आज शाम को विनय को ऑफिस के काम से मुंबई जाना था। शताब्दी की बुकिंग थी और ट्रेन रात को 9:30 बजे। स्टेशन तक पहुंचने के लिए लगभग 8:00 बजे तक तो निकलना ही था ना। 6:00 बज गए थे पर विनय का कोई अता पता न था। जब भी विनय को कहीं बाहर जाना होता था तो माता जी का बिना वजह ही बड़बड़ाना शुरू हो जाता था|
शायद कोई असुरक्षा की भावना या उनका प्यार इसके पीछे होता हो। क्योंकि आज शुक्रवार था और विनय को आने में लगभग एक हफ्ता तो लग ही जाना था, इसलिए बच्चे भी कह रहे थे| विनय ने बच्चों को शनिवार इतवार को चिड़ियाघर और माल रोड घुमाने का वादा किया था।
ऐसा भी क्या हुआ कि दफ्तर से फोन करता है कि शाम को जाना है। इसे पहले नहीं पता होता या यह मुझसे छुपाता है। हालांकि ऐसा व्यवहार तो प्रिया को भी बुरा ही लगता था लेकिन घड़ी की ओर नजर गई तो 7:00 बज रहे थे। तभी विनय डोर बेल बजाई। प्रिया ने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोलते हुए विनय का स्वागत करना चाहा तो वह उतना ही चिढ़कर बोला मुझे देर हो रही है
ये कहानी भी पढ़ें :
प्यार के दो चार दिन – निभा राजीव “निर्वी” : Moral Stories in Hindi
और मेरा सामान पैक किया या नहीं? जल्दी से वह कपड़े बदलने चला गया इधर माताजी का बड़बड़ाना जारी था अगर मुंबई जाना ही है तो अपनी बहन से भी मिलता हुआ आना? उसकी ननद पुणे में रहती थी और माता जी ने उसके लिए भी एक साड़ी निकाल ली था। बच्चे भी पापा को शिकायती लहजे में बोल रहे थे कि हमने तो चिड़िया घर जाना था। समय तेजी से भाग रहा था
प्रिया बिना वजह ही विनय के आगे पीछे यह पूछती हुई घूम रही थी खाना खा लिया तुमने या नहीं? खाना मैंने डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है जल्दी से खाना खा लो! 7:30 हो गए थे विनय की कैब भी दरवाजे के बाहर आकर खड़ी हो गई थी। किसी की भी बात ना सुनते हुए विनय भी गुस्से में ही भुनभुनाए जा रहा था ।
मां की दी हुई साड़ी भी उसने ले जाने से मना कर दी । बच्चों को भी बिना वजह ही डांट दिया था। जिद करती प्रिया को भी उसने डांट कर टेबल पर रखे खाने को छुआ भी नहीं। भागकर वह बाहर कैब में बैठ गया।
कैब में जाते हुए विनय के सामने पूरे दिन का घटनाक्रम घूम रहा था ऑफिस जाते ही बॉस ने विनय को मुंबई वाले क्लाइंट की फाइल दिखाने के लिए कहा तो उसे याद आया कि उनसे तो मीटिंग मंडे को थी और प्रेजेंटेशन फ्राइडे को देनी थी। इससे पहले कि बॉस नाराज हो उसने बॉस को कह दिया
कि मैं खुद ही मुंबई जाकर क्लाइंट से मिल लूंगा। आनन-फानन में टिकट की बुकिंग हुई और पूरा दिन काम करते हुए उसे यह भी ख्याल ना था कि उसने दोपहर को खाना ही नहीं खाया था। बिना वजह दफ्तर का गुस्सा उसने मां और बच्चों पर निकाला और बिचारी प्रिया का दिल भी दुखा दिया।,
ये कहानी भी पढ़ें :
वह अकेली ही घर और बच्चों को बिना शिकायत करें संभाल रही थी। मां का भी तो वह कितना ख्याल रखती थी
कैब मैं बैठे बैठे उसे खुद ही आत्मग्लानि सी महसूस हो रही थी। खाली बैठते ही भूख भी जाग उठी। उसका बैग और कपड़े भी तो प्रिया ने ही लगाए थे और वह उसे डांटते हुए ही खाना छोड़ कर आ गया। इन्हीं ख्यालों में कब स्टेशन आ गया पता ही नहीं पड़ा। उसकी ट्रेन स्टेशन पर लगी हुई थी।
अपनी सीट पर बैठे-बैठे उसे अपने व्यवहार पर बहुत दुख हो रहा था। रह रह कर उसे ख्याल आ रहा था कि जब वह खाना छोड़ कर कैब के लिए आया तो प्रिया उदास भी थी कहीं वह उसके आने के बाद रोई तो नहीं और शनिवार इतवार को मुंबई में उसे इतना टाइम तो उसे मिल ही जाता कि वह अपनी बहन के पास पूणे मिलकर आ जाए ।बिना वजह ही मां का भी मन दुखाया।
बच्चों को भी प्यार करके नहीं आया, इधर भूख भी बढ़ती ही जा रही थी। ट्रेन चलने में तो अभी टाइम था लेकिन सामान छोड़कर खाना लाने भी तो नहीं उतर सकता था। शताब्दी में खाना तो मिलता है पर कब? इन्हीं ख्यालों में खोए हुए उसने प्रिया को फोन करा? बिना कोई भूमिका के उसने कहा प्रिया सॉरी, असल में तुम समझ सकती हो कि मैं कितना परेशान था? मां कैसी है, और बच्चे सो गए क्या?
ये कहानी भी पढ़ें :
उधर से प्रिया का जवाब आया, भूख ज्यादा लग रही है क्या? अपना बैग खोलकर राइट साइड वाली पॉकेट में से परांठे अचार और सब्जी निकाल कर खा लो। तुम्हारी मनपसंद करेला भी बना कर रखे हुए हैं। पानी की बोतल भी निकाल लेना और हां दीदी को देने के लिए जो साड़ी मम्मी ने रखी थी
वह भी मैंने तुम्हारे बैग मैं सबसे नीचे रख दी है। हंसते हुए वह बोली ज्यादा सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है पर प्यार से दिया खाना सैंया जी आगे से यूं छोड़कर ना जाना। अपना ख्याल रखना। बच्चे और मां सो गए हैं पहले खाना खा लो फिर बात करते हैं।
विनय मुस्कुराते हुए अपना बैग खोलकर खाना निकाल रहा था।
पाठक गण ऐसा अक्सर हर घर में ही होता है लेकिन यदि पति पत्नी एक दूसरे को समझ लें तो कहीं कोई शिकायत ही नहीं होती।
मधु वशिष्ठ
Nice
Beautiful story marriage remains only with understanding each other