आत्म-सम्मान की सीमा – पूजा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

रचना के जीवन में यह घटना एक ऐसे अंधेरे पलों में आई, जिसे वह कभी भूल नहीं सकती। कोचिंग से लौटने के बाद जब वह अपने कमरे में गई, तो गुस्से और दुःख से भर गई थी। उसने अपना बैग मेज पर फेंका और कुर्सी पर थक कर बैठ गई। उसकी आंखों में अपार गुस्सा और निराशा झलक रही थी। आज जो कुछ उसके साथ हुआ, उसने उसके दिल में एक गहरी चोट पहुंचाई थी।

रचित, जो उसका सबसे करीबी दोस्त था, जिस पर उसने भरोसा किया था, आज उसने उसकी मित्रता का सबसे घिनौना अपमान किया था। उसे याद आ रहा था कि कैसे उसकी शक की एक नजर ने आज उसे एक बड़े हादसे से बचा लिया। रचित उसके लिए सिर्फ एक दोस्त ही नहीं, बल्कि भाई की तरह था। उसके परिवार में सभी को उस पर विश्वास था। कई बार कोचिंग से देर हो जाने पर वह रचित के साथ ही स्कूटी पर घर लौट आती थी। उसे कभी ऐसा नहीं लगा था कि रचित उसे गलत नजर से देखता होगा, लेकिन आज की घटना ने उसकी सोच को झकझोर कर रख दिया था।

आज दोपहर रचित ने कहा था कि उसे अपने दोस्त मनोज के घर से कुछ नोट्स लेने हैं, और वह भी साथ चल सकती है। रचना ने सोचा कि अगर कोई भी काम जल्दी निपट जाता है, तो ठीक ही है। मनोज का घर भी नजदीक ही था। जैसे ही वे मनोज के घर पहुंचे, रचित ने स्कूटी से उतरते ही उसकी बांह पकड़ ली। रचना को यह हरकत अजीब लगी, लेकिन उसने उसे नजरअंदाज कर दिया और मनोज के घर के अंदर चली गई। मनोज के घर में उस वक्त कोई नहीं था; सब शादी में गए हुए थे। रचना ने मनोज से कहा कि उसे जल्द ही नोट्स देकर जाने दें।

लेकिन रचित ने उसे वहीं रोककर कोल्ड ड्रिंक पिलाने का आग्रह किया। उसने रचना से कहा, “यार, कोल्ड ड्रिंक तो पी लो।” रचना ने कोल्ड ड्रिंक पीने से मना कर दिया, लेकिन दोनों दोस्त उसे पीने के लिए जोर देने लगे। रचना को कुछ अजीब लगा। उसे अचानक से कई बातें याद आ गईं कि कैसे कई बार ऐसे हालात में लड़कियों के साथ गलत होता है। उसने गिलास की ओर देखा और उसे पीने से मना कर दिया। जब उन्होंने और दबाव डाला तो उसने गुस्से में गिलास को एक झटके में फैला दिया और उठकर जाने लगी। तभी रचित ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसे रोके रखने की कोशिश की।

रचना के मन में एक तूफान उठ गया। उसे गुस्सा और डर दोनों महसूस हो रहे थे। उसने रचित को धक्का दिया और तेजी से दरवाजे की ओर भागी। उसने किसी तरह अपना आपा नहीं खोया और बाहर की तरफ भागने लगी। किस्मत से, उसे सड़क पर एक ऑटो रिक्शा नजर आया, और वह बिना किसी देरी के उसमें बैठ गई। घर पहुंचते ही उसकी आंखों में आंसू थे। उसके दिल में जैसे किसी ने खंजर घोंप दिया था। उसका विश्वास टूट चुका था। रचित, जिसे वह अपने भाई जैसा मानती थी, ने उसे धोखा दिया था।

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कमरे में जाकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। इतने में उसकी भाभी अंदर आई और उसे इस हाल में देखकर हैरान रह गईं। रचना उनसे लिपट गई और उसे अपने दिल की बात कह दी। वह डरी हुई थी कि अगर इस घटना के बारे में उसके पापा या भाई को पता चला, तो वे उसे कोचिंग नहीं जाने देंगे। वह जानती थी कि अब परीक्षा का आखिरी समय चल रहा है, और अगर वह कोचिंग नहीं जा पाई तो उसकी तैयारी पर असर पड़ेगा। भाभी ने उसे ढांढस बंधाया, लेकिन रचना का दिल अभी भी चोटिल था।

अपने को थोड़ा संयत करने के बाद जब वह पानी पी रही थी, तो भाभी ने अचानक पूछ लिया, “तुम लोग सिर्फ दोस्त हो, या तुम दोनों के बीच कुछ और भी है?” भाभी के इस सवाल ने उसके दिल को और आहत कर दिया। वह अवाक रह गई। क्या भाभी को भी उसकी पवित्र दोस्ती पर शक था? क्या अब कोई भी इस दोस्ती को समझने वाला नहीं था? उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे अपनी सफाई दे, अपने रिश्ते की पवित्रता को साबित करे। उसे लगा जैसे अपने ही उसे समझने के बजाय उस पर संदेह कर रहे थे।

इस घटना ने रचना के दिल और दिमाग में एक गहरा घाव छोड़ दिया था। वह सोचने लगी कि क्या वाकई एक लड़का और लड़की के बीच सच्ची दोस्ती नहीं हो सकती? क्या समाज हमेशा इसे गलत नजरों से ही देखेगा? अपने भीतर की पीड़ा को दबाने की कोशिश करते हुए वह खुद को संयत करने की कोशिश कर रही थी।

पर वह जितना संयत होने की कोशिश करती, उतना ही उसके अंदर की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। क्या एक लड़की को अपने दोस्त पर इतना भी भरोसा नहीं करना चाहिए? यह सवाल उसे अंदर ही अंदर कुरेद रहा था। उसे लगने लगा कि समाज का यह दोहरा मापदंड लड़कियों की आजादी और उनके आत्मसम्मान पर सवाल उठाता है।

रचना ने उस रात अपने भीतर की सारी उलझनें, दर्द और पीड़ा को कागज पर उतारने का निश्चय किया। वह जानती थी कि शब्दों के माध्यम से ही वह खुद को समझा पाएगी। उसने एक डायरी निकाली और लिखना शुरू किया, “आज मुझे यह अहसास हुआ कि दोस्ती में भी शर्तें और सीमाएं हैं, जो समाज तय करता है। क्यों एक लड़की और एक लड़के के बीच पवित्र दोस्ती नहीं हो सकती? क्यों हर रिश्ते को गलत नजरों से देखा जाता है?”

उसने अपने विचारों को शब्दों में पिरोया और अपने मन का बोझ हल्का किया। लिखने के बाद उसे थोड़ी शांति महसूस हुई, लेकिन साथ ही एक ठोस निर्णय भी ले लिया कि अब से वह अपने जीवन के हर रिश्ते को बहुत सोच-समझकर चुनेगी। रचना ने यह ठान लिया कि वह किसी भी स्थिति में कमजोर नहीं पड़ेगी और अपनी आत्मसम्मान के लिए हमेशा खड़ी रहेगी।

इस घटना ने उसे सिखा दिया था कि हर रिश्ते में भरोसे और आत्म-सम्मान की सीमा होनी चाहिए, और उसे कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए।

मौलिक रचना 

पूजा मिश्रा

    कानपुर

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