*करमजला* – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

अरे करम जले कुछ तो सोचा होता,सारे कस्बे में थू थू हो रही है।हमे तो तूने कही मुँह दिखाने लायक भी नही छोड़ा।

       माँ, क्या कह रही तू,तुझे क्या अपने राजू पर जरा भी यकीन नही है, क्या मैं ऐसा कोई काम करूंगा जिसे हम पर धब्बा लगे?

     तो बता क्या आजकल तू उस हरिजन बस्ती में  संजू के घर चक्कर नही लगा रहा जहां उसकी जवान बहन रहती है? जब अब संजू नही रहा तो तेरा वहां क्या काम?अरे नालायक हमे मूर्ख बना सकता है,कस्बे के तमाम लोग जो तुझे वहां देखते है,क्या वे सब झूठे हैं?राजू तूने हमारी नाक कटा दी।

       बचपन से ही राजू और संजू लंगोटिया यार थे,साथ पढ़े लिखे,साथ ही खेले कूदे,साथ ही मटरगस्ती की।उनके मन मे कभी भी  जात बिरादरी की बात आई ही नही।सामान्य तौर पर ही एक दूसरे के घर आना जाना रहता था।दोनो परिवार भी उनकी मित्रता का सम्मान करते थे।राजू अपने परिवार में इकलौता था।उसके पिता एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करते थे,जिस कारण अक्सर उनका देश विदेश में कई कई दिनों तक के लिये प्रवास रहता था।राजू के पिता तथा मम्मी दोनो ही संजू को पसंद करते थे। राजू के पिता प्रगतिशील विचारों के धनी थे,

ऊंच नीच का भेदभाव उनमें नही था।यही कारण था कि उन्होंने कभी संजू से राजू की मित्रता पर एतराज नही किया।संजू के परिवार में उसके माता पिता के अतिरिक्त उसकी छोटी बहन राशि भी थी।एक बात की राजू के माता पिता को जानकारी नही थी,जिसकी आवश्यकता भी नही थी,कि संजू हरिजन परिवार से संबंधित था।

      संजू के पिता का दो वर्ष पूर्व ही निधन हो गया था।संजू की माँ ने ही एक स्कूल में सेविका के रूप में काम करके संजू को पढ़ाया लिखाया।संजू अपनी मां के त्याग व तपस्या को समझता था, उसे अपनी बहन राशि की पढ़ाई की पूर्णता तथा विवाह की भी चिंता थी।संयोगवश पढ़ाई समाप्त होते ही संजू और राजू दोनो के जॉब भी लग गये।संजू के  परिवार में खुशी की लहर दौड़ गयी।उसके पिता नही थे,और मां को सेविका के रूप में नौकरी करनी पड़ रही थी,इसलिये संजू के मन मे टीस थी अब चूंकि वह कमाने लगा था सो उसने मां की नौकरी छुड़वा दी।

धीरे धीरे घर से विपन्नता दूर होने लगी।इसी बीच उसने अपनी बहन राशि का रिश्ता भी पक्का कर दिया।राजू के सामने कोई इस प्रकार की समस्या थी ही नही।अब छुट्टियों में  दोनो दोस्त परस्पर मिलते मस्ती करते।शाम को कस्बे के पास की नहर में तैरने जाते।

        एक दिन की घटना ने सब कुछ परिदृश्य बदल दिया।नहर में अचानक पानी आ जाने से उसके वेग में एक किशोर अवस्था का बच्चा जो नहर में पानी न के बराबर होने के कारण बिना खौफ बीचों बीच अठखेली कर रहा था,बहने लगा।उसके पावँ उखड़ गये थे।ऐसी स्थिति में संजू ने नहर में छलांग लगा दी।यूँ तो संजू अच्छा तैराक था,पर पानी के तीव्र वेग एवं बचाये जाने वाले बच्चे की पकड़ ने उसे बेबस कर दिया।कुछ  दूरी पर नहर की झाल थी,जहां से नहर का पानी ऊंचाई से नीचे गिरता था।

