क्या करूं,आज दत्ता सर बाहर गए हैं , मतलब अपना काम लैब में थोड़ी देर से भी शुरू कर सकती हूं.. मतलब करना तो है ही.. पहले कैंपस के बाहर जो चाट का ठेले वाला खड़ा होता है, उससे गोलगप्पे खा कर आती हूं।
गोलगप्पे!!
इसकी तो कल्पना कर के ही प्राची का मुंह गोलगप्पे की खट्टी मीठी चटनी की तरह चटपटा हो गया
सचमुच गोलगप्पे ना.. थकान मिटाने और माइंड रिफ्रेश करने का परफेक्ट सल्युशन है!
गोलगप्पे खा कर लगता है आप फिर से काम करने के लिए रिचार्ज हो गए वो भी फुल टू चार्ज बैटरी के साथ!!
भैया मुझे नाॅनस्टाप, मतलब फटाफट,खिला दो फिर मुझे…
हां हां दीदी हमें मालूम है आप को जल्दी जल्दी अपनी लैब में भागना है।
अभी प्राची ने कुछ ही गोलगप्पे उदरस्थ किए थे कि एक लंबी सी गाड़ी तेज झटके के साथ रूकी… वो तो कहो गाड़ी पानी के छींटें उड़ाती हुई थोड़ा दूरी पर रूकी.. एक जरा भी पानी का छींटा प्राची पर पड़ा होता ना तो फिर प्राची सुना ही देती… वो भी जरा ढ़ंग से
भैया हमें जरा जल्दी है झटपट खिला दो, सबसे बड़ी ( और मोटी भी) आंटी जी ने आते ही कहा
गोलगप्पे वाले ने घबराकर प्राची की तरफ देखा.. ये तो आती ही रहती हैं, मतलब परमानेंट कस्टमर हैं,और ऐसे ही जल्द बाजी में खा कर चली जाती हैं
मुंह में गोलगप्पा भरे प्राची ने इशारे में कहा
मतलब चलेगा
वो आंटी, उनके साथ एक और सिर ढके हुए ( बहू टाइप की) और एक लड़का… अब तीनों के बाद प्राची का नंबर आ रहा था… गोलगप्पे में
भैया हमें मीठी वाली चटनी के साथ खिला दो, आंटी बोली_
पहले मेरा कंप्लीट करो.. सबको रोक दो मुझे देर हो रही है
प्राची ने हाथों से इशारा किया
फटाफट अपने गोलगप्पे खाने.. और तेजी से भागी काॅलेज के अंदर
आंटी जी ने घूर घूर कर देखा _ कैसी तेज़ लड़की है हमें रोक दिया, किसी का( मतलब बड़े का) कोई लिहाज ही नहीं है
बहू ने देख कर सोचा _ काश मैं भी अपनी सास से अपने ( जायज़) हक़ के लिए बोल पाती ऐसे ही
नौजवान ने सोचा _ गोलगप्पे कैसे भूत की तरह निपटा रही है कुछ भी हो बड़ी प्यारी सी है!!
मतलब जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी!!
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निर्मला जी को रामनरेश जी ( उनके पति देव) मोबाइल पर पिक्स दिखा रहे हैं.. देखो बड़ी दीदी ने ये रिश्ता बताया है अपने अर्पित के लिए, मैंने मोहित ( बड़े बेटे) और गुंजा ( बड़ी बहू) को दिखाया है,तुम बाथरूम में थी… तभी दीदी का ये मैसेज आया… सभी को लड़की पसंद आ रही है,मन हो तो जाकर मिल लो
हूं.. मेरे पहले ही सबको पसंद आ रही है., मगर होगा तो वही जो मैं चाहूंगी. देखूं जरा… ठीक ठाक तो दिख रही है.. कहीं देखी देखी सी क्यों लग रही है… तू देख जरा अर्पित
कहां मां… रामनगर से रिश्ता आया है, तुम भी ना, तुमने कहां देखी होगी?, अर्पित ने कंधे उचकाते हुए कहा
हां, आजकल सभी लड़कियां ऐसे ही कपड़े पहनती हैं और ऐसे ही मुंह बना कर फोटो खिंचाती हैं,तो सब एक जैसी ही लगे हैं.. निर्मला जी ने सोचा, अर्पित तो जल्दी शादी का नाम ही ना लेता था… कम से कम अब लड़की से मिलने को तैयार है.. होकर आते हैं।
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निर्मला जी, बेटा अर्पित और बड़ी बहू गुंजा ही आए थे, रामनरेश जी और बड़ा बेटा एक तो समय नहीं निकाल पाए, जिस पर उनका कहना था कि लड़की वालों के घर बहुत सारे लोगों को पहली बार नहीं जाना चाहिए
ड्राइंग रूम में चाय नाश्ते के साथ सभी बातें कर रहे थे
मगर लड़की कहां है?
