दोस्ती – सुनीता मिश्रा

हम तीन, यानी मैं, प्रमिल और सुमित। कहते है तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा। पर यहाँ उल्टा था हम तीन तिगाड़ा काम सुधारा थे। प्रमिल सबसे होशियार, पढाई में अव्वल, अच्छा एथलीट, अच्छा वक्ता , गायक, बोले तो परफेक्ट परसन। सुमित एवरेज, और मैं सबमें फिसड्डी। पर दोस्ती में कोई अंतर नहीं। 5th क्लास से एक साथ। प्रमिल हमेंशा फ़र्स्ट आता। सुमित की सैकेण्ड ही रहती। और मेंरी किसी न किसी विषय में सपलिमेंटरी । पर दोस्ती का इससे कोई सम्बंध नहीं। यारो की यारी।

बगीचे के आम चुराना, लोगो के आँगन में लगे अमरूद के पेड़ पर पत्थर मारना। तालाब पोखर में तैरना। बेट बॉल पर चौके-छक्के मारना। एक दूसरे की गलती अपने सिर लेना। नई नई शैतानीयो को ईज़ाद करते थे। सुमित के घर के सामने वाले घर में मियां-बीवी रहते थे। वो अंकल बहुत तीखे स्वभाव के थे। हम लोग तो उनसे अक्सर डांट खाते थे। एक दिन तो गज़ब हो गया।

एक बूढ़ी अम्माँ ने उनके घर के बाहर लगे कनेर के पेड़ से फूल तोड़ लिये। बस फिर क्या अंकल ने उन्ह्रे इतना बुरा भला कहा की वो बिचारी रो पड़ी। सुमित ने हम लोगो से ये बात बताई। मुझे तो बहुत गुस्सा आ गया। प्लान बना, रात में हमने चुप चाप पेड़ो की डालियों को खीच खींच कर गिरा दिया।

सारे फूल तोड़ लिये सोचा कल अम्माँ को दे देंगे। मैंने ऊपर की डाली को पकड़ नीचे खींचा डाली खासी मोटी थी, उसने ही मुझे ऊपर खींच लिया। मैं आधा ऊपर लटक गया, डाली चर-मर आवाज के साथ नीचे गिरी और मैं धडाम से नीचे। आवाज सुन अंकल चोर चोर चिल्लाते बाहर निकले प्रमिल सुमित भाग गए, मेरा जो हाल हुआ, अंकल की शिकायत पर घर में, जो पिटाई की पिता जी ने, अगर माँ ने बीच बचाव न किया होता,

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तो शायद मैं ये कहानी लिखने के लिये आज ज़िन्दा न होता। मैंने अपने भगोड़े दोस्तो से कुट्टी कर ली। पर हम बड़े लोगो में थोड़ी न थे जो कुट्टी का अचार बनाकर खाते। दो दिन के अनबोले के बाद फिर जम गई तिकड़ी।

अब एक नया प्लान बना। मुहल्ले में एक लड़की, जिसे हम दीदी कहते थे, खूब प्यारी थी वो हमें चाकलेट के साथ एक चिट्ठी देती थी। हमें चाकलेट खुद खानी थी और पत्र कमल को देना था, जो दूसरे मोहल्ले में रहता था

हमें क्या पत्र ही तो देना है। मुफ्त की चाकलेट उन तंगी के दिनो में किसे बुरी लगती। हम बहुत भोले बालक नहीं थे। पत्र हम लोग पढ़ते पर पत्र अंग्रेजी में रहते और हम तीनो का हाथ   अंग्रेजी में बहुत तंग था। बस कमल भाई का पत्र दीदी को और दीदी का कमल भाई को। चाकलेट दोनो तरफ से फ़्री। हम लोगो का बिजनेस अच्छा चल रहा था बेरोक टोक।

प्रमिल थोड़ा भोंदू किस्म का था इन मामलों में। समय की नब्ज नहीं पकड़ पाता था। एक दिन हुआ यूँ की दीदी के मुसटन्डे भाई के सामने ही दीदी को कमल का पत्र पकड़ा दिया। अब आप ही अंदाजा लगा लीजिये, दीदी का क्या हाल हुआ होगा, सुना कमल भाई अस्पताल पहुँचा दिये गए। प्रमिल भी घर में नज़र बंद। पर यारो की यारी कभी छूटी है?

गले लग गई तिकड़ी। नो, अब पढाई पर ध्यान देना है। परीक्षा नजदीक है। सुमित को बुखार रहा पिछ्ले दिनो। स्कूल नहीं जा पाया था। मैं और प्रमिल इस चिंता में कि सुमित की हैल्प कैसे हो। वैसे तो एवरेज था पढ़ने में। इस बार बीमारी की वजह से रिजल्ट बिगड़ सकता है। क्या किया जाय? मेरा ब्रेन ऐसे वक्त के लिये हमेंशा क्रिएटिव रहता है। पहला पेपर हिंदी का। टीचर जी को मस्का मारा, इम्पोर्टेन्ट प्रश्न लिये।

उनके उत्तरो की छोटी छोटी चिट बनाई, उसे सुमित के मोजे में, शर्ट की कालर में, आस्तीन में छुपा दी गई। थोड़ी मैंने अपने लिये भी रखी। प्रमिल को ये पसंद नहीं। हिचकिचा तो सुमित भी रहा था पर मैंने उसे समझाया, आपातकाल में सब जायज है। अब तू बीमार हो गया था। डर मत। मैंने उसे अभय दान दिया।

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किस्मत खराब थी सुमित की, रंगे हाथ पकड़ा गया । सारी चिटे निकाल ली गई। दोस्ती फिर टूटी। पर रिजल्ट निकला, प्रमिल प्रथम श्रेणी, सुमित सैकेण्ड, और मेंरी मैथ में री आई। दोस्त फिर जुड़ गए।

गर्मी की छुट्टियाँ लग गई। हमने प्लान किया तैराकी का।और वही छोटी सी पार्टी करी जाय ।एक एक रुपया तीनो अपने घर से लायेंगे और तैरने के बाद मे सामने बने  गन्नू भाई के होटल मे समोसे जलेबी की पार्टी होगी।तैरने की प्रेक्टिस और मस्ती दोनो हो जायेगी।

मैने घर जाकर मां से एक रुपया मांगा,साफ इन्कार मिला।पिताजी दहाड़े–पेड़ लगा है पैसो का।पढ़ना,लिखना नही है।गणित मे री(सप्लिमेंट्री)आई है।साहबजादे पार्टी करंगे”। एक रुपये के पीछे इतनी लानत,मनालत ।धिक्कार है जिन्दगी को।

मां ने चुपचाप एक रुपया ,सुबह जब मै तैराकी के लिये निकला ,लाकर मेरे हाथ मे रखा।मेरा स्वाभिमान जागा ।मैने रुपया  मां  को वापिस करते हुए कहा–इसे पिताजी को दे देना।संभाल कर रख ले।”

मै गुस्से से निकल पड़ा।मस्ती का मज़ा किरकिरा हो गया।पर दोस्तो से वादा था।रास्ते मे सुमित और प्रमिल भी मिल गये।

तालाब के किनारे पत्थरों पर बैठ गये हम तीनो।सबसे पहिले सुमित ने अपनी शर्ट और पेंट उतार कर पत्थर पर रखी,और कूद गया पानी मे।प्रमिल भी उसके पीछे तालाब मे उतर गया।दोनो ही मुझसे बेहतर तैराक थे।वो लोग थोड़े समय तक तैरते रहे,फिर मुझे पत्थर पर ही बैठा देख आवाज लगाई।मेरा मन बहुत अनमना था।एक रुपये के पीछे पिताजी की लताड़ अब तक चुभ रही थी।दोनो ने मुझे फिर आवाज लगाई।

मै झटके से उठा,और पानी मे छपाक से कूद गया।दोनो हाथो से पानी को चीरता हुआ आगे बढ़ने लगा।जिस ओर मै जा रहा था,पता था पानी बहुत गहरा है,जानकर भी उस ओर ही चला जा रहा था।सुमित और प्रमिल चिल्ला चिल्ला कर मना कर रहे थे,आगे न जाऊँ ।उनकी आवाज को अनसुना कर मै आगे बढ़ता ही गया।

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अब मुझे लगने लगा ,मेरा शरीर ढीला पड़ रहा है।हाथो का बल  खत्म हो गया है।पानी मुझे, नीचे की ओर,  पूरी ताकत से खींच रहा है।

इसके बाद जब मुझे होश आया,मै अस्पताल मे था,मां मेरा माथा सहला रही थी,और साड़ी के पल्ले से अपने आँसू पोछ रही थी।पिताजी पलंग के सामने खड़े थे।उनके चेहरे से,उनकी चिंता,परेशानी साफ दिख रही थी।

मुझे होश मे आया देख सब आश्वस्त हुए।बड़े भईय्या के चेहरे पर मुसकान आ गई ।मां ने ऊपर की ओर देख हाथ जोड़े।ईश्वर का धन्यवाद किया उसने।

धीरे-धीरे  मेरी चेतना लौटी,सब याद आने लगा। बड़ी मुश्किल से बोल पाया–सुमित—प्र—ल”

भईय्या ने मेरे होठो पर उंगली रख चुप रहने को कहा।

“सब अच्छे है।इसी अस्पताल मे है”मां बोली

“तेरे दोस्तो ने तुझे नया जीवन दिया बच्चे ,वरना पता नही क्या होता।”चश्मा उतार के पिताजी ने अपनी आँखो से गिरते मोटे मोटे आंसुओ को पोछा,।मैने पिताजी को कभी रोते नही देखा।आज मुझे उनपर बहुत प्यार आया।उनके लिये सारा आक्रोश,जो मेरे मन मे था, उन्ही के आंसुओ मे मैने धो लिया।

मुझे अस्पताल से डिस्चार्ज मिला।मेरे दोनो यारो के यार मेरे पास बैठे थे।तीनो चुप ,पर मन ही मन किसी और प्लानिंग मे व्यस्त थे।

सुनीता मिश्रा

भोपाल

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