वनिता , अपनी बेटी के तौर तरीक़ों पर ज़रा ध्यान दो । वनिता की सास कांता देवी अपनी कर्कश आवाज़ में बोली ।
क्या हुआ ? माँ जी – वनिता कुछ सहमी सी बोली ।
क्या तुम्हें कुछ नहीं दिखता कि बेटी सयानी हो गई है । ये छोटे-छोटे कपड़े, बच्चों की तरह उछल-कूद, पूरा दिन तितलियों की तरह इधर-उधर घूमना , इन सबका क्या मतलब है?
अब वनिता को समझ आ गया कि ये आग किसने लगाई है?
हुआ यह था कि वनिता की बेटी होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही थी और तक़रीबन पंद्रह दिन पहले अपनी सहेलियों के साथ गोवा घूमने गई थी । वहाँ से आने के बाद बच्चों ने व्हाटसप के स्टेट्स पर गोवा की पिक्चर डाली थी और उसी शहर में रहने वाली उसकी ननद सुनीता ने यह खबर सचित्र माँ जी के पास भेज दी थी ।
हालाँकि वनिता ने अपनी बेटी मनु को समझाया हुआ था कि सार्वजनिक रूप से कोई फ़ोटो साझा न करें क्योंकि दादी पुराने ख़्यालों की है । बेकार में घर की शांति भंग हो जाएगी । इसलिए गोवा जाने की बात भी वनिता और उनके पति ने माँ जी को नहीं बताई थी ।
पढ़ने के लिए भेजी है या बिगड़ने? मुझे तो भनक नहीं लगने दी कि लड़की अकेली घूमने भी जाने लगी है । कुछ ऊँच- नीच हो गई तो मेरे पास आके बैठ जाएँगे ।
वनिता चुप रही । उसे समझ नहीं आया कि माँ जी को कैसे समझाए कि छोटे कपड़े पहनने से , घूमने- फिरने से भला बिगड़ने का क्या संबंध है?
सुनीता की भी दो बेटियाँ हैं । वे भी अपने मन मुताबिक़ कपड़े पहनती हैं हाँ, मनु और उनकी बेटियों में केवल इतना अंतर है कि मनु छिपाकर कार्य करने को पाप समझती है और सुनीता की दोनों बेटियाँ नानी से मिलने आते समय सूट- सलवार पहनकर आती । धीमे- धीमे स्वर में बात करती और नानी की हाँ में हाँ मिलाती रहती ।
कई बार तो वनिता भी कहती – देख मनु , ये दोनों कैसे माँजी को खुश रखती हैं । बेटा , तुम भी थोड़ी दुनियादारी सीख लो ।
माँ की बातें सुन मनु झुँझला उठती – क्या मम्मा! आप इस नौटंकी को दुनियादारी कहती हैं । मुझसे ऐसा कभी नहीं होगा ।
मनु बहुत ही समझदार लड़की थी । उसका मानना था कि हमारा आचरण, कार्य और व्यवहार, हमारे व्यक्तित्व का आईना होता है । छोटे बड़े कपड़ों का क्या है , कपड़े वातावरण और अवसर के हिसाब से पहनने चाहिए ।
वनिता और उनके पति अपनी बेटी की बातों से पूरी तरह सहमत थे पर माँजी को समझाना उनके बलबूते से बाहर था ।
ख़ैर दो/ चार दिन की बड़ बड़ के बाद गोवा वाली बात आई गई हो गई
दीपावली के दो दिन बाद की बात है । सुनीता अपनी दोनों बेटियों के साथ भाईदूज का त्यौहार मनाने आई थी । दोपहर के खाने के बाद वनिता ने सोचा कि मनु के साथ बाज़ार के काम निपटा लेती हूँ, यहाँ बैठकर तो निंदा- पुराण ही सुना जाएगा ।
माँजी , मैं मनु के साथ बाज़ार जा रही हूँ । आप लोग आराम से बैठकर बातें कीजिए । शाम की चाय से पहले लौट आऊँगी ।
इतने दिनों बाद ननद आई है । इसके साथ बैठने की जगह तुझे बाज़ार का काम याद आ गया ?
मनु को कुछ ख़रीदना है । बस यों गई और आई । इतना कहकर वनिता बिना कुछ सुने तुरंत मनु के पास गाड़ी में जाकर बैठ गई ।
कोई दस मिनट बाद ही वनिता के पास सुनीता के पति का फ़ोन आया वे घबराई सी आवाज़ में बोले – वनिता जी , सुनीता से बात करवा दीजिए । ना तो हनु- तनु फ़ोन उठा रही है ना ही सुनीता । भाई साहब का फ़ोन बिजी आ रहा है ।
सॉरी जीजाजी, मैं तो मनु के साथ बाहर हूँ । मैं फ़ोन करके देखती हूँ । सब ठीक तो है?
मेरी तबियत……. वाक्य पूरा होने से पहले ही फ़ोन कट गया । वनिता ने अपनी तरफ़ से फ़ोन मिलाने का प्रयास किया पर असफल रही , अपने पति को , सुनीता और उसकी बेटियों को भी फ़ोन किया पर ना जाने फ़ोन कहाँ पड़े थे और वे कहाँ थे ।
वनिता मन ही मन क्रोध में बुदबुदा रही थी । तभी मनु बोली – मम्मा, मैं गाड़ी घुमाकर बुआ के घर चलती हूँ । कहीं ऐसा न हो कि फूफाजी की तबियत ज़्यादा ख़राब हो ।
बिना देर किये मनु कुछ ही मिनटों में बुआ के घर पहुँच गई । फूफाजी जी पसीने से लथपथ बदहवास से ज़मीन पर बाहर गेट के पास बैठे थे वनिता और मनु को देख उनकी आँखों से आँसू बहने लगे ।
वनिता ने सहारा देकर गाड़ी में बिठाया और मनु तुरंत पास के अच्छे अस्पताल में ले गई । फूफाजी को आपातकालीन वार्ड में दिखाने के बाद आई सी यू में भर्ती किया गया ।
दोनों माँ – बेटी ने फिर से फ़ोन किया । शुक्र था कि इस बार वनिता के पति ने फ़ोन उठा लिया ।
कुछ समय बाद सभी लोग अस्पताल पहुँच गए । अस्पताल में माँ जी चुप रही । जब डाक्टर ने यह कहा कि अगर दस मिनट लेट हो जाते तो कुछ हाथ नहीं लगना था तब सुनीता की आँखों से शायद शर्मिंदगी के आँसू बह निकले ।
माँ जी अस्पताल में लगी मूर्ति के गई और हाथ जोड़कर बोली- तेरा बड़ा उपकार मैया ।
फिर वनिता से बोली – मेरी मनु ( झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई) बड़ी समझदार और बहादुर है ।
उस दिन के बाद से माँ जी के सोचने और चीजों को देखने का नज़रिया भी बदल गया ।
करुणा मलिक
#क़ीमत