सावन का रिमझिम प्रारंभ हुआ… तन-मन भींगा-भींगा…हरी-भरी धरती संग उल्लसित जनसमुदाय।
इधर सावन महीने में सावन महोत्सव मनाने की तैयारी महाविद्यालय में चल रही थी। सभी को हरे रंग की साडी़
चूड़ियाँ हाथों में मेंहदी लगाकर जाना था।उससे संबंधित शिक्षिकायें और छात्रायें बडी़ जोर-शोर से तैयारी कर रही थी।
हमलोगों ने छात्राओं के लिये अनेक प्रतियोगितायें रखी थी। कविता कहानी नृत्य संगीत।
तब बच्चे छोटे थे। घर-बाहर की जिम्मेदारी थी। मेरे पास हरी साडी़ नहीं थी।मेरे पति सरकारी दौरे पर थे।
मैं इंतजार कर रही थी इनके आने का ताकि इनके साथ जाकर मनपसंद साडी़ खरीद सकूं। तब न इतनी दूकानें थी न आनलाईन का जमाना था।
खैर, पति देव आये मैंने साडी़ की बात की उन्होंने हामी भरी और दोनों अपने-अपने काम में लग गये।
वे भी प्रतिष्ठित पद पर थे समयाभाव था और मैं तो घर-बाहर चकरघिन्नी की तरह नाचती ही रहती थी।
जिस दिन फंक्शन था मैं बच्चों को दिशानिर्देश दे हरी के जगह नीली साडी़ में सज-धजकर तैयार हो गई। वैसे भी मैं किसी चीज के लिये जिद नहीं पकड़ती
मेरा सिद्धांत है, ” हुआ तो हुआ नहीं हुआ तो कोई बात नहीं… मन खट्टा करने से कोई फायदा नहीं। “
पति ने जब मुझे नीली साडी़ पहने देखा और सावनी आयोजन की याद आई। वे पानी-पानी हो गये।
“दस मिनट इंतजार करो, मैं अभी आया”कह स्कूटर स्टार्ट कर निकल पड़े।
मुझे देर हो रही थी। फिर भी उनकी आकुलता पर मैंने प्रतीक्षा करना ही उचित समझा मैं भी चिंतित हो गई। क्या हुआ?
थोड़ी देर में ये हाथ में कीमती सिल्क की हरी साडी़ लिये आ पहुंचे, “मैं भी कैसा बौड़म हूं, तुम्हें बाजार नहीं ले जा सका। काम काज में फंसा रह गया।तुमने याद भी नहीं दिलाई। काम-काज तो चलता ही रहेगा। बस दुकान खुल ही रहा था। “
उनके इस भावुक जिम्मेदार रुप को देख मेरी आँखें अंतस सावन की बूंदों की तरह गीली हो गई।
यह मेरा सौभाग्य… बाबा भोलेनाथ की कृपा कि मेरे पति को मेरी इतनी परवाह है।
खैर, मुझे देर हो रही थी। बिना फाॅल पीको मैचिंग ब्लाऊज के इनके पीछे स्कूटर पर बैठी सावन के रंगों में रंगी काॅलेज पहुँच गई। सभी ने साडी़ की दिल खोलकर प्रशंसा की।
आज कई हरी साडि़यां आलमारी में भरी पड़ी हैं। लेकिन उस हरी साडी़ से मैं दिल से जुड़ी हुई हूं।
मौलिक प्रस्तुति -डाॅ उर्मिला सिन्हा