संस्कारो पे धब्बा – स्नेह ज्योति : Moral Stories in Hindi

प्यार तो पहले हुआ करता था । आज के दौर में प्यार के मायने ही बदल गए है । प्यार प्यार ना रह बस एक खिंचाव , एक फ़ैशनेबल हौड की तरह हों गया है ।

जहां लड़के-लड़कियाँ बॉय फ़्रेंड गर्ल फ़्रेंड कहलवाना ज़्यादा पसंद करते है । मेट्रो जो एक सार्वजनिक परिवहन का साधन है ।

आज कल उसमें भी कुछ ना कुछ ऐसा दिख जाता है या सुनाई दे जाता हैं कि हमें अपने आप पे ही शर्म आने लगती है ।

ऐसा ही कुछ उस दिन मेरे साथ हुआ जब मैं मेट्रो से कहीं जा रही थी । थोड़ी देर में दो लड़कियाँ मेरे पास वाली ख़ाली सीट पर आ बैठी ।

मैं भी समय गुज़ारने के लिए फ़ोन पे कुछ खोजने लगी । तभी उनकी बातें मेरे कानो से होती हुई आत्मा को चीर गयी ।

उन दोनो लड़कियों में से एक बोली यार मुझे अजय अच्छा लगता हैं , पर राहुल इससे ज़्यादा अच्छा हैं । अजय मुझसे मिलना चाहता है ,पर क्या करूँ मिल नहीं पा रही हूँ ??

तभी दूसरी लड़की बोली कोई बात नहीं ! तू कल मेरे घर आ जाना आंटी को बोल देना तुम्हें कल कॉलेज में बहुत काम हैं ।

तेरे घर पे ! तू क्या कह रही है ??

हाँ ! मेरे मम्मी-पापा दो दिन के लिए कानपुर जा रहे हैं । तो तुम और अजय मिल लेना …..

लेकिन तेरा भाई ??

भाई ! जब ऑफ़िस चले जाए तो आ जाना बाक़ी मैं सम्भाल लूँगी ।

यें सुन मुझे शर्म आने लगी लेकिन उन्हें ये सब बातें पब्लिक प्लेस में बोलते हुए कोई डर नहीं था । माना की प्यार कोई ग़लत नहीं हैं ।

हमारे समय में भी लोग प्यार करते थे । लेकिन इस तरह की बेहूदी बातें यूँ सरे आम करना तो दूर सोचना भी गुनाह था ।

जब मैंने उनकी तरफ देखा तो वो हंस के अगले स्टेशन पर उतर गयी । और मैं यहीं सोचती रही कि आज कल के बच्चे कैसे अपनी माँ-बाप की इज्जत उनके संस्कारो पे धब्बा लगा रहे हैं ।

हर माँ बाप अपने बच्चों पे भरोसा कर उन्हें खुल के जीने की आज़ादी देते हैं । पर बच्चे आज़ादी का गलत मतलब समझते हैं ।

हम भारतीय हैं हमें अपनी और अपनो की मान मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए । यूँ सब के सामने कलंकित नहीं करना चाहिए ।

#धब्बा लगाना

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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