बहू के सामान पर बेटी का हक़ – रश्मि प्रकाश   : Moral Stories in Hindi

“ क्या बात है जबसे नित्या के घर से आई हो तुम्हारा चेहरा उतरा उतरा हुआ सा क्यों है?” निकुंज ने राशि से पूछा 

“ कुछ नहीं जाने दीजिए… आप भी मुझे नहीं समझेंगे और चार बात सुना देंगे ।” कहकर राशि कपड़े बदल कर बिस्तर पर आकर लेट गई 

नीँद आँखों से कोसों दूर थी … समझ नहीं पा रही थी सासु माँ ने आख़िर ऐसा क्यों किया….

राशि जब आठ महीने पहले ब्याह कर आई थी घर में सास और जेठ जी का परिवार रहता था… एक ब्याही छोटी ननद भी उसी शहर में रहती थी… निकुंज की नौकरी दूसरे शहर में थी तो शादी के बाद कुछ समय तक वो ससुराल रहकर निकुंज के साथ रहने जाने की तैयारी करने लगी….

शादी में उसके माता-पिता ने सब उसकी पसंद का सामान घूम घूम कर चुन चुन कर लिया था ताकि जब बेटी की गृहस्थी बसे तो उसे किसी तरह की दिक़्क़त ना हो…राशि भी बड़े मनोभाव से अपने मायके से मिली चीजें पैक कर रही थीं तभी सासु माँ कमरे में आ गई और बोली,“ ये क्या बहू तुम तो अपना सारा सामान ऐसे बाँध रही हो जैसे यहाँ फिर कभी आओगी ही नहीं….।” सामान पैक करते राशि के हाथ वही रूक गए थे… 

“ माँ मेरे पास रसोई का ज़्यादा सामान नहीं है अब राशि रहेंगी तो ये अपने हिसाब से सब कुछ करेंगी… तो मैंने ही कहा जो तुम्हारे रसोई के सामान और बर्तन है वो ले चलो… कार में जितना आएगा वो ले जाते हैं ।” निकुंज ने कहा 

“ अच्छा अच्छा ठीक है पर सब बटोर कर ले जा रहे हो यहाँ आओगे ही ना फिर जो ज़रूरी हो वही लो।” सुनंदा जी ने कहा 

राशि कुकर का डिब्बा जैसे ही उठाने को हुई … सासु माँ ने कहा,“ बहू ये तो बहुत बड़ा है … तुम दोनों के लिए तो छोटे कुकर ही सही रहेगा… यहीं का कुकर भी ख़राब हो रहा है…. बड़ी बहू कब से खरीदने कह रही थी लाओ इसे यहाँ ही निकाल लेते आख़िर ये घर भी तो तुम्हारा ही है ना।” 

राशि कुछ बोल नहीं पाई  सुनंदा जी कुकर किनारे रख ली।

“ निकुंज एक डिनर सेट है ले चलें…?” राशि ने निकुंज से पूछा 

बड़ा डिब्बा देख कर निकुंज ने कहा इसे अभी रहने दो फिर कभी आएँगे तो ले चलेंगे ।

सुनंदा जी ने बहुत सारी चीजों को देख कर राशि को ले जाने से मना करते हुए कहा अभी नई गृहस्थी में शौक़िया चीजें रखने की क्या ही ज़रूरत काम का ही ले जाओ।

उधर राशि जब तब निकुंज को कहती रहती ये चाहिए वो चाहिए तो वो उस पर ग़ुस्सा करता तुम्हें तो बस रसोई भरना पसंद…. ऐसे ही एक दिन कुछ मेहमान घर आने वाले थे राशि ने निकुंज से कहा,“ देखो आज वो डिनरसेट होता तो हम उसे निकाल कर प्रयोग करते ना…अब जाओ और एक डिनरसेट लेकर आओ।”

“ यार वो मेरे दोस्त है… हम जिसमें खाते हैं उसमें ही खिला दो… अब जब घर जाएँगे तुम अपना डिनरसेट लेती आना।” निकुंज ने कह कर पल्ला झाड़ लिया 

