैर गोबर और मिट्टी से सने है।

पर हर्षित ने एक नहीं  सुंुनी ।

चीनू को गाड़ी में बिठाया साथ में सुहानी बैठ गई।

काकी बहुत खुश हुई।

आज हर्षित को महसूस हुआ “हर ख्वाहिश अधूरी है जब तक किसी गरीब के बच्चे को ना हसाया जाए।

मसूरी घूम कर आते ही सुहानी चीनू के लिए कपड़े ,

खिलौने लेकर आई थी ।

जैसे ही गाड़ी रुकी नजर चीनू को और काकी को ढूंढने लगी।

पर वहा खड़े एक मानुभाव ने बताया कि दो दिन पहले दोनों दादी पोती चल बसे।

पर हर्षित और सुहानी को हर हाल में खुश रहने की सीख दे गए थे।

दीपा माथुर

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