हमसफ़र-उमा वर्मा : Moral Stories in Hindi

शोभा आज बहुत थक गई है ।अब शरीर नहीं चलता है क्या करे वह ।शरीर चलाना पड़ता है ।वह चाहती भी नहीं है कि किसी पर बोझ बने और हर जरूरत के लिए किसी पर आश्रित हो जाए।बेटा बहू दिल्ली में है अपनी नौकरी पर ।बहुत कहा उनहोंने “अम्मा, अब अकेले मत रहो,हमारे साथ चलो, यहाँ कौन देखभाल करेगा “पर नहीं, वह तो जिद पर अडिग थी।आखिर यहाँ अपना घर है, उसके पति अविनाश की यादें है,कैसे छोड़ कर चली जाए? जब से बच्चे गयें हैं तब से वह अकेली ही है यहाँ ।

हमसफर की यादों के साथ जीवन व्यतीत कर रही है ।अभी भी रसोई समेट कर, जरा सा सुस्ताने बैठ गयी है ।घरेलू काम के लिए रीता को रख गई है बहू ।फिर भी रसोई बनाना तो पड़ता ही है ।पहले यह घर भी कहाँ था।यादें मानस पटल पर चलचित्र की तरह आने लगी थी ।अविनाश सरकारी नौकरी में थे।अपना क्वाटर मिला हुआ था ।केवल पंद्रह साल की थी वह जब हमसफर के रूप में अविनाश मिले थे।दुलहन बन कर ससुराल में ही पहले आई थी।जहां सास ससुर, जेठ जेठानी, उनके बच्चे से  भरा पूरा परिवार था।सबने बहुत मान दिया था

उसे ।सासूमा बहुत ही सीधी सादी थी ।और जेठानी जी भी सरल स्वभाव की ही थी तो कभी ऐसा नहीं लगा था कि मायका छूट गया है ।हर दो महीने में मायके का आना जाना हो ही जाता ।इसी तरह हंसते खेलते जीवन बीत रहा था ।अविनाश भी बीच बीच में आते रहते, अपनी गृहस्थी, अपनी मर्जी से जीने की चाह किसे नहीं होती, शोभा को भी लगता कि अपने क्वाटर में जाए।लेकिन तब उतना खुलकर बोलने का रिवाज भी नहीं था सो वह चुप ही रहती ।अविनाश जरूर समझाते कि समय पर सब ठीक हो जाएगा, थोड़ा धीरज रखो।दो साल के बाद रोहित होने वाला था तो अम्मा जी ने ही सलाह दी

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कि शोभा को शहर ले जाए ,वहां डाक्टर की सुविधा है, समय पर चेकअप होता रहेगा, और उसकी मन की मुराद पूरी हो गई थी ।वह पति के साथ शहर आ गयी।बस दो ही जनो की गृहस्थी थी।बस से उतरी तो कुछ बर्तन और रसोई का सामान खरीदने की जरूरत पड़ी थी ।अविनाश तो मेस में खा लेते थे ।इस तरह गृहस्थी बस गई ।अविनाश सुबह आठ बजे ही आफिस चले जाते ।वह भी अपने दिनचर्या जल्दी समाप्त कर के दिन भर खूब सोती ।शाम को जब पति आते तो दोनों मिलकर रसोई बनाते और खाना खा कर बहुत दूर तक टहलते ।बहुत मजा आता ।न चिंता, न परेशानी ।निश्चित समय से दो महीने पहले पूरे परिवार का आगमन हुआ ।

बच्चे की देखभाल के लिए तो परिवार की जरूरत होती ही।समय पर रोहित का जन्म हुआ ।परिवार में खूब खुशियाँ मनाई गई ।परिवार के लोग कभी गांव लौट जाते, कभी मिलने आ जाते।जीवन की बगिया को महकाते समय बीत रहा था ।बेटा स्कूल जाने लगा था ।पढ़ाई लिखाई में अच्छा था।अविनाश कहते “देखना, मेरा बेटा एक दिन बड़ा अफसर बनेगा