जी बस पहुंचती ही होगी.. वहीं उसी नेशनल काॅलेज से एम टेक कर रही है.. आपको आपकी दीदी ने नहीं बताया था क्या?
अच्छा वो तो हमारे घर से बस कुछ किलोमीटर ही दूर है
हमें लगा कि यह रिश्ता अच्छा रहेगा, पढ़ाई भी चलती रहेगी, लड़की के पिता ने कहा
यह सुनकर निर्मला जी का दिल जोर से धड़का… ना जाने क्यूं
वैसे तो हम दोनों पति पत्नी अपनी बिटिया को लेने ख़ुद जाते हैं, मगर आज आप लोगों को आना था, तो हम लोग घर पर ही रुक गए
और बाहर गेट पर आवाज आई,ड्राइवर बिटिया को लेकर घर आ गया था
हाॅस्टल से ढेर सारा सामान लेकर प्राची घर में घुसी
निर्मला जी ने सोचा_ अरे ये वही लड़की है… तब भी बड़ी तेज़ लग रही थी
गुंजा_ बढ़िया है, मम्मी जी मेरी तरह दबा कर रख नहीं पाएंगी
अर्पित_ अरे वही लड़की है ,
फटाफट गोलगप्पे खाने वाली लड़की,इस तरह यहां मिलेंगी, किसने सोचा था?
तीनों के मन में अजीब सी उथल पुथल थी
मतलब ( एक बार फिर से)
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी
निर्मला जी तो उस बात से उबर ही नहीं पा रही थी कि, कैसे उसने उन्हें,( क्या बाकी सबको) रोक कर खुद फटाफट गोलगप्पे निपटाए थे।
मगर घर पहुंच कर अर्पित और गुंजा बहू दोनों ने कहा, उन्हें लड़की पसंद आई ( मतलब दूसरे शब्दों में अर्पित बिल्कुल अड़ गया) कि उसे लड़की पसंद है…. अब यही शादी होगी।
तो फिर प्राची निर्मला जी के घर की बहू बन कर आ गई।
जोड़ियां तो ऊपर वाले ने पहले से बना कर रखी थी!!
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बहुत जल्दी ही प्राची को समझ में आ चुका था कि घर में ( सिर्फ और सिर्फ) वही होता है जो मम्मी जी चाहती हैं, गुंजा बहू की किसी बात,काम, इच्छा, किसी चीज का कोई मोल नहीं था।
मम्मी जी ने अपने हिसाब से बहू के लिए सीमा रेखा निर्धारित कर रखी थी
जिसके बाहर निकलने की तो सोचना दूर की बात है… उसके भीतर ही गोल गोल चक्कर काटना ही बहू की नियति थी।
गुंजा भाभी खाने पीने की कोई चीज बनाती तो मम्मी जी सबके खाने के बाद अपनी पड़ोस की सहेलियों के घर भिजवा देती,या किसी आने वाले को खिला देती, बगैर इस बात की परवाह किए कि जो घंटों से लगकर बना रहा है उसे चखने को मिली भी या नहीं।
कभी गुंजा दबे ज़बान कहना चाहती तो सुनने को मिलता,भई हमारा मन तो सबको खिला कर संतुष्ट हो जाता था, फिर भूखे रहने को कौन कह रहा है, दुबारा बना लो
जबकि हकीकत यह था कि, दुबारा बनाने की हिम्मत ही नहीं बचती थी.. फिर वो रात की बची रोटियां,तवे पर सेंक कर, नाश्ता कर लेती थी।
जब खाने पीने पर ही उनका अधिकार नहीं था तो शेष बातें तो व्यर्थ है..
