सुहानी पवन – बालेश्वर गुप्ता   : Moral Stories in Hindi

पापा पापा, क्या मम्मी कभी नही आयेंगी, भगवान के घर ही रहेगी?

हाँ मेरी बच्ची,तेरी मां को भगवान ने अपनी बेटी बना लिया है ना,वो अब नही भेजेंगे।पर तू ऐसा क्यों पूछती है, मैं हूँ ना।

पर पापा, सब ऐसा क्यूँ कहते हैं, मैं पैदा होते ही माँ को खा गयी?भला बच्चे माँ को खाते है क्या?मैंने तो माँ को देखा तक नहीं?

मेरी बच्ची,जो ऐसा बोलते है ना,वे पागल हैं, तू उनकी मत सुना कर।

पर पापा दादी भी तो ऐसा ही बोलती है, वे तो एक दिन मुझे मनहूस कह रही थी,ये मनहूस क्या होता है पापा?

गुड़िया की बाते सुन क्रोध और बेबसी में राजेश की आँखों से आँसू बह चले, उसने अचकचा कर गुड़िया को अपनी बाहों में जकड़ लिया।

मेरी बच्ची,तू मनहूस नही है,मनहूस तो कहने वाले हैं। पैदा होते तेरी मां हमे छोड़ गयी, तू मनहूस नही ,अभागन जरूर है,पर मैं तेरी मां भी हूं और पापा भी।

ढाई वर्ष की गुड़िया जिसने पैदा होते ही मां को खो दिया,सब उसे मनहूस ही कहते,दुत्कारते।सबकी हिकारत को मासूम गुड़िया क्या समझे?कोई कही भी शुभ कार्य हो तो गुड़िया को दूर ही रखा जाता,सोचकर कही अनहोनी न हो जाये।राजेश कैसे दुनिया को समझाए कि उसकी गुड़िया मनहूस नही है,वह तो कुसुम के जाने के बाद उसके लिये सुहानी आभास है,कुसुम का प्रतिरूप है।राजेश ने अपनी गुड़िया का नाम भी सुहानी रखा।

बड़ी होती सुहानी के मन मे बैठ गया था,किसी भी शुभ कार्य  मे उसे नही जाना है।अब वह खुद ही ऐसे आयोजनों से अपने को दूर रखती।आत्म केंद्रित होती जा रही थी सुहानी।राजेश सुहानी के मनोभाव को खूब समझता था,पर जमाने को क्या कहे?

राजेश और कुसुम का ब्याह हुआ तो तमाम रिश्तेदार दोस्त सब आये।मध्यम श्रेणी परिवार था सो मध्यम रूप में धूमधाम से शादी हो गयी।राजेश नगर पालिका में क्लर्क के पद पर कार्यरत था।इतना वेतन था कि वह अपने परिवार को बखूबी चला रहा था।शादी के बाद कुसुम ने पूरा घर संभाल लिया था।

राजेश की माँ की आंखों का तारा थी कुसुम।राजेश को सुकून था कि घर मे सास बहू वाला वातावरण न होकर मां बेटी वाला माहौल है।राजेश की माँ को अब दादी बनने की रट लग गयी थी।शादी के दो वर्ष बाद आखिर वो दिन आ ही गया जब कुसुम को हॉस्पिटल डिलीवरी के लिये ले जाया गया।

डिलीवरी ऑपरेशन से  हुई,गुड़िया का जन्म तो ठीक ठाक हो गया,पर दुर्भाग्य से कुसुम को बचाया न जा सका।राजेश पर तो पहाड़ टूट पड़ा,राजेश की माँ तो पगला सी गयी।कुसुम को बहुत प्यार करने के कारण उन्हें बहुत सदमा पहुँचा।राजेश की माँ के मन मे बैठ गया कि ये गुड़िया ही मनहूस है,यही अपनी माँ की मृत्यु का कारण है।राजेश की हरचंद कोशिश भी अपनी माँ के मन से इस ग्रंथि को न निकाल सकी।

सुहानी के चेहरे पर मुस्कान देखने को राजेश तरस जाता।धीरे धीरे समय व्यतीत होता गया,सुहानी अब कॉलेज जाने लगी थी।गुमसुम सुहानी कॉलेज में भी अधिकतर चुप ही रहती। एक दिन उसके एक सहपाठी ने उससे पूछ लिया क्या आप बोलना नही जानती या बोलना नही चाहती?

अचानक ऐसे प्रश्न से सुहानी सहम सी गयी,क्या उत्तर दे,उसकी समझ ही नही आया,ऐसा प्रश्न किसी ने पूर्व में किया भी नही था,फिरभी धीरे से बोली नही नही ऐसी कोई बात नही है।पवन शरारत से बोला ओह माय गॉड आप तो बोलती हैं।मेरा नाम पवन है,एक बात कहूँ सुहानी जी,आप ऐसे बोला करे,आपकी बोली बहुत मीठी है।मुझे माफ़ कर देना जो मैंने आपको यूँ ही टोक दिया।

पवन तो चला गया,पर सुहानी को झंकृत कर गया।ऐसे तो उससे पहले कोई भी नही बोला था।सुहानी के जेहन से पवन के वाक्य हट ही नही रहे थे।बहुत दिनों बाद  उसके चेहरे पर मुस्कान खिल गयी।अब कक्षा में सुहानी की नजर चुपके चुपके पवन को खोजती रहती।जब तक पवन दिखायी न दे उसे लगता कुछ खो गया है।

कभी कभी पवन की नजर उससे टकरा जाती तो सुहानी झेंप जाती।उसे लगता पवन भी उसकी तरह ही उसे देखता रहता है।

फिर अप्रत्याशित रूप से पवन सुहानी के सामने आ गया।और कहने लगा सुहानी जी बिना भूमिका के एक बात कहूँ आप मुझे अच्छी लगती हैं।यदि आप मुझसे बात न करना चाहे तो स्पष्ट बता दीजिये,मैं फिर आपसे कभी बात नही करूँगा।सुहानी केवल खड़ी रह गयी कोई उत्तर नही दे पायी।पवन ने कहा ठीक है सुहानी जी मैं आपके उत्तर का इंतजार करूंगा

,कहकर पवन एक झटके में चला गया।सुहानी चाहकर भी पवन को रोक न सकी।सुहानी को लगा अंदर से कुछ टूट गया।अगले दिन पवन दिखाई नही दिया,दो दिन बाद पवन दिखाई दिया तो सुहानी झपटती सी उसकी ओर दौड पडी,सामने पड़ने पर फिर भी कुछ बोल ना पायी।पवन खुद ही बोला सुहानी मुझे बुखार हो गया था,इसी कारण कॉलेज नही आ पाया था।

वैसे एक बात बोलूं सुहानी,मुझे मेरे प्रश्न का उत्तर मिल गया है।पहली बार सुहानी मुस्कराती हुई पवन के पास से हट गयी।

दोनो का मिलना शुरू हुआ तो पवन ने कहा, सुहानी हमारा ये अंतिम वर्ष है,इसके बाद मुझे पापा का बिजिनेस संभालना है,पढ़ाई के बाद मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।सुहानी अवाक हो उसका मुंह देखती रह गयी।फिर उसकी आँखों से आंसू बहने लगे।पवन को उसके रोने का कारण समझ ही नही आया।

कुछ देर बाद सामान्य होने पर सुहानी बोली पवन मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ, पर तुमसे शादी नही कर  सकती,पवन तुम नही जानते मैं अभागन के साथ साथ मनहूस भी  हूँ, मैं तुम्हारा अनहित नही देख सकती,मेरा तुम्हारे घर जाते ही अनहोनी हो जायेगी।अरे सुहानी कैसी बहकी बहकी बात कर रही हो?सुहानी आंखों में आंसू लिये वहाँ से चली गयी।

पवन ने अपनी माँ को सुहानी से शादी के लिये रजामंद कर लिया था।सुहानी के पिता से जब पवन के माता पिता मिले तब उन्होंने सब कुछ बताया कि उसके जन्म के साथ उसकी माँ चल बसी थी।बिन माँ की बच्ची को मैंने तो पाल लिया पर ये समाज में उसे आज भी कोई अभागन मानता है तो कोई मनहूस।

पवन ने कहा कि इस ग्रंथि को मैं दूर कर लूंगा,आप बस सुहानी से मेरी शादी की अनुमति दे दे।कहना ना होगा कुछ दिनों बाद पवन एवं सुहानी की शादी हो गयी।शादी के बाद संयोगवश पवन के व्यापार में पहले से अधिक लाभ हुआ तो पवन की माँ ने इसका श्रेय सुहानी को दिया,देखो मेरी बहू के शुभ पावँ घर मे पड़ते ही

वारे न्यारे हो गये।ऐसे ही सामान्य क्रम में घर मे सुहानी को बहू अनुरूप सम्मान मिलने लगा,यहां कोई उसे अभागन कहने वाला नही था,वहां  अच्छा हो रहा था तो सब सुहानी को भाग्यशाली कहते।धीरे धीरे सुहानी बचपन से पड़ी एक गहरी खाई से बाहर निकल रही थी।

जैसे ही डॉक्टर की रिपोर्ट आयी कि सुहानी मां बनने वाली है, पूरे घर मे हर्ष का वातावरण छा गया।रात्रि में सुहानी ने  पवन से कहा, पवन हमारा बच्चा और मैं सकुशल तो रहेंगे ना।मेरा बच्चा तो अभागा नही कहलाएगा ना।कहती कहती सुहानी पवन से लिपट कर रोने लगी।पवन ने इतना ही कहा सुहानी तुम मेरी पत्नी हो,

तुम्हे या हमारे बच्चे को कौन अभागा कहने की हिम्मत कर सकता है और सुनो, तुम्हे या हमारे बच्चे को कुछ नही होगा,ये मेरा विश्वास है।सुहानी बिल्कुल भी अपने को अकेला मत समझना।सुहानी के चेहरे पर एक असीम सी शांति चमक रही थी।

सही समय पर सुहानी को बेटा प्राप्त हुआ।सुहानी सब ग्रंथियों से बाहर आ चुकी थी।हॉस्पिटल से गोद मे बेटे को लिये पवन के साथ सुहानी जब घर आयी तो पवन के माँ -पिता और तमाम रिश्तेदार उसके स्वागत को द्वार पर ही खड़े थे।अपने सम्मान से अभिभूत सुहानी को आज लगा कि वह भी इस घर की महत्वपूर्ण अंग है।

बाहर सुहानी पवन बह रही थी।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवं अप्रकाशित

#अभागन 

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