“और सचमुच बेटा आफिसर बन गया था एक दिन ।आई आई टी, बेंगलूर से इंजीनियरिंग की परीक्षा में टाॅप किया था और उसकी पोस्टिंग एक मल्टी नेशनल कंपनी में, दिल्ली में हो गई थी ।इधर अविनाश सोचते, अब सबकुछ तो ठीक चल रहा है, हमे एक छोटा सा घर  बना लेना चाहिए ।फिर शोभा की सहमति से दौड़ धूप कर जमीन खरीद लिया और घर बनवाने की तैयारी होने लगी ।दोनों पति पत्नी बैठते तो आपस में सलाह करते “जमीन तो अच्छा है, घर बनवाने के बाद भी जगह रह जायेगी तो मै साग सब्जी लगाकर अपना समय बिता लूँगा ।

“नहीं जी, मै बहुत सारे फूल पत्तियों से घर सजाने के लिए सोच रही हूँ ,और एक झूला भी डाल देंगे “पर झूले पर बैठेंगे कौन?अविनाश पूछते ।”क्यों हम और आप हैं ना?”इसी नोकंझोक में घर बनने लगा ।गृह प्रवेश का समय हो रहा था तो बेटे को फोन लगाया तो उसने कहा था कि “मम्मी मै आ रहा हूँ, लेकिन साथ में वंशिका भी आ रही है “”कौन वंशिका,?क्या तूने लड़की भी देख ली है?””हाँ मम्मी? हमदोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं, शादी करना चाहते हैं “तुम और पापा की रज़ामंदी चाहिए “।मन धक से हो गया था उसका ।कितने अरमान सजा रखे थे,बेटे के नाम से ।

शादी अपनी पसंद से होगी, खूब सुन्दर लड़की लाऊंगी उसके लिए, खूब पढ़ी लिखी होगी ।मेरा बेटा भी तो लाखों में एक है ।दहेज–तो थोड़ा बहुत चलेगा ही।आखिर शान शौकत के लिए खर्च तो चाहिए ही ना ।लेकिन सब मन में धरा रह गया ।बेटे की इच्छा जान कर मंजूरी देनी पड़ गयी थी ।फिर मालूम हुआ लड़की विजातीय है ।क्या करती वह ।मन में कोई उत्साह नहीं था शादी हो गई । बहु देखने में सुन्दर और पढ़ी लिखी थी साथ में ही

जाॅब कर रही थी ।सोचा जाती की समस्या बहुत बड़ी नहीं होनी चाहिए, बेटे की पसंद, उसकी पसंद ।हालांकि अविनाश तो शादी के खिलाफ ही थे।वंशिका बहू बनकर घर आ गई ।परिवार में थोड़ी कानाफूसी भी हुई ।लेकिन शोभा को परवाह नहीं था ।कहते रहें लोग, लोगों का क्या, उनका तो काम ही है कहना ।एक महीने की छुट्टी पर आया था

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रोहित।वंशिका भी साथ ही थी।रोज सुबह उठकर बहू चाय बनाकर सबको पिलाती ।फिर नहा धोकर पूजा पाठ का इंतजाम कर देती, और खुद नाशता बनाने की तैयारी में लग जाती।घर भी पहले अस्त व्यस्त रहता ।वंशिका सबको व्यवस्थित कर देती ।समय पर खाना, नाश्ता, होने लगा था ।शोभा सोने जाती तो बहू तेल मालिश कर देती बालों में “लाइए मम्मी, मै मालिश कर देती हूँ, आपको नींद अच्छी आयेगी “हैरान हो गई थी शोभा ।गजब की फुर्ती है लड़की में ।जात परजात क्या करेगा? कितना खयाल रखती है हमारा।फिर अविनाश भी सहमति में सिर हिला देते।

“सही कह रही हो शोभा “बहुत अच्छी और प्यारी लड़की है यह”।एक महीना बीतने में देरी कहाँ लगता है ।उनकी छुट्टी खत्म हो गई, और जाने की तैयारी होने लगी ।शोभा के आंसू रूकने का नाम ही नहीं ले रहा था ।नहीं रह पायेगी वह बच्चों के बिना ।पर पति को भी  कैसे छोड़ दे ? अविनाश भी अगले महीने रिटायर होने वाले हैं ।इस समय साथ रहना भी आवश्यक है ।मन में उथल-पुथल मचा रहता शोभा का।पर कोई उपाय भी नहीं था ।आधा मन उसका अपने बेटे बहू में लगा रहता है, आधा पति के पास ।किसी को नहीं छोड़ा जा सकता है ।उदास मन से अपने काम काज में लगी रहती ।