राशि ने भी मन ही मन सोच लिया.. जब रहना यहाँ है तो अपनी चीज़ें वहाँ क्यों छोड़कर आऊँ वैसे भी सासु माँ ने तो मम्मी पापा से कह दिया था जो देना है अपनी बेटी को देना है आपको…इसमें हम कौन है रोकने वाले।

आठ महीने बाद कुछ दिन की छुट्टियों में निकुंज और राशि घर आए थे…. आज आते ही नित्या ने सुनंदा जी से कहा था,“ भैया भाभी को लेकर डिनर पर आओ… भाभी से मिलना भी हो जाएगा और ननद का घर भी देख लेंगी।”

इसी क्रम में सब लोग नित्या के घर डिनर पर गए थे…. 

डिनर टेबल पर सब कुछ बहुत व्यवस्थित था पर जो सबसे आकर्षण का केंद्र था वो था नित्या का डिनरसेट…

राशि तो देख कर आश्चर्यचकित रह गई जब नित्या ने सबको खुश होकर बताया इस बार राखी पर मायके गई तो माँ ने दिया था…

राशि ने नित्या के घर में बहुत सी ऐसी चीजें देखी जो उसने अपना घर सजाने के मक़सद से जोड़ रखा था…या फिर मायके में लोगों ने शादी में तोहफ़े में दिए थे जो उसके माता-पिता ने राशि को ही दे दिए…. रसोई में भी बहुत कुछ उसका ही सामान दिख रहा था ।

खाने के बाद नित्या राशि को अपने बेडरूम में ले गई…. बिस्तर पर जो बेडसेट बिछाया हुआ था वो देख कर राशि ने पूछा,“ बहुत ख़ूबसूरत लग रहा है ।” 

“ ये भी माँ ने दिया है पता है जब भी घर जाती माँ कुछ ना कुछ देती ही है कहेंगी तेरे लिए ख़रीद कर रखा हुआ था।” नित्या अपनी ही धुन में बोली जा रही थी इस बात से अनजान ये सब  तो उसकी भाभी का है जो उसकी माँ धोखे से अपनी बेटी को दिए जा रही है ।

राशि का ये सब देख कर ही पूरा मूड ख़राब हो गया था आख़िर सास ने इस धोखे में क्यों रखा बाद में ले जाना।ये सब सोचते सोचते राशि को नींद आ गई ।

दूसरे दिन अपने मन की उथल-पुथल शांत करने के लिए राशि सुनंदा जी से निकुंज के सामने बोली ,“ मम्मी जी नित्या दी के पास सेम मेरे जैसा ही डिनरसेट था और तो और उनके कमरे में जो बेडसेट बिछा हुआ था सेम मैंने भी अपने लिए पसंद कर के लिया था ….. आपकी और मेरी पसंद कितनी मिलती हैं….

निकुंज ने कहा है इस बार वो बाकी सामान भी ले चलेंगे….. वहाँ कभी कभी बहुत ज़रूरत होती है और ये लेने नहीं देते हैं .. आप स्टोर की चाभी दीजिए ना मैं सामान देख लूँ क्या क्या ले जाना है ।” 

 सुनंदा जी इस वार के लिए जरा भी तैयार नहीं थी….

“ अभी जाने में दो दिन है ना… बाद में देख लेना…।” सुनंदा जी ने कहा 

“ अरे दे दो ना माँ ….ये उसमें व्यस्त रहेंगी तब तक हम माँ बेटा बातें करेंगे ।” निकुंज सुनंदा जी से बोला

“ पर बेटा….।” सुनंदा जी कहे तो क्या कहे… वो तो सोची ही नहीं थी कि राशि अपनी चीज़ें पहचान जाएगी ।

“ क्या हुआ मम्मी जी आपने वो सब नित्या दी को तो कहीं नहीं दे दिया… इसलिए चाभी नहीं दे रही?” राशि बिना परिणाम जाने बोल गई