आज छुट्टी का दिन है। प्राची और गुंजा मिलकर,आलू भर कर ब्रेड रोल बना रही हैं।
सभी बाहर गार्डेन में बैठ कर नाश्ता कर रहे हैं।
आज काम करते करते काफी देर हो गई है.. भूख तो दोनों को लगी है, मगर क्या करें?
जिस पर से आलुओं से उठती सोंधी खुशबू,भूख और बढ़ा रही थी
तभी मम्मी जी की आवाज आई,सहाय अंकल आए हैं.. कुछ नाश्ता और भेजना
जी मम्मी जी बस थोड़ी देर में… प्राची ने कहा
क्या बात है?… अभी तक कोई आया नहीं बाहर
निर्मला जी तुनकते हुए किचन में पहुंची
दोनों बहुएं, किचन में खड़े होकर प्लेट में रखकर ब्रेड रोल खा रही थी.. चटनी डालकर
गुंजा का( पहले की ही तरह) निर्मला जी को देखकर डर के मारे मुंह पीला पड़ गया था
मानों उसने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो
निर्मला जी रौद्र रूप धारण कर के कुछ कहती, उससे पहले प्राची, मुंह का कौर फटाफट निपटाते हुए बोली
मम्मी जी आलू का मसाला बस इतना ही बचा था तो ब्रेड रोल बना कर हम दोनों ने खा लिया… आप तो जानती है कि भाभी गुड न्यूज देने वाली है, ऐसे समय में उनका भूखा रहना उचित नहीं है.. फिर जिस नाश्ते की तैयारी हम दोनों सुबह से कर रहे थे, उसे हम दोनों ही ना खाते ऐसा कैसे होता.. देखिए मैंने प्याज काट कर रख भी दिया है.. बस फटाफट पकौड़े बना कर बाहर भेजती हूं… मुझे पता है मम्मी जी आप बहुत खुश हो रही होगी मेरी समझदारी पर कि मैंने भाभी का ध्यान रखा, वरना उन्हें खाली पेट उल्टियां शुरू हो जाती, आपका तो मुझे शाबाशी देने का मन भी हो रहा होगा… कोई नहीं, कभी बाद में.. अभी बाहर चलिए मैं नाश्ता लेकर आ रही हूं
प्राची की दलील सुनकर निर्मला जी का मुंह खुला का खुला रह गया
निर्मला जी को कोई जवाब नहीं सूझ रहा था
निर्मला जी बाहर चली गई (क्या पता.. शायद कुछ पैर पटकते हुए , गोलगप्पे सा मुंह बनाकर)… मगर उन्हें एक बात तो समझ में आ ही गई थी
अब सबको उनके हक़ का मिलेगा.. खाना, सम्मान,सब कुछ.
गुंजा अभी तक बहुत कुछ बनाती थी किचन में लगन से, मगर उसके चखने के लिए भी नहीं बचाया जाता था
घर की बहू को भी, उचित समय पर पौष्टिक भोजन ( और स्वादिष्ट भी) खाने को मिलना चाहिए, आखिर स्वास्थ्य और सेहत उसकी भी अच्छी रहनी चाहिए
आखिर गोलगप्पे के ठेले पर ही तो यह बात दिख ही गई थी कि किसी के हिस्से का लेना नहीं है तो अपने हिस्से का देना भी नहीं है
और गुंजा भाभी भी खुश.. एक बड़ी बात जो इस घर में चल रही थी सबको असमान समझने की ,वो प्राची के छोटी सी शुरुआत से सुधरने की ओर अग्रसर तो हुई।
और यह भी कि
अपने लिए आवाज़ उठानी ही पड़ती है
फिर बात छोटी हो या बड़ी… और छोटी छोटी बातें सहने वाले से बड़ा त्याग?( अन्याय) भी सह जाने की अपेक्षा की जाती है
तो यह बात साबित हो गई थी कि
और कर्तव्यों और अधिकारों की सीमा रेखा घर के सभी सदस्यों के लिए एक समान ही होनी चाहिए!
एक छोटा कदम, बड़े परिणाम का वाहक बन कर सामने आता है!!
पूर्णिमा सोनी
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