संजू के सामने चुनौती थी कि वह झाल आने से पहले नहर से निकल जाये।पर दुर्भाग्य वश ऐसा हो न सका,उस किशोर सहित संजू ढाल से पहले नहर से निकल न सका और दोनो ही ऊंचाई से पानी में गिर कर गहरे पानी मे समा गये।संजू की माँ और बहन का तो सब कुछ लुट चुका था।राजू का प्रिय मित्र जा चुका था।अगले दिन उसका शव मिल पाया तभी अंतिम संस्कार हो पाया।

       राजू को अहसास था कि अब संजू की माँ व बहन का क्या होगा?वह उनके हर दुःख का सहभागी बनना चाहता था,इसी कारण वह अक्सर उनकी कुशल क्षेम पूछने उनके घर जाता।यही समाज को खटक गया।उसी का उलाहना माँ आज राजू को दे रही थी।राजू के पिता बाहर कंपनी के टूर पर थे।राजू की माँ के सामने किसी ने उसका संजू के घर जाने को राशि के कारण जाने से जोड़ कर बता दिया।माँ तनाव ग्रस्त थी।राजू के सामने समस्या थी कि वह माँ को कैसे समझाये?राशि का रिश्ता भी टूट गया था।संजू के परिवार पर संकट गहरा था, कैसे राजू उन्हें मझधार में छोड़ता।

        ये अच्छा हुआ कि संजू की माँ को  सेविका की नौकरी पुनः प्राप्त हो गयी। राशि ने भी नौकरी ढूढने शुरू कर दी।राजू के पिता दौरे से वापस आये।तब उन्हें संजू और उसके परिवार के बारे में पता चला।उन्हें बहुत दुःख हुआ।उन्होंने राजू से संजू के घर उसकी माँ से सांत्वना मुलाकात के लिये चलने को कहा।राजू को यह अच्छा लगा कि उसके पिता वास्तव में संवेदनशील भी है और व्यवहारिक भी।

     शाम को राजू के साथ उसके पिता संजू के घर उसकी माँ से मिलने पहुंचे।उन्होंने संजू के असामयिक निधन पर शोक प्रकट किया।साथ ही हर मुश्किल में सहयोग का आश्वासन भी दिया।

संजू की माँ ने कहा भाईसाहब मैं अपना पेट तो भर ही लूंगी, पर मेरी राशि का क्या होगा मेरी चिंता तो मात्र यही है।संजू के जाते ही राशि का जहां रिश्ता तय हुआ था,उन्होंने भी जवाब दे दिया।पता  नही मेरी बच्ची का अब क्या होगा?

      राजू के पिता ने कुछ क्षण सोचा फिर बोले बहन जी आप से एक आग्रह है,मुझे नही पता मेरा आग्रह आपको और मेरे बेटे राजू को कैसा लगेगा,फिर भी कहे देता हूँ।उत्सुक सा राजू और संजू की माँ उनकी ओर देखने लगे।राजू के पिता बोले बहन जी आपको एतराज न हो और मेरे बेटे राजू को स्वीकार हो तो मैं राजू के लिये राशि का हाथ मांगना चाहता हूं। इस प्रस्ताव को सुन एक सन्नाटा सा छा गया।ऐसा तो कभी ख्यालों में भी नही सोचा गया था।खुशी से  संजू की माँ की आंखों से आंसू बह रहे थे

वह दौड़कर दूसरे कमरे में संजू की तस्वीर के सामने खड़ी हो कर रोने लगी।उनको संभालने को एक ओर राजू खड़ा था तो दूसरी ओर राशि। समाज द्वारा खड़ी की गयी ऊंच नीच ,जाति भेद की दीवार टूट चुकी थी।

        राजू और राशि के फेरो के बाद जब वे माँ से आशीर्वाद लेने उनके चरण छूने लगे तो राजू की माँ बोली, अरे करमजले पहले कभी भी तो मिलवा देता राशि से।

घर बैठे मुझे तो सलोनी बहू मिल गयी और मुझे क्या चाहिये भला।

  बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित।

*#क्या कहे हमारे तो करम ही फूट गये जो ऐसी संतान को जन्म दी*

VM

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!