“ ये क्या बोल रही हो राशि… माँ ऐसा क्यों करेंगी…उन्हें अपनी बेटी को देना है तो बहू की चीजें क्यों देंगी… वो ख़रीद कर ही दी होगी जो तुम्हारे सामान के जैसा होगा।”निकुंज ने ग़ुस्सा करते हुए कहा 

“ हाँ हो सकता मैं तो बस ऐसे ही बोली ।” राशि सुनंदा जी के चेहरे पर आई परेशानी से समझ रही थी वो गलत नहीं बोल रही 

“ हाँ दे दिया मैंने अपनी बेटी को तेरा सामान…. तो क्या हुआ…तुम्हारी ननद नहीं है क्या वो…?” सुनंदा जी बिफरते हुए बोली 

“ माँ…?” निकुंज आश्चर्य से बोला

“ पर माँ तुमने तो हमें कहा था बाद में ले जाना वो बस हमें धोखे में रखने के लिए…. ताकि तुम नित्या को दे सको… अरे तुम बोलती तो ख़रीद कर देता उसको… राशि के माता-पिता ने उसे चाव से दिया था और तुमने भी तो यही कहा था जो देना है आप अपनी बेटी को दीजिए पर तुम तो सब कुछ अपनी बेटी को देकर वाह वाही पा रही हो ।” निकुंज को माँ का ये व्यवहार अच्छा नहीं लगा और रात राशि के उतरे चेहरे का राज भी समझ आ गया 

“ माँ नित्या दी ने जब कहा सब माँ ने दिया तभी मुझे समझ आ गया था आपने मेरा ही अधिकांश सामान उठा कर उन्हें दे दिया पर क्यों…. ?” राशि सुनंदा जी से पूछी 

“ मेरी बेटी को शादी में मैंने बहुत कम सामान दिया था जब तुम्हारा इतना सामान देखी तो मेरे मन में ये विचार आने लगा कि बेटी को जो भी देने का शौक़ है अब पूरा कर सकती हूँ मुझे लगा ही नहीं था तुम लोग वाक़ई में फिर सामान लेकर जाने का सोचोगे और राशि को इतना सब याद रहेगा… मुझे माफ कर दे बेटा…. मैं बेटी के मोह में बहू की चीजों पर अपना और अपनी बेटी का हक़ जमा बैठी ।” सुनंदा जी रोते हुए बोली 

“ मम्मी जी माफी की बात नहीं है पर परिवार में वो भी बेटा बहू को धोखे में रखकर ये सब करना सही नहीं है…. आप मुझसे बोलती तो मैं मना नहीं करती पर मेरे पीछे से मेरा ही सामान देना सही नहीं था बाकि आप बड़ी है और समझदार भी… मैं अब कुछ लेकर नहीं जाऊँगी….मुझे नहीं पता था बेटी के माता-पिता जो सामान बेटी को देकर विदा करते ससुराल आते ही उसपर उसका हक़ नहीं रहता।” राशि इतना बोल अपने कमरे में चली गई 

” राशि मुझे जरा भी अंदाज़ा नहीं था माँ ऐसा कुछ करेंगी…उन्होंने जो किया गलत किया… अब ये बात नित्या को कभी मत बताना उसे बहुत बुरा लगेगा कि उसकी माँ ने उसकी भाभी का सामान उसे दे दिया ।” निकुंज राशि के आगे हाथ जोड़कर विनती करने लगा

“ इतनी समझ है निकुंज…. अब मैं यहाँ से कुछ नहीं लेकर जाने वाली और आप मुझे वहाँ कुछ भी लेने से मना नहीं करेंगे समझे।”राशि ने बात भुलाकर आगे बढ़ने में ही समझदारी समझी

दोस्तों मेरी रचना पर अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर व्यक्त करें… आपको क्या लगता है अधिकांश घरों में ऐसा होता है… अगर होता है तो आपकी नज़रों में वो सही है और गलत ज़रूर बताएँ ।

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# हक़

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