छोटा सा ही घर था उसका, फूल पौधे के बीच झूला भी लगा था ।पहले कितना मन से झूलती रहती थी ।अब मन ही  नहीं करता ।अब किसी  काम में उसका मन ही नहीं  जमता ।ऐसे ही  एक दिन  बेटे से फोन कर रही थी कि बाहर शोर सुनाई दिया ।निकल कर आई तो देखा अविनाश खून से लथपथ हैं ।उसकी चीख निकल गई थी ।वह बेहोश हो कर गिर पड़ी थी।पड़ोसियो ने अस्पताल पहुंचाया ।होश आया तो मालूम हुआ कि अविनाश जी की रिटायरमेनट की तैयारी थी।वह आफिस जा ही रहे थे कि एक तेज रफ्तार से आते ट्रक के चपेट में आ गये ।लोगों ने तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया ।लेकिन डाक्टर ने पूरी

जाँच की और कहा कि अब वे नहीं  हैं ।तुरंत उनके शरीर को निजी गाड़ी पर लाद कर घर लाया गया था ।सबकुछ इतना जल्दी ऐसा  घट जायेगा कोई नहीं जानता था।खबर मिलते ही बेटा बहू दौड़ा  आया ।फिर सबकुछ रीति रिवाज से  समापन हो गया ।सारे नाते रिश्ते अपने घर लौट गये ।बेटे को भी  लौटना जरूरी था।बहुत जोर दिया कि मम्मी भी  साथ चले।लेकिन शोभा जिद पर अड़ी रही ।”नहीं बेटा, अभी कुछ दिन रहने दो मुझे यहाँ “फिर मन नहीं लगा तो तुम लोग तो हो ही ।और किसके पास रहूँगी?”बेटा बहू लौट गया ।अब वह यहाँ अकेली है ।लेकिन है ना पति की यादें, उनके साथ बिताये एक एक क्षण ।

अकेले रहकर भी बहुत शान्ति मिलती है उसे ।लेकिन शरीर  का क्या?जबसे अविनाश गये हैं, वह भीतर से कमजोर हो गई है ।हमसफर का साथ छूट जाना बहुत दुखदाई होता है ।यह शोभा से अधिक कौन जानता है ।थोड़ा सा काम करने पर भी  थक जाती है वह।एक साल होने जा रहा है ।अब नहीं रह पायेगी वह अकेली ।सोच रही है सबकुछ बेचबाच कर बेटे के पास चली जायेगी ।अब मोह क्या करना है घर का।जब बनाने वाले ही नहीं रहे।वह आज ही  रोहित को अपना फैसला बता देगी।अब इस उम्र में सहारे की जरूरत तो होती ही है ।उसने फोन लगाया

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“बेटा—“हाँ मम्मी बोलिए—आवाज़ वंशिका की थी।बेटा, अब मुझे तुम दोनों की सहारे की जरूरत है, शरीर जवाब दे रहा है–“सुबह की फ्लाइट से बेटा बहू हाजिर हो गया ।शोभा अपना सामान पैक करने में लग गई साथ में अविनाश की तस्वीर को सीने से लगा लिया और रोती रही “हमसफ़र बनके आये थे, क्यों साथ छोड़ दिया? “चलो मम्मी, कैब आ चुका है ” रोहित ने आवाज़ दी है ।निकल गई है शोभा अपने बच्चों के साथ, उनके सपनों के साथ जियेगी अब।हंसी खुशी ।जाने वाले कभी लौट कर नहीं आते ।यह सोच लिया है उसने ।बच्चे भी  तो उनके ही हैं ।उसी में उनको महसूस करेगी ।एक नजर घर को देख रही है जाते जाते ।बाद में बेटा आकर घर का हिसाब किताब कर लेग।पड़ोसी देख  रहें हैं ।शोभा आखों से ओझल हो गई है ।

उमा वर्मा ।

राँची, झारखंड ।

स्वरचित ।मौलिक